भाग्य रेखा और प्रेम सम्बन्ध #2

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भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर


पहले भी बताया जा चुका है कि भाग्य रेखा जितनी ही जीवन रेखा से दूर होती है उत्तम मानी जाती है, परन्तु साथ ही यह भी देखने की बात है कि यह किसी रेखा पर रुकी नहीं होनी चाहिए।

मोटी भाग्य रेखा होकर सीधी शनि पर जाती हो तो अड़चनें और संघर्ष अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति कमाते तो हैं परन्तु बचत कम कर पाते हैं। ये लोभी भी अधिक होते हैं। पतली एवं दूर होने पर भाग्य रेखा अत्यन्त उत्तम फलदायी होती है। इनका व्यय आय से सदैव कम रहता है।

भाग्य रेखा जीवन रेखा से निकल कर सूर्य के नीचे मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो जीवन रेखा से दूर तो होती है परन्तु अच्छा लक्षण नहीं मानी जाती है। ऐसे व्यक्ति देर से स्थायित्व प्राप्त करते हैं। ये लापरवाह, दूसरों पर भरोसा करने वाले, अस्थिर मस्तिष्क आदि होते हैं। यदि ऐसी रुकी हुई भाग्य रेखा पतली हो तो इतनी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता, काम चलता रहता है परन्तु विशेष अभ्युदय 44वर्ष के पश्चात् ही होता है।

जीवन रेखा से भाग्य रेखा दूर होने पर आरम्भ में थोड़ी कठिनाई तो होती है परन्तु इनकी आर्थिक स्थिति बढ़ती चली जाती है। ऐसे व्यक्ति स्वयं जीवन बनाते हैं। आरम्भ में कुछ संघर्ष करके अपने आप ही उन्नति की ओर अग्रसर होकर प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। ये बुद्धिमान, जिम्मेदार तथा आलोचक होते हैं परन्तु इनकी आलोचना निरर्थक नहीं होती, जो भी कहते हैं नाप तोल कर सही बात कहते हैं।



भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास


भाग्य रेखा का निकास के स्थान से जीवन रेखा के पास आने पर अन्तर कम हो जाता हो तो इस प्रकार की भाग्य रेखा को जीवन रेखा के पास आई हुई मानते हैं। कभी-कभी तो इसकी दूरी आधा या चौथाई इंच तक ही रहती है। एक से अधिक भाग्य रेखाएं इस दोष के फल का लगभग निराकरण कर देती हैं।

यह भाग्य रेखा जीवन में कई प्रकार के झंझट या उतार-चढ़ाव का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति लिहाज अधिक करते हैं। इन्हें अपने कुटुम्ब से लगाव अधिक होता है। 

इस प्रकार की भाग्य रेखा मोटी होकर मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो 35 या 40वर्ष तक व्यक्ति सम्मिलित कुटुम्ब में रहता है और अपने बच्चों की ओर नहीं देख पाता। इन्हें बहुत कष्‍ट उठाना पड़ता है और अलग होने पर नये सिरे से शुरुआत करनी पड़ती है। इनकी पत्नी को अत्यन्त कष्‍ट का सामना करना पड़ता है, कभी-कभी तो कुटुम्ब के प्रभाव में आकर तलाक तक नौबत आ जाती है। 35 या 40वर्ष के पश्चात् ही इन्हें धन, सन्तान व जीवन साथी का सुख रहता है। ऐसे व्यक्ति स्वभाव के गर्म होते हैं, फलस्वरूप सब कुछ त्याग करने व अपने सारे स्वार्थ कुटुम्ब के हितों पर बलिदान करने पर भी श्रेय नहीं मिलता। इनका स्वभाव इनके प्रत्येक कार्य में रुकावट का कारण बनता है।

मस्तिष्क रेखा के विषय में यह वर्णन किया जा चुका है कि मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होने पर व्यक्ति स्वतंत्र मस्तिष्क होते हैं परन्तु भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास होने पर ऐसे व्यक्ति को दब कर या कुटुम्ब के साथ चलने के लिए मजबूर होना पड़ता है और चाहते या न चाहते हुए भी कुटुम्ब की सहायता करनी पड़ती है। जिस आयु तक भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास रहती है किसी न किसी रूप में व्यक्ति पर कुटुम्ब के कारण आर्थिक या मानसिक दबाव रहता ही है।

भाग्य रेखा जितनी ही जीवन रेखा के पास होती है उतना ही जीवन संघर्षशील होता है। शुक्र ग्रह उन्‍नत होने पर इस दशा में 35 या 43वर्ष के पश्चात् ही जीवन में आराम आता है व उन्नति के मार्ग खुलते हैं। हाथ विशेष भारी, बड़ा व जीवन रेखा घुमावदार होने पर पहले भी जीवन बन जाता है परन्तु बचत नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्ति व्यापार करते है परन्तु पहले नौकरी करनी पड़ती है। भाग्य रेखा जीवन रेखा के समानान्तर होकर मस्तिष्क रेखा से आगे जाती हो तो यह व्यापार करते हैं परन्तु पहले नौकरी करनी पड़ती है। भाग्य रेखा जीवन रेखा के सामानान्तर होकर मस्तिष्क रेखा से आगे जाती हो तो यह व्यापार होने का लक्षण है परन्तु संघर्ष या उत्तरदायित्व अधिक होने या महसूस करने के कारण व्यक्ति को मानसिक चिन्ता रहती है। नौकरी में होने पर अवसर मिलते ही ये व्यापार में चले जाते हैं, हाथ भारी होने पर तो निश्चित ही व्यापार करते हैं। जिस आयु में भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर होती है जीवन में शान्ति, धन तथा अन्य सुखों की प्राप्ति आरम्भ हो जाती हैं।


पतली भाग्य रेखा


अन्य रेखाओं कें अनुपात में भाग्य रेखा पतली होने पर उत्तम लक्षण है। अधिकतर देखने में आया है कि भाग्य रेखा आरम्भ में मोटी होकर आगे जाकर ही पतली होती है। भाग्य रेखा जैसे-जैसे पतली होती जाती है व्यक्ति को सुख, धन एवं मानसिक शान्ति बढ़ते चले जाते हैं। मोटी भाग्य रेखा लालच की भावना बढ़ाती है, परन्तु पतली भाग्य रेखा उदारता जैसे गुण पैदा करती है। एक बात ध्यान रखने की है कि मोटी भाग्य रेखा पतली होने पर अधिक प्रभावशाली होती है, आरम्भ से ही पतली भाग्य रेखा इतनी उत्तम नहीं मानी जाती।

भाग्य रेखा बहुत पतली होने पर बुध की अंगुली टेढ़ी व हृदय रेखा जंजीर की तरह से हो तो व्यक्ति धोखेबाज होता है। यहां विशेष रूप से यह ध्यान देने की बात है कि भाग्य रेखा निकास से अन्त तक एकदम पतली व इतनी पतली होनी चाहिए कि वह मिटी सी दिखाई दे। बुध पर जाली या क्रास का चिन्ह होने पर भी व्यक्ति धोखेबाज व चालाक होता है। भाग्य रेखा मोटी से धीरे-धीरे पतली होने की दशा में ऐसा नहीं कहा जा सकता, चाहे दूसरे लक्षण मिलते हैं। ऐसे व्यक्तियों को यही कहना पड़ेगा कि इनका भाग्योदय भाग्य रेखा पतली होने के समय से आरम्भ होगा।

भाग्य रेखा जिस आयु में मोटी से पतली होती है व्यक्ति को अपना कार्य या स्थान बदलना पड़ता है। पतली भाग्य रेखा वाले व्यक्ति सतर्क एवं प्रयत्नशील होते हैं, जैसे ही अवसर देखते हैं परिवर्तन की ओर बढ़ जाते हैं व उन्नति करते चले जाते हैं।

जीवन रेखा में दोष अर्थात् जीवन रेखा पतली या टूटी होने पर व्यक्ति का भार बढ़ जाता है। जिस आयु से भाग्य रेखा में पतलापन आरम्भ होता है उसी आयु से भार भी बढ़ना आरम्भ होता है, जिसका कारण व्यक्ति को मानसिक शान्ति की प्राति होती है, जैसे ही झंझट हटकर मानसिक शान्ति प्राप्त होती है शरीर का भार बढ़ने लगता है। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों पर यह नियम अधिक लागु होता है, क्योंकि स्त्रियों का भार गर्भाशय दोष होने के कारण भी बढ़ता है।

एक हाथ में भाग्य रेखा मोटी व दूसरे में पतली होने पर किसी से अनैतिक सम्बंध रहने का भी लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों का लम्बे समय तक प्रेम सम्बन्ध देखा गया है। अपने व्यक्तित्व, स्वभाव व आदत के कारण दूसरे इनकी ओर आकर्षित होते हैं फलस्वरूप सम्बन्ध बन जाते हैं, जो कि प्रेम सम्बन्धों में परिवर्तित हो जाते हैं।

भाग्य रेखा 35 अथवा 50वर्ष की आयु के पश्चात् पतली होने पर उसी अवस्था से व्यक्ति को धन सम्बन्धी उन्नति का योग होता है। अधिक मोटी भाग्य रेखा होने पर यदि एकदम पतली होती हो तो उस आयु में पहले कष्‍ट और फिर धीरे-धीरे सुख शान्ति मिलती है। 


गहरी या मोटी भाग्य रेखा


भाग्य रेखा की मोटाई अन्य रेखाओं की अपेक्षा मोटी या समान होना एक बहुत बड़ा दोष है। ऐसी भाग्य रेखा जिन व्यक्तियों के हाथों में होती है, जीवन भर दुखी रहते हैं। धन, स्त्री, सन्तान, कुटुम्ब, सम्पत्ति आदि का जीवन भर सुख नहीं मिलता। किसी न किसी प्रकार की समस्या लगी ही रहती है, एक हटी और दूसरी सामने आई। अत: भाग्य रेखा गहरी होना अपने आप में एक बड़ा दोष है। जीवन रेखा गोलाकार, अंगुलियां छोटी व पतली, भाग्य रेखाएं एक से अधिक, शुक्र मध्यम, अंगूठा लम्बा व पतला तथा अधिक खुलने वाला व निर्दोष मस्तिष्क रेखा मोटी भाग्य रेखा के दोष को लक्षानुसार कम करते हैं। जितने ही शुभ लक्षण हाथ में होते हैं दुष्‍फल कम हो जाते हैं। अंगूठा मोटा व कम खुलने वाला, अंगुलियां मोटी, शुक्र उन्‍नत, सीधी जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा का लम्बा जोड़ इसके बुरे फलों में वृद्धि करते हैं।

गहरी भाग्य रेखा जितनी ही निर्दोष होती है व्यक्ति को उतना ही लालची बना देती है। ऐसे व्यक्ति किसी दूसरे का भला नहीं कर सकते, न ही किसी के जरूरत के समय काम ही आ सकते है। ये निर्दयी होते हैं अपना पैसा किसी पर नहीं छोड़ते, स्वार्थ को ही सबसे आगे रखते हैं चाहे उसकी कीमत दूसरों को कितनी भी देनी पडे़। लेकिन दिखावट में ये धर्मराज के समान सत्यवादी और गन्ने के समान मीठे होते हैं। बात कह कर बदल जाते हैं, सच को झूठ साबित कर देते हैं। ये केवल उन्हीं की सहायता करते हैं जो स्वार्थपरता में इनसे भी आगे होते हैं। इस दशा में मस्तिष्क रेखा बुध वाले मंगल को पार करती हो तो अधिक दोषपूर्ण होती है।

मोटी भाग्य रेखा वाले व्यक्ति स्वतंत्र स्वभाव के होते हैं, किसी की बात नहीं मानते। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होने पर यह लक्षण और अधिक बढ़ जाता है। जो इन्हें अच्छा लगता है वही करते हैं। मोटी भाग्य रेखा होने पर हाथ कोमल हो तो स्‍वार्थी व आलसी होते हैं।

मोटी भाग्य रेखा यदि मस्तिष्क रेखा पर रुकी हो तो व्यक्ति अनेक बार गलतियों को दोहराते हैं और एक प्रकार के कार्य में बार-बार हानि उठाते हैं। अंगूठा छोटा व कम खुलता हो ता निश्चित ही ऐसा होता है। स्पष्‍ट वक्ता होने के कारण इनका समाज, कुटुम्ब, सम्बन्धियों, कारखानों व कार्यालयों जहां ये काम करते है विरोध होता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों का विश्वास अधिक करते हैं व निर्भर रहते हैं।

मोटी भाग्य रेखा, हृदय रेखा पर रुकने पर व्यक्ति सीधे, दूसरों के प्रभाव में आने वाले, लापरवाह, व्यर्थ के काम में समय खराब करने वाले और अपना स्वार्थ न देखकर परोपकारी होते हैं। इनके प्रेम सम्बन्ध भी रहते हैं तथा उनमें असन्तोष रहता है। अपनी लापरवाही एवं दूसरों पर निर्भरता के कारण ऐसे व्यक्ति 50वर्ष की आयु के पहले जीवन में स्वतंत्र रूप से सफल नहीं हो पाते। 

जिस आयु तक भाग्य रेखा मोटी होती है उस समय तक व्यक्ति का धन सम्बन्धी परेशानियां रहती हैं। किसी भी कार्य को करने में उसे सफलता नहीं मिलती। इस समय व्यक्ति ऋणी रहता है, रोजगार कम चलता है और कभी बन्द भी रहता है। 

गहरी भाग्य रेखा यदि मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो उस आयु में व्यक्ति कार्य व स्थान का परिवर्तन करता है। उस स्थान से कुछ दूरी पर मस्तिष्क रेखा से भाग्य रेखा निकल कर शनि पर गई हो तो भी स्थान परिवर्तन होता है। ऐसी भाग्य रेखा विदेश यात्रा भी कराती है। यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुक कर आगे न निकले तो व्यक्ति लम्बे समय तक विदेश में रहते हैं तथा वहां जाकर सम्पत्ति आदि का निर्माण करते हैं। एक से अधिक भाग्य रेखाएं हो व गहरी भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुके तो भी विदेश यात्रा का फल होता है।


टूटी भाग्य रेखा


भाग्य रेखा टूटी होना इसका एक दोष है। यह उस आयु में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असन्तोष का लक्षण है। भाग्य रेखा हाथ में 5 प्रकार से टूटी हुई पाई जाती है।
1- टुकड़े अलग-अलग होकर दो या अधिक खण्ड हो जाते हैं।
2- दो टुकड़े टूट कर एक दूसरे को ढकते हैं अर्थात् एक टुकडे़ की समाप्ति के पूर्व दूसरा टुकड़ा प्रारम्भ होता है।
3- दो टुकड़ों को कोई तीसरा टुकड़ा ढक लेता है।
4- जब टूटी भाग्य रेखा के साथ एक दूसरी भाग्य रेखा चलती है और एक में दोष अर्थात् टूटी हुई व दूसरी निर्दोष होती है।
5- जब एक भाग्य रेखा समाप्त होकर उससे काफी आगे चल कर दूसरा टुकड़ा आरम्भ होता है।

टूटी भाग्य रेखा के दोनों टुकड़े एक जैसे गहरे हों तो यह हाथ में बहुत खराब लक्षण हैं। इससे जीवन में महान् संकट उपस्थित होता है। पति-पत्नी दोनों जिद्दी होते हैं व इसी वजह से तलाक हो जाता है।

भाग्य रेखा जब टूट- टूट कर चलती हो तो जीवन साथी से विछोह हो जाता है। भाग्य रेखा टूटी होने के समय तक व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र सम्पत्ति भी नहीं होती और न ही वह कुछ बचा पाता है, परन्तु जीवन रेखा गोलाकार होने पर मध्यायु में छोटी-छोटी सम्पत्ति अर्जित करता है। इस समय वह दूसरों पर किसी न किसी रूप में निर्भर रहता है जिसके कारण मानसिक अशान्ति बनी रहती है।

जब भाग्य रेखा टूट कर अलग-अलग टुकड़ो में विभक्त होती है तो कार्य पूर्णतया रुक जाता है तथा कुछ समय पश्चात् पुन: आरम्भ होता है। प्रेम सम्बन्ध होने पर भी सम्बन्ध विच्छेद होते हैं व कुछ समय पश्चात् फिर सम्बन्ध बन जाते हैं। इस समय विवाहित जीवन में झंझट रहता है और पति-पत्नी को अलग रहता पड़ता है। हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलने, विवाह रेखा में द्वीप आदि लक्षणों को देखने से इसका निर्णय आसानी से किया जा सकता है। यदि भाग्य रेखा पूर्णतया टूट कर नई भाग्य रेखा आरम्भ हो तो पूर्णतया विछोह, मृत्यु या तलाक होकर दूसरा विवाह या सम्बन्ध होता है।

 दूसरे प्रकार से जब भाग्य रेखा टूट कर टुकड़े एक दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं तो भी झंझट या परेशानी रहती है। कभी विछोह, कभी मिलन दोष की आयु तक चलता है। यदि इस प्रकार से अन्त में दूसरी अलग रेखा आरम्भ होती हो तो मिलन विछोह के पश्चात् बिल्कुल ही सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। यदि ऐसी भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो, हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो, वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली से छोटी हो तो जीवन साथी से तलाक हो जाता है या उस की मृत्यु हो जाती है।

तीसरे प्रकार के लक्षण जिसमें दो टुकड़ो को तीसरी रेखा ढकती है, झंझट तो रहता है परन्तु किसी दूसरे व्यक्ति के बीच में पड़ने से पुन: सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं व भाग्य रेखा का दोष निवारण होने पर स्थिति पुन: सामान्य हो जाती है।

चौथी प्रकार का लक्षण होने पर यदि एक भाग्य रेखा पूरी तथा एक टूटी हो तो केवल परेशानी आती है, कोई बड़ी घटना नहीं होती। सम्बन्धों में बिगाड़ व सामयिक विलगाव होकर पुनर्मिलन हो जाता है ऐसे व्यक्तियों के एक से अधिक कार्य होने पर एक कार्य में परेशानी तथा दूसरा कार्य ठीक प्रकार से चलता रहता है। यदि भाग्य रेखा दो व बिल्कुल पास-पास, एक ठीक व दूसरी दोषपूर्ण हो तो दो प्रेम सम्बन्ध होने पर एक में झंझट व विछोह तथा एक निर्विघ्न रहता है। यदि टुटी भाग्य रेखा पूर्णतया टूट जाती या समाप्त हो जाती हो तो सम्बन्ध में कोई भी निर्णय अन्य लक्षणों या रेखाओं से समन्वय के पश्चात् ही करना चाहिए।

मोटी भाग्य रेखा टूटी होने पर व्यक्ति का काम बराबर नहीं चलता, कुछ समय चलता है और कुछ समय के लिए रुक जाता है। ऐसे व्यक्ति अधिक लिहाज करते हैं। निर्णय शक्ति भी इनमें कम होती है तथा जब तक दोष रहता है जीवन संघर्षमय रहता है। ऐसे व्यक्ति को बार-बार काम बदलना पड़ता है और उसमें भी सन्तुष्‍टी नहीं होती, कार्य थोड़े समय तक ही ठीक रहता है। भाग्य रेखा के टुकड़े एक दूसरे को ढकते नहीं हों तो एक काम बन्द कर के दूसरा आरम्भ करना पड़ता है या कुछ समय बन्द होकर दोबारा आरम्भ होता है। भाग्य रेखा टूटी होने पर जैसा पहले बताया गया है कि गृहस्थ जीवन में शान्ति नहीं रहती, भाग्य रेखा ठीक होने पर सम्बन्ध फिर से ठीक हो जाते हैं। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा में रुकती हो और हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर आती हो तो तलाक या मृत्यु हो जाती है।

शुक्र बहुत उठा होने पर भी गृहस्थ जीवन मधुर नहीं रहता। पति-पत्नी एक दूसरे पर शंका करते रहते हैं। और जीवन साथी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। इस दशा में भाग्य रेखा गहरी या टूटी होने पर दोनों के चरित्र में स्वाभाविक दोष पाया जाता है। पत्नी का स्वास्थ्य इस आयु में खराब रहता है। उसे प्रजनन कष्‍ट या कोई अन्य रोग होता है। स्त्री के हाथ में यह लक्षण उसके पति के परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। ऐसी स्त्रियों को पितृ पक्ष की ओर से भी चिन्ता रहती है।

टूटी भाग्य रेखा होने पर यदि मस्तिष्क रेखा में बुध के नीचे दोष हो या उसकी कोई शाखा बुध की ओर गई हो तो व्यक्ति को जहर जैसी चीज का डर रहता है। इन्हें या तो बिच्छु, ततैया आदि कोई जहरीला जानवर काटता है या कोई जहरीला इन्जैक्‍शन लगता है।

जीवन रेखा से दूर होकर भाग्य रेखा टूटी हो और 1 इंच दूरी के बाद फिर कोई टुकड़ा निकल कर मस्तिष्क रेखा को पार करता हो और फिर भाग्य रेखा समाप्त होकर एक अन्य टुकड़ा आरम्भ होकर शनि तक जाता हो तो कार्य में कई बार परिवर्तन होता है किन्तु व्यक्ति उन्नति करता है। ऐसे व्यक्ति को बार-बार कार्य परिवर्तन से आघात लगते हैं और भविष्‍य में भी इसका भय बना रहता है। यहां यह देखना होगा कि इस प्रकार के टुकड़े एक सीध में और देखने में एक ही टूटी भाग्य रेखा जैसे लगते हैं। ऐसी भाग्य रेखा एक सीध में न होकर यदि हट कर मोटी या पतली हो तो कार्य परिवर्तन के साथ उन्नति के अवसर कम हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति के जीवन साथी का स्वास्थ्य भी एक जैसा नहीं रहता, कुछ समय स्वस्थ व कुछ समय अस्वस्थ रहते हैं।

टूटी भाग्य रेखा यदि चन्द्रमा से निकली हो या जीवन रेखा से, इस पर चन्द्रमा से प्रभावित रेखा (जो टुकड़े चन्द्रमा से या उसकी ओर से आकर भाग्य रेखा पर मिलते हैं, उन्हें प्रभावित रेखा कहा जाता है) मिलती हो तो इन टुकड़ों की संख्या प्रेम सम्बंधो की संख्या होती है। उस आयु में यदि प्रभावित रेखा मिल कर भाग्य रेखा में कमजोरी या दोष उत्पन्न होता हो या यह टूट जाती हो तो किसी भी प्रकार से स्थापित किए गये सम्बन्ध स्थायी नहीं रहते उपरोक्त दशा में व्यापार, साझेदारी तथा नये कार्य में विघ्न पड़ता है।

 भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखाएं


चन्द्रमा या उसकी ओर से कोई रेखा आकर भाग्य रेखा पर मिलती हो तो इसे प्रभावित रेखा कहते हैं। इनकी संख्या हाथ में एक या अधिक भी होती है। कभी-कभी जब भाग्य रेखा टूटती है तो उसके ऊपर वाले टूटे हुए भाग का झुकाव चन्द्रमा की ओर होता है। ऐसे भाग्य रेखा के टुकड़े प्रभावित भाग्य रेखा का ही कार्य करते हैं।

प्रभावित रेखा पतली और छोटी होने पर इसका सूक्ष्म दर्शन अति आवश्यक है अन्यथा फल गलत होने की सम्भावना रहती है अत: सावधान होकर इसका निर्णय करना चाहिए।

प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा पर इसका जैसा भी प्रभाव पड़ता है अर्थात् भाग्य रेखा के स्वरूप में कितनी कमजोरी या पुष्‍टता आती है, उसके अनुसार ही प्रभावित रेखा का फल होता है।

कई बार प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा टूट जाती है या प्रभावित रेखा भाग्य रेखा को काट देती है। इस दशा में प्रभावित रेखा का प्रभाव भाग्य रेखा पर अच्छा नहीं होता।

भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा के गठन में कोई अन्तर न होकर गठन वैसा ही रहता हो या इसमें पुष्‍टता आती हो तो उत्तम फल कारक होती है जबकि प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा में दोष आता हो तो भाग्य रेखा पर इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता, समस्या कारक होती है।

प्रभावित रेखा का किसी द्वीप से निकलना या भाग्य रेखा में किसी द्वीप पर मिलना, टूटी-फूटी होना इसके दोष कहे जाते हैं अत: प्रभावित रेखा को ध्यान से देख लेना चाहिए।

चन्द्रमा से उदय होकर प्रभावित रेखा जिस आयु में भाग्य रेखा पर मिलती है प्रेम सम्बन्ध, विवाह या भाग्योदय की सूचक होती है। प्रभावित रेखा मिलने पर भाग्य रेखा पुष्‍ट होती है या लम्बे समय तक भाग्य रेखा में कोई दोष नहीं हो तो, सम्बन्ध स्थायी ही रहते हैं अन्यथा समाप्त हो जाते हैं या विघ्न पड़ता है।

प्रभावित रेखा मिलने पर जब भाग्य रेखा पुष्‍ट होती हो तो व्यक्ति प्रेम सम्बन्ध या विवाह के पश्चात् उन्‍नति करते हैं। किसी व्यक्ति से लाभ देखने के लिए भी प्रभावित रेखा का सूक्ष्म निरीक्षण आवश्यक होता है। प्रभावित रेखा निर्दोष होने की दशा में व्यक्ति दूसरों से लाभ प्राप्त करता है अन्यथा उसे किसी से लाभ प्राप्त नहीं होता, चाहे इस सम्बन्ध में हाथ में अन्य लक्षण भी उपस्थित हों।

भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकली हो या जीवन रेखा से उसमें प्रभावित रेखा मिलती हो तो व्यक्ति के जीवन में प्रेम सम्बन्ध का लक्षण है, परन्तु प्रभावित रेखा में दोष व्यक्ति के चरित्र, भाग्य या व्यापार पर अच्छा प्रभाव नहीं डालता। यदि यह प्रभावित रेखा दोषपूर्ण नहीं हो तो इस आयु में जिस से भी सम्बन्ध होते हैं प्रेम सम्बन्ध हों अथवा किसी अन्य प्रकार के, स्थायी रहते हैं। प्रभावित रेखा में थोड़ा भी दोष  इन सम्बन्धों में विकार का लक्षण है। यदि प्रभावित रेखा में द्वीप, टूटी, काली, बहुत भारी, मोटी-पतली आदि लक्षण हों। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो व विवाह रेखा में दोष हो तो विवाह या प्रेम सम्बन्धों में पहले झगड़ा होता है और सम्बन्धों में तनाव आने के पश्चात् सम्बन्ध टूटने की सम्भावना होती है।

प्रभावित रेखा होने पर यदि हृदय रेखा सरल व निर्दोष होकर वृहस्पति को काटती हुई हथेली के पार जाती हो तो ऐसे व्यक्ति अपनी इच्छानुसार विवाह करते हैं। इस दशा में प्रभावित रेखा में दोष होने पर तनाव रहता है या तलाक हो जाता है।

यदि दो प्रभावित रेखाएं, एक छोटी और एक बड़ी, साथ-साथ भाग्य रेखा पर मिलती हों तो दो प्रेम साथ-साथ होते हैं। एक प्रेमी की आयु बड़ी तथा एक की छोटी होती है।

जिस आयु में दोषपूर्ण प्रभावित रेखा भाग्य रेखा में मिलती है, किया गया व्यापार सफल नहीं होता। साझे में होने पर साझेदारों में झगड़ा रहता है। ऐसे विद्याथ्री प्रेम में फंस कर अध्ययन में हानि उठाते हैं या पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। यदि भाग्य रेखा के द्वीप में प्रभावित रेखा मिले तो किसी एक की मृत्यु हो जाती है।
चन्द्रमा से निकलने वाली प्रभावित रेखा जब अन्तर्ज्ञान रेखा को काट कर भाग्य रेखा पर मिलती हो और दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति का अपने जीवन साथी या साझी पर प्रभाव नहीं होता। ऐसों का साथी या साझी जिद्दी व अधिक बोलने वाला होता है। ये दूसरे व्यक्तियों को भी प्रभावित नहीं कर सकते।

प्रभावित रेखा में तारा होने पर प्रेमी या प्रेमिका की मृत्यु हो जाती है। भाग्य रेखा टूटी होने पर जब एक टुकड़े का झुकाव चन्द्रमा की ओर हो तो यह प्रभावित रेखा का ही फल करता है। इस प्रकार के जितने टुकड़े हेाते हैं उतने ही प्रेम सम्बंध होते हैं तथा एक टुकड़ा जितने समय तक रहता है प्रेम सम्बंध भी उतने समय के पश्चात् दूसरा स्थापित हो जाता है। इस प्रकार जितनी बार भाग्य रेखा टूटती है सम्बंध भी टूटते हैं, चाहे कैसे भी हों।

प्रभावित रेखा दोषपूर्ण न होने पर जब भाग्य रेखा पर मिलती है तो उस आयु के पश्चात् व्यक्ति उन्‍नति करता जाता है। आपसी सम्बंध सौहार्दपूर्ण रहते हैं और एक दूसरे के प्रति सद्भाव होता है। उत्तम प्रभावित रेखा जिस समय भाग्य रेखा में मिलती है विवाह योग होता है।

नि:सन्देह यह कहा जा सकता है कि प्रभावित रेखा का सम्बंध व्यक्ति के प्रेम-सम्बंध व व्यापार से है। अत: प्रभावित रेखामें गुण होने पर उपरोक्त सम्बंधों में स्थायित्व एवं दोष होने पर इन सम्बंधों में अनिश्चितता होती है।

भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास होने पर इसमें जो भी प्रभावित रेखा मिलती है, अच्छी-बुरी कैसी भी हो, साझेदारी व प्रेम सम्बंधों में कठिनाई ही रहती है।

प्रभावित रेखा भाग्य रेखा में मिलने के स्थान पर यदि सितारा हो, यह भाग्य रेखा, प्रभावित रेखा व किसी एक अन्य रेखा से मिलकर बना हो अथवा स्वतंत्र, साझीदार या प्रेमी की मृत्यु हो जाती है। एक से अधिक साझी होने पर जिससे इस आयु में सम्बंध स्थापित होते हैं, उसकी मृत्यु हो जाती है।

सूर्य रेखा में प्रभावित रेखा किसी ऐसे सम्बन्ध का निर्देश है जिसके पश्चात् व्यक्ति को ख्याति प्राप्त होती है।

हाथ में दो निर्दोष रेखाएं होने पर यदि दोनों में एक ही आयु में प्रभावित रेखाएं हो तो सम्बंध, सम्पर्क या विवाह के पश्चात् अभूतपूर्व उन्‍नति होती है। इस दशा में सूर्य रेखा होने पर उसमें भी प्रभावित रेखा हो तो कहना ही क्या, इस सम्बन्ध के पश्चात् चहुंमुखी प्रगति व प्रसिद्धि होती है।

हाथ में एक भाग्य रेखा पूर्ण व एक देर से आरम्भ होती हो व देर से आरम्भ होने वाली भाग्य रेखा को काटती हुई प्रभावित रेखा यदि पहली पूर्ण भाग्य रेखा में मिलती हो तो सम्बन्ध, सम्पर्क। या विवाह की स्थापना बहुत झंझट, रुकावटों के पश्चात् होती है। अन्त में ये सम्बन्ध सफल होते हैं।

भाग्य रेखा जैसी प्रभावित रेखा यदि लम्बी भी हो और भाग्य रेखा को काटती हो तो आरम्भ में परेशानी तथा कटाव के पश्चात् सफलता का लक्षण है।

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