मस्तिष्क रेखा एवं आपका व्यक्तित्व

मस्तिष्क रेखा का हस्तरेखा palmistry में बहुत महत्व होता है

मस्तिष्क रेखा परिचय

मस्तिष्क रेखा का हथेली में बहुत महत्व होता है मस्तिष्क रेखा व्यक्तित्व चरित्र व सफलता - असफलता के बारे में बहुत कुछ बताती है इस लेख में विस्तार से मस्तिष्क रेखा के बारे में लिखा गया है

निर्दोष मस्तिष्क रेखा
दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा
मस्तिष्क रेखा का निकास
मस्तिष्क रेखा का अन्त

यह रेखा हथेली के बीचों बीच दो भाग करती हुई देखी जाती है। इसका आरम्भ वृहस्पति मंगल या दोनों के बीच से और अन्त मंगल, चन्द्रमा या दोनों के बीच होता है। मस्तिष्क रेखा जितनी ही सीधी होती है उत्तम होती है। लम्बी मस्तिष्क रेखा भी उत्तम नहीं मानी जाती। जो मस्तिष्क रेखा बुध की अंगुली के आरम्भ तक समाप्त हो जाती है बहुत ही उत्तम होती है। मस्तिष्क रेखा में एक या दोनों ओर द्विभाजन इसके गुणों में वृद्धि करती है।

मस्तिष्क रेखा में किसी भी प्रकार का दोष जीवन को पूरी तरह से प्रभावित करता है। मस्तिष्क रेखा तथा जीवन रेखा का जोड़ लम्बा नहीं होना चाहिए, यह भी मस्तिष्क रेखा के गुणों में कमी कर देता है। मस्तिष्क रेखा को एकदम झुकना या मुड़ना भी नहीं चाहिए। यदि मस्तिष्क रेखा धीरे-धीरे झुक कर चन्द्रमा की ओर जाती हो तो उत्तम मानी जाती है परन्तु यही मस्तिष्क रेखा एकदम मुड़ कर चन्द्रमा पर जाए तो दोषपूर्ण मानी जाती है। मस्तिष्क रेखा हाथ में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हम इसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण रेखा कह सकते है ।

निर्दोष मस्तिष्क रेखा

मस्तिष्क रेखा जितनी ही निर्दोष और सीधी होती है व्यक्ति उतना ही स्वतन्त्र-मस्तिष्क होता है तथा जीवन बिना किसी संकट के आगे बढ़ता है। ऐसे व्यक्ति समझदार व धनवान होते हैं। किसी के प्रभाव में आना या दब कर चलना इनके बस की बात नहीं। बिना किसी आर्थिक एवं मानसिक सहायता के ही निजी आत्मबल से उन्‍नति करते है। यदि अन्य रेखाओं में कोई विशेष दोष न हो तो निरन्तर उन्‍नति करते जाते हैं। अन्य रेखाओं के दोष को भी निर्दोष मस्तिष्क रेखा कम कर देती है। कितना भी दोष होने पर ऐसे व्यक्ति जीवन-यापन आसानी से करते रहते हैं।


ऐसे व्यक्ति पढ़ने में होशियार होते है, समय खराब नहीं करते। यदि जीवन रेखा गोलाकार भी हो तो अध्ययन का समय बहुत ही सुन्दर बीतता है। तथा छात्रवृत्ति या परीक्षा में असाधारण स्थान प्राप्त करते हैं। शुक्र उठा या भाग्य रेखा मोटी होने पर बुद्धिमान तो होते हैं परन्तु लापरवाही या अन्य व्यसनों में फंसने से शिक्षा की ओर ध्यान नहीं देते। भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास या मोटी होने पर आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण अध्ययन में विध्न पड़ता है।


निर्दोष मस्तिष्क रेखा के साथ वृहस्पति बहुत अधिक उन्‍नत हो तो अत्यधिक आत्म-विश्वास हो जाता है फलस्वरूप लापरवाही आ जाती है। इससे विद्यार्थी सारा वर्ष न पढ़ कर सीमित समय में अपनी परीक्षा की तैयारी करते हैं, अत: परीक्षा में सन्तोष जनक परिणाम प्राप्त नहीं कर पाते।


मस्तिष्क रेखा में अंगुलियों की ओर शाखाएं, जीवन रेखा गोलाकार, एक से अधिक भाग्य रेखाएं, सूर्य रेखा, सारे ग्रह उठे हुए, हाथ का रंग गुलाबी, अंगुलियां सीधी व देखने में सुन्दर, हाथ का आकार बड़ा और भारी, हाथ में विशेष भाग्य रेखा हो तो व्यक्ति प्रतिष्ठित होते हैं। ऐसे लक्षणों की बहुलता देश भर में किन्हीं इने-गिने व्यक्तियों के हाथों में पायी जाती है।


विशेष उत्तम मस्तिष्क रेखा होने पर व्यक्ति कठोर, घमण्डी, स्वार्थी, अभिमानी, अविश्वास करने वाला, चालाक तथा शक्की होता है। अत: बहुत अच्छी मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हाथ में यदि हाथ भी उसी के अनुसार उत्तम नहीं है तो दोष माना जाता है।


अच्छी मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति कामुक होते है, हाथ गरम हो तो काम-वासना प्रगट होने पर अपने आपको रोक नहीं सकते। हाथ का गठन सुद्दढ़ हो तो इनमें वृद्धावस्था तक काम शक्ति जागृत अवस्था में पाई जाती है।


उत्तम मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति छोटी-छोटी बातों को बहुत शीघ्र समझ जाते हैं। बहुत ही ढंग से चलते वाले व किसी भी समस्या का सामना दृढ़ता से करने वाले होते हैं, ऐसे व्यक्तियों की मस्तिष्क रेखा अधिक लम्बी नहीं होनी चाहिए।
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दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा


मस्तिष्क रेखा जब मोटी, पतली, लाल, काली, द्वीपयुक्त, टूटी, झुकी, अधिक लम्बी, देर से शुरू होने वाली व अधिक पास से दुहरी हो तो दोष पूर्ण कहलाती है। उपरोक्त दोष जब शनि की अंगुली के नीचे हों तो अधिक प्रभावकारी सिद्ध होते हैं अन्यथा साधरण प्रभाव होता है। अक्सर कोर्इ भी दोष उस आयु में प्रभाव करता है जब वह मस्तिष्क रेखा में होता है।


मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण व हृदय रेखा या अन्तर्ज्ञान रेखा भी दोष पूर्ण हों तो जब भी बुखार होता है तेज होता है और बेहोशी तक नौबत पहुंचती है। मस्तिष्क रेखा छोटी-छोटी रेखाओं द्वारा काटे जाने या इसमें क्रास होने पर भी ऐसा ही होता है।


दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा की आयु में मनुष्य को मानसिक परेशानी रहती है। इससे व्यक्ति के हाथ में अनेक नर्इ रेखाएं पैदा हो जाती हैं जैसे मकान की उत्कट इच्छा होने पर हृदय रेखा में त्रिकोण, धन चिन्ता होने पर अन्य भाग्य रेखा, सम्मान चिन्ता होने पर सूर्य रेखा, स्वास्थ्य चिन्ता होने पर अन्य स्वास्थ्य रेखाएं मंगल रेखा या किसी रेखा को ढकने वाली सह रेखा आदि। अधिक दोष होने पर ये रेखाएं स्थायी हो जाती हैं अन्यथा दोष का समय पूर्ण होने पर स्वत: ही मिट जाती हैं। तात्पर्य यह है कि जिस विषय की चिन्ता होती है उसी विषय की रेखाएं हाथ में कुछ समय के लिए पैदा हो जाती हैं।


मस्तिष्क रेखा में कहीं भी दोष होने पर कुटुम्ब की ओर से परेशानी होती है। शनि की अंगुली तिरछी व भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास हो तो विशेष रूप से कुटुम्ब की चिन्ता रहती है। इस आयु में व्यक्ति अपनी स्मृति कमजोर समझता है। वास्तव में यह खराब समय तथा मानसिक चिन्तन अधिक होने का ही कारण होता है।


दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति अस्थिर मस्तिष्क, भावुक, धार्मिक,  दयालू पाये जाते हैं। क्षण में कुछ सोचते हैं और क्षण में कुछ। अंगुलियां लम्बी हों तो दूसरों के प्रभाव में शीघ्र आते हैं अन्यथा जिद्दी होते हैं और गलत बात पर अड़ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति के साथ अधिक समय तक प्रेमपूर्ण वतावरण नहीं रह सकता, फलस्वरूप इनके सम्बन्ध किसी से स्थायी नहीं रहते, ये किसी से भी सहयोग न मिलने की शिकायत करते रहते हैं। भावुक होने के कारण अपनी बात तथा आप बीती घटनाएं, दु:ख के साथ सुनाते और पत्र लिखते समय विस्तार से कहानी बखान करते हैं। इनमें सहन शक्ति कम होती है अत: थोड़े दु:ख को भी बहुत बढ़ा कर दिखाने की आदत होती है। जरा-सी परेशानी में कुटुम्ब में कलह खड़ा कर देते हैं।


मस्तिष्क रेखा के आरम्भ में दोष या जीवन रेखा के साथ उसका जोड़ लम्बा हो तो ऐसे व्यक्तियों की निर्णय शक्ति दोष के समय तक उत्तम नहीं होती। दोष समाप्त होने के पश्चात् यह भी दूर हो जाती है। ये काम में कभी शीघ्रता तो कभी शिथिलता करते हैं। एक बात विशेष रूप से ध्यान देने की है कि जोड़ लम्बा होने पर स्वत्रंत रूप से कोर्इ भी कार्य करने में हिचकिचाते हैं। मस्तिष्क रेखा में दोष अधिक जैसे टूटी, द्वीप या झुकाव हो तो व्यक्ति क्रोध में कांपने लगता हैं और मानसिक संतुलन खो देते हैं। दोनो हाथों में ऐसा दोष न होने पर प्रभाव एक तिहार्इ ही रहता है।


मस्तिष्क रेखा दोष पूर्ण होने पर यदि उसे छोटी-छोटी रेखाएं काटती हों तो सिर में भारीपन तथा स्मृति कमजोर होती है। ऐसे व्यक्तियों को मानसिक अशान्ति रहती है। जिस आयु तक मस्तिष्क रेखा में यह दोष होता है, स्मृति की कमी महसूस होती है, तत्पश्चात् यह स्वत: ही ठीक हो जाती है और इनका आत्म-विश्वास भी ठीक हो जाता है। वास्तव में आत्म-विश्वास नहीं होना ही इसका कारण है। सोचे कार्य न बनने, अत्यधिक चिन्ता करने, रोग के पश्चात् किसी के प्रति मानसिक झुकाव होने की स्थिति में भी ऐसा पाया जाता है।


इनकी आदत आलोचना करने की होती है और यह जीवन भर रहती है। यदि एक हाथ में मस्तिष्क रेखा उत्तम हो तो आगे जाकर जब मस्तिष्क रेखा का दोष ठीक हो जाता है यह आदत भी सुधर जाती है फिर भी कभी-कभी महसूस करने तथा आलोचना करने की आदत रहती है ऐसे व्यक्ति की रिश्तेदारो से भी कम बनती है।


मस्तिष्क रेखा में दोष होना उत्तम लक्षण भी है। ऐसे व्यक्ति सहृदय, र्इश्वर का भजन करने वाले, विश्वासी एवं मानव-सुलभ गुणों वाले होते हैं परन्तु अधिक दोष होने पर ये चंचल एवं विश्वास रहित हो जाते हैं और र्इश्वर भजन में अधिक समय तक आस्था नहीं रख पाते तथा कुछ समय के पश्चात् फिर चिन्तन आरम्भ करते देखे जाते हैं। बार-बार ऐसा होने के बाद इनकी आस्था दृढ़ होने लगती है फलस्वरूप अधिक समय तक र्इश्वर चिन्तन करने लग जाते हैं तो भी इनका चिन्तन-भजन निरन्तर नहीं चलता। क्षण-क्षण में ये अपने विचार बदलते हैं, अत: विशेषतया दोष के समय किसी भी कार्य में सफल नहीं हो पाते। ऐसे व्यक्ति किसी कार्य के विषय में यह सोचा करते है कि यह इनका जन्म सिद्ध अधिकार है, परन्तु थोड़ी भी परेशानी से घबरा जाते हैं। विचार स्थिर न होने से थोड़ा भी उतार-चढ़ाव सहन नहीं कर पाते।


मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने की दशा में यह हृदय रेखा के समानान्तर हो तो क्रोध इतना आता है कि नियन्त्रण से बाहर हो जाते हैं। ये जिस काम के पीछे लग जाते हैं उसकी जड़ खोदने वाले होते है। इनमें बदला लेने की भावना पायी जाती है। अंगूठा छोटा या मोटा हो तथा कम खुलता हो तो इन गुणों में चार चाँद लग जाते हैं। क्रोध आने पर इन्हें स्वयं का होश नहीं रहता।


मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर व्यक्ति मस्तिष्क में कमजोरी अनुभव करता है। पेट खराब, सिर में भारीपन व भोजन के पश्चात् आराम की इच्छा अनुभव होती है क्योंकि इन्हें खाने के पश्चात् आलस्य आता है। भूख कम लगना, सिर दर्द आदि कठिनाइयां थोड़ी-थोड़ी जीवन भर बनी रहती हैं। जीवन रेखा में भी दोष हो तो इस फल में वृद्धि हो जाती है अन्यथा साधारण फल होता है। जीवन रेखा कितनी भी उत्तम हो, मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर कुछ न कुछ फल अवश्य होता है।


मस्तिष्क रेखा में एक के बाद एक दोष हो और कुछ समय तक लगातार चलता गया हो तो धन, कुटुम्ब और स्वास्थ्य ही हानि तो होती ही है, रोजगार भी बराबर नहीं चलता। नौकरी छूटना, इसमें कोर्इ झगड़ा होना, निलम्बन आदि घटनाएं हो जाती हैं। इस समय में व्यक्ति बचा बिल्कुल नहीं सकते। जीवन रेखा गोलाकार, भाग्य रेखा उत्तम और हाथ भारी हो तो काम चलता रहता है परन्तु बचत नहीं होती। मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और कार्य परेशानी व रुकावट से पूरे होते हैं। इस समय स्थानान्तरण या जहां काम करते हैं किसी से झगड़ा या ऑफीसर, साझी या अन्य आदमी से विरोध रहता है। विशेष दोष होने पर खींचा-तानी भी होती देखी जाती है। काला हाथ होने पर ऐसे व्यक्ति अनियमित ढंग से धन कमाते हैं परन्तु कितना भी पैसा कमाएं, संचय नहीं होता।


मस्तिष्क रेखा टूटने पर नीचे या ऊपर दूसरी मस्तिष्क रेखा टूटे हुए भाग को ढक कर चलती हो तो दोष तो करती है लेकिन विशेष अनिष्ट कारक नहीं होती। इस समय मानसिक संताप, रोग, सम्बन्ध या अनन्य मित्र की रुष्टता या विलगाव से मस्तिष्क में आघात-प्रत्याघात होते रहते हैं। विशेषतया ऐसे सन्ताप निरर्थक ही होते है। व्यतिगत रूप में कोर्इ हानि नहीं होती।


मस्तिष्क रेखा टूटने की दशा में, हृदय रेखा की कोर्इ शाखा टूटे स्थान पर मिलती हो या कोर्इ भाग्य रेखा गहरी होकर यहां रुकती हो तो किसी प्रेमी का विछोह या जीवन साथी की मृत्यु होती है।


आरम्भ में दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा


नजला-जुकाम के विषय में इनको बहुत सावधानी रखनी चाहिए। इनके दांतों में भी खराबी होती है। अंगूठा लम्बा या भाग्य रेखा पतली होने पर आरम्भ से ही कार्य की क्षमता व समझ होती है। जीवन रेखा से जिस आयु में मस्तिष्क रेखा स्वतंत्र होती है या दोष समाप्त होता है व्यक्ति में कार्य की शक्ति, लालसा व समझ बढ़ जाती है और इसके पश्चात् निर्भरता नहीं रहती।



शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष



यह दोष विशेषतया व्यक्ति के स्वास्थ्य के विषय में विचारणीय है। इसके स्वतंत्र फल भी कर्इ होते हैं परन्तु दूसरी रेखाओं के साथ समन्वय करने पर स्वास्थ्य के विषय में इस दोष के चिन्तन का परिणाम बहुत ही ठोस निकलता है। यह एक महत्वपूर्ण लक्षण है तथा जीवन के प्रत्येक पहलू पर प्रभाव डालता है। यदि मस्तिष्क रेखा में दोष है तो जीवन की हर घटना पर इसका प्रभाव पड़ता है।


शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष होने के साथ यदि जीवन रेखा के प्रारम्भ अर्थात् वृहस्पति के नीचे दोष हो तो व्यक्ति के कन्धें या आस-पास के भाग में कोर्इ न कोर्इ बीमारी पार्इ जाती है। यदि जीवन रेखा के बिल्कुल आरम्भ में कोर्इ दोष हो तो गले पर इसका प्रभाव पड़ता है। जीवन रेखा के मध्य में दोष होने पर व्यक्ति के पेट, भोजन नली, आंते तथा रीढ़ की हड्डी में इसका प्रभाव पड़ता है। जीवन रेखा के उत्तरार्द्ध में इसका प्रभाव व्यक्ति के फेफड़ों, हृदय आदि पर पड़ता है, अर्थात् उपरोक्त अंगों में बीमारी पार्इ जाती है। हाथ में कहीं भी नेष्ट लक्षण होने के साथ यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो उसके उपरोक्त लक्षणों के विषय में निश्चित होकर पुष्टि की जा सकती है।


यह दोष होने पर स्वयं या परिवार के किसी सदस्य की आँख में कमजोरी होती है, स्वयं या किसी सन्तान को चश्मा लगवाना पड़ता है। वृद्धावस्था में किसी न किसी को आँख का ऑपरेशन कराना पड़ता है। यदि सूर्य के नीचे हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा या जीवन रेखा में कोर्इ देाष हो तो ऐसा निश्चय ही होता है। इन व्यक्तियों को गरम एवं खट्टे पदार्थ पसन्द होते हैं जबकि दोनों ही इनके स्वास्थ्य के लिए हानिकर हैं।


कोमल हाथों में रोग शीघ्र तथा कठोर हाथ में देर से होते हैं। रोग का कारण व्यक्ति अपने पूर्व कर्म को मानता है और भाग्य को ही इस विषय में दोष देता है। शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा से कोर्इ रेखा निकल कर नीचे की ओर जाती है तो व्यक्ति की ऐड़ी में दर्द होता है। ऐड़ी के दर्द का कारण हड्डी बढ़ना होता है। ऐसे व्यक्तियों को अधिक नमक पसन्द होता है और उसी कारण हड्डी बढ़ जाती है। मस्तिष्क रेखा में कहीं भी तिल बड़ी आयु में लकवे का लक्षण है।
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मस्तिष्क रेखा का निकास


(क) जीवन रेखा से कम जुड़ा


इस लक्षण में मस्तिष्क व जीवन रेखा आपस में अधिक दूर तक जुड़ी अर्थात् सम्मिलित या उलझी हुर्इ नहीं होनी चाहिए। अधिक दूरी को परिभाषा हम लगभग 1.5 इंच करते हैं। 1.5 इंच जुड़ी होने पर मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होती हो तो इसका फल दोषपूर्ण होता है, जब कि जीवन रेखा से मस्तिष्क रेखा का बिना अधिक जोड़ के निकास गुण है। इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा केवल छूकर ही जीवन रेखा से निकलती है।


ऐसे व्यक्ति समझदार, प्रत्येक कार्य को सोच समझ कर करने वाले, जिम्मेदार तथा क्रियात्मक होते हैं और शीघ्र निर्णय कर लेते हैं। उपरोक्त लक्षण अधिक रेखा वाले हाथों में हों तो विचार करने व उसे क्रियान्वित करने में कुछ अधिक समय लगाते है, परन्तु क्रियात्मक हाथ में सदैव ही शीघ्र निर्णय कर लिए जाते है। अधिक रेखा वाले व्यक्ति भी एक से अधिक भाग्य रेखा, अंगूठा व अंगुलियां पतली, अंगुलियां छोटी, दोनों ओर एक द्विजिव्हाकार मस्तिष्क रेखा होने पर शीघ्र व ठीक निर्णय लेने वाले होते हैं। ये स्वतन्त्र मस्तिष्क व उत्तरदायी होते हैं। फलस्वरूप उन्नति कर जाते हैं।


स्त्रियों के हाथ में यह लक्षण होने पर हाथ कोमल हो तो प्रत्येक दूसरे वर्ष सन्तान हो जाती है। जीवन और मस्तिष्क रेखा दोष रहित हो तो पति-पत्नी में आपस में बहुत प्रेम होता है, हृदय रेखा भी निर्दोष या दोहरी हो तो साथी के जरा भी रूखा बोलने पर इन्हें बहुत दु:ख होता है, इन्हें महसूस भी अधिक होता है और माफी मांगने व रोने की आदत होती है। अन्त तक इनके सम्बन्ध मधुर रहते हैं और जीवन सुखी रहता है। एक दूसरे का विछोह इन्हें किसी भी मुल्य पर सहन नहीं होता।


(ख) जीवन रेखा से अलग


इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा वृहस्पति के पर्वत के नीचे, जीवन रेखा से अलग होकर आरम्भ होती है। इस की दूरी अधिक से अधिक 1/4 इंच या 1/6 इंच होती है। इस से अधिक दूर निकली हुर्इ मस्तिष्क रेखा का फल अच्छा नहीं होता। यह जितनी नजदीक से निकली होती है और जीवन रेखा से अलग होती हैं अच्छी मानी जाती है। यदि ऐसी मस्तिष्क रेखा, चतुष्कोण या किसी रेखा से बिना जुड़ी हो तो अति उत्तम होती है। जीवन रेखा से वृहस्पति पर जाने वाली शाखा के द्वारा अथवा जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा के द्वारा जुड़ी होने पर दोष-पूर्ण नहीं होती। ऐसी मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के निकास के पास से ही निकलती हो तो यह अतुलनीय है, परन्तु ऐसा कम देखा जाता है।


ये व्यक्ति स्वतंत्र मस्तिष्क, बुद्धिमान, शीघ्र विश्वास करने वाले व आरम्भ में शीघ्र घबराने वाले होते हैं। मध्यायु के पश्चात् घबराने का दोष इन में नहीं रहता। इस लक्षण के साथ अंगुलियों की लम्बार्इ भी अधिक हो तो विश्वास की मात्रा बढ़ जाती है जोकि भाग्योदय में रुकावट बन कर सामने आती है। यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकी हो तो ऐसे व्यक्ति कर्इ बार धोखा खाते हैं। ये शर्मालु, अधिक एहसान मानने वाले व लिहाज करने वाले होते हैं और स्पष्ट रूप से किसी बात को नहीं कहते। किसी को उधार देकर मांगते नहीं, जिन पर विश्वास करते है उसे कुटुम्ब का सदस्य मान लेते हैं। अत: जब भी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर करते हैं हानि उठाते हैं। ऐसे व्यक्ति को 35वर्ष की आयु तक साझे में व्यापार नहीं करना चाहिए और यदि परिस्थितिवश करना भी पड़े तो दूसरे साझियों के साथ सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए अन्यथा लाभ के बदले हानि ही हाथ लगती है। ऐसे हाथों में यदि रेखाएं कम या हाथ कौणिक अर्थात् अंगुलियां अंगूठे की ओर झुकी हुर्इ हो तो जल्दबाज होते हैं फलस्वरूप सावधानी से कार्य न करने के कारण हानि उठाते हैं परन्तु स्थायित्व प्राप्त करने के पश्चात् ये पूर्ण आत्म विश्वासी सिद्ध होते हैं।


ऐसी स्त्रियां स्पष्टवक्ता, हिम्मत वाली, कम शर्म वाली व निडर होती हैं। यदि भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी व अंगुलियां लम्बी हों तो ये दूसरे के प्रभाव में शीघ्र आती हैं। यदि कोर्इ व्यक्ति थोड़ी भी सहानुभूति से बात करे तो उन पर पूर्ण विश्वास कर लेती हैं।


ऐसे व्यक्तियों को स्वतंत्र रहने का मौका न मिले तो भी स्वतंत्र रहने की सोचते है व थोड़ा भी अवसर प्राप्त होने पर स्वतंत्र हो जाते हैं। नौकरी करने की दशा में ऐसे व्यक्ति जेब में त्याग-पत्र लिए घूमते हैं यदि वृहस्पति ग्रह थोड़ा भी उन्‍नत हो तो समय मिलते ही बिना हानि लाभ विचारे नौकरी छोड़ कर स्वतंत्र व्यापार में आ जाते हैं। ये जब तक नौकरी में रहते हैं आत्म-सम्मान से रहते हैं, नाजायज बात सहन नहीं कर सकते। झूठ से इन्हें चिढ़ होती है और मेहनती व र्इमानदार होते हैं। अत: किसी भी प्रकार से इनके आत्म सम्मान को आंच आती हो तो उसे सहन करना इनके बूते से बाहर की बात होती है।


ऐसे व्यक्ति विश्वास के कारण हानि उठाते हैं। परन्तु जीवन रेखा यदि गोलाकार, भाग्य रेखा एक से अधिक तथा गहरी या शुक्र उठा हो तो हानि कम होती है क्योंकि इनमें शक की भावना पैदा हो जाती है जो इन्हें सतर्क बना देती है। गहरी भाग्य रेखा लोभ की मात्रा बढ़ाती है अत: व्यक्ति पैसे के मामले में सतर्क होते हैं।


ऐसे व्यक्ति चरित्र में विश्वास करते हैं, अपने मन में दूसरे का प्रभाव होने पर भी इन्हें चरित्र दोष नहीं होता। अच्छे मित्र होते हैं व यथा सम्भव मित्रता निभाते हैं, किसी से बदला लेने की भावना नहीं होती। इनके विशेषतया स्त्रियों के हाथ में जीवन रेखा में दोष हो तो थोड़ी-सी बात में घबरा कर इन्हें दस्त लग जाते हैं जैसे पति का रात देर से आना या कोर्इ समाचार अचानक सुनना आदि।


मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होकर निकले तो व्यक्ति बचपन में अधिक बीमार होते हैं व जलने से या ऊपर से गिर कर बचना आदि घटनाएं भी होती हैं। यदि जीवन रेखा में विशेष दोष हो तो बचपन में निमोनिया, पाचन शक्ति व जिगर खराब रहता है तथा उपरोक्त रोगों के कारण कर्इ बार बहुत अधिक बीमार हो जाते हैं ।


यह मस्तिष्क रेखा मंगल पर या उसकी ओर जाए तो इनकी छाती पर तिल होता है। यह इनकी किसी सन्तान के योग्य होने का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति नौकरी अवश्य करते हैं। कर्ज नहीं ले सकते क्योंकि इससे इनके मस्तिष्क में तनाव रहता है। साझे में काम करना भी इन्हें अच्छा नहीं लगता।


मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अधिक दूर होकर निकली हो अर्थात् इसकी दूरी जीवन रेखा से 3/4 इंच या अधिक हो तो यह व्यक्ति में अति आत्म-विश्वास जिसे हम घमण्ड कहते है - पैदा करती है। ऐसे व्यक्ति लापरवाह होते हैं, अपने जीवन निर्माण की भी चिन्ता नहीं करते। ये स्वछन्द विचारों के होते हैं व किसी की परवाह न करना, बात काटने पर निरादर कर देना, इनके लिए कोर्इ विशेष बात नहीं होती। शनि की अंगुली लम्बी या शनि उन्‍नत हो तो एकान्त में बैठना पसन्द होता है, भाग्य रेखा भी शनि पर हो तो झगड़ा तथा विरोध पसन्द नहीं होता। ऐसे व्यक्ति विरोधियों से दूर जा कर खुले में मकान बना कर रहते है व न तो एक दूसरे का पक्ष ले सकते हैं और न तारीफ ही करते हैं, फलस्वरूप अनायास ही विरोध रहता है। इनकी स्पष्टवादिता या कटु-वाक्शक्ति नौकरी में भी झगड़े का कारण बनती है। इनका गला सूखता है व नींद कम आती है। ऐसे व्यक्तियों में आत्म-विश्वास देर से पैदा होता है। यदि शुक्र भी उन्‍नत हो तो जीवन में सफलता भी देर से मिलती है।


मस्तिष्क रेखा अधिक अलग तथा वृहस्पति अधिक उन्‍नत या वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली से लम्बी हो तो व्यक्ति अभिमानी होता है। यह लक्षण भी उन्नति में बाधा का है। ऐसे व्यक्ति अन्य उत्तम लक्षण होने पर भी मध्यम विकास प्राप्त करते हैं। ये प्रत्येक स्थान पर अपनी तारीफ व गर्व प्रदर्शित करते हैं।


मस्तिष्क रेखा अलग होने पर ऐसों का जीवन साथी सुन्दर, सरल स्वभाव तथा विषम परिस्थितियों में भी निभाव करने वाला होता है। ये पहले विवाह के लिये मना करते हैं तथा बाद में शादी करते हैं। शादी के पश्चात् भी इन्हें कुछ समय तक अच्छा महसूस नहीं होता यद्यपि जीवन साथी सहयोगी, सच्चरित्र व सब तरह से ठीक होता है। ऐसे व्यक्ति प्रेम प्रदर्शन नहीं करते इसी कारण एक दूसरे पर शंका बनी रहती है। इस प्रकार की स्त्रियां या पुरुष अपने किए हुए प्रत्येक कार्य में अनुमोदन की इच्छा करते हैं जैसे खाना बनाने पर कहते हैं कि नमक ठीक है? आदि। यदि ये थोड़ा भी प्रदर्शन करें या दूसरे की तारीफ करें तो जीवन पूर्णतया सुखमय रहता है।


मस्तिष्क रेखा का निकास अधिक दूर होने पर इनके मां-बाप के विचार आपस में नहीं मिलते, कुछ न कुछ खटपट चलती रहती है परन्तु स्वयं के दाम्पत्य जीवन में ऐसा नहीं होता। यह साधारण सिद्धान्त के अनुसार ये सहनशील और सोच-समझ कर चलने वाले होते हैं।


(ग) मस्तिष्क रेखा का निकास वृहस्पति से



वृहस्पति ग्रह आत्म सम्मान, महत्वाकांक्षा, प्रौढ़ता व शासन का प्रतीक है। हाथ में वृहस्पति उन्‍नत होने पर व्यक्ति सच्चरित्र, महत्वाकांक्षी तथा शासकीय प्रवृत्ति के होते हैं, इसी प्रकार जिन लोगों की मस्तिष्क रेखा वृहस्पति से निकलती है उन व्यक्तियों में स्वभावत: ही उपरोक्त गुण आ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति पुरुषार्थ से जीवन बनाते हैं तथा स्वयं के गुणों में निरन्तर वृद्धि करने वाले होते हैं। इनका मस्तिष्क शब्दकोष होता है व ग्रहण-शक्ति अच्छी होती है। ये बौद्धिक त्रुटियां नहीं करते, संयोगवश यदि कोर्इ गलती कभी कर जायें तो पुनरावृत्ति का तो प्रश्न ही नहीं उठता। महत्वाकांक्षा की विशेष भावना पार्इ जाने के कारण अध्ययन के समय गुट बना कर रहते हैं।


ये मिलनसार व दृढ़ निश्चयी भी होते हैं। जिससे इनका परिचय या मित्रता हो जाती है जीवन भर निभाते हैं, मित्रता होती भी अधिक व्यक्तियों से है। स्वयं से कोर्इ गलती या अपराध होने पर क्षमा मांगने में देर नहीं करते और यदि कोर्इ व्यक्ति गलती कर के इनसे क्षमा मांगे तो क्षमा भी कर देते हैं। ऐसे व्यक्तियों की हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा यदि एक दूसरे के समानान्तर हो तो बदले की भावना रहती है, जिसके पीछे पड़ते हैं जड़ से उखाड़ देते हैं। परोपकारी, व्यवहारिक व मानवोचित गुण होने के साथ ही जैसे के साथ तैसा करने वाले होते हैं।


साधारणतया इनको आलसी कहा जा सकता है। घर में भी इनकी प्रकृति का व्यक्ति कोर्इ न कोर्इ अवश्य होता है। ये एकान्त प्रिय, कम बोलने वाले व बुजुर्गो जैसा व्यवहार करने वाले होते हैं। शोर-शराबा यहां तक की रेडियों की ऊंची आवाज भी पसन्द नहीं होती। शर्मालू स्वभाव होने के कारण इन्हें स्त्रियों से बातें करने या दाम्पत्य जीवन में शर्म लगती है। ऐसे व्यक्ति देख भाल कर खर्च करते हैं।


(घ) मस्तिष्क रेखा का निकास मंगल से



मंगल ग्रह का सम्बन्ध वीरता, शौर्य, धैर्य क्रूरता व नृशंसता आदि से है। अत: मस्तिष्क रेखा मंगल से निकलती हो तो निश्चय ही उपरोक्त गुणों में वृद्धि करती है। गुणों की अतिशयता होने पर व्यक्ति में घमण्ड, लड़ार्इ झगड़ा करने की आदत अपने आपको बहुत अधिक समझना आदि दोष पैदा हो जाते हैं। ये शरीर प्रधान होते हैं, बुद्धि प्रधान नहीं। मंगल से मस्तिष्क रेखा निकलने पर व्यक्ति में येन-केन प्रकारेण बदला लेने की भावना पार्इ जाती है। क्रोध में ऐसे व्यक्ति बोद्धिक, नैतिक व मानसिक नियन्त्रण खो बैठते हैं अत: देखा गया है कि इनके हाथ से अनहोनी हो जाती है। मिल्ट्री, पुलिस में काम करने वाले तथा ऎसी मार्शल जातीयां जो वीरता या लूट-पाट, छापा मारी व राज्य विद्रोह के लिए प्रसिद्ध हैं, के हाथों में मंगल के गुणों की प्रधानता देखी जाती है। मस्तिष्क रेखा मंगल से निकलने पर पूरा मस्तिष्क ही मंगल से प्रभावित होता है जो व्यक्ति में कर्इ प्रकार के दुर्गुणों का कारण होता है।


ऐसे व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। ये जल्दबाज और दूसरों पर डाल कर बात कहने वाले होते हैं। इनकी बात काटना भी इन्हें एक प्रकार से चुनौती देना है। वृहस्पति उन्‍नत होने पर ऐसे व्यक्ति मौके पर तो चुप हो जाते हैं बाद में उसी बात केा लेकर सम्मान के ग्राहक बन जाते हैं।


ऐसे व्यक्तियों से व्यवहार करने का सबसे उत्तम उपाय इनके साथ प्रेम से बर्ताव करना, इनकी बात को नहीं काटना तथा इनके अपने रास्ते पर चलना ही है। बात काटकर या तर्क के द्वारा इनको मनाना बहुत कठिन है। जहां तक हो सके इनसे अलग रहना चाहिए नहीं तो बुद्धिमत्ता से इनके रास्ते में पड़ कर ही इन्हें मनाना चाहिए।


मंगल से मस्तिष्क रेखा निकलने पर व्यक्ति रक्त विकार के रोगी होते हैं। चमड़ी का कोर्इ न कोर्इ रोग इनके शरीर पर स्थायी चिन्ह छोड़ जाता है।


मंगल से मस्तिष्क रेखा निकलने पर अंगूठा टोपाकार, हाथ का रंग लाल या काला होने पर इनके हाथ से अनेक कत्ल होते हैं। काम भी ऐसे व्यक्ति कसार्इ जैसा जैसे मांस बेचना या जानवरों को काटना या छुरे बाजी आदि करते हैं। हाथ भारी होने पर इसी कार्य से धनाढ्य भी हो जाते हैं।
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मस्तिष्क रेखा का अन्त


(क) मस्तिष्क रेखा का अन्त चन्द्रमा पर


चन्द्रमा कल्पना शक्ति, सौम्य विचार, कलात्मकता एवं भावनात्मक बुद्धि का प्रतीक है। ललित कला का सम्बन्ध भी चन्द्रमा से है। अत: जिन व्यक्तियों में उपरोक्त गुण पाये जाते हैं, उनमें चन्द्रमा उन्‍नत होता है, मस्तिष्क रेखा का अन्त दो प्रकार से चन्द्रमा पर होता है। एक तो यह एकदम मुड़ कर चन्द्रमा पर जाती है, दूसरे धीरे-धीरे चन्द्रमा के आस-पास या चन्द्रमा पर समाप्त होती है। इनमें पहली मस्तिष्क रेखा दोष-पूर्ण मानी जाती है। इसमें चन्द्रमा के पर्वत से पाये जाने वाले गुणों की अतिशयता होती है जो जीवन में कर्इ कमियों का कारण बन जाती है। दूसरे प्रकार की मस्तिष्क रेखा एक सुन्दर गुण है। साहित्यकार, कलाकार, ललित कला के पारखी आदि व्यक्तियों के हाथ में दूसरे प्रकार की रेखा ही पार्इ जाती है। भावुकता तो इनमें होती है परन्तु यह निश्चित मात्रा तक होती है, अतिशय नहीं। यहां दूसरे प्रकार की रेखा के विषय में विचार किया जाएगा।


जिनकी मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा पर गर्इ हो तो ऐसे व्यक्ति भावुक, अधिक महसूस करने वाले, कल्पनाशील, बातें अधिक व काम कम करने वाले, बहुत शीघ्र रोने वाले तथा त्यागी होते हैं। मस्तिष्क रेखा का चन्द्रमा पर जाना वैसे तो उत्तम है परन्तु क्रियात्मक रूप से ऐसे व्यक्ति समाज के योग्य नहीं होते। ये अतिमानव एवं कल्पनाशील होते है। हृदय रेखा वृहस्पति पर, और मस्तिष्क रेखा अलग हो या लम्बी, हृदय रेखा में द्वीप, हाथ कोमल हो तो भावुकता की मात्रा किसी हद तक अधिक बढ़ जाती है।


धीरे-धीरे चन्द्रमा पर जाने वाली मस्तिष्क रेखा वाला व्यक्ति यदि मस्तिष्क रेखा में मोटार्इ नहीं हो तो मिलनसार तथा मानव-गुण-सम्पन्न होता है। अंगुलियां पतली और अंगूठा पतला हो तो इस फल में बहुत वृद्धि हो जाती है। मुकदमा या झगड़ा करना इन्हें पसन्द नहीं होता। शान्तिप्रिय तथा अपनी धुन के पक्के होते हैं। व्यापारी एवं बुद्धिजीवी व्यक्ति के हाथ में ऐसे ही लक्षण पाये जाते हैं। ये दिन-प्रतिदिन उन्‍नति करने वाले होते हैं। इसके विपरीत मस्तिष्क रेखा यदि एकदम मुड़ कर चन्द्रमा पर जाए  तो विशेष कल्पना करने वाले व विचार के स्थिर नहीं होते। कभी कुछ सोचते हैं तो कभी कुछ। वहमी भी होते हैं। हाथ में ज्यादा रेखाएं एवं शुक्र प्रधान होने पर वहम और कल्पना दोनों ही अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत देर में सफल होते हैं ये स्वभाव के पहले तेज होते हैं और बाद में शान्त हो जाते हैं। द्वीपयुक्त होने पर यह मस्तिष्क रेखा अन्त में व्यक्ति को चिड़चिड़ा या कम बोलने वाला बना देती हैं।


मस्तिष्क रेखा एक हाथ में चन्द्रमा पर तथा दूसरे हाथ में बुध की ओर गर्इ हो तो संसार त्याग की भावना रहती है स्वभाव से ही त्यागी होते हैं। हृदय रेखा दोष-हीन, भाग्य रेखा पतली, अंगुलियां लम्बी हों तो निश्चय ही ऐसा होता है। शुक्र ग्रह उन्‍नत या भाग्य रेखा मोटी होने पर ये वहमी व आलसी होते हैं। वृहस्पति की अंगुलियां यदि छोटी हों तो भी त्यागी होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी आदत से मजबुर होकर त्याग करते हैं परन्तु यश इन्हें नहीं मिलता। त्याग के विषय में सोचते हुए यह देखना आवश्यक है कि व्यक्ति की अवस्था भी त्याग करने की है? धनी होने पर धर्मशाला, विद्यालय, औषधालय, कुआं आदि बनवाता है। ऐसे व्यक्तियों के हाथ में सूर्य की अंगुली के नीचे मत्स्य रेखा पार्इ जाती है।


मस्तिष्क रेखा झुककर जीवन रेखा के पास चली जाए तो व्यक्ति में आत्महत्या की प्रवृति होती है, मस्तिष्क रेखा तथा हृदय रेखा में अधिक दोष हो तो आत्महत्या कर लेते है।


(ख) चन्द्रमा पर एकदम मुड़कर


कभी-कभी मस्तिष्क रेखा एकदम मोड़ खा कर नीचे की ओर झुक जाती है। हम इसे झुकी मस्तिष्क रेखा कहते है। झुकने के पश्चात् मस्तिष्क रेखा का झुकाव या तो चन्द्रमा की तरफ होता है या लम्बी होने की अवस्था में यह चन्द्रमा पर पहुंच जाती हैं।


ऐसे व्यक्ति बहुत भावुक स्वभाव होते हैं। छोटी-छोटी बात महसूस करना, जरा सी बात को बड़ा बना लेना इनकी आदत होती है। यदि मस्तिष्क रेखा में कोर्इ अन्य दोष जैसे शनि के नीचे टूटी या द्वीप आदि हो तो सारा जीवन ही अशान्ति पूर्ण रहता है। दोनों हाथों में इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा होने पर व्यक्ति अत्यधिक भावुक होते हैं, हृदय रेखा में द्वीप आदि लक्षण पाएं जाने पर ऐसे व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेते हैं। मस्तिष्क रेखा यदि एकदम न मुड़ कर धीरे-धीरे चन्द्रमा की ओर उतरी हो तो दोषपूर्ण के बजाए उत्तम होती है, ऐसे व्यक्ति कवि, लेखक आदि होते हैं, परन्तु एकदम मस्तिष्क रेखा का झुकाव हो जाना भारी दोष माना जाता है। ऐसे व्यक्ति प्रेम सम्बन्ध टूटने, अनमेल विवाह होने, कुटुम्ब में क्लेश आदि घटनायें होने पर आत्महत्या कर लेते हैं, हृदय रेखा भी टूटी हो तो इनके आत्म सम्मान को ठेस लगने पर भी आत्महत्या कर लेते हैं।


स्त्रियों के हाथों में ऐसे लक्षण बहुत खराब होते हैं। स्त्रियां तो पहले ही पुरुषों से अधिक भावुक होती हैं, इनके साथ कोर्इ भी अपमानजनक घटना होने पर आत्महत्या करते देर नहीं लगाती, अन्यथा सोचती तो अवश्य ही हैं। यह देख लेना चाहिए कि भाग्य रेखा के आरम्भ में बड़ा द्वीप तो नहीं है या भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास तो नहीं आ गर्इ है ? क्योंकि भाग्य रेखा के उपरोक्त लक्षणों से कुटुम्ब में क्लेश व अशान्ति का भयंकर रूप देखने में आता है।


सोचते समय ऐसे व्यक्ति तन्मय (एकाग्र) हो जाते हैं फलस्वरूप इनके साथ दुर्घटनाएं अधिक होती है। यदि जीवन रेखा व हृदय रेखा निर्दोष हों तो इसका प्रभाव बहुत कम हो जाता है परन्तु जिस आयु में यह झुकाव होता है उसमें किसी सम्बन्धी  की मृत्यु धन हानि, स्वयं को या कुटुम्ब में रोग आदि फल घटित होते हैं।


(ग) मंगल पर


50 प्रतिशत व्यक्तियों के हाथों में मस्तिष्क रेखा का अन्त मंगल पर होता है। सीधी मंगल पर जाने की दशा में मस्तिष्क रेखा लम्बी हो जाती है। यह इतना अच्छा नहीं माना जाता परन्तु मस्तिष्क रेखा मंगल की ओर जाती हो, अधिक लम्बी न होकर निर्दोष भी हो तो उत्तम प्रकार की मस्तिष्क रेखा मानी जाती है।


ऐसे व्यक्तियों में कर्त्तव्य-शक्ति बहुत होती है। ये दूरदर्शिता से कार्य करने वाले होते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा का निकास जीवन रेखा से अलग भी हो तो व्यक्ति सरल प्रकृति व विश्वास करने वाले होते हैं। इस गुण के कारण इन्हें हानि भी होती है क्योंकि ऐसे व्यक्ति दूसरों पर निर्भर अधिक रहते हैं अन्यथा जीवन रेखा मंगल से निकलने पर यदि मस्तिष्क रेखा मंगल की ओर निर्दोष होकर जाती हो तो सतर्क होते है। जीवन रेखा अधिक गोल या भाग्य रेखा एक से अधिक होने पर हानि के अवसर नहीं आते अन्यथा इनका उधार दिया हुआ डूब जाता है। बुध की अंगुली का तिरछा होना व उसका नाखून छोटा होना भी बुद्धिमत्ता में वृद्धि करता है और हानि के अवसरों में कमी कर देता है।


ये शान्ति-प्रिय होते हैं, झगड़े में नहीं पड़ते परन्तु कोर्इ झगड़ा सिर पर आ पड़े तो अन्त तक हिम्मत से लड़ते हैं और शत्रु को हरा कर ही दम लेते हैं। दोनों हाथों में मस्तिष्क रेखा मंगल पर गर्इ हो तो इनकी आदत अन्त तक वैसी ही बनी रहती है। इस मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो अन्त में चिड़-चिड़ापन आ जाता है। इन्हे किसी चीज का अभ्यस्त नहीं होना चाहिए अन्यथा आदत बदलना मुश्किल हो जाता है।


दोनों हाथों में मस्तिष्क रेखा मंगल पर या उसकी ओर जाती हो तो व्यक्ति को जन्म स्थान छोड़ कर दूसरी जगह अपना आवास बनाना पड़ता है। कर्इ बार ऐसे व्यक्ति एक से अधिक स्थान बदलते देखे जाते हैं। नौकरी में हों तो अनेक जगह स्थानान्तरण होता है। इनकी छाती पर तिल पाया जाता है।


(घ) मस्तिष्क रेखा का अन्त सूर्य पर


एक से अधिक मस्तिष्क रेखाएं होने पर कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि एक रेखा सूर्य पर चली जाती है या मस्तिष्क रेखा की कोर्इ शाखा सूर्य पर पहुंचती है। ऐसे व्यक्ति सद्गुणों से युक्त, उत्तम विचार वाले, बुद्धिजीवी और सम्मान अर्जित करने वाले होते हैं। ये किसी भी कार्य को जल्दबाजी से नहीं करते। स्वभाव के गरम तथा नेत्रों के कमजोर होते हैं।


(ड.) बुध पर या उसकी और



कभी-कभी मस्तिष्क रेखा स्वयं या उसकी कोर्इ शाखा बुध पर जाती है या मस्तिष्क रेखा का झुकाव बुध की ओर होता है, इससे व्यक्ति में बुद्धिमत्ता का विकास होता है। ऐसे व्यक्ति सद्गुणों से परिपूर्ण, विचारक, बात को अधिक बारीकी से जानने वाले एवं सफल होते हैं। अंगूठा छोटा या कठोर होने की दशा में क्रोधी होते हैं।


मस्तिष्क रेखा की एक शाखा बुध की ओर या मस्तिष्क रेखा एक हाथ में बुध की ओर तथा दूसरे में चन्द्रमा पर हो तो सन्यास लेने की इच्छा प्रबल होती है, अन्यथा इस विषय में सोचते अवश्य हैं। इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा दायें में हो तो इनकी सन्तान और बायें हाथ में होने पर स्वयं लेखक अथवा पत्रकार होते हैं। दो मस्तिष्क रेखाएं होने पर यदि एक का झुकाव बुध की ओर हो तो धन और बुद्धि दोनों में सफल होते हैं।
साभार


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