भाग्य रेखा परिचय – Introduction of Fate Line # 1
भाग्य रेखा के द्वारा नोकरी, भाग्य, प्रेम आदि के बारे में जाना जा सकता है, यहाँ भाग्य रेखा के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है।किसी भी रेखा को, जो शनि की ओर जाती है, भाग्य रेखा कह सकते हैं। हाथ में भाग्य रेखा चन्द्रमा, जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा या हृदय रेखा से निकल कर सीधी शनि की अंगुली की ओर जाती है। कभी-कभी भाग्य रेखा किसी मंगल या शनि क्षेत्र से निकल कर शनि पर जाती है।
भाग्य रेखा मणिबन्ध से निकल कर बिना रुके और बिना टूटे शनि की अंगुली तक पहुंचती हो तो बहुत ही उत्तम मानी जाती है। परन्तु ध्यान रहे कि कोई भी छोटी भाग्य रेखा जीवन रेखा के प्रारम्भ के एक इन्च बाद निकल कर शनि की ओर जानी आवश्यक है, अन्यथा उत्तम से उत्तम भाग्य रेखा भी उत्तम फल देने में असमर्थ होती है परन्तु खमदार जीवन रेखा में इस भाग्य रेखा की जरूरत नहीं होती और एक से अधिक भाग्य रेखाएं होने पर भी जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलना आवश्यक नहीं। हाथ में जितनी ही अधिक भाग्य रेखाएं होती हैं या एक ही उत्तम भाग्य रेखा होती है, मनुष्य उतना ही भाग्यशाली, सम्पतिशाली व सफल होता है। हाथ चौड़ा भारी, गुदगुदा, नरम और चिकना होना भाग्य रेखा के फल में चार चांद लगा देता है।
चन्द्रमा व दोनों मंगल से निकली हुई भाग्य रेखा का प्रभाव उस आयु में आरम्भ होता है जिसमें कि वह शनि क्षेत्र में प्रवेश करती है। शनि क्षेत्र में प्रवेश की आयु से पहले प्रभावित रेखा का कार्य करती है। पतले हाथों में बहुत अच्छी भाग्य रेखा दरिद्रता का लक्षण है, कई भिखारियों के हाथों में भी उत्तम रेखाएं देखी जाती हैं। हाथ जितना ही भारी और कोमल होता है उत्तम भाग्य रेखा उतना ही श्रेष्ठ फल करती है।
जो भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास, चन्द्रमा या शनि क्षेत्र से निकल कर हृदय रेखा को पार करती हुई सीधी शनि की अंगुली के नीचे तक पहुंचती है, अति उत्तम होती है।
भाग्य रेखा का मस्तिष्क रेखा या हृदय रेखा पर रुकना दोषपूर्ण माना जाता है। यह भाग्य रेखा का प्रमुख दोष है। मोटी, जीवन रेखा के पास व टूटी-फूटी भाग्य रेखा निकृष्ट मानी जाती है तथा लम्बी, पतली, जीवन रेखा से दूर भाग्य रेखा जीवन में सुख शान्ति व धन सम्पत्ति की बहुलता का लक्षण है।
भाग्य रेखा से धन, सवारी, नौकरी, व्यापार, जीवन साथी आदि के विषय में विचार किया जाता है। अन्य रेखाओं के साथ भाग्य रेखा के फल का समन्वय करके ही फल कहना चाहिए क्योंकि हाथ में किसी भी रेखा का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता, एक रेखा के दोष का दूसरी रेखा पर प्रभाव पडता है। दो या उससे अधिक रेखाएं या लक्षण मिल कर ही किसी फल को ठीक निश्चित करते हैं।
उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए यह जाना जाता है कि भाग्य रेखा का हाथ में महत्वपूर्ण स्थान है। अत: हाथ देखते समय भाग्य रेखा का सूक्ष्म निरीक्षण आवश्यक है।
अंगुलियां सीधी तथा इनके आधार नीचे से सम होना भाग्य रेखा के फल में विशेष वृद्धि करते हैं।
द्वीप से युक्त, भारी, पतली, टूटी, काली, लाल, टेढ़ी-मेंढ़ी, मिटी हुई सी, धब्बे या दाग से युक्त या किसी रेखा से कटी हुई भाग्य रेखा दोषपूर्ण मानी जाती है।
कभी-कभी भाग्य रेखा शनि पर न जाकर वृहस्पति या सूर्य पर भी जाती है। इसका निर्णय इसके निकास स्थान से ही करना होगा। इस प्रकार की रेखा भी भाग्य रेखा ही कहलाएगी।
अंगूठे की लम्बाई, पतलापन, अधिक खुलना तथा शुक्र का सामान्य होना, भाग्य रेखा के दोष को किसी हद तक कम कर देते है। इसके विपरीत अंगूठा छोटा, मोटा, कम खुलने वाला तथा उन्नत शुक्र उत्तम भाग्य रेखा के फल में तो कमी करता ही है, दोषपूर्ण भाग्य रेखा को अधिक दोषपूर्ण बना देता है।
उत्तम भाग्य रेखा – Best Fate Line
बहुत अच्छी भाग्य रेखा जीवन रेखा, इसके पास, शनि क्षेत्र या चन्द्रमा से उदय होकर सीधी शनि की अंगुली तक जाने वाली मानी जाती है। यह रेखा जितनी ही पतली, जीवन रेखा से दूर निर्दोष होती है उत्तम होती है। यहां फिर से लिखना आवश्यक है कि अच्छी भाग्य रेखा के साथ जीवन रेखा से कोई छोटी भाग्य रेखा शनि स्थान के नीचे से निकलना परम आवश्यक है, अन्यथा भाग्य रेखा उतना उत्तम फल नहीं करती, परन्तु भाग्य रेखा एक से अधिक होने पर यह अनिवार्य नहीं है।
उत्तम भाग्य रेखा वाले व्यक्ति जिस घर में जन्म ग्रहण करते हैं वह दिन-प्रतिदिन प्रगति करता है, रुके हुए काम तथा झंझट दूर होकर विषम परिस्थितियां भी सुगम हो जाती हैं, ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती है, धन व सौभाग्य बढ़ता जाता है। इन्हें धन, स्त्री, सन्तान, सम्पत्ति व सवारी सुख मिलता है। ऐसे व्यक्ति महत्वाकांक्षी, प्रतिष्ठित, प्रसिद्ध, कुल के मुख्य पुरुष, भरण-पोषण करने वाले, नौकरों के सुख वाले तथा सम्मानित होते हैं। ऐसी रेखा बहुत कम व्यक्तियों में पाई जाती है। ऐसे व्यक्ति धूल में पैदा होकर भी ख्याति प्राप्त करते हैं। यह असाधारण मानव होने का लक्षण है। इन्हें ऐसे व्यक्ति भी सहयोग देते हैं जो किसी का सहयोग कभी नहीं करते। इनको कभी भी असफलता का मुंह नहीं देखना पड़ता और इनकी प्रतिष्ठा को भी कभी आँच नहीं आती। अक्सर ये व्यापार ही करते हैं, यदि नौकरी भी करते हों तो प्रतिष्ठित पद पर जैसे मंत्री, राजदूत, किसी बड़े संस्थान के मैनेजर, वक्ता, नेता या सलाहकार होते हैं।
अन्य रेखाएं दोषपूर्ण होने पर यदि भाग्य रेखा बहुत अच्छी और हाथ भी उत्तम हो तो भी इन्हें लगातार सफलता मिलती जाती है। अन्य दोषों के कारण कष्ट तो प्राप्त होते हैं परन्तु संघर्ष में बल व सफलता प्राप्त होती हैं। अन्य रेखाओं में दोष होने के कारण इन्हें मानसिक शान्ति तो नहीं मिलती परन्तु जो सोचते हैं पूरा हो जाता है। उत्तम भाग्य रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर सन्तान सुख अवश्य होता है परन्तु सन्तान आरम्भ में लापरवाह और गैर जिम्मेदार होती है तो भी अन्त में रहती योग्य ही है।
पतला हाथ होने पर अच्छी भाग्य रेखा लाभप्रद नहीं होती, उल्टा हानि करती है, तो भी इन्हें रोटी अवश्य मिलती रहती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों को लड़ाना, बिना मतलब झगड़ेबाजी में पड़ना, निरर्थक बहस तथा दूसरों को समझाने आदि कार्यो में अपना समय बरबाद करते हैं। नशीली चीजों के सेवन आदि से भी अपना जीवन खराब करते देखे जाते हैं।
रेखाएं हाथ के अनुसार ही होनी चाहिए। भारी, चौड़े, गुलाबी, कोमल, समकोण, चमसाकार, आदर्शवादी तथा दार्शनिक हाथों में ही उत्तम रेखाएं उत्तम फल करती हैं। टेढ़े, काले, अधिक लाल, बहुत छोटे और टेढ़ी अंगुलियों वाले हाथों में उत्तम भाग्य रेखा होने पर व्यक्ति दूषित आदतों वाले व चोर होते हैं तथा जिन व्यक्तियों की अंगुलियों में गांठे नहीं होती वे आलसी और शौकीन होते हैं।
अच्छी भाग्य रेखा वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर स्वास्थ्य खराब तो रहता है परन्तु विशेष नहीं। एक सुन्दर भाग्य रेखा होने पर अंगूठे के मूल में जितनी मोटी रेखाएं होती हैं व्यक्ति उतने ही काम बदलता है या उतने ही काम एक साथ करता है। सूर्य पर पाई जाने वाल रेखाओं से भी यही अनुमान लगाया जाता है।
भाग्य रेखा उत्तम होने पर व्यक्ति का जिससे भी विशेष सम्पर्क जैसे कोई प्रेम मित्रता आदि होते हैं, बड़े काम पर लगे होते हैं या बड़े घर के होते हैं। हाथ यदि थोड़ा भी कठोर हो तो ऐसे व्यक्ति टेक्नीकल काम करने वाले और कोमल होने पर बौद्धिक कार्य करने वाले होते हैं। बुध का नाखून चौकोर होने पर हाथ में सभी ग्रह उठे हुए हों तो सलाहकार या अध्यापक, मस्तिष्क रेखा में शाखाएं और हाथ कोमल हो तो राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करने वाले होते हैं।
समकोण हाथ में अच्छी भाग्य रेखा अत्यधिक गुणकारी होती है। ऐसे व्यक्ति धनी-मानी तथा प्रतिष्ठित होते हैं। उत्तम भाग्य रेखा यदि मोटी हो तो शोषण करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति के साथ मिल कर व्यापार नहीं करना चाहिए। ये लोभी होते हैं और दूसरे का धन हड़प कर के धनी बनते हैं।
भाग्य रेखा जीवन रेखा के साथ घूम कर शुक्र को घेरती हो तो ऐसे व्यक्ति व्यापार ही करते है परन्तु यह चन्द्रमा की ओर मुड़ती हो तो नौकरी करते हैं। इसकी शाखाएं दोनों ओर जाने पर व्यापार तथा नौकरी दोनों ही करते हैं।
भाग्य रेखा जिस आयु में जीवन रेखा से दूर, स्वतंत्र, मोटी से पतली होती है व्यक्ति के जीवन में आर्थिक स्वतंत्रता, धन लाभ, विवाह, प्रेम सम्बन्ध तथा उन्नति का समारम्भ होता है। हाथ में जितनी ही अधिक भाग्य रेखाएं होती हैं व्यक्ति के उतने ही अधिक आय के साधन होते हैं, यह धन, सौभाग्य व प्रतिष्ठा में उन्नति का भी लक्षण है।
यहां यह विशेष रूप से जानने की बात है कि कितना ही अच्छा हाथ या रेखाएं हों शुक्र उन्नत होने पर व्यक्ति को इसका विशेष फल 43वर्ष के पश्चात् ही मिलता है। उन्नत शुक्र का पता हाथ देखने से ही लग जाता है; इस दशा में यह सबसे अलग दिखाई देता है। इसका विस्तार से वर्णन शुक्र के विषय में विचार करते समय कर दिया गया है।
भाग्य रेखा के आरम्भ में अक्सर बड़ा द्वीप देखने में आता है। यह अन्य रेखाओं से मिल कर बनता है। भाग्य रेखा उत्तम, स्वतंत्र व पतली होने पर भी जिस आयु तक यह द्वीप भाग्य रेखा में रहता है, अनेक प्रकार के कष्ट देता है तथा जीवन, धन, कुटुम्ब व रोजगार से असन्तोष का लक्षण है। इस द्वीप की समाप्ति की आयु के पश्चात् ही सुन्दर भाग्य रेखा का फल आरम्भ होता है।
सुन्दर भाग्य रेखा होने पर यदि जीवन रेखा अधूरी, मस्तिष्क रेखा में बड़ा द्वीप हो तो उस दोष की आयु के पश्चात् ही उत्तम भाग्य रेखा का फल मिलता है परन्तु दोष के फल में कमी हो जाती है। यदि मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा का जोड़ लम्बा हो तो उस जोड़ की आयु निकलने के पश्चात् ही उत्तम भाग्य रेखा का फल मिलता है।
दोष की दशा में व्यक्ति का जीवन यापन तो ठीक होता रहता है परन्तु जीवन में अच्छी स्थिति दोष की आयु के पश्चात् ही आती है। हाँ! यदि भाग्य रेखाओं की संख्या अनेक हों तो जीवन पहले से ही उन्नत तथा सन्तोषपूर्ण रहता है। प्रतिष्ठा, उन्नति, धन लाभ तो होता है तो भी दोष के समय तक स्थायित्व तथा मानसिक शान्ति नहीं मिल पाती, दोष का समय निकलने के पश्चात् चहुंमुखी प्रगति होती है।
दोषपूर्ण भाग्य रेखा
टूटी-फूटी, द्वीपयुक्त, आरम्भ में बड़े द्वीप से युक्त, लहरदार, मोटी, मस्तिष्क या हृदय रेखा में रुकी व जीवन रेखा के पास होने पर भाग्य रेखा दोषपूर्ण मानी जाती है। इसका दोष हाथ के मुल्य में कमी करता है। जिस आयु तक उपरोक्त दोष होते हैं, उसी आयु तक यह अनिष्ट फल कारक होती है।
इस प्रकार की भाग्य रेखा हर काम में रुकावट का लक्षण है जैसे: शिक्षा, विवाह, नौकरी, व्यापार आदि। साझे में काम करने पर रुकावट व झगड़ा होता है, और साझी भी संख्या में अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्तियों में पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती। दोनों एक दूसरे को सन्देह की दृष्टि से देखते हैं व पसन्द भी नहीं करते। विशेष बात यह है कि दोनो को विषम परिस्थितियों में भी साथ ही रहना पड़ता है। भाग्य रेखा दोषपूर्ण होने पर विवाह रेखा हृदय रेखा पर मिली होने पर या हृदय रेखा की मोटी शाखा मस्तिष्क रेखा से निकलने पर या तो तलाक हो जाता है या दोनो में से एक की मृत्यु हो जाती है। ये परिस्थितियां उस समय तक चलती हैं जिस समय तक भाग्य रेखा में दोष रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक भाग्य रेखा में दोष होता है तब तक मानसिक शान्ति नहीं मिलती।
इसका कुछ न कुछ प्रभाव जीवन भर रहता है। परन्तु दोष की आयु में कुटुम्ब में परेशानी, खर्चा, धन की कमी, आपस में झगड़ा, स्वास्थ्य में दोष, मुकदमा, मृत्यु आदि कोई न कोई झंझट लगा ही रहता है और प्रत्येक कार्य में रुकावट होती है। विवाह में रुकावट, सम्बन्ध होकर टूटना, पत्नी से असन्तोष, उसका स्वास्थ्य खराब होना आदि फल भी रहते है।
अंगुलियां पतली, सीधी व छोटी, अंगूठा पतला व लम्बा और मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर दोषपूर्ण भाग्य रेखा के फलों में लक्षणों के परिमाण अनुसार कमी हो जाती है। दोष के समय तक व्यक्ति क्रोधी, जल्दबाज व निराश रहते हैं। वासनात्मक प्रवृत्ति भी इस आयु में अधिक रहती है, फलस्वरूप किसी प्रेम सम्बन्ध में फंस जाते हैं और जीवन निर्माण की ओर इनका ध्यान नहीं जाता।
इस आयु में यदि दोष आरम्भ में हो तो किसी उत्तरदायी-पूर्वज की मृत्यु जिनमें पिता, माता आदि भी सम्मिलित हैं, हो जाती है और व्यक्ति के ऊपर से नियंत्रण हट जाता हैं फलस्वरूप वह स्वछन्द हो जाता है।
भाग्य रेखा में जैसे-जैसे सुधार आरम्भ होता है स्वत: ही सारी बातें ठीक होकर व्यक्ति का स्वभाव, आदतें, अर्थाभाव आदि कष्ट दूर हो जाते हैं।
भाग्य रेखा दो तीन या अनेक
भाग्य रेखाएं हाथ में कभी-कभी एक से अधिक भी पाई जाती है। ऐसी भाग्य रेखाएं यदि उत्तम हाथ में हो तो अमित फलदायी होती है। ऐसे व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं। धन, सम्पत्ति, सवारी, यश, सम्मान सभी कुछ इनको जीवन में प्राप्त होता है। अन्य रेखाओं के दोष को भी ये रेखाएं कम कर देती हैं, अर्थात् जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर अनेक भाग्य रेखाओं के प्रभाव से यह बहुत कम हो जाता है, चाहे अंगूठा मोटा, चौड़ा या कम ही क्यों न खुलता हो।
ये रेखाएं पतले, टेढ़े या काले हाथ में होने पर इनके साथ झगड़े-फसाद होते रहते है। अंगूठा अच्छा होने पर ऐसे व्यक्ति उन्नति तो करते है परन्तु शान्ति नहीं मिलती। जीवन भर ऐसा ही रहता है। धनी अवश्य हो जाते हैं। अनेक भाग्य रेखाएं होने पर दूसरे व्यक्ति भी जो किसी की सहायता नहीं करते इनकी सहायता करने के लिए आगे आते हैं। ऐसे व्यक्ति अंगूठा लचीला हो तो दूसरों के प्रभाव में आ जाते हैं वरना किसी की गलत बात को आसानी से नहीं मानते। इनकी अपनी सोची हुई बात किसी हद तक ठीक ही होती है।
अच्छी भाग्य रेखाएं बुरे प्रभाव से बचाती हैं। ऐसे व्यक्ति अपने ही मस्तिष्क से कार्य करने वाले होते हैं। शुक्र प्रधान होने पर जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा अधिक जुड़ी हो तो वहमी होते हैं। हर व्यक्ति को हर बात में अविश्वास की दृष्टि से देखते हैं। आरम्भ में ये हानि उठाते हैं क्योंकि दूसरों पर निर्भर अधिक रहते हैं परन्तु भाग्य रेखाएं अनेक होने की दशा में इस हानि की मात्रा कम होकर धन का पूर्ण सुख होता है।
कई भाग्य रेखाएं होने पर मुख्य भाग्य रेखा या इस जैसी किसी भाग्य रेखा में द्वीप हो तो उस आयु में झंझट रहता है। दूसरा काम भले ही चलता रहें परन्तु किसी न किसी काम में विशेष रुकावट या परेशानी होती है, मुकदमा या हानि आदि फल भी होते हैं। इस हानि की पूर्ति अन्य कार्यो में होने वाले लाभ से भी नहीं हो पाती। ऐसे व्यक्तियों को दूसरी आय का साधन होते हुए भी कष्ट होता है, क्योंकि एक कार्य से होने वाली आय हानि में लग जाती है। हाथ के स्तर के अनुसार फलादेश कहना चाहिए।
नरम व गुलाबी हाथ में दो या अधिक भाग्य रेखाएं हों तो व्यक्ति सात्विक प्रवृत्ति के होते हैं। अंगूठा कठोर होने पर ऐसे व्यक्ति स्वतंत्र तथा सिद्धान्तवादी होते हैं और अपने काम में किसी की रोक-टोक पसन्द नहीं करते, शान से रहते हैं तथा पसन्द करते हैं कि इनके राजाओं जैसे ठाट रहें, फलस्वरूप इन्हें खर्च करने की आदत होती है और इनके घर का खर्च भी अधिक होता है। अंगूठा लचीला व अंगुलियां लम्बी होने पर विशेष दयालु भी होते है।
अनेक भाग्य रेखाएं होने पर हाथ में दो अन्तर्ज्ञान रेखाएं हो तो व्यापार में बहुत उन्नति करते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा समानान्तर व हाथ भारी हो तो स्थायी कार्य वाले, प्रतिष्ठित व धनी होते हैं। दूसरे व्यक्ति इन लोगों के मुकाबले में टिक नहीं पाते क्योंकि वास्तव में ही ये योग्य और अपने कार्य में पूर्णतया निपुण होते हैं, अपने क्षेत्र में इनका वर्चस्व होता है।
अनेक भाग्य रेखाएं होने पर नि:सन्देह व्यक्ति सम्पत्ति का निर्माण करता है, यह सम्पत्ति भी उत्तम कोटि की होती है। इस दशा में जीवन रेखा में त्रिकोण होने पर सम्पत्ति का आकार बहुत बड़ा पाया जाता है। ये अपनी किसी सम्पत्ति में पास का भाग मिला कर सम्पत्ति को बड़ा करते हैं, फलस्वरूप इसका विराट रूप हो जाता है।
मुख्य भाग्य रेखा के साथ लगभग 1/4 इंच की दूरी पर यदि लगभग उतनी ही मोटी रेखा भाग्य रेखा के कुछ समय तक साथ चलती हो तो उस आयु में व्यक्ति की आर्थिक, मानसिक व कौटुम्बिक परेशानी रहती है। भाग्य रेखा के साथ उत्तर आयु में कोई रेखा साथ चलती हो तो व्यक्ति उस आयु में या तो विवाह करता है या प्रेम सम्बन्ध होता है। इस दशा में यह देख लेना चाहिए कि पत्नी जीवित है या नहीं।
शाखान्वित भाग्य रेखा
मूल भाग्य रेखा से कभी-कभी नई शाखाएं निकल कर चलती हैं या स्वयं ही भाग्य रेखा दो या अनेक भागों में विभक्त हो जाती है। इस प्रकार की भाग्य रेखा को शाखान्वित भाग्य रेखा कहते हैं।
जिस आयु में भाग्य रेखा से शाखा निकलती है उस समय कार्य में परिवर्तन, उन्नति, नौकरी में तरक्की, व्यापार में लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति हर समय नई-नई बातें सोचते रहते हैं। उत्तम हाथ होने पर दिन प्रतिदिन प्रगति करते जाते हैं। भाग्य रेखा से कोई रेखा निकल कर सूर्य पर जाती हो तो उस आयु में व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करता है जिससे उसकी प्रसिद्धि होती है और यदि कोई शाखा वृहस्पति पर गई हो तो वह उच्च पद प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति जो भी इच्छा करते हैं वह पूरी हो जाती है। दिन प्रति दिन उन्नति की ओर अग्रसर होते जाते हैं। भाग्य रेखा से बुध पर गई हुई शाखा व्यापार सम्बन्ध में उन्नति का लक्षण है।
भाग्य रेखा पर शनि के नीचे अर्थात् अन्त में शाखा हो तो बहुत उत्तम लक्षण है। किसी भी आयु में इसका फल हो सकता है। अन्य रेखाओं में जब भी उन्नति के लक्षण आरम्भ होते हैं तभी यह द्विभाजन अपना चमत्कार दिखाता है। ऐसे व्यक्ति पहले कितने भी दु:खी रहे हों प्रौढ़ावस्था में अवश्य ही धन, सन्तान व सम्पत्ति का सुख प्राप्त करते हैं और बुरे दिनों को शीघ्र भूल जाते हैं। इस प्रकार के द्विभाजन से व्यक्ति के अन्दर आगे होने वाली घटनाओं का आभास हो जाता है।
जब भाग्य रेखा शनि के नीचे तीन भागों में विभक्त होकर त्रिशूल बनाती हो तो ऐसे व्यक्ति शिव उपासक होते हैं और इन्हें अपने इष्ट देव के दर्शन हो जाते हैं। किसी अन्य देवता की उपासना करने वाले व्यक्ति के हाथ में ऐसे चिन्ह हो तो उन्हें शिवोपासना करने की सलाह देनी चाहिए।
कभी-कभी भाग्य रेखा द्विभाजित होकर मस्तिष्क रेखा पर मिलने से द्वीप की आकृति बनाती है। यह उस आयु में झंझटों का चिन्ह है, झंझट का कारण स्वयं की आदत होती है।
भाग्य रेखा से कोई शाखा शनि की ओर जाती हो तथा उसके अन्त में द्वीप हो तो कार्य उस आयु में प्रारम्भ किया जाता है अन्त में उससे परेशानी व हानि होती है। कार्य साझे में होने की दशा में मुकदमेबाजी तथा अन्य परेशानियां होती है और मुकदमे में हार होती है। ऐसे व्यक्ति की दुकान आदि को कोई जला देता है या लूट लेता है या इनके जमे जमाये कार्य पर कोई दूसरा अधिकार कर लेता है और ऐसे व्यक्ति झगड़े या मुकदमेबाजी की परिस्थिति में नहीं होते या ऐसा करने पर इनकी हार होती है। यदि हाथ में उपरोक्त दोषों को दूर करने वाला लक्षण हो तो लाभ तो नहीं होता परन्तु हानि भी नहीं होती, झगड़ा अवश्य होता है। अंगुलियां पतली व छोटी, अंगूठा लम्बा व पतला, जीवन रेखा घुमावदार मस्तिष्क रेखा दोनों ओर शाखान्वित, वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली के बराबर या लम्बी हो तो हार विजय में परिवर्तित हो जाती है और लाभ का सन्देश लाती है।
भाग्य रेखा का निकास – origin of fate line
भाग्य रेखा निम्न स्थानों से निकलती हुई देखी जाती है :-
जीवन रेखा से भाग्य रेखा का निकास
जीवन रेखा से भाग्य रेखा का निकास स्पष्ट है परन्तु कुछ हाथों में भाग्य रेखा किसी और स्थान से निकलती है और इसका सम्बन्ध किसी अन्य रेखा के द्वारा जीवन रेखा से होता है। इस प्रकार की भाग्य रेखा सम्मिलित फल करती है।
जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलने पर व्यक्ति पूर्णतया स्वनिर्मित होते हैं। ये न्याय से धन कमाते हैं। भाग्य रेखा पतली होने पर निश्चय ही यह गुण होता है। इन्हें अपना जीवन निर्माण करने की सतत आकांक्षा रहती है और इस दिशा में सतत प्रयत्न करते हैं। ऐसे व्यक्ति पहले नौकरी करते देखे जाते हैं तथा बाद में अवसर मिलने पर व्यापार में आ जाते हैं। ये आत्मविश्वासी तथा कुटुम्ब से प्रभावित होते हैं, फलस्वरूप ऐसे कार्य नहीं करते जिससे इनकी या इनके कुटुम्ब की प्रतिष्ठा को आंच आती हो परन्तु भाग्य रेखा निर्दोष होनी आवश्यक है। साथ ही साथ देख लेना चाहिए कि वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली से अधिक छोटी तो नहीं है। भाग्य रेखा दोषपूर्ण होने पर यदि वृहस्पति की अंगुली भी छोटी हो तो सम्मान से गिर कर भी कार्य कर डालते हैं तथा लांछन एवं चरित्र की परवाह नहीं करते। ऐसे व्यक्ति परोपकारी होते हैं, यदि अंगुलियां अधिक छोटी व पतली नहीं हो तो कोई न कोई परोपकार का कार्य अवश्य करते देखे जाते हैं। प्रतिष्ठा को सबसे अधिक महत्व देते हैं व दूसरों का लाभ देख कर लोभ नहीं करते।
जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा जीवन रेखा के समीप चलकर कुछ दूर समाप्त हो जाती हो तो इस आयु के पश्चात् ही जीवन में सफलता मिल पाती है। उपरोक्त प्रकार से समाप्त हुई भाग्य रेखा में से यदि कोई दूसरी भाग्य रेखा निकल कर शनि की ओर जाती हो तो उस आयु से उन्नति करना आरम्भ करते हैं और इन्हें उस आयु में स्वतंत्र अधिकार प्राप्त हो जाते हैं।
ऐसे व्यक्तियों की जीवन रेखा सीधी हो तो इन्हें जीवन बनाने में संघर्ष अधिक करना पड़ता है तथा जीवन देर से बन पाता है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण शक्ति एक स्थान पर केन्द्रित नहीं कर पाते। भाग्य रेखा का फल भी उस आयु तक नहीं मिलता जब तक जीवन रेखा में दोष रहता है। ऐसे व्यक्तियों का जीवन यापन तो होता रहता है परन्तु अधिक खर्च या ऋण के कारण मानसिक परेशानी रहती है। जिस आयु तक जीवन रेखा सीधी होती है ऐसा ही रहता है। हां ! यदि भाग्य रेखा दो या अधिक हों तो ऐसे अनेक दोषों के होते हुए भी व्यक्ति शीघ्र ही उन्नति कर लेते हैं।
जीवन रेखा से निकल कर भाग्य रेखा बिना रुके निर्दोष होकर शनि पर पहुंचती हो तो व्यक्ति कई-कई काम करते हैं। साझेदारी में एवं स्वतंत्र कार्य भी करते हैं। हाथ कुछ कठोर होने पर कारखाने लगाते हैं तथा इनके कारखाने भी कई जगह होते हैं परन्तु यह हाथ की उत्तमता पर निर्भर करता है। हाथ नरम होने पर ये दुकानदारी या एजेन्सी आदि कार्य करते हैं। यह भी कई स्थान पर होता है। हाथ निर्दोष होने पर सफलता मिल जाती है। हाथ चौड़ा व भारी होने पर भी यदि अंगुलियां लम्बी हों तो सफलता मिलने में थोड़ा विलम्ब होता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति दूसरों पर निर्भर रहते हैं व उदार होते हैं। हाथ अधिक कोमल होने पर भी उद्योग की ओर जाते हैं। भारी और अधिक कोमल हाथ उद्योगपति होने का लक्षण है।
यदि इस प्रकार की भाग्य रेखा वृहस्पति पर गई हो व हाथ में वृहस्पति उन्नत हो तो जीवन भर नौकरी ही करते हैं, परन्तु यह नौकरी उत्तम होती है, ये पदाधिकारी या पूर्ण स्वतंत्र होते हैं।
भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास से स्वतन्त्र
इस प्रकार की भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास से निकल कर शनि पर जाती है परन्तु इनका उदय जीवन रेखा से अलग होता हैं और किसी रेखा के द्वारा जीवन रेखा से इसका सम्बन्ध नहीं बनता। यह बात बहुत ही ध्यान से देख लेनी चाहिए कि यह भाग्य रेखा किसी मोटी या पतली रेखा के द्वारा जीवन रेखा से तो सम्बन्धित नहीं है, अन्यथा इसका फल जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा जैसा ही होता है। यहां फिर पूर्वोक्त चेतावनी दी जाती है कि यदि जीवन रेखा से, जीवन रेखा प्रारम्भ होने के एक इंच बाद कोई भाग्य रेखा नहीं निकलती हो तो इसके फल में बहुत कमी आ जाती है। ऐसे व्यक्ति बिना धन्धे के नहीं रहते। यदि खाली हों तो इन्हें काम पर बुला कर ले जाया जाता है। इसका कारण यह है कि ये ईमानदार, मेहनती एंव कुशल कार्यकर्ता होते हैं, जो भी कार्य अपने हाथ में लेते हैं उसे उत्तरदायित्व के साथ पूर्ण करते है। अत: अपने कार्य क्षेत्र में प्रसिद्ध होते हैं।
जिस आयु तक यह भाग्य रेखा मोटी होती है ये लापरवाह देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को मित्र विश्वास-पात्र मिलते हैं जिनसे इन्हें लाभ होता हैं क्योंकि स्वयं भी मित्र के लिए त्याग करते हैं और उनके कुटुम्ब को अपना कुटुम्ब समझते हैं। ये नये मार्ग का निर्माण करके चलते हैं फलस्वरूप कुटुम्ब में होने वाले कार्य के अतिरिक्त कोई नया धन्धा करते हैं। इन्हें दूसरों की सहायता की आवश्यक्ता नहीं होती तो भी इनसे सम्बन्धित व्यक्ति इन्हें सहयोग देने को तैयार रहते हैं। मस्तिष्क रेखा भी जीवन रेखा से अलग हो ते निश्चय ही किसी का सहयोग नहीं लेते या इसकी आवश्यक्ता ही नहीं पड़ती।
ऐसे व्यक्ति स्वतंत्र आदत के होते हैं। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग, अंगूठा कम खुलता हो या मोटा व झुकने वाला न हो तो ये स्वतंत्र के स्थान पर स्वछंद स्वभाव के होते हैं। जिस समय तक भाग्य रेखा मोटी होती है उस समय तक अपने माता-पिता के लिये सिर दर्द होते हैं। किसी बात को न मानना, अपनी चलाना, दूसरे की बुराई तथा आलोचना करना, क्रोध आने पर अपमान कर देना इनका स्वभाव होता है। ऐसे व्यक्ति इस आयु में माता-पिता को रूढिवादी या मूर्ख समझते हैं, विचारो के मेल खाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। दोष कुछ अधिक हो तो इन्हें इस विचार वैषम्य के कारण घर से अलग रहना पड़ता है। भाग्य रेखा पतली होने पर इनमें उत्तरदायित्व का भाव आता है और सभी कुछ ठीक हो जाता है। फिर भी ये दब कर चलना, बिना उचित कारण किसी बात को मानना पसन्द नहीं करते।
यदि यह भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो ये छोटी आयु में ही विदेश चले जाते हैं। यहां यह ध्यान देने की बात है कि भाग्य रेखा दोनों हाथों में ही मस्तिष्क रेखा पर रुकनी चाहिए और ठीक एक ही बिन्दु पर नहीं रुकनी चाहिए। यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर एक बिन्दु पर रुकती हो तो जीवन साथी की मृत्यु हो जाती, ऐसे व्यक्तियों की वृहस्पति की अंगुली छोटी होती है।
भाग्य रेखा का निकास शनि क्षेत्र से
शनि क्षेत्र हाथ में शनि की अंगुली के नीचे कलाई तक का क्षेत्र है। इस क्षेत्र से निकली हुई भाग्य रेखा बहुत ही उत्तम श्रेणी की मानी जाती है। देखने में आया है कि यह भाग्य रेखा चन्द्रमा के आस-पास से न निकल कर ऊपर से निकलती है। यह देर से आरम्भ हुई भाग्य रेखा जैसी होती है। इसका कोई भी सम्बन्ध जीवन रेखा से नहीं होता अर्थात् यह किसी रेखा या अन्य चिन्ह के द्वारा जीवन रेखा से नहीं जुड़ती व 24 से 26वर्ष की आयु में आरम्भ होती है। इस प्रकार की भाग्य रेखा को हम शनि क्षेत्र से निकली भाग्य रेखा कहते हैं।
ऐसे व्यक्ति बहुत ही प्रगतीशील, गण्यमान्य, धनी व महान् होते हैं। इस भाग्य रेखा के आरम्भ होने की आयु से ही ये उन्नति आरम्भ करते हैं। इन्हें अपना जीवन स्वयं बनाना पड़ता है। भाग्य रेखाएं ऐसे हाथों में एक से अधिक हों तो बहुत ही धनवान होते हैं व योग्यता से ही उन्नति करते हैं तथा इन्हें किसी की सहायता की कभी आवश्यक्ता नहीं पड़ती तो भी दूसरे व्यक्ति अनायास ही इनकी सहायता करते हैं।
ये कई-कई व्यापार करते हैं और अन्त में उद्योग में ही जाते हैं। विदेश व्यापार या किसी दूसरे देश से मिल कर कोई धन्धा ऐसे ही व्यक्ति करते हैं। इनकी सन्तान भी योग्य होती है। इनके बच्चे थोड़ी आयु में ही काम करने लग जाते हैं। हाथ के अन्य लक्षणों का देख कर शेष फलादेश कहना चाहिए।
भाग्य रेखा का निकास मस्तिष्क रेखा से
अनेक बार भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा से उदय होकर शनि क्षेत्र जाती है। देखा जाता है कि ऐसे हाथों में जीवन रेखा या अन्य स्थान से उदित होने वाली भाग्य रेखा भी होती है। चमसाकार, समकोण आदर्शवादी हाथों में तो भाग्य रेखा की आवश्यक्ता ही नहीं होती, ऐसे हाथ भाग्य रेखा के न होने पर भी उसी प्रकार फल करते हैं।
हाथ में मुख्य भाग्य रेखा न होने पर केवल मस्तिष्क रेखा से ही भाग्य रेखा का उदय हो तो यह बहुत ही महत्व की हो जाती है। वैसे तो इनका जीवन पहले भी यदि हाथ व अन्य लक्षण ठीक हों तो सुचारु रूप से चलता रहता है परन्तु विशेष उन्नति इस भाग्य रेखा के निकलने की आयु से ही करते हैं। इसका फल 35वर्ष के पश्चात् व उस आयु से होता है जिसमे यह रेखा मस्तिष्क रेखा से निकलती है।
हाथ में यह उत्तम लक्षण माना जाता है। ऐसे व्यक्ति अपने ही मस्तिष्क और अपने ही ढंग से कार्य करके धन व प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। हाथ में दूसरे लक्षण भी ठीक हों तो बहुत ही योग्य एवं प्रगतिशील सिद्ध होते हैं तथा विलक्षण व मिलनसार होते हैं। जिस आयु में मस्तिष्क रेखा से यह रेखा निकलती है उस आयु से भाग्योदय होकर व्यक्तिगत उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। उस आयु में ये कोई ऐसा कार्य करते हैं जो इन्हें बहुत सफल बना देता है। इस समय से पहले कोई विशेष सफलता नहीं मिलती। ऐसे हाथों में दूसरी भाग्य रेखा भी हो तो पहले भी इन्हें सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं परन्तु नई भाग्य रेखा के उदय की आयु से विशेष प्रगति करते हैं।
यदि यह भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा के किसी त्रिकोण से उदय होती हो तो इस आयु में व्यक्ति सम्पत्ति का निर्माण करता है। यदि उसकी कोई पहली सम्पत्ति हो तो भी नया निर्माण, पुरानी सम्पत्ति में कुछ फेर बदल या बनी हुई सम्पत्ति में कुछ और भाग बढ़ाया जाता है। व्यय का अनुमान हाथ के स्तर से किया जाना चाहिए।
मस्तिष्क रेखा से दो भाग्य रेखाएं बिल्कुल पास-पास निकलें तो दो कारोबार के द्वारा उन्नति होती है, परन्तु यदि शुक्र उन्नत व हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो किसी से अनैतिक सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। जब तक दोनों भाग्य रेखाएं साथ-साथ रहती हैं ऐसे सम्बन्ध भी चलते रहते हैं।
भाग्य रेखा का निकास चन्द्रमा से
यह एक महत्वपूर्ण लक्षण है। इसमें भाग्य रेखा जीवन रेखा से न निकल कर चन्द्रमा से निकलती है अर्थात् यह भाग्य रेखा जीवन रेखा से अधिक दूर होती है। सिद्धान्त: यदि इसमें काई दोष न हो तो जीवन रेखा से दूर होने के कारण उत्तम भाग्य रेखा मानी जाती है। यह देखना चाहिए कि यह भाग्य रेखा हृदय या मस्तिष्क रेखा पर न रुकी हो और चलते हुए जीवन रेखा के पास न गई हो, अन्यथा कष्टकारक सिद्ध होती है। साथ ही यह पतली भी होनी चाहिए। निर्दोष अवस्था में यह बहुत ही उत्तम लक्षण माना जाता है। यहां भी जीवन रेखा से शनि के नीचे कोई छोटी भाग्य रेखा निकलना आवश्यक है इस प्रकार की भाग्य रेखा का फल उसी आयु से आरम्भ होता है जिससे यह शनि क्षेत्र में प्रवेश करती है।
चन्द्रमा से निकली भाग्य रेखा अक्सर जीवन रेखा के पास देखी जाती है। इस दशा में यह खराब फल करती है। यदि यह मस्तिष्क रेखा पर विशेषतया सूर्य के नीचे रुकती हो तो विशेष खराब फल करती है। ऐसे व्यक्ति 44वर्ष की आयु तक स्थायित्व प्राप्त नहीं कर पाते। अनेक काम बदलने के बाद भी हानि उठाते हैं। हृदय रेखा पर रुकने पर भी व्यक्ति को स्थायित्व देर से मिलता है क्योंकि ये निजी हितों के प्रति लापरवाह होते हैं और दूसरों के प्रभाव में शीघ्र आते हैं। अत: देर से ही अपने पैरों पर खड़े हो पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों से समाज सेवा की विशेष भावना होती है। अत: ध्यान से इसका अध्ययन कर लेना चाहिए।
चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर निर्दोष हो कर यदि शनि पर गई हो तो ऐसे व्यक्ति मस्त स्वभाव के होते हैं व अंगूठा सख्त या कम खुलता हो तो मन मानी करने वाले होते हैं इनकी निर्णय शक्ति उत्तम होती है, परन्तु यदि हाथ में अधिक रेखाएं हों तो अधिक देर तक सोचने की प्रवृत्ति होती है और निर्णय भी स्पष्ट नहीं होता।
चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर यह हृदय रेखा पर रुकती हो, इसमें थोड़ा बहुत कोई दोष जैसे मोटी होना आदि हो और शुक्र उन्नत हो तो ये विशेष वासना प्रिय होते हैं। ऐसे व्यक्ति स्त्रियों का सम्पर्क पसन्द करते हैं तथा इनका अधिक समय स्त्रियों के विषय में सोचने में ही जाता है। स्त्री होने पर ऐसी स्त्रियां पुरुषों में बैठने की इच्छा करती है या उनके विषय में अधिक सोचती हैं, फलस्वरूप चरित्र दोष हो जाता है।
चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकल कर यदि निर्दोष अवस्था में शनि पर जाती हो तो ऐसे व्यक्ति राजनीति में रुचि लेते हैं, यदि यह पतली भी हो तो मनस्वी, धनी व बहु-धंघी होते हैं। ये किसी संस्था के अवैतनिक पदाधिकारी भी होते हैं। उत्तरार्द्ध में ऐसे व्यक्ति चुनाव लड़ते हैं, हाथ उत्तम व अन्य गुण हों तो सफल होते है, हाथ उत्तम नहीं होने पर उपरोक्त कार्य में रुचि रखते हैं, केवल इतना ही बता देना चाहिए। बुध की अंगुली का नाखून छोटा होने पर अवश्य ही ऐसे व्यक्ति राजनीति या जनसम्पर्क के व्यवसाय में होते हैं। जब तक इनके पास धन या समय का अभाव होता हैं, राजनीति में भाग नहीं लेते परन्तु जब भी प्रचुर धन व उपयुक्त अवसर होता है राजनीति में प्रवेश कर जाते हैं।
भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकल कर हृदय रेखा पर रुकती हो तो ऐसे व्यक्ति धीरे-धीरे उन्नति करते हैं, एकदम उन्नति के अवसर इन्हें बहुत कम मिलते हैं, जिसका कारण नौकरी करना, दूसरे पर निर्भर रहना, आलसी होना, आज का काम कल पर टालना, उधार डूबना या साझियों से परेशानी होना आदि होते हैं। इनका घरेलू वातावरण भी सुन्दर नहीं होता। अत: काफी समय इन्हें अपनी घरेलू समस्याएं सुलझाने में लग जाता है।
चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर यदि चन्द्र रेखा भी हो तो व्यक्ति घर से दूर जा कर उन्नति करते हैं। मस्तिष्क व भाग्य रेखाएं निर्दोष हों तो बहुत ही उन्नति करते हैं। हाथ भारी होने पर जायदाद भी बनाते हैं। ऐसे व्यक्तियों का जन्मभूमि से सम्बन्ध लगभग समाप्त ही हो जाता है। इनकी सम्पत्ति समुद्र या जलाशय के किनारे होती है। भाग्य रेखाएं एक से अधिक हों तो सम्पत्ति कई राज्यों या कई देशों में होती है। मस्तिष्क रेखा का वर्णन करने समय बताया जा चुका है कि मस्तिष्क रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर हो तो व्यक्ति का निवास जल के पास होता है, भाग्य रेखा भी चन्द्रमा से उदय हो तो जल की मात्रा अधिक होती है। मस्तिष्क रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर हो तो ऐसे व्यक्तियों की सम्पत्ति समुद्र, झील या बड़ी नदी के किनारे होती है। टापू पर रहने वाले, समुद्री जहाज में व्यापार या नौकरी करने वालों के हाथों में ऐसे ही लक्षण होते हैं।
भाग्य रेखा का निकास मंगल से
हाथ में मंगल दो स्थानों पर होता है। अंगूठे के पास और बुध की अंगुली के नीचे। कभी-कभी अंगूठे वाले मंगल से भाग्य रेखा निकल कर शनि की ओर जाती हुई देखी जाती है। वैसे तो यह भाग्य रेखा ही होती है परन्तु देखने में ऐसी नहीं लगती, अत: सूक्ष्म निरीक्षण करके इसका निर्णय कर लेना चाहिए। देखा गया है कि बुध के मंगल से निकल कर कोई भाग्य रेखा शनि पर नहीं जाती।
इस प्रकार की भाग्य रेखा वृहस्पति मुद्रिका का भी कार्य इस स्थान पर करती है। यदि ऐसे व्यक्तियों को धर्म में विशेष रुचि हो तो ये इस विषय में अच्छी स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इन्हें गुरुत्व शक्ति की प्राप्ति साधनावस्था में ही हो जाती है। यह लक्षण आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
मंगल से भाग्य रेखा निकलने पर बड़ी आयु में संघर्ष के साथ जीवन बनता है फिर भी ऐसे व्यक्ति अच्छी उन्नति कर जाते हैं। स्वभाव गरम होने के कारण इन्हें सहयोग नहीं मिलता। ऐसे व्यक्ति धन के विषय में समझदार, मिलनसार, साहसी तथा सम्पत्ति निर्माण करने वाले होते हैं। पूर्वायु में ये शारीरिक श्रम करते देखे जाते हैं, जीवन में कोई न कोई समय ऐसा भी आता है कि जब इन्हें भोजन प्राप्त करने में भी कठिनाई का अनुभव होता है।
मंगल से निकली भाग्य रेखा यदि शनि पर जाती हो तो व्यक्ति चलती चीज, सवारी या जानवर आदि से टकरा कर चोट खाते हैं या उससे गिरते हैं। ये किसी वृक्ष से भी गिरते हैं। सट्टे के काम में इन्हें हमेशा हानि होती है।
भाग्य रेखा का निकास भाग्य रेखा से
कई हाथों में भाग्य रेखा मुख्य भाग्य रेखा से निकलती हुई देखी जाती है। यह एक उत्तम लक्षण है। हाथ में सूर्य रेखा, हाथ भारी या अन्य उत्तम लक्षण होने पर अचानक भाग्योदय होने का सूचक है। जिस आयु में यह रेखा भाग्य रेखा से निकलती है, कोई न कोई उत्तम कार्य किया जाता है, जोकि पूरे जीवन को स्थायी कर जाता है। इस आयु से व्यक्ति स्वतंत्र रूप से जीवन यापन भी आरम्भ कर देता है। भाग्य रेखा से भाग्य रेखा निकलने या एक भाग्य रेखा के होते हुए दूसरी भाग्य रेखा होने या शनि क्षेत्र या चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर यह जरुरी नहीं कि जिस आयु में भाग्य रेखा निकलती है उसी आयु में लाभ हो, इसका फल जीवन में उससे पहले या बाद या आयु भर मिलता रहता है। किन्तु मस्तिष्क रेखा, सूर्य रेखा या जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा का चमत्कार उसी आयु में प्रकट होता है जिसमें यह निकलती है।
भाग्य रेखा का अन्त
भाग्य रेखा का अन्त शनि पर
पहले ही बताया गया है कि भाग्य रेखा का अन्त शनि, वृहस्पति या सूर्य पर होता है। शनि पर गई भाग्य रेखा दोष रहित हो तो बहुत उत्तम मानी जाती है। विशेष भाग्य रेखा, हाथ गुलाबी और भारी, भाग्य रेखा चन्द्रमा या शनि क्षेत्र से निकलने की दशा में यह विशेष उत्तम व सुख और सौभाग्य का लक्षण है।
शनि पर गई हुई भाग्य रेखा होने पर यदि हाथ कुछ कठोर व शनि नीचे से नोकीला या ऊपर से उन्नत हो तो व्यक्ति की रुचि बगीचे, खेती आदि में हाती है तथा नौकरी भी खेती-बाड़ी के विभाग में करते देखे जाते हैं। शनि की अंगुली लम्बी होने पर तो ऐसा अवश्य ही होता है। यह भाग्य रेखा मोटी भी हो तो घर में खेती का कार्य होता है। बायें हाथ में भाग्य रेखा मोटी होने पर व्यक्ति के वंश तथा दायें हाथ में होने पर स्वयं की खेती का योग होता है, दोनों ही हाथों में भाग्य रेखा गहरी व हाथ अच्छा हो तो वंशानुगत कृषि कार्य पाया जाता है। हाथ के अन्य लक्षणों को देख कर खेती की मात्रा आदि आसानी से बताई जा सकती है। शनि मुद्रिका होने पर भी खेती या खनन सम्बन्धी कार्य भी करते हैं। ऐसे व्यक्ति भूमि में खोद कर कुछ निकालने, पत्थर की रोड़ी बनाने या मिट्टी या रेत आदि का कार्य करते हैं।
भाग्य रेखा का अन्त वृहस्पति पर
मुख्य भाग्य रेखा का अन्त वृहस्पति पर बहुत कम देखने को मिलता है, या तो यह भाग्य रेखा जीवन रेखा से वृहस्पति के नीचे से निकल कर वृहस्पति पर जाती है या भाग्य रेखा ही शाखान्वित होकर वृहस्पति पर पहुंचती है। जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकल कर यदि वृहस्पति पर जाए तो इच्छा रेखा कहलाती है, परन्तु ऐसी दो रेखाएं एक साथ होने पर भाग्य रेखाएं मानी जाती हैं। ऐसी दो रेखाएं होने पर व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं और 22वर्ष की आयु में धनी हो जाते हैं।
मुख्य भाग्य रेखा वृहस्पति पर जाने की दशा में यह स्वाभाविक रूप से ही जीवन रेखा के पास आ जाती है अत: अशान्ति का कारण होती है। कुटुम्ब क्लेश, मानसिक अशान्ति, झगड़े आदि इसके फल होते हैं। ऐसे व्यक्ति उत्तरदायित्व महसूस नहीं करते और सामीप्य की आयु तक घमण्डी और असफल रहते हैं फलत: 35वर्ष की आयु के पश्चात् उन्नति करते हैं। ये स्वयं को वृहस्पति समझते हैं या बोलने की आदत कम होती है। यदि वृहस्पति अच्छा हो तो नौकरी ही करते हैं। नौकरी सम्मानजनक होती है। इसमें इनके स्वतंत्र अधिकार होते हैं एवं स्वामी की तरह से ही रहते हैं।
यदि भाग्य रेखा द्विभाजित होकर एक शाखा वृहस्पति पर जाए तो ऐसे व्यक्ति सफल, सम्मानित व उच्च पदस्थ होते हैं, परन्तु इसकी एक शाखा शनि पर जाना आवश्यक है।
यदि द्विभाजित भाग्य रेखा की एक शाखा वृहस्पति व एक सूर्य पर जाती हो तो प्रतिष्ठा, यशोवृद्धि तथा धनवृद्धि का कारक होती है। ऐसे व्यक्तियों को राज्य से सम्मान प्राप्ति होती है। हाथ उत्तम होने पर ये देश के इनेगिने व्यक्तियों में से होते हैं। कई बार भाग्य रेखा हृदय रेखा के पास द्विभाजित होकर एक शाखा वृहस्पति व एक शनि पर जाती है। यह सुख, समृद्धि, धन, सम्मान का कारण होती है। हाथ उत्तम होने पर यह अद्धितीय लक्षण है।
साभार
कबीर के दोहेमस्तिष्क रेखा एवं आपका व्यक्तित्व
जीवन रेखा - Life Line # 4
बस, ऐसे ही पूछ लिया !!!
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