मस्तिष्क रेखा # 2


लम्बी मस्तिष्क रेखा

मस्तिष्क रेखा की सही लम्बार्इ बुध की अंगुली के आरम्भ तक है। यहां से आगे मस्तिष्क रेखा लम्बी मानी जाती है। मस्तिष्क रेखा बुध वाले मंगल के मध्य या उस के नीचे की ओर उतर जाए अथवा चन्द्रमा के मध्य अथवा मणीबन्ध के समीप तक पहुंचे तो लम्बी कही जाती है। निर्दोष होने पर तो यह उत्तम होती है, परन्तु दोषपूर्ण होने पर यह ठीक नहीं मानी जाती।

विशेष लम्बी मस्तिष्क रेखा की दशा में व्यक्ति को अधिक विचारने की आदत होती है, परन्तु इनका चिन्तन व्यर्थ न होकर किसी विषय को लेकर ही होता है। ये बहुत लम्बे भविष्य की बातें सोचा करते हैं।

मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर व्यक्ति बहादुर होते हैं, परिस्थितियों का मुकाबला हिम्मत से करते हैं, घबराते नहीं। इन्हें अपनी आदत पर बहुत नियन्त्रण होता है, जैसा चाहते हैं वैसा ही जीवन यापन करते हैं। परन्तु एक बार पक्की आदत होने पर बदलने में कठिनार्इ होती है। ये बहुत नियम व कानून के अनुसार कार्य करते हैं। इन्हें किसी भी कार्य के लिए कठिनार्इ से सहमत किया जा सकता है और सहमत होने पर किसी भी प्रकार की शंका इनके मस्तिष्क में नहीं रहती। ऐसे व्यक्ति बड़ी-बड़ी बातें सोचते हैं। किसी भी विषय को बहुत गहरार्इ से जानते या विस्तार पूर्वक वर्णन करते है। ये या तो लड़ते नहीं और लड़ते हैं तो जब तक दूसरा व्यक्ति नहीं झुकता पीछा नहीं छोड़ते। ये बहुत सतर्क होते हैं, एक बार गलती करने के बाद उसे दोहराने की नौबत नहीं आती, अंगुलियां पतली होने पर यह गुण बहुत अधिक बढ़ जाते हैं। ये नियमित आदतों वाले तथा खाने पीने के विषय में बहुत ही सतर्क होते हैं। 

लम्बी मस्तिष्क रेखा वाले 35वर्ष की आयु के पश्चात् ही सफलता पूर्वक उन्‍नति करते देखे जाते हैं। इन्हें कोर्इ भी बात अत्यधिक चुभती है। स्त्री-पुरुषों मं स्वभाव की दृष्टि से यद्यपि कोर्इ अन्तर नहीं होता तो भी स्त्री होने की दशा में इनमें भावुकता की मात्रा बढ़ जाती है। 


छोटी मस्तिष्क रेखा


मस्तिष्क रेखा की आदर्श लम्बार्इ बुध व सूर्य की अंगुली के मध्य तक होती है। इससे छोटी होने पर मस्तिष्क रेखा छोटी कहलाती है परन्तु शनि व सूर्य की अंगुली के मध्य या इसके आस-पास तक जाने वाली मस्तिष्‍क रेखा ही छोटी मानी जाती है। यह एक प्रकार का दोष है और जीवन में कर्इ कमियों का लक्षण है।

मस्तिष्‍क रेखा छोटी होने की दशा में हृदय रेखा के समानान्तर व भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकली हो तो अव्वल दर्जे के कामुक होते हैं। अधिकांश कमार्इ जब तक लक्षण सुधर नहीं जाते इसी काम में जाती है। हृदय रेखा अंगुलियों के पास होने पर किसी न किसी व्यक्ति से इनके सर्वविदित अनैतिक सम्बन्ध रहते हैं। 

मस्तिष्‍क रेखा छोटी होकर यदि इसमें ऊपर की ओर दो या तीन शाखाएं उदय हो तो भी दोषपूर्ण फल न होकर उत्तम फलकारक होती है।

दोहरी मस्तिष्क रेखा 


हाथ में कभी-कभी एक के स्थान पर दो मस्तिष्क रेखाएं भी होती हैं। ये हाथ विशेष प्रकार के होते हैं। यदि हाथ में अधिक गुण जैसे गोलाकार जीवन रेखा, छोटी व सीधी अंगुलियां, हाथ कोमल व भारी आदि भी हो तो ऐसे व्यक्ति कुल दीपक  होते हैं। दोनों ही मस्तिष्क रेखा निर्दोष भी हों तो व्यक्ति आरम्भ से ही प्रखर बुद्धि व धनी होता है। इसमें दोष होने पर, दोष निकलने की आयु के पश्चात् ही उन्‍नति कर पाता है।

ऐसे व्यक्ति जौहरी, ज्योतिषी, विज्ञान-वेत्ता, कानून विशेषज्ञ, उद्योगपति, बड़े व्यापारी तथा राजनीतिज्ञ पाये जाते हैं। इनमें बौद्धिक विकास विशेष रूप से होता है साथ ही बौद्धिक विकास के लक्षण जैसे बुध का नाखून चौकोर और छोटा, सूर्य का पर्वत उन्‍नत, आदि गुण भी देख लेने चाहिए। इन व्यक्तियों का मस्तिष्क एकाग्र होता है, जब ये सोचने को आते हैं तो एक ही दिशा में सोचते हैं और दूसरी और का ध्यान नहीं रहता। सड़क पर चलते समय भी ऐसा ही होता है फलस्वरूप इनके एक्सीडैन्ट अधिक होते हैं। पता ही उस समय चलता है जब कि खतरा इनके सामने होता है। ऐसे हाथों में कर्इ-कर्इ दुर्घटनाएं छोटी-बड़ी हो जाती हैं तो भी ये जीवित रहते हैं।

हाथ पतला, टेढ़ा-मेढ़ा व दोषपूर्ण होने पर दोहरी मस्तिष्क रेखा उल्टा फल करती है। इन रेखाओं के प्रभाव से केवल रोटी खाने का साधन जुटा रहता है, सफलता पास नहीं फटकती। कठोर हाथ में दोहरी मस्तिष्क रेखा हो तो व्यक्ति उत्तम कोटि के दस्तकार होते हैं और कोमल हाथ में दोहरी मस्तिष्क रेखा होने पर लेखक, राजनीतिज्ञ, जौहरी, विज्ञान-वेत्ता आदि विशेष बौद्धिक स्तर के व्यक्ति होते हैं। इन हाथों में कोर्इ उत्तम लक्षण जैसे पतली भाग्य रेखा आदि न हो तो भी दोहरी मस्तिष्क रेखा होने पर भाग्यशाली ही रहता है।

कभी-कभी दो मस्तिष्क रेखाओं तथा भाग्य रेखा से मिल कर एक लम्बा द्वीप बन जाता है। यह दोहरी मस्तिष्क रेखा और द्वीप का फल भी करता है। जहां व्यक्ति उन्‍नति करता है वहां इसके फलस्वरूप पेट का ऑपरेशन, मस्तिष्‍क विकार जैसे नींद न आना, पैर में चोट लगना आदि का खतरा भी करता है।

दोहरी मस्तिष्क रेखा होने पर दूसरी मस्तिष्क रेखा देर से आरम्भ होती हो तो उसके आरम्भ होने की आयु के पश्चात् ही व्यक्ति की सफलता व उन्‍नति होती हैं। ऐसे व्यक्ति का मस्तिष्‍क स्थिर नहीं होता, दुविधा रहती है।

दोहरी मस्तिष्क रेखा जब भाग्य रेखा से कटती है तो एक त्रिकोण बनता है। यह त्रिकोण द्वीप का फल करता है। त्रिकोण की आयु समाप्त होने के पश्चात् ही व्यक्ति जीवन में सफल होता है।

दोहरी मस्तिष्क रेखा होने पर यदि एक मस्तिष्क रेखा का जोड़ जीवन रेखा के साथ लम्बा हो तो जोड़ समाप्त होने के पश्चात् ही व्यक्ति को अधिक सफलता मिलती है। इससे पहले स्थायी जीवन यापन नहीं रहता।

दोहरी मस्तिष्क रेखा होने पर यदि दोनों टूट कर एक तीसरी मस्तिष्क रेखा शुरू होती है तो तीसरी मस्तिष्क रेखा आरम्भ होने की आयु से ही व्यक्ति को सफलता मिलती है। यदि आरम्भ में एक मस्तिष्क रेखा हो और बाद में दो मस्तिष्क रेखाएं हों तो दो मस्तिष्क रेखाएं आरम्भ होने के पश्चात् ही व्यक्ति के जीवन में उन्‍नति के अवसर उपस्थित होते हैं।

दोहरी मस्तिष्क रेखा होने पर यदि अपराधी होने के लक्षण हों तो विशेष मानसिक विकास के कारण अपराध करने पर भी कठिनता से पकड़ में आते हैं। स्वयं तो ऐसे व्यक्ति अपराधी प्रवृति के नहीं होते, मस्तिष्क रेखा की कोर्इ शाखा मंगल पर जाने से संगति में पड़ कर हत्या आदि कोर्इ अपराध कर डालते हैं, दूसरों से करा देते हैं या किसी अपराधी को शरण देने से कठिनार्इ में पड़ जाते हैं। यह बिल्कुल निश्चित है कि यदि मस्तिष्क रेखा में कोर्इ दोष नहीं हो तो करते ये हैं और सजा दूसरे भोगते हैं। उत्तम मस्तिष्क रेखा दोहरी न भी हो तो यही फल कहा जा सकता है।

शाखान्वित मस्तिष्क रेखा 


शाखान्वित मस्तिष्क रेखा दो प्रकार से हाथों में देखने में आती है। एक तो मस्तिष्क रेखा से ही छोटी या बड़ी शाखाएं निकल कर इधर-उधर जाती हैं। दूसरें प्रकार से मस्तिष्क रेखा स्वयं दो भागों में विभक्त हो जाती है। इनका भेद ध्यान से देखने पर आसानी से किया जा सकता है। दोनों ही प्रकार की मस्तिष्क रेखाएं लगभग एक-सा ही फल करती हैं।

द्विभाजन होने पर मस्तिष्क रेखा के ही दो भाग हो जाते हैं, और दोनों भागों की मोटाई एक-सी होती है, दोनो भाग लम्बे या छोटे कैसे भी हो सकते है। ऐसा देखने में आया है कि आरम्भ में मस्तिष्क रेखा द्विभाजित होने पर शाखाएं लम्बी नहीं होती परन्तु अन्त में द्विभाजित होने वाली रेखा का द्विभाजन लम्बा या छोटा किसी भी प्रकार का हो सकता है।

मस्तिष्क रेखा से निकलने वाली छोटी शाखाएं रोम जैसी पतली होती हैं। मोटी शाखाएं मस्तिष्क रेखा से निकलने पर यदि मस्तिष्क रेखा की मोटाई पर उससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता हो तो ये अलग मस्तिष्क रेखाएं मानी जाती हैं परन्तु मस्तिष्क रेखा की मोटाई पर इस रेखा का कोई प्रभाव हो अर्थात् मुख्य मस्तिष्क रेखा की मोटाई कम होती हो तो इसे मस्तिष्क रेखा की शाखा माना जाता है। इस प्रकार से मस्तिष्क रेखा से निकलने पर तीन प्रकार की शाखाएं होती हैं।
1- छोटी शाखाएं जो बहुत पतली होती हैं और मस्तिष्क रेखा के मध्य से निकलती हैं।
2- मस्तिष्क रेखा द्विभाजित होकर बनने वाली छोटी या बड़ी शाखाएं
3- मस्तिष्क रेखा के मध्य बड़ी शाखाएं जिन्हें हम दूसरी मस्तिष्क रेखा या सहायक मस्तिष्क रेखा भी कह सकते हैं।

निर्दोष मस्तिष्क रेखा अति उत्तम लक्षण माना जाता है परन्तु इस मस्तिष्क रेखा से कोई शाखा नहीं निकलती हो तो व्यक्ति अपने ही विषय में अधिक सोचते हैं। मस्तिष्क रेखा से शाखाएं निकलने पर व्यक्ति में प्रेम व सौहार्द की भावना पाई जाती है। यदि मस्तिष्क रेखा दोनों ओर अर्थात् आदि एवं अन्त में द्विभाजित हो तो अच्छी मस्तिष्क रेखा के गुणों को कई गुणा बढ़ा देती है, साथ ही छोटी-छोटी रेखाएं जिन्हें हम रोमांच कह सकते हैं निकल कर हृदय रेखा की ओर जाते हों तो निश्चित रूप से ही मस्तिष्क रेखा की शक्ति को अनन्त गुणा कर देते हैं। ऐसा द्विभाजन या शाखाएं जिनके निकलने पर मस्तिष्क रेखा में कोई दोष उपस्थित न होता हो, मस्तिष्क रेखा के गुणों में वृद्धि करते हैं।

यदि मस्तिष्क रेखा दोनों ओर से द्विभाजित या शाखान्वित हो तो इन में अन्तर्ज्ञान शक्ति पाई जाती है। ऐसे व्यक्तियों को भविष्‍य में होने वाली घटनाओं का आभास आसानी से हो जाता है, इसी दूरदर्शिता के कारण इन्हें विलक्षण सफलता मिलती है। ऐसे व्यक्ति किसी भी कार्य को करने में बुद्धि का आश्रय लेते हैं। हाथ कोमल हो तो किसी कार्य को सोच समझ कर ही करते हैं, जिससे उसमें बल कम लगाना पड़े चाहे सोचने में थोड़ा विलम्ब हो। इन्हें क्रोध की दशा में भी विवेक रहता है। 

मस्तिष्क रेखा में रोमांच (नीचे की ओर)


ये छोटी-छोटी शाखाएं हृदय रेखा की ओर न जाकर नीचे की ओर जाती हैं। यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे कोई दोष हो तो अत्यधिक दुष्प्रभावकारी होता है, इसी प्रकार से ये नीचे जाने वाली रेखाएं भी मस्तिष्क रेखा का दोष मानी जाती हैं और शनि की अंगुली के नीचे से निकलती हों तो व्यक्ति के पैर की एड़ी में दर्द रहता है जिसका कारण पैर की हड्डी बढ़ना होता है। ऐसे व्यक्तियों को नमक अधिक पसन्द होता है जिसके कारण पैर की हड्डी बढ़ जाती है। सावधानी के तौर पर इन्हें नमक कम खाना चाहिए। यदि शनि के अलावा दूसरे स्थान से ऐसी रेखाएं निकल कर नीचे की ओर जाती हों तो मानसिक परेशानी का कारण होती हैं तथा रोग से सम्बन्ध रखती हैं। इस आयु में व्यक्ति को मानसिक परेशानी होती है। सूर्य के नीचे इस प्रकार की छोटी शाखा होने पर अचानक आंखों में दोष होता है।


देर से आरम्भ होने वाली मस्तिष्क रेखा


एसी मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के अन्दर या उसके ऊपर से आरम्भ न होकर शनि की अंगुली के नीचे से आरम्भ होती है। कभी-कभी यह दूसरी मस्तिष्क रेखा के साथ होती है जो इसको ढके रहती है। यह भी मस्तिष्क रेखा का दोष है। अत: दोष-पूर्ण मस्तिष्क रेखा के फल जो शनि के नीचे दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा पर लागू होते है यहां भी कहे जा सकते हैं।

देर से आरम्भ होने वाली मस्तिष्क रेखा होने पर स्वयं या सन्तान की जिहृा में कोई न कोई दोष अवश्य होता है। दोनों हाथों में यह लक्षण होने पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है। जिहृा के दोषों में तुतलाना या हकलाना आदि है। जीवन रेखा भी दोषपूर्ण हो तो इस प्रकार का दोष अधिक प्रबल रूप में होता है। 

यदि कोई दूसरी मस्तिष्क रेखा देर से आरम्भ होने वाली मस्तिष्क रेखा को ढकती हो तो 35वर्ष या उस आयु में जिसमें यह ढकी जाती है अनेक परेशानियां, रोग आदि जीवन में आते हैं परन्तु इनको व्यक्ति पार कर लेता है और विशेष हानि नहीं होती। 

मोटी मस्तिष्क रेखा


मस्तिष्क रेखा अन्य रेखाओं से मोटी दिखाई देने पर मोटी मस्तिष्क रेखा कहलाती है। यह भी मस्तिष्क रेखा का दोष है। जितनी अधिक यह मोटी होती है उतनी ही अधिक दोषपूर्ण मानी जाती है। मस्तिष्क रेखा अनेक बार पूरी मोटी न होकर इसका कुछ भाग मोटा देखा जाता है। जिस आयु तक यह मोटी होती है उसी समय तक व्यक्ति को अशान्ति रहती है,  इसके ठीक होने पर जीवन साधारण रूप से चलने लगता है। साधारणतया ही रेखाएं मोटी हों तो मस्तिष्क रेखा भी साधारण मस्तिष्क रेखा की तरह से फल करती है। मस्तिष्क रेखा का कुछ भाग मोटा तथा कुछ पतला होना भी दोष ही है। अत: दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के सभी फल यहां भी लागू होते हैं।

मस्तिष्क रेखा मोटी होने पर मंगल उठा हो तो इनके जीवन में झगड़े बहुत होते हैं व न चाहते हुए भी ऐसे व्यक्ति झगड़ों में फंस जाते हैं। घर, मित्रों व  रिश्‍तेदारों से झगड़ा रहता है। जहां जाते हैं विरोध होता है क्योंकि ये कठोर बोलने वाले होते हैं व बिना मतलब के झगड़ों में पड़ने की आदत होती है। मस्तिष्क रेखा आरम्भ में मोटी होने पर इनके कुटुम्ब वाले इनकी पत्नी को कटुवचन कह कर तंग करते हैं। मां, ताई या चाची का स्वभाव उग्र होता है। पत्नी का स्वभाव भी क्रोधी होने के कारण कुटुम्ब क्लेश से घर छोड़ना पड़ता है। यदि भाग्य रेखा जीवन रेखा के समीप या जीवन रेखा का झुकाव चन्द्रमा पर या उसकी ओर हो तो ऐसे क्लेश अवश्‍य ही सामने आते हैं और ऐसी थोड़ी बहुत शिकायत जीवन भर रहती है। झगड़ों में धन भी बरबाद होता है। ये व्यक्ति सच्चे तो होते हैं, परन्तु कटुवक्ता होने के कारण ये सब समस्याएं इनके सामने आती है व कभी-कभी तो सीमा का अतिक्रमण हो जाता है। ऐसे व्यक्ति द्रवित भी शीघ्र ही होते हैं।

मस्तिष्क रेखा मोटी-पतली होने से शरीर अनेक बार चोट से क्षत होता है। अत: जिस आयु में यह लक्षण हो उपरोक्त हानि से सावधान रहना चाहिए।

मोटी मस्तिष्क रेखा की आयु में जीवन रेखा भी मोटी हो तो दोषपूर्ण नहीं होती। पतली होने की आयु में जीवन रेखा भी पतली हो तो भी दोषपूर्ण फल कारक नहीं होती। मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा एक ही आयु में एक मोटी व एक पतली होने पर दोषपूर्ण फल करती है।

पतली मस्तिष्क रेखा


मस्तिष्क रेखा अन्य रेखाओं की तुलना में पतली होने पर पतली मानी जाती है। यह भी मस्तिष्क रेखा का दोष है। पतली मस्तिष्क रेखा के दोषपूर्ण होने पर दोष के परिणाम बढ़ जाते हैं और दोषपूर्ण न होने पर विशेष कष्‍टकारक नहीं होती फिर भी निम्नलिखित घटनाएं होती हैं।

ऐसे व्यक्ति वहमी, दार्शनिक तथा धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं यदि यह रेखा निर्दोष होकर चन्द्रमा की ओर जाती हो तो धार्मिक प्रवृत्ति बढ़ जाती है और वहम अन्धविश्वास में बदल जाता है, फलस्वरूप ऐसे व्यक्ति आध्यात्मिक उन्‍नति कर जाते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा पतली व दोषपूर्ण हो और चन्द्रमा की ओर जाती हो तो ऐसे व्यक्तियों को वहम या पागलपन आदि रोग हो जाते हैं।

आरम्भ में पतली मस्तिष्क रेखा के साथ जीवन रेखा भी आरम्भ में पतली हो तो ऐसे व्यक्ति शत-प्रतिशत बहरे-गूंगे होते हैं, गूंगे-बहरे नहीं होने पर ये पहले अधिक बोलते हैं व बाद में बोलने की आदत कम हो जाती है। ऐसे व्यक्ति की श्रवण शक्ति अन्त में प्राय: लुप्त हो जाती है।


टूटी मस्तिष्क रेखा


टूटी मस्तिष्क रेखा एक दोष है अत: दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के विषय में बताये गये लगभग सभी फल यहां भी लागू हो सकते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे टूटे तो विशेष रूप से हानिकारक होती है। हमें यह ध्यान से देखना होगा कि मस्तिष्क रेखा किस प्रकार से टूटी हुई है। यदि टूटी मस्तिष्क रेखा के दोनों भाग एक दूसरे को ढक लेते हैं, टूटी मस्तिष्क रेखा को कोई दूसरी रेखा ढकती है, या टूटी मस्तिष्क रेखा किसी चतुष्‍कोण या त्रिकोण से ढकी जाती है तो यह परेशानी तो करती है। यहां टुटी मस्तिष्क रेखा का तात्पर्य किसी लक्षण के द्वारा बिना जुड़ी रेखा से है।

इस आयु में व्यक्ति को भारी मानसिक परेशानी, बीमारी, कर्ज तथा अन्य समस्याओं का सामना करना होता है। यदि मस्तिष्क रेखा बिल्कुल ही टूट जाती है और उसके दोनों सिरों को कोई रेखा या अन्य ऊपर बताये हुए लक्षण ढकते नहीं हों व दोनों हाथों में ये लक्षण हों तो ऐसे व्यक्तियों को इस अवस्था में नये जीवन का आरम्भ करना पड़ता है। कुटुम्ब में या किसी सम्बन्धी के साथ भंयकर दुर्घटना होती है। पति या पत्नी की मृत्यु की सम्भावना रहती है। टूटी मस्तिष्क रेखा की आयु में यह विशेष सावधानी रखने की आवश्यक्ता है कि पत्नी को प्रजनन नहीं होना चाहिए अन्यथा बहुत सम्भावना होती है कि प्रजनन समय में पत्नी की मृत्यु हो जाय। 

मस्तिष्क रेखा टूटने से पहले नीचे या ऊपर दूसरी मस्तिष्क रेखा टूटे हुए भाग को ढ़क कर चलती हो तो यह थोड़ा दोष तो करती है परन्तु विशेष अनिष्‍ट कारक नहीं होती। उस समय मानसिक संताप, रोग सम्बन्धी या अनन्य मित्र की रुष्‍टता या विलगाव से मस्तिष्क में आघात-प्रत्याघात होते हैं। ऐसे संताप निरर्थक ही होते हैं, व्यक्तिगत रूप में कोई हानि नहीं होती।


मस्तिष्क रेखा में द्वीप



मस्तिष्क रेखा में द्वीप भी मस्तिष्क रेखा का एक दोष है। अत: दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के साथ इसे भी जोड़ा जा सकता है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, कोई भी दोष-दर्शक चिन्ह शनि की अंगुली के नीचे हो तो वह अधिक प्रभावशाली तथा जीवन में अनिष्‍ट घटनाओं विशेषतया स्वास्थ्य के लिए विचारणीय होता है। इसी प्रकार मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होना भी अनेक घटनाओं का द्योतक होता है। यह द्वीप छोटा या बड़ा कई आकार का देखा जाता है। 

मस्तिष्क रेखा में द्वीप होने पर हृदय रेखा दोषपूर्ण (टूटी-फूटी या जंजीराकार), शुक्र, चन्द्रमा या दोनों उन्‍नत होने पर ऐसे व्यक्ति सनकी होते हैं। व्यर्थ की बात सोचा करते हैं 

मस्तिष्क रेखा में द्वीप होने पर सिर में भारीपन या दर्द रहता है जिसका कारण पेट में खराबी होता है। ये अधिक देर तक नहीं पढ़ सकते, थोड़ी देर बैठने पर ऊब जाते हैं तथा बाहर घूमने के पश्चात् या किसी दूसरे कार्य में मन लगाने के पश्चात् फिर दुबारा रुक कर पढ़ाई करते हैं। अध्ययन समय में रुकावट आती है किन्तु जीवन रेखा निर्दोष एवं अंगूठा लचीला हो तो शिक्षा पूरी कर लेते हैं अन्यथा शिक्षा में विघ्न होता है या पढ़ाई छूट जाती है।

ऐसे व्यक्ति की रुचि मकान बनाने की अवश्य होती है परन्तु इस कार्य में दोष के समय तक रुकावट आती रहती है। भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर होने पर यदि आय अच्छी हो तो मकान बना लेते हैं परन्तु ऐसों का मकान पूरा नहीं बनता, अधूरा रहता है या एक मंजिल बना कर छोड़ देते हैं तथा कई किश्‍तों में इस कार्य को पूरा करते हैं।


मस्तिष्क रेखा के अन्त में द्वीप 


मस्तिष्क रेखा के अन्त में अर्थात् बुध के नीचे द्वीप हो तो यह व्यक्ति के जिगर में खराबी करता है। इस प्रकार का कष्‍ट 52-53वर्ष की आयु के पश्चात् ही बढ़ता है। मस्तिष्क रेखा में द्वीप न होकर कोई त्रिकोण का आकार बनता हो तो यह चलते समय सांस फूलना या फेफड़ों में खराबी होने का लक्षण है। यह द्वीप केवल स्वास्थ्य के लिए ही फल करता है।

मस्तिष्क रेखा के अन्त में यदि बड़ा द्वीप हो तो ऐसे व्यक्ति के किसी न किसी से अनैतिक सम्बन्ध रहते हैं। ऐसे सम्बन्ध कभी जीवन के प्रारम्भ में तो कभी 30-31वर्ष की आयु में भी देखे जाते हैं लेकिन अन्त में तो निश्चित ही होते हैं। यह लक्षण रखैल रखने का है। ऐसे सम्बन्ध लम्बे समय तक चलते हैं तथा पति-पत्नी जैसे होते हैं और अन्तिम आयु में दु:खदायी होते हैं। दोहरी या अन्त में शाखान्वित मस्तिष्क रेखा में इस प्रकार के द्वीप अपना फल नहीं करते, हो सकता है कि किसी व्यक्ति से इनके शारीरिक सम्बन्ध रहे हों परन्तु ये स्थायी नहीं होते।

ऐसे व्यक्तियों की आंखों में भी किसी न किसी प्रकार का रोग रहता है। यहां यह बात विशेष रूप से देखने की है कि ये द्वीप ऐसी रेखाओं से मिल कर बनते हैं जिसकी मोटाई मौलिक मस्तिष्क रेखा से कुछ ही कम होती है। इस दशा में मस्तिष्क रेखा की कोई शाखा बुध वाले मंगल पर गई हो तो ऐसे सम्बन्ध अपने किसी नजदीकी से होते हैं। यह अवश्य कहां जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति रखैल या उप-पत्नी रखते हैं।


मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप 


यह द्वीप मस्तिष्क रेखा में सूर्य की अंगुली के नीचे पाया जाता है यह व्यक्ति की आंखों में रोग का लक्षण है। यदि हृदय रेखा में भी सूर्य की अंगुली के नीचे द्वीप हो या वहां बाहर से कोई रेखा आकर हृदय रेखा को छूती हो तो निश्चित ही आंखों में दोष हो जाता है। यह द्वीप यदि गोलाकार अर्थात् वृत्त जैसे आकार का हो तो व्यक्ति अन्धा हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की आंखों में बाहर से आकर कोई चीज लगती है। सूर्य व शनि की अंगुली के बीच मस्तिष्क रेखा में बड़ा द्वीप हो तो इस आयु में व्यक्ति के मस्तिष्क पर बड़ा भार पड़ता है या तो ये मौन हो जाते हैं या पागल अन्यथा मस्तिष्क में रसौली या खून का जमाव होकर लकवा हो जाता है। यह देखने की बात है कि द्वीप के दोनों ओर की रेखाएं मस्तिष्क रेखा जैसी या मौलिक मोटाई से कुछ कम मोटी होनी चाहिए।

यह जिगर खराब होने का भी लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों को अपने यकृत के विषय में सावधानी रखनी चाहिए। तली चीजें, भारी खाना, अधिक मीठा, अधिक गरम या ठण्डे पदार्थ, व्यायाम न करना इनको किसी भी समय संकट में लाकर खड़ा कर सकते हैं। अत: इस विषय में इन्हें सावधान रहना चाहिए।



मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप 


इस सम्बन्ध में मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष में बहुत कुछ बताया गया है परन्तु द्वीप के विषय में इस स्थान पर वर्णन करना आवश्यक है क्योंकि दोष एक साधारण लक्षण है व द्वीप एक विशेष। अत: द्वीप के विषय में विशेष रूप से ज्ञान रखने की आवश्यक्ता रहती है।

शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में कोई भी दोष विशेषतया रोग के विषय में निर्देश करता है। अत: जब किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के विषय में अध्ययन करना हो तो यह विशेष रूप से देखना चाहिए कि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे कोई दोष तो नहीं है? इसका अन्य रेखाओं या अन्य लक्षणों के साथ समन्वय करने के पश्चात् फलित कहने से बहुत ही अच्छे परिणाम हाथ लगते हैं। उदाहरण के लिए शनि के नीचे दोष के साथ मंगल पर अधिक रेखाएं होने से पेट खराब होता है; शनि पर अधिक रेखाएं होने से वायु विकार, गठीया; किसी भी रेखा में सूर्य के नीचे दोष होने पर आंखों में कमजोरी; हृदय रेखा में शनि के नीचे कोई दोष होने पर हर्निया, पौरुष ग्रन्थि, गर्भाशय, या अण्डकोश में बीमारी; चन्द्रमा या शुक्र अधिक उठा होने पर वीर्य सम्बन्धी रोग या स्नायु विकार; बुध के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर यकृत एवं आंखों में रोग व हाथ में चोट; भाग्य रेखा में दोष होने पर पित्ताशय (गाल ब्लैडर) में रोग, गला या जीवन साथी व धन का कष्‍ट होता है।

द्वीप के साथ यदि मस्तिष्क रेखा में शाखा हो तो ऐसे व्यक्ति तेज धार वाले हथियार जैसे कुल्हाड़ी आदि से घायल होते हैं। आग या गरम पानी गिरने से भी इन्हें कष्‍ट होता है। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर यदि जीवन रेखा अधूरी या सीधी हो तो बार-बार गर्भस्त्राव होता है, ऐसा स्त्रियों के लिए विशेष रूप से कहा जा सकता है।

 मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे से निकल कर कोई छोटी रेखा यदि नीचे की ओर जाती है तथा द्वीप का आकार बनाती है या नहीं तो भी यह द्वीप ही माना जाता है। इसका फल भी द्वीप जैसा होता है। इनका गला खराब रहता है। ये स्पष्‍ट वक्ता होते हैं और उस आयु में व्यापार में हानि होती है। उस आयु में जब कि यह रेखा मस्तिष्क रेखा से निकलती है स्वभाव में चिड़चिड़ापन, टांग में दर्द तथा स्त्री होने पर स्वयं एवं पुरुष होने पर पत्नी को गर्भाशय के रोग का लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों को ऐड़ी में दर्द होता है।


जंजीराकार मस्तिष्क रेखा



इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा द्वीपों से मिल कर बनी हुई दिखाई देती है। यहां भी दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा के सभी लक्षण लागू होते हैं।

ऐसे व्यक्ति स्वभाव से चिड़चिड़े, कठोर व अपने ही मिजाज के होते हैं। इनका अपने मस्तिष्क पर नियन्त्रण नहीं होता। काम जिम्मेदारी से करने पर भी स्वभाव के कारण श्रेय नहीं मिलता क्योंकि ये कार्य कर के बखान करते हैं। ऐसे व्यक्ति ठोकर लगने पर भी सम्भलते नहीं। होशियार होते हैं साथ ही जिद्दी भी और रूखा व स्पष्‍ट बोलने की आदत होती है, फलस्वरूप देर से सफल होते हैं तथा सम्बन्ध स्थाई नहीं होते और चिड़चिड़ेपन के कारण प्रत्येक कार्य में रुकावट होती है।

जंजीराकार मस्तिष्क रेखा होने पर यदि जीवन रेखा टूटी, बुध की अंगुली तिरछी एवं भाग्य रेखा मोटी हो तो धोखेबाज होते हैं, दूसरों को फंसा कर अपना काम निकालते हैं और लेकर देना नहीं जानते। ऐसे व्यक्तियों से अधिक आत्मीयता व व्यवहार हमेशा हानिकारक होते हैं। वायदे के बिल्कुल पक्के नहीं होते, आज-कल करते रहते हैं, न ही साफ जवाब देते हैं न ही मना करते हैं और न उस काम को करते ही हैं। इनको अधिक रंज या प्रसन्नता होने पर स्नायु दोष हो जाता है। मस्तिष्क पर बोझ पड़ने, अधिक पूजा करने व ठेस लगने आदि से मस्तिष्क में विकार उत्पन्न हो जाता है।

यहां एक बात विशेष रूप से ध्यान देने की है कि यदि मस्तिष्क रेखा आरम्भ में आधी दोषपूर्ण हो तो भी दोषपूर्ण रेखा के सभी बुरे फल इस पर लागू होते हैं परन्तु मस्तिष्क रेखा अन्त में आधी दोषपूर्ण हो तो केवल सिर में दर्द, पेट में रोग, अधिक खर्च, बचत न होना आदि परेशानियां होकर फल की इतिश्री हो जाती है, परन्तु उसी आयु में जीवन रेखा भी दोषपूर्ण हो तो महान् परेशानी तथा रोग का सामना करना पड़ता है।

मस्तिष्क रेखा में कुठार रेखा


कोई भी पतली रेखा जब किसी मुख्य रेखा के बिल्कुल पास होकर चलती हो तो उसे कुठार रेखा कहते हैं। यह कुठार रेखा उस आयु में अच्छा फल नहीं करती। कितनी भी अच्छी मस्तिष्क रेखा हो कुठार रेखा होने पर उसके फल में बहुत कमी हो जाती है।

ऐसे व्यक्ति अपने कुटुम्बियों तथा सम्बन्धीयों से परेशान रहते हैं। ये बहाने बाज, वहमी तथा जल्दबाज होते हैं। इनके साथ दुर्घटना, बीमारी, सन्तान मृत्यु, बेरोजगारी, जेल आदि अनेक प्रकार की घटनाएं होती देखी गई हैं। हाथ पतला होने पर ये वहमी तथा तारीफ करने वाले होते हैं।

जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा होने पर हृदय रेखा भी वहीं मिलती हो तो उपरोक्त फल तो होता ही है जीवन भर किसी न किसी समस्या में फंसे रहते हैं और अन्तिम आयु में विशेष दु:ख का अनुभव किसी की मृत्यु या रोजगार में दिवालियापन आदि कारणों से होता है।


 मस्तिष्क रेखा को काटने वाली रेखाएं


ऐसी दो प्रकार की रेखाएं हाथों में देखने में आती है। एक तो लम्बी रेखाएं जो जीवन रेखा या उसकी ओर से आकर मस्तिष्क रेखा को काट कर आगे निकल जाती हैं या मस्तिष्क रेखा पर रुक जाती है। इन्हें हम राहू रेखा भी कहते हैं। दूसरे प्रकार की रेखाएं छोटी होती हैं जो केवल मस्तिष्क रेखा को ही स्थान-स्थान पर काटती हैं।

जीवन रेखा से निकलने वाली रेखाएं मस्तिष्क रेखा पर मिल कर त्रिकोण का आकार बनाती हैं, बहुत ही खराब होती हैं। यदि ये मोटी हों तो उस आयु में जहां ये मस्तिष्क रेखा पर मिलती हैं, झगड़े, बीमारी, मृत्यु, स्थान परिवर्तन, काम बदलना, दुर्घटना आदि फल करती हैं। यदि ये रेखाएं मस्तिष्क रेखा को काट कर हृदय रेखा तक चली जाएं तो केवल साधारण मानसिक अशान्ति हो कर किसी आत्मीयजन की मृत्यु हो जाती है, शेष फल घटित नहीं होते। यदि ऐसी रेखा मंगल से आकर मस्तिष्क रेखा पर रुक जाए तथा काट कर आगे न जाए और कुछ गहरी भी हो तो महान् दोषपूर्ण होती है। इस आयु में बहुत ही झगड़े तथा परेशानियों का सामना करना पड़ता है और जिस आयु में यह मस्तिष्क रेखा में मिलती है उस आयु तक व्यक्ति शान्ति व स्थायित्व प्राप्त नहीं कर पाता। इस रेखा से बना त्रिकोणाकार द्वीप जितना ही छोटा होता है अधिक प्रभावकारी होता है।

मस्तिष्क रेखा को यदि स्थान-स्थान पर छोटी-छोटी रेखाएं काटती हों तो ऐसे व्यक्ति के सिर में दर्द रहता है तथा इन्हें ऐसा अनुभव होता है कि स्मृति कमजोर हो गई है या होती जा रही है। वास्तव में होता भी ऐसा ही है, परन्तु अधिक महसूस करने के कारण भी ऐसा लगता है। जितना व्यक्ति इस विषय में सोचता है स्मृति उतनी कमजोर नहीं होती।


मस्तिष्क रेखा रहित हाथ


कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि हाथ में मस्तिष्क रेखा की उपस्थिति नहीं होती। उस दशा में हृदय रेखा ही मस्तिष्क रेखा का काम करती है। वृहस्पति अच्छा होने पर ऐसे व्यक्ति बुद्धिमान और जिम्मेदार होते हैं। यदि जीवन रेखा और भाग्य रेखा हों तो निश्चित ही धनी और सुखी होते हैं। यदि जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा दोनों ही हाथों में न हों तो हाथ की बनावट, अंगुलियों की बनावट व सीधापन, ग्रहों का आकार आदि देख कर फल कहा जा सकता है। ऐसे हाथों में भाग्य रेखा होना आवश्यक नहीं है। यदि भाग्य रेखा हो तो उसमें द्वीप नहीं होना चाहिए अन्यथा बहुत ही खराब फल देती हैं।

किन्हीं हाथों में हृदय व मस्तिष्क रेखा एक ही देखने में आती है। यह एक रेखा दोनों रेखाओं का ही फल करती है।


मस्तिष्क रेखा पर तिल 


जिस आयु में मस्तिष्क रेखा में तिल होता है कष्‍ट का कारण होता है।

शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में तिल होने पर पत्नी की मृत्यु, वृहस्पति के नीचे होने पर स्वयं को या बच्चे को रोग तथा सूर्य के नीचे तिल होने पर बड़ी उम्र में आंख में काला मोतिया होता है। मस्तिष्क रेखा में बुध के नीचे तिल होने पर बुढ़ापे में लकवा या जहर का डर रहता है। जहर का अर्थ भोजन खाने के पश्चात् जहर बनने से भी है। इसमें जहरीला इन्जैक्‍शन लगना, जहरीला जानवर काटना भी सम्मिलित है। यह बहुत सावधानी से निर्णय करना चाहिए कि तिल वास्तव में रेखा पर ही हो। आस-पास होने पर इस प्रकार का फल नहीं होता या हल्का सा प्रभाव होकर रह जाता है।

बाएं हाथ में होने पर इस लक्षण का प्रभाव पत्नी या कुटुम्ब के व्यक्तियों पर घटित होता है परन्तु दाएं हाथ में होने पर स्वयं तथा सन्तान पर देखा जाता है। दोनों हाथों में होने पर यह विशेषतया स्वयं के ऊपर ही लागू होता है और वंशानुगत दोष माना जाता है।

मस्तिष्क रेखा में सितारा


यह चिन्ह दो प्रकार से पाया जाता है। एक तो स्वतंत्र रूप से जब तीन रेखाएं एक दूसरे को एक ही बिन्दू पर काटती हो तो तारे का आकार बनता है। दूसरा कोई अन्य तीन बड़ी रेखाएं एक बिन्दू पर काटती हो तो भी एक बड़ा सा सितारा बन जाता है। सितारा यदि स्वतन्त्र हो तो बहुत ही खराब फल देने वाला होता है। अन्य रेखाओं से बना हुआ सितारा उतना बुरा फल नहीं करता।

मस्तिष्क रेखा में शनि के नीच सितारा होने पर सिर में चोट, जीवन साथी को दिमाग का हैमरेज, सूर्य के नीचे होने पर रतौंधी, आंख में चोट आदि लक्षण पाये जाते हैं। दाऐं या दोनों हाथों में होने पर स्वयं पर प्रभाव करता है।

सितारा होने पर यदि कोई रेखा, त्रिकोण या चतुष्‍कोण उसको ढकता हो तो खराब फल कम हो जाता है। यदि सितारे को दोनों ओर से रेखाएं ढकती हों तो दुष्‍फल लगभग समाप्त हो जाता है और चतुष्‍कोण से आवेष्ठित होने की दशा में तो इसका फल नगण्य रहता है। मस्तिष्क रेखा के अन्त में सितारा हो तो किसी दुर्घटना में मृत्यु होती है। इसका निर्णय अन्य रेखाओं या लक्षणों को देख कर लेना चाहिए। मस्तिष्क रेखा के आरम्भ और अन्त में यदि तारा हो तो पूरे के पूरे कुटुम्ब की मृत्यु दुर्घटना में होती देखी जाती है। केवल आरम्भ में होने पर कुटुम्ब में किसी जिम्मेदार व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और स्वयं भी भयंकर दुर्घटना से बचता है।

मस्तिष्क रेखा में यदि शनि के नीचे सितारा हो तो सिर में भयंकर पीड़ा से मृत्यु जैसी स्थिती आती है, बेहोशी होती है व ऑक्सीजन का प्रयोग होता है, और यदि दोनों हाथों में यह चिन्ह हो तो निश्चित रूप से ही मृत्यु की सूचना है।

मस्तिष्क रेखा के विषय में जानने योग्य बातें


मस्तिष्क रेखा दोनों हाथों में एक जैसी अर्थात् एक जैसा झुकाव, एक जैसी शाखाएं, एक ही स्थान पर अन्त हो तो व्यक्ति वही कार्य करता है जो उसके पिता ने किया है। यदि दायें और बायें हाथ में थोड़ा भी अन्तर हो तो कार्य बदल जाता है, अधिक अन्तर हो तो पूर्णतया काम बदल जाता है। साथ ही यदि मस्तिष्क रेखा में शाखाएं हों तो व्यक्ति ऐसा काम करता है जो उसके वंश में किसी ने भी नहीं किया होता।

मस्तिष्क रेखा के ऊपर या नीचे त्रिकोण होने की दशा में उस आयु में धन लाभ होता है। यदि उसी आयु में जीवन रेखा में और भाग्य रेखा में भी त्रिकोण हो तो निश्चय ही द्रव्य प्राप्ति होती है। यहां यह बात विशेष रूप से देखने की है कि त्रिकोण जितना ही छोटा व स्वतन्त्र होता है अधिक प्रभावशाली होता है। यदि मस्तिष्क रेखा में दो त्रिकोण मिल कर चतुष्‍कोण जैसी आकृति बनती हो तो इस समय में परेशानी आती है, मगर उससे रक्षा हो जाती है, धन लाभ नहीं होता। मस्तिष्क रेखा में यदि कई त्रिकोण हों तो ऐसे व्यक्ति खजांची होते हैं, परन्तु हाथ भारी हो तो विशेष धनी होते हैं। इस लक्षण के साथ भाग्य रेखा से सूर्य रेखा भी निकली हो तो लॉटरी आदि से धन का अचानक लाभ होता है, लक्षणों की बहुलता को देख कर द्रव्य लाभ के विषय में कहना चाहिए। मस्तिष्क रेखा वृहस्पति से निकलने पर यदि आरम्भ में शाखान्वित, गोलाकार व पूर्ण हो तो कठिनाइयों से मुक्ति व धन लाभ का लक्षण है। मस्तिष्क रेखा में त्रिकोण होने पर यदि अन्य रेखाओं में त्रिकोण न हो कर जीवन रेखा गोलाकार हो, मस्तिष्क रेखा निर्दोष हो तो नये काम या एक से अधिक रोजगार से धन वृद्धि होती है। यह निश्चित है कि त्रिकोण का समय साधारण समय की अपेक्षा बहुत अच्छा रहता है। हाथ में कम रेखाएं होने पर ये त्रिकोण अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं चाहे किसी भी प्रकार से बने हों।

मस्तिष्क रेखा में चतुष्‍कोण हो तो उस आयु में किसी खर्च से बचत होती है और नये काम का शुभारम्भ होता है। यदि मस्तिष्क रेखा में द्वीप हो और द्वीप के स्थान को चतुष्‍कोण ढकता हो तो जीवन बरबाद होने से बच जाता है। इस दशा में जीवन रेखा टूटी होने पर कोई लड़का, लड़की, स्त्री या पति मरने से बचता है। मस्तिष्क रेखा में चतुष्‍कोण होने पर यदि विवाह रेखा हृदय रेखा पर मिलती हो या मंगल रेखा में द्वीप हो तो स्त्री या पति मृत्यु से बचता है। शनि के नीचे भी द्वीप या अन्य दोष हो तो अवश्य ही यह फल कहा जा सकता है। मस्तिष्क रेखा में चतुष्‍कोण होने पर भाग्य रेखा में दोष हो तो व्यक्ति भाग्य सम्बन्धी होने वाली हानि से रक्षा प्राप्त करता है जैसे नोकरी छूटने या काम बन्द होने से।

मस्तिष्क रेखा को जिस आयु में कोई दूसरी रेखा या कोई त्रिकोण या चतुष्‍कोण ढकता हो और उस समय मस्तिष्क रेखा टूटी न हो तो यह समय बहुत उत्तम होता है। दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा त्रिकोण या चतुष्‍कोण से आवेष्ठित हो तो व्यक्ति की खतरों से रक्षा होती है और यह दोषपूर्ण नहीं हो तो उन्‍नति, भाग्योदय तथा धन लाभ होता है।

मस्तिष्क रेखा में जिस आयु में धब्बा या कालापन होता है या कोई छोटी रेखा उसे काटती है या बाहर से आकर कोई रेखा छूती या काटती है तो जीवन में परिवर्तन उपस्थित होता है। इस आयु में व्यय, कार्य परिवर्तन, स्थान परिवर्तन, रोजगार में रुकावट आदि फल होते हैं।

जब-जब मस्तिष्क रेखा को कोई दूसरी रेखा काटती है तो उस आयु में व्यक्ति कोई दूसरा कार्य करता है, यह जीवन बदलने का समय होता है तथा यह परिवर्तन अचानक होता है। हृदय रेखा, भाग्य रेखा आदि अन्य रेखाओं के लक्षणों को देख का भले बुरे का निर्णय कर लेना चाहिए। कम रेखा वाले हाथों में ये लक्षण अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं।



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