हृदय रेखा परिचय
हृदय रेखा का स्थान हाथ की मुख्य रेखाओं में हैं। यह हथेली के ऊपर के भाग में अंगुलियों के पास होती है। भारतीय सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार यह रेखा बुध की अंगुली के नीचे से उदय होकर वृहस्पति की अंगुली के नीचे या आस-पास समाप्त होती है। हृदय रेखा का विचार व्यक्ति के मानसिक गुणों व वंशानुगत चरित्र के सम्बन्ध में किया जाता है। अत: जब हम किसी व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं, तथा उस दशा में हृदय रेखा का निरीक्षण आवश्यक है। यह रेखा जितनी ही स्पष्ट व सुडौल होती है उत्तम मानी जाती है।
हृदय रेखा से बीमारियों का भी आभास मिलता है। यह किसी व्यक्ति के प्रेम, आर्थिक हानि, शनि की साढ़ेसाती आदि का वर्णन है।
अन्य सभी रेखाएं समीप से दोहरी होने पर दोषपूर्ण मानी जाती है परन्तु हृदय रेखा पास से दोहरी होना अर्थात् इसके साथ सटी हुई कोई दूसरी रेखा होना गुण माना जाता है। यह अवश्य ही देख लेना चाहिए कि टूटी-फूटी न हो। टूटी-फूटी या द्वीपयुक्त होने पर यह भी दोषपूर्ण मानी जाती है। हृदय रेखा के साथ एक ही समानान्तर रेखा समीप में बहुत कम देखी जाती है, अक्सर छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं। ये टुकड़े भी दोषपूर्ण नहीं माने जाते। ऐसे टुकड़े एक दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं। एक दूसरे पर न चढ़ कर यदि ये मुख्य रेखा समेत टूट जाते हों तो दोषपूर्ण होते हैं।
हृदय रेखा जितनी ही अंगुलियों के आधार से दूर होती है व्यक्ति में उदारता व मानव सुलभ गुण अधिक पाये जाते हैं। अंगुलियों के पास होने पर यह व्यक्ति में कामुकता की वृद्धि करती है। ऐसे व्यक्ति कामान्ध होने पर उचित-अनुचित का ध्यान नहीं करते। द्वीप-युक्त, टूटी, जर्जरित व अंगुलियों के समीप हृदय रेखा दोषपूर्ण होती है।
जब हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा के पास होती है तो व्यक्ति भावुक न हो कर विवेकशील होता है। मस्तिष्क रेखा से दूर होने पर हृदय रेखा व्यक्ति में भावुकता, उदारता व निर्भरता आदि गुण होते है व्यक्ति उतना ही विवेकशील, भाग्यशाली एवं प्रगतिशील होता है, क्योंकि केवल भावना व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन का उचित मार्ग दर्शन नहीं कर सकती।
शनि के नीचे दोषपूर्ण होने पर हृदय रेखा व्यक्ति के कमर से जंघा तक के अंगो में होने वाले रोगों का प्रतिनिधित्व करती है।
हृदय रेखा की दशा व्यक्ति को बचपन में मिले हुए प्रेम से भी सम्बंध रखती है। अत: बचपन में व्यक्ति की घरेलू स्थिति व वातावरण के विषय में विचार करने के लिए आरम्भ में हृदय रेखा का स्वरूप देख लेना उचित है, जैसे जिन्हे बचपन में मां-बाप आदि का प्रेम किसी कारण से नहीं मिल पाता उनकी हृदय रेखा आरम्भ में दोषपूर्ण (टूटी-फूटी, जर्जरित द्वीप युक्त) होती है।
कुछ भी हो हाथ में हृदय रेखा व्यक्ति के मानसिक आवेश, भाव, प्रेम व ग्लानि आदि गुणों की प्रतिच्छाया है। अत: व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के लिए हृदय रेखा का अध्ययन महत्वपूर्ण है।
उत्तम हृदय रेखा
हृदय रेखा का सम्बन्ध जैसा कि पहले बताया जा चुका है व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों से है। अत: किसी व्यक्ति की मानसिक विकृति या दृढ़ता हृदय रेखा को देख कर जानी जा सकती है। यह जितनी ही निर्दोष होती है व्यक्ति सहृदय, दूरदर्शी, शान्त, मृदुभाषी, सद्व्यवहार करने वाला, दूसरों के धन की लालसा न करने वाला, सेवा भावी, दृढ़़ संकल्प व परमार्थी होता है। अन्य रेखाओं में दोष न होने पर यदि हृदय रेखा भी उत्तम हो तो वास्तव में ही गुणों को चार चांद लग जाते हैं, इनका मानसिक चिन्तन व कार्य दक्षता उच्च कोटि की होती है। अन्य रेखाओं से प्रभावित होकर इन गुणों में कमी या प्रखरता होती है।
उत्तम हृदय रेखा टूटी-फूटी, द्वीपयुक्त, जंजीरकार, काली, लाल, अधिक झुकी हुई नहीं होती। हृदय रेखा वही सर्वोत्तम होती है जो निर्दोष व अंगुलियों से दूर हो। निर्दोष हृदय रेखा के साथ बुध की अंगुली टेढ़ी हो तो व्यक्ति स्पष्टवक्ता होता है। ऐसे व्यक्ति किसी भी बात को गुप्त नहीं रख सकते। निर्दोष हृदय रेखा से व्यक्ति मन से भी निर्दोष होता है, उसे यह पता नहीं होता कि क्या कहना है, क्या नहीं?
बहुत अच्छी हृदय रेखा वृहस्पति के पर्वत के पास या वृहस्पति की अंगुली के पास जानी चाहिए। यदि निर्दोष हृदय रेखा सीधी वृहस्पति के पर्वत पर नहीं जाती हो व मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा का जोड़ लम्बा हो तो ये लक्षण व्यक्ति में संकोच की भावना पैदा करते हैं। ये थोड़े व्यक्तियों में भी बात करने में संकोच करते हैं। कोई बड़ा काम भी ऐसे व्यक्ति नहीं कर सकते। इन्हें अपनी दक्षता पर शंका रहती है। अन्य लक्षण सुन्दर होने पर चाहे योग्य भी हों परन्तु अकारण घबराहट व परेशानी रहती है। जीवन व मस्तिष्क रेखा के जोड़ की आयु बीत जाने पर यह दोष समाप्त हो जाता है। इस प्रकार की स्त्रियां अच्छा खाने, अच्छा बोलने, कठोर उत्तर न देने, अधिक महसूस करने या जल्द रोने वाली होती हैं परन्तु अंगुठा या हाथ कठोर होने पर स्पष्टवक्ता होती हैं।
हृदय रेखा सुन्दर व लम्बी, जीवन रेखा घुमावदार, मस्तिष्क रेखा सीधी और साफ, हाथ में विशेष भाग्य रेखा व एक से अधिक भाग्य रेखाएं, हाथ का रंग अच्छा, ग्रह उठे, अंगुलियां सीधी व देखने में सुन्दर हों तो ऐसे व्यक्ति विशिष्ट होते हैं। हाथ भारी, चौड़ा या छोटा होने पर भाग्य रेखा का निकास चन्द्रमा से होना प्रसिद्धि का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति राज्य सभा या लोक सभा के सदस्य, जनता के नेता या इस प्रकार के प्रसिद्ध व्यक्तित्व को लेकर संसार में आते हैं। राजनीति के विषय में फलादेश कहने से पहले यह देखना आवश्यक है कि इन्हें राजनीति में रुचि भी है या नहीं। साधारणतया ऐसे व्यक्तियों की राजनीति में रुचि होती है। ऐसे व्यक्तियों को धन, सन्तान, सम्पत्ति आदि का पूर्ण सुख होता है।
हृदय रेखा निर्दोष होने पर :-
चरित्र ठीक रहता है। मस्तिष्क रेखा, जीवन रेखा से अलग हो तो मस्त होते है ऐसों की भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा में रुकने पर ये स्वयं या इनकी सन्तान विदेश जाती है।
प्रेमी या पत्नी सुन्दर होते हैं और उनका स्वास्थ्य व व्यवहार अच्छा होता है। जीवन रेखा में दोष होने पर बीमारी या कमजोरी तो रहती है, परन्तु स्वभाव सभ्यतापूर्ण व हंसमुख होता है। ये स्वयं भी व्यवहार व वक्तव्य कुशल होते हैं।
बचपन में मां-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी व धन का सुख तथा प्रेम व सौहार्द प्राप्त होते हैं। भाग्य रेखा के आरम्भ में दोष होने पर इनमें कुछ कमी देखी जाती है।
व्यक्ति का स्वास्थ्य विशेषतया हृदय, आंखे और गुर्दे आदि अंग ठीक रहते हैं ये बचपन में स्वस्थ, सुन्दर व बुद्धिमान होते हैं। मस्तिष्क रेखा निर्दोष हो एवं सूर्य की अंगुली के नीचे हृदय रेखा अधिक झुकी अर्थात् धनुषाकार हो तो ऐसे व्यक्ति प्रसिद्ध तथा अनेक बार विदेश यात्रा करने वाले होते हैं। इनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती है।
इसकी कोई शाखा मस्तिष्क रेखा पर नहीं मिलती हो तो व्यक्ति मनस्वी, स्वाभाविक दयालु, सहायक, सामाजिक कल्याण में रुचि लेने वाले व समाज का उपकार करने वाले होते हैं। यदि यही हृदय रेखा अन्त में द्विभाजित भी हो तो उपरोक्त गुण बढ़ जाते है। ऐसे व्यक्ति के निर्णय में हृदय का स्थान वरिष्ठ होता है।
निर्दोष हृदय रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा स्वतंत्र हो तो व्यक्ति में मानवता तो होती है परन्तु अनुशासन व सिद्धान्त की वरिष्ठता रहती है। ऐसे व्यक्ति कठोर कहे जा सकते है। मस्तिष्क रेखा लम्बी होने पर ऐसे व्यक्ति कठोर निर्णय देने वाले होते हैं। अपराधी के प्रति इनका दृष्टिकोण कठोर ही रहता है, परन्तु मस्तिष्क रेखा अधिक लम्बी न होने पर अपेक्षाकृत दयालु व विनम्र होते हैं।
अधिक गोलाकार या सीधी हृदय रेखा वृद्धावस्था में कमर झुकने का लक्षण है। अत: हृदय रेखा अधिक गोल और सीधी नहीं होनी चाहिए। अच्छी हृदय रेखा यदि सीधी वृहस्पति पर गई हो तो व्यक्ति अपने आप को अधिक योग्य समझते हैं व लगातार उन्नति करते हैं। भाग्य रेखा मोटी, अंगूठा न झुकने वाला व मस्तिष्क रेखा का निकास जीवन रेखा से दूर होने पर व्यक्ति घमण्डी या स्वाभिमानी होते हैं अत: हृदय रेखा का एकदम वृहस्पति के पर्वत पर जाना श्रेष्ठ नहीं होता। ऐसे व्यक्ति जिद्दी, दृढ़ निश्चयी व चालाक होते हैं।
हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलने पर व्यक्ति के मस्तिष्क पर हृदय का नियंत्रण होता है। ऐसे व्यक्ति दया भाव रख कर ही कोई निर्णय करते हैं। हृदय व मस्तिष्क रेखा एक होने पर व्यक्ति में जिस रेखा का प्रभाव अधिक होता है, उनका निर्णय भी उस ही प्रभाव के अन्तर्गत होता है। मस्तिष्क रेखा के निकास की ओर वाला भाग पतला होने पर व्यक्ति के चरित्र, व्यवहार व अन्य सभी क्रिया-कलापो में ही प्रधान होता है जबकि हृदय रेखा के निकास की ओर का भाग पतला होने पर जीवन में हृदय प्रधान होता है।
दोषपूर्ण हृदय रेखा
हृदय रेखा में द्वीप, टूटी-फूटी, मोटी पतली, काली, लाल, अंगुलियों के पास आदि इसके दोष कहलाते हैं। हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर व्यक्ति में चरित्र या कार्य सम्बंधी अनेक प्रकार की कमियां रहती हैं।
दोषपूर्ण हृदय रेखा वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी होती है। फलत: ऐसे व्यक्ति जो भी कार्य करते हैं यह विश्वास नहीं होता कि ये उसे कर लेंगे, न ही ये एकाकी किसी कार्य को करने का साहस ही करते है। अत: जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जब तक हृदय रेखा दोषपूर्ण रहती है किसी न किसी को साथ लेकर चलना पड़ता है।
दोषपूर्ण हृदय रेखा से व्यक्ति में रोग, क्रोध, स्वभाव में चंचलता, अधिक सोचने की आदत, क्षण में प्रसन्न व क्षण में क्रोध, किसी से बहुत घुल जाना या किसी का पूर्णतया बहिष्कार करना आदि लक्षण पाये जाते हैं। इन में किसी न किसी प्रकार का व्यवहारिक असंतुलन रहता ही है।
दोषयुक्त हृदय रेखा होने पर व्यक्ति को गाली देने की आदत होती है। हाथ में रेखाएं कम हों तो यह आदत अधिक होती है। ऐसे व्यक्ति काम बिगड़ने या देर होने पर गाली बकना आरम्भ कर देते है।
हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा समानान्तर होने पर मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो ऐसा क्रोध आता है कि मरने मारने को तैयार हो जाते हैं। अंगूठा कम खुलने पर अड़ियल होते हैं।
हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर यदि हाथ पतला या विशेष मोटा हो तो क्षुद्र हृदय होते हैं। धनी होने पर भी ऐसे व्यक्ति परेशान रहते हैं, वैभव का उपभोग नहीं करते, अधिक प्राप्त करने की इच्छा बनी रहती है और खर्च करने में दुख होता है, दान देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
हृदय रेखा कटी-फटी अर्थात अधिक दोष-पूर्ण होने पर व्यक्ति सन्यास लेने का विचार रखते हैं। हाथ कठोर होने पर सन्यास लेने की धमकी भी दे डालते हैं, परन्तु एसा करते नहीं। जीवन रेखा में दोष, वृहस्पति की अंगुली छोटी, सूर्य व वृहस्पति की अंगुली बिल्कुल बराबर होने पर सन्यास ग्रहण करने अर्थात् घर-बार छोड़ कर चले जाने की काफी सम्भावना होती हैं। वृहस्पति मुद्रिका, शनि पर त्रिकोण, चन्द्रमा पर धनुषाकार रेखा होने पर व्यक्ति मन से भी सन्यासी होता है। ऐसे व्यक्ति आध्यात्मिक होते हैं। उपरोक्त धनुषाकार रेखा चन्द्रमा से आरम्भ होकर प्राय: मंगल तक जाती है, इसको अन्तर्ज्ञान लक्षण माना जाता है। ऐसे व्यक्तियों में ईश्वर से लगाव व संसार त्याग की प्रबल भावना होती है।
जिन लोगों में अकर्मण्यता के लक्षण, जैसे शनि की अंगुली अधिक लम्बी, अंगुलियों में गांठे न होकर एकदम सपाट, जीवन व मस्तिष्क रेखा में दोष होते हैं, साधु हो जाते हैं। इनका ध्येय सांसारिक झंझटों से बच कर रहना होता है ईश्वर नहीं। जब रेखाओं में अच्छाई आरम्भ होती है वापस गृहस्थ बन जाते हैं।
हृदय रेखा दोष-पूर्ण या अधिक मोटी होने पर खून की कमी का लक्षण है। वृद्धावस्था में खून की कमी के कारण वायु का प्रभाव भी हो जाता है, मृत्यु भी इसी बीमारी से होती है।
हृदय रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर जीवन रेखा के आरम्भ में भी द्वीप हो तो एपेन्डीसाईटिस का ऑपरेशन कराना पड़ता है। हृदय रेखा को छोटी-छोटी रेखाएं काटती हों तो काटने की आयु में मानसिक आघात सहन करना पड़ता है। इस समय किसी से स्थाई विछोह होता है या मृत्यु हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों के अंगूठे के नाखूनों में उस समय गड्ढे़ हो जाते हैं।
दोषपूर्ण हृदय रेखा वाले व्यक्ति को पसीना अधिक आता है। ऐसे व्यक्ति किसी भी प्रकार के कोलाहल, धड़ाके या अचानक सूचना सुनने में असमर्थ होते हैं, घबरा जाते हैं, नींद में डरने पर इनके हृदय की धड़कन बढ़ जाती है।
टूटी हृदय रेखा
हृदय रेखा का टूटना हाथ में एक मुख्य दोष है। टूटी हृदय रेखा विशेषतया हृदय रोग के बारे में सूचित करती है, जबकि इसके टुकड़े एक दूसरे से दूर हों। टुकड़े जब एक दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं तो मानसिक आघात होता है परन्तु उससे रक्षा हो जाती है। दोनों हाथों में इस प्रकार का दोष किसी की मृत्यु या भंयकर रोग का लक्षण है परन्तु उस आयु में अन्य मुख्य रेखा में भी दोष होना आवश्यक है, अन्यथा साधारण फल होता है। यदि हृदय रेखा टूटकर उसका एक भाग मस्तिष्क रेखा पर मिला हो तो भी विशेष दोषपूर्ण होती है।
जब कभी हृदय रेखा टूट कर मस्तिष्क रेखा की ओर जाती है तो धन हानि व मानसिक आघात होते हैं। टूटी हृदय रेखा वाले व्यक्तियों को शोर शराबा पसन्द नहीं होता। अचानक घबराहट या इस प्रकार की कोई बात जैसे अचानक कोई सूचना मिलने से इनके दिल की धड़कन बढ़ जाती है और अन्त में जाकर यह हृदय रोग का स्थान ले लेती है। हृदय रेखा में दोष का अन्य लक्षणों के साथ भी समन्वय कर लेना चाहिए।
हृदय रेखा टूटने पर, जिस आयु में भाग्य रेखा पतली या समाप्त होती है व्यक्ति का वजन बढ़ने लगता है। ऐसे व्यक्तियों को भार पर नियन्त्रण रखना चाहिए क्योंकि वजन बढ़ने पर भी हृदय रोग की सम्भावना बढ़ जाती है।
सूर्य के नीचे हृदय रेखा टूटी होने पर व्यक्ति की आंखों में दोष होता है।
हृदय रेखा का अधिक गोलाकार होना भी ठीक नहीं होता। इससे बड़ी आयु में कमर झुक जाती है या पीठ में कूबड़ हो जाता है। हृदय रेखा टूट कर मस्तिष्क रेखा पर मिले तो ऐसे व्यक्तियों को जीवन साथी के स्वास्थ्य या जीवन की ओर से चिन्ता रहती है।
दोहरी हृदय रेखा
हाथ में अन्य रेखाओं के साथ बिल्कुल सट कर चलने वाली रेखाएं कुठार रेखाएं मानी जाती हैं जोकि दोषपूर्ण लक्षण होती हैं परन्तु हृदय रेखा के साथ सट कर चलने वाली दूसरी हृदय रेखा दोषपूर्ण न होकर उत्तम लक्षण मानी जाती है। इसे दोहरी हृदय रेखा कहते हैं। पूरी दोहरी हृदय रेखा बहुत कम देखने को मिलती है, हृदय रेखा के साथ छोटे या बड़े टुकड़े ही अधिकतर देखे जाते हैं। इस प्रकार के टुकड़े भी उत्तम फल देते हैं परन्तु पूरी हृदय रेखा की श्रेष्ठता कुछ और ही होती है।
दोहरी हृदय रेखा वाले व्यक्ति अपने जीवन साथी या प्रेमी को ईश्वर के समान मान देते हैं। ऐसी स्त्रियां पति की सेवा में दत्तचित्त होती है। इनके जीवन साथी सुन्दर, सच्चरित्र, महत्वाकांक्षी और घर बनाने वाले होते हैं। विवाह के पश्चात् इनके जीवन में अधिक उन्नति होती है। ऐसे व्यक्ति उत्तरोत्तर प्रगति करते हैं।
हृदय रेखा का निकास
हृदय रेखा मंगल, बुध या दोनों के बीच से ही निकलती है। पूर्णतया मंगल या बुध से निकली हुई हृदय रेखा अच्छी नहीं होती है। किन्तु मंगल और बुध के मध्य से निकली हुई उत्तम मानी जाती है। ऐसी हृदय रेखा यदि दोष रहित हो तो क्या ही कहना?
हृदय रेखा का निकास मंगल से
मंगल से निकली हुई हृदय रेखा व्यक्ति में क्रोध, जल्दबाजी, बुखार व खुन की कमी का लक्षण है। मंगल से निकली हुई हृदय रेखा मोटी व शाखा रहित हो तो व्यक्ति दया-हीन होते हैं। मंगल से निकली होकर हृदय रेखा अंगुलियों के आधार से बहुत नीचे हो तो व्यक्ति उपरोक्त दुर्गुण रखते हुए भी किसी न किसी विषय में पारंगत होते हैं।
हृदय रेखा का निकास बुध से
मंगल से निकलने की अपेक्षा बुध से निकली हुई हृदय रेखा कितनी भी दोषपूर्ण क्यों न हो, अच्छी ही होती है। ऐसे व्यक्ति शान्त स्वभाव के होते हैं। इन्हें कुटुम्ब का सुख होता है।
बुध से निकली हुई हृदय रेखा आरम्भ में मोटी हो तो हकलाहट या तुतलाहट जैसा थोड़ा बहुत दोष होता है। हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर ऐसे व्यक्ति समय व जबान के पाबन्द नहीं होते, कहते कुछ और करते कुछ है।
हृदय रेखा का अन्त
शनि के नीचे
इस प्रकार की हृदय रेखा शनि की अंगुली के नीचे जाकर एकदम समाप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति उदासीन होते हैं, किसी से विशेष लगाव या घृणा इन्हें नहीं होती। तो भी एक दूसरे की अर्थात् स्त्री हो तो पुरुषों और पुरुष हो तो स्त्रियों की आलोचना करते हैं।
ऐसे व्यक्ति सच्चे और सहृदय होते हैं। अपनी बुराई या भेद की बातें इनके सामने बताकर कोई भी इनकी गोपनीय से गोपनीय बात पूछ सकता है परन्तु आदर्शवादी होते हैं।
बुध की अंगुली का नाखून छोटा व वृहस्पति की दोनों अंगुलियों के नाखूनों में अन्तर अर्थात् छोटे बड़े हो तो ऐसे व्यक्ति जो भी आलोचना करते हैं सत्यतापूर्ण एवं तथ्यों पर आधारित होती है। ऐसे व्यक्ति स्थान, मकान, कला, प्रकृति प्रेमी यहां तक कि ईश्वर में भी कमी महसूस करते हैं ओर यह वास्तव में सच होती है।
हृदय रेखा शनि के नीचे रुक कर अंगुलियों से अधिक दूर नहीं हो तो ऐसे व्यक्ति स्त्री होने पर पुरुषों और पुरुष होने पर स्त्रियों के द्वारा पीटे जाते हैं यद्यपि इनका अपना कोई दोष इसमें नहीं होता। हृदय रेखा अंगुलियों से दूर होने पर केवल लांछन भर आता है। ऐसे व्यक्ति बुद्धिमान व मनस्वी होती हैं, ऐसे पचड़ों में नहीं पड़ते।
शनि पर
इस दशा में हृदय रेखा मुड़ कर ठीक शनि पर्वत पर अंगुली के पास समाप्त होती हो तो व्यक्ति चरित्र के शुद्ध नहीं होते। शुक्र उन्नत या जीवन रेखा सीधी या जीवन रेखा शुक्र को काटने पर यह वृत्ति और अधिक बढ़ जाती है।
हृदय रेखा शनि पर होने पर इस में दोष भी हो और शुक्र उठा हो तो ऐसे व्यक्ति पुरुष होने पर स्त्री और स्त्री होने पर पुरुषों का पीछा करते हैं। लड़कपन में ऐसी बातें बहुत देखी जाती है।
हृदय रेखा शनि पर जाने की दशा में शुक्र या चन्द्रमा कम उन्नत, रेखाओं में दोष न होकर हाथ सुन्दर हो तो चरित्र दोष में कमी आ जाती हैं तो भी लांछन तो लगते ही है।
हृदय रेखा शनि पर जाने की दशा में हाथ में उत्तम लक्षण हों और व्यक्ति कारखाने जैसा कोई कार्य करते हों तो इनके कार्य में श्रम समस्याएं जैसे श्रमिकों की हड़ताल आदि रहती हैं। ऐसों के श्रमिक नियमित कार्य पर उपस्थित नहीं होते या अग्रिम धन लेकर भाग जाते हैं।
शनि पर हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो ऐसी स्त्रियां कामुक होने के साथ निर्लज्ज भी होती हैं। वासना पूर्ति के लिए गलत काम करने को तैयार हो जाती है। ऐसी स्त्रियों की हृदय रेखा में दोष होने के साथ हृदय रेखा से छोटी-छोटी शाखाएं मस्तिष्क रेखा की ओर जाती हों तो परिणाम की चिन्ता न करते हुए खुले आम प्रेमियों के साथ रहती हैं, पति व बच्चों की भी परवाह नहीं करती। पहले स्वयं दुश्चरित्रा होती है तत्पष्चात् दूसरों को भी प्रोत्साहित करती है।
हृदय रेखा शनि पर जाने की दशा में इस की एक शाखा वृहस्पति पर जाती हो और शनि की अंगुली लम्बी व सीधी हो तो बागवानी का चाव होता है, ये फुलवारी लगाना आदि कार्य करते हैं। हाथ की दशा उत्तम होने व आर्थिक रुप से समर्थ होने पर बगीचा इत्यादि रखते हैं, नहीं तो ऐसा सोचते जरुर हैं। सम्पत्ति निर्माण के समय ऐसे व्यक्ति अपने मकान में फुलवारी या बगीचे का स्थान रखते हैं।
चरित्र बहुत नाजुक विषय है। विशेषतया ऐसे व्यक्तियों को जिन्हें कोई बात बहुत महसूस होती हो, जिसके लक्षण हैं मस्तिष्क रेखा लम्बी, अंगूठा कम खुलना, वृहस्पति बहुत अच्छा, मस्तिष्क रेखा में दोष आदि। ऐसे में पूर्णतया आष्वस्त होने के पश्चात् ही इस विषय में फल कहना चाहिए।
शनि व वृहस्पति की अंगुली के बीच में
इस लक्षण को बहुत बारीकी से देखना चाहिए। इसमें हृदय रेखा वृहस्पति और शनि की अंगुली के ठीक बीचों बीच जाती है। ध्यान से देखना चाहिए कि यह रेखा वृहस्पति की अंगुली के पास तो नहीं जाती? क्योंकि वृहस्पति की अंगुली के पास जाने वाली इस हृदय रेखा में अन्तर तो सूक्ष्म है परन्तु फल बिल्कुल विपरीत होते हैं। अत: यहां पहचान के विषय में सावधानी की आवश्यक्ता है। ऐसे व्यक्ति चरित्रहीन होते हैं।
उपरोक्त प्रकार की हृदय रेखा होने पर स्त्रियां जिन के साथ विवाह करती हैं उन्हें तंग करती रहती हैं। पति को अपने दबाव में रखती हैं तथा उसके साथ दुराव करती हैं। इन स्त्रियों में वासनात्मक भावना बहुत होती है।
पुरुष होने पर ऐसे पुरुष अपनी पत्नी को तंग करते हैं क्योंकि इनमें कामुकता की अतिश्यता होती है, फलस्वरूप पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता।
हृदय रेखा शनि व वृहस्पति की अंगुली के बीच हो और उसकी एक शाखा वृहस्पति पर गई हो तो ऐसे व्यक्ति पत्नी को तंग भी करते हैं और प्रसन्न भी रखते हैं। ये सोच समझ कर चलने वाले होते हैं परन्तु मित्रों में अधिक समय व्यतीत करते हैं।
वृहस्पति की अंगुली के पास
इस लक्षण का निर्णय बारीकी से देखकर कर लेना चाहिए, क्योंकि वृहस्पति और शनि के बीच गई हुई व वृहस्पति की अंगुली के पास गई हुई रेखाएं देखने में एक जैसी लगती हैं, जबकि इनके फलों में बहुत अन्तर होता है।
वृहस्पति की अंगुली के पास जाने वाली हृदय रेखा सच्चरित्रता, दानवीरता, जिम्मेदारी, सत्यनिष्ठा, चरित्र एवं आदर्श में विश्वास पर दु:ख कातरता आदि गुणों को द्योतक है। ये निरन्तर उन्नति ही करते हैं व हृदय एवं मस्तिष्क से सरल होते हैं।
इस प्रकार की हृदय रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा का अन्तर अधिक, हाथ बड़ा, लाल, गुलाबी या छोटा हो तो दानी होते हैं। इनमें अपनी सामर्थ्य या उससे अधिक दूसरे की सहायता करने का गुण होता है। हृदय और मस्तिष्क रेखा निकट होने पर ऐसे व्यक्ति उन्हीं की सहायता करते हैं जो वास्तव में सहायता के पात्र होते हैं परन्तु हृदय व मस्तिष्क रेखा का अन्तर अधिक होने पर पात्रता का विचार नहीं करते, जो भी याचक बन कर इनके सामने आता है यथाशक्ति प्रभाव या धन से उसकी सेवा करते हैं।
हाथ भारी गुदगुदा, नरम, चिकना, रेखाएं निर्दोष, अंगुलियां सीधी तथा दो या अधिक अंगुलियों के आधार नीचे से बराबर होने पर व्यक्ति विशेष उदार होते हैं। ऐसे ही व्यक्ति किसी देश की नाक होते हैं, जिनके साये में देश की संस्कृति, शिक्षा व समाज पलता है, इनके हाथों में हृदय रेखा वृहस्पति की अंगुली को छूती है।
हृदय रेखा का वृहस्पति की ओर अर्थात वृहस्पति को देखना
इस दशा में हृदय रेखा न तो किसी अन्य स्थान पर जाती है और न ही वृहस्पति की अंगुली के नीचे थोड़ी आगे निकल कर वृहस्पति की परिधि के पहले ही समाप्त हो जाती है और ऐसा लगता है कि जैसे वृहस्पति पर गई हो।
ऐसे व्यक्ति शंकालु होते हैं। स्त्रियों के हाथों में यह लक्षण होने पर ऐसी स्त्रियां पति के विषय में शंकाए करती है कि इनका पति इन्हें प्यार नहीं करता परन्तु यह शंका ही होती है। पुरुष भी ऐसा ही सोचते हैं। भाग्य रेखा मोटी होने की आयु तक इस प्रकार की शंका विशेष रूप से रहती है फलस्वरूप गृहस्थ जीवन मधुर नहीं रहता। ऐसे व्यक्ति प्रत्येक बात में अपना समर्थन चाहते हैं क्योंकि इन्हें अपने पर पूर्ण विश्वास नहीं होता।
ऐसे व्यक्ति विवाह के पश्चात् उन्नति करते हैं। इनके आपस में झगड़े कम होते हैं क्योंकि ये एक दूसरे का ख्याल रख कर चलते हैं। कोई भी कार्य करने से पहले यह सोचते हैं कि दूसरों को बुरा नहीं लगे। कुछ समस्याएं रह कर इनका जीवन सुखी रहता है और ये जीवन में सफल सिद्ध होते हैं।
हृदय रेखा का अन्त सीधा वृहस्पति पर
यह रेखा सीधी वृहस्पति पर पहुंचती है। निर्दोष हृदय रेखा वृहस्पति पर गई हो तो व्यक्ति जीवन में उन्नति करते हैं, उत्तरोत्तर आगे बढ़ते हैं और स्त्री, सन्तान व धन का सुख प्राप्त करते हैं। आर्थिक स्थिति का अनुमान हाथ में उपस्थित अन्य लक्षणों को देख कर लगाना चाहिए।
दोषयुक्त हृदय रेखा वृहस्पति पर जाती हो तो ऐसे पुरुष अपनी पत्नी में इतने गुण देखना चाहते हैं जितने आकाश में तारे और इतने गुण होने सम्भव नहीं होते फलस्वरूप इनका गृहस्थ जीवन निराशापूर्ण रहता है। छोटी-छोटी बातों पर नुक्ताचीनी, टोकना बात काटना इनके लिए साधरण सी बात है। दोषपूर्ण हृदय रेखा सीधी वृहस्पति पर जाती हो तो ऐसे व्यक्ति की अपनी पसन्द होती हैं, विशेषतया विवाह के विषय में इनकी पसन्द निराली होती है। इनका जीवन साथी शत प्रतिशत इनकी अपनी पसन्द ही होना चाहिए। ये चाहते हैं कि इन्हें जीवित व्यक्ति की बजाय एक काठ का पुतला जीवन साथी के रूप में मिले जो इनकी जायज और नाजायज बात को माने और हां कहे।
ऐसे व्यक्ति जीवन साथी के प्रति उदासीन रहते हैं, काम निकलने के पश्चात् मुंह फेर कर सो जाना, बात न करना, मतलब के समय फिर बात करना आदि इनकी आदत होती है।
स्त्रियों के हाथों में उपरोक्त लक्षण होने पर ये अपने पति पर प्रेम के विषय में शंका करती हैं, वह प्रेम करता है तो भी इन्हें शंका होती है। यह शंका कभी-कभी तलाक का कारण बनती है। प्रेम विवाह होने की दशा में इस लक्षण के साथ हृदय रेखा जंजीराकार व इसकी कोई शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो तो तलाक हो जाता हैं।
वृहस्पति पर जाने वाली हृदय रेखा जंजीर की तरह या वृहस्पति व शनि के बीच में अर्थात् दोनों अंगुलियों के बीच में न जाकर पहले ही रुकी हो तो ऐसे व्यक्ति के प्रेम सम्बंधों में रुकावट आती है। जीवन रेखा को मंगल से आकर रेखाएं काटती हों तो इस रुकावट के कारण इनके मित्र होते हैं। यदि ये रेखाए जीवन रेखा को काट कर मस्तिष्क रेखा तक जाती हों तो कुटुम्ब के व्यक्ति इस प्रेम का विरोध करते हैं।
शुक्र उन्नत होने पर ये व्यभिचारी होते हैं। दूसरों को फंसाने का इनका अलग ढंग होता है। ये अपने प्रभाव से दूसरे के हृदय पर अपना अनुशासन व सम्मान छोड़ कर उनसे मित्रता करते हैं। इस विषय में इन की नीयत ठीक नहीं होती। ऐसे व्यक्तियों की मित्रता का क्षेत्र बड़ा होता है और ये विश्वास पात्र मित्र होते हैं। मित्रों या सम्बंधियों के घरों में ऐसे व्यक्ति गलत काम नहीं करते। अंगुलियां लम्बी व मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर ऐसे व्यक्ति का चरित्र अपेक्षाकृत कम दोषपूर्ण होता है क्योंकि ये सम्मान को ध्यान में रखते हैं। छोटी अंगुलियां होने पर चालाक होते हैं और चुपचाप अपना काम निकाल जाते हैं।
हृदय रेखा वृहस्पति पर पहुंच कर वृहस्पति मुद्रिका को काटती या छूती हो तो व्यक्ति के किसी सम्बंधी या मित्र के घर में प्रेम सम्बंध होते हैं। ये सम्बंध मामा, चाचा, साली, मामी आदि से स्थापित होने की बहुत सम्भावना होती है। यह नियम स्त्री-पुरुष दोनों पर समान रूप से लागू होता है।
ऐसे व्यक्तियों के गले में गला सूखना या अन्य बीमारियां पाई जाती हैं, जीवन रेखा के आरम्भ में द्वीप या दोष होने पर गले का ऑपरेशन कराना पड़ता है। इनकी सन्तान को भी गले में रोग रहता है। अंगुलियों के नाखून छोटे या गोलाकार हों तो निश्चित ही गले में खुश्की का फल कहा जा सकता है।
हृदय रेखा का अन्त सूर्य पर (छोटी हृदय रेखा)
ऐसी हृदय रेखा सूर्य की अंगुली के नीचे पूरी हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों को गरमी बहुत अधिक लगती है। इन्हें तेज धूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए। हृदय रेखा सूर्य पर पूरी होना धार्मिक प्रवृत्ति का द्योतक है परन्तु आर्थिक स्थिति जीवन भर ड़ांवाडोल रहती है। इनका हृदय कमजोर होता है। अच्छी जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा इसके दोषों को कम करती है परन्तु पूर्णतया निराकरण नहीं होता। इनकी पत्नी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता, उन्हें प्रजनन कष्ट, खून की कमी, आंख में रोग या दिल की बीमारी होती है। स्त्रियों के हाथों में इस प्रकार का लक्षण ठीक नहीं होता, ऐसी स्त्रियां बहुत लोभी होती है और लोभवश प्राण तक ले लेती हैं, इनसे बच कर रहना चाहिए।
हृदय रेखा अंगुलियों के पास
हृदय रेखा अंगुलियों के पास होना दोषपूर्ण होता है। अंगुलियों के पास होने का तात्पर्य हृदय रेखा का अंगुलियों के आधार के गांठो के ठीक ऊपर से होकर जाना है। हृदय रेखा जितनी ही अंगुलियों की गांठों से नीचे होती है व्यक्ति में उदारता, सौहार्द, बुद्धिमता वं मानव सुलभ गुणों का समावेश करती है और अंगुलियों के पास होने पर इसके विपरीत गुण पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति चरित्रहीन, कामुक व काम चोर प्रकृति के होते हैं। इन्हें यौन चिन्तन में आनन्द प्राप्त होता है।
उपरोक्त प्रकार की हृदय रेखा दोषपूर्ण होने के साथ जीवन रेखा में भी दोष हो तो ये पाबन्द तो होते ही नहीं, अनेक बार याद दिलाने पर काम करते हैं। वृहस्पति की अंगुली छोटी होने पर ऐसे व्यक्ति इस प्रकार के कार्य भी करते हैं जो सम्मान से गिरे हुए होते हैं।
जंजीराकार हृदय रेखा
इस प्रकार की हृदय रेखा अनेक द्वीपों से मिल कर बनी होती है अर्थात् अनेक द्वीप होने पर यह जंजीराकार कहलाती है। मिटी हुई सी, जर्जरित, अनेक स्थान पर टूटी हुई रेखा भी जंजीराकार रेखा जैसा फल करती है। यह दोषपूर्ण लक्षण है। ऐसे व्यक्ति का बाल्यकाल स्नेह से रहित होता है अर्थात् इन्हें बचपन में किसी का प्रेम नहीं मिलता। मां-बाप से अलग रहने, उनकी मृत्यु या अन्य कारणों से प्रेम व सौहार्द का अभाव रहता है। जिस आयु तक हृदय रेखा इस प्रकार की होती है जीवन में सुख, शान्ति, स्वास्थ्य, धन व प्रेम का अभाव रहता है।
ऐसे व्यक्ति अनेक प्रकार की बातें सोचा करते हैं। कभी इनकी मनस्थिति त्यागी जैसी तो कभी लोभी जैसी होती है। ये कोई बात छिपा कर नहीं रख सकते अत: इनके सामने कोई भेद की बात बताना ठीक नहीं। अपने स्वार्थ के विषय में ऐसे व्यक्ति सतर्क नहीं रहते। अपना काम छोड़ कर दूसरों के लिए घूमते रहना, इधर-उधर बैठ कर समय खराब करना, दूसरों के समझौते या लड़ाई कराने में समय व्यतीत करना इनकी रुचि होती है।
जंजीराकार हृदय रेखा वाले व्यक्ति को स्वप्न अधिक आते हैं। अंगुलियों के हथेली के साथ वाले पोर उठे होने पर खाने के शौकीन होते हैं और खाने के स्वप्न आते हैं। शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर भी खाने के स्वप्न देखते हैं, परन्तु ऐसा पेट में गैस होने से होता है।
हृदय रेखा लगातार जंजीराकार हो तो स्नायु विकार होता है परन्तु तीन-चार द्वीप होकर हृदय रेखा ठीक और फिर तीन चार द्वीप हों ता यह प्रेम सम्बंध का लक्षण है। जब तक हृदय रेखा ठीक होती है सम्बंध भी ठीक चलते हैं, हृदय रेखा में दोष होने की आयु में प्रेम सम्बंध टूट जाते हैं।
हृदय रेखा जंजीराकार होने पर व्यक्ति सुखी नहीं रहता, जिसका अधिकतर उत्तरदायी वह स्वयं ही होता है। खुद के व्यवहार से जीवन में कलह या अशान्ति बनी रहती हैं। पत्नी के हाथ में भी हृदय रेखा जंजीरकार होने की दशा में तो पूरा जीवन नारकीय रहता है।
हृदय रेखा में द्वीप
हृदय रेखा में द्वीप एक दोष है। यहां हम एक द्वीप को न लेकर अधिक द्वीप होने पर व्यक्ति की मानसिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता है, अध्ययन करेगें। हृदय रेखा में द्वीप केवल उस विशेष समय को प्रभावित करता है जिस में उसकी स्थिति होती है। जंजीराकार हृदय रेखा पूरी की पूरी द्वीपों से मिलकर बनती है। जर्जरित हृदय रेखा पूरी ही टूटी-फूटी होती है। कभी कभी पूरी हृदय रेखा इस प्रकार दोषपूर्ण न होकर उस के कुछ भाग में दो, तीन या चार द्वीप होते हैं। इसी प्रकार की हृदय रेखा का वर्णन यहां किया जायेगा।
द्वीप युक्त हृदय रेखा व्यक्ति में आत्मविश्वास व निर्णय शक्ति की कमी, विचारों का हल्कापन, शरीर में रोग तथा अनेक प्रकार की मानसिक उथल-पुथल का संकेत है। हृदय रेखा का अधिक सम्बन्ध मनोवैज्ञानिक भावों से है। हाथ में उपस्थित दूसरे लक्षणों से समन्वय कर ऐसी बातों का निर्णय करना चाहिए जैसे हृदय रेखा में द्वीप व्यक्ति में निर्णय शक्ति एवं मानसिक दृढ़ता की कमी बताता है, यदि जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा या शुक्र उठा हो तो इसकी मात्रा अधिक होती है। हृदय रेखा में द्वीप, मस्तिष्क रेखा निर्दोष एवं शुक्र उन्नत नहीं हो तो निर्णय शक्ति निर्बल होती है परन्तु इतनी नहीं, द्वीप की आयु में थोड़े समय के लिए घबराहट होती है बाद में ठीक रहता है। द्वीपयुक्त हृदय रेखा होने पर बुध की अंगुली का नाखून छोटा हो तो भी इस लक्षण में बहुत कमी हो जाती है। ऐसे व्यक्ति भावुक तो होते हैं परन्तु बुद्धिमान होते हैं, तो भी इन्हें मानसिक ठेस अवश्य लगती है। हृदय रेखा की स्थिति अंगुलियों से दूर हो तो उपरोक्त फल केवल 25 प्रतिशत रहते हैं।
हृदय रेखा में द्वीप होने पर जीवन व मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा, शुक्र उन्नत व मस्तिष्क रेखा में द्वीप हो तो व्यक्ति वहमी होते हैं। थोड़ी भी अप्रिय घटना होने पर आत्म-हत्या की सोचते हैं। वृहस्पति और मंगल उन्नत होने पर आत्म-हत्या तो नहीं करते परन्तु बहुत दु:खी हो जाते हैं।
हृदय रेखा में बड़ा व स्पष्ट द्वीप व्यक्ति के विवाह या प्रेम का निर्देश करता है। यदि कोई रेखा इन द्वीपों को काटती हो तो यह सम्बंध छूट जाता है। एक के बाद दूसरा द्वीप यह निर्देश करता है कि पहला प्रेम छूट कर दूसरा होगा। द्वीप का समय निकलने के बाद प्रेम सम्बंध समाप्त हो जाता है।
हृदय रेखा में लगातार तीन चार द्वीप होने पर स्नायु दोष होता है। परन्तु दो तीन द्वीप के पश्चात् हृदय रेखा ठीक होकर फिर दो तीन द्वीप हों तो प्रेम सम्बंधों का लक्षण है। जिस आयु तक इस प्रकार की स्थिति रहती है ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। मस्तिष्क रेखा मंगल पर समाप्त होने की दशा में सम्बंध विच्छेद का कारण दूर जाना, हाथ काला व लाल होने पर क्रोध, जीवन रेखा व स्वास्थ्य रेखा में दोष होने पर बीमारी या मृत्यु होता है।
हृदय रेखा में बुध के नीचे द्वीप
हृदय रेखा में सूर्य या बुध के नीचे द्वीप या अन्य कोई विशेष दोष हो तो व्यक्ति की आंखों में खराबी का लक्षण है। हृदय रेखा में बुध या सूर्य के नीचे कोई विशेष दोष देखने के पश्चात् अन्य लक्षणों के द्वारा भी आंखों में बीमारी का निश्चय करना चाहिए, यदि मस्तिष्क रेखा में भी शनि के नीचे दोष हो तो इस विषय में कोई शंका नहीं रह जाती।
हृदय रेखा में बुध या सूर्य के नीचे दोष होने पर शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो आंखों में कोई न कोई रोग जैसे पानी आना, बाल होना, दुखना आदि बीमारीयां होती हैं। बुध के नीचे दोष व्यक्ति की पास की दृष्टि में दोष का लक्षण है। ये लक्षण 17-18 वर्ष की आयु से आरम्भ होते हैं। कई कारणों से इस प्रकार की बीमारियां आंखों में पाई जाती हैं।
बुध के नीचे हृदय रेखा में द्वीप व शुक्र उन्नत हो तो प्रेम सम्बंध का लक्षण है। यदि इस द्वीप को बाहर से आकर कोई रेखा भी छूती हो तो निश्चय ही प्रेम सम्बंध होता है।
हृदय रेखा बुध के नीचे द्विभाजित होकर कभी-कभी एक लम्बा त्रिकोण के आकार का द्वीप बनाती है। यह द्वीप आरम्भ में गृहस्थ सम्बंध में परेशानी पैदा करता है। जीवन साथी से मन मुटाव, उसका स्वास्थ्य खराब रहना, दोनों का अलग रहना या अन्य कौटुम्बिक कारणों से परेशानी रहती है। द्वीप का समय समाप्त होने पर सब ठीक हो जाता है। बायें हाथ में इस प्रकार का चिन्ह होने पर मां-बाप के लिए ऐसा फल कहा जा सकता है। दायें हाथ में होने पर स्वयं व सन्तान को यहीं फल लागू होता है। दोनों हाथों में स्वयं तथा कुटुम्ब में किसी अन्य को भी इस प्रकार की समस्या रहती है।
हृदय रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप
यह द्वीप भी आंखों के दोषों को निश्चित करता है। शनि के पर्वत पर अधिक रेखाएं या मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर अवश्य ही आंखों में दोष होता है। सूर्य के नीचे हृदय रेखा में द्वीप दूर की नजर के लिए अच्छा नहीं माना जाता। अतिशय कामुकता, पित्त या जिगर दोषपूर्ण होने के कारण आंखों में खराबी पाई जाती है। इसी लक्षण से सिर में भारीपन भी रहता है। उपरोक्त रोगों में सुधार होने पर यह दोष दूर हो जाता है। एक बात विशेष ध्यान रखने की है कि हृदय रेखा में दोष होने पर मस्तिष्क रेखा निर्दोष हो तो कुछ समय के लिए ही आंखों में दोष पैदा होते हैं, कालान्तर में आंखें ठीक हो जाती हैं। सूर्य के नीचे हृदय रेखा में दोष के साथ यदि मस्तिष्क रेखा व अन्तर्ज्ञान रेखा में दोष हो तो सिर दर्द के कारण आंखें खराब होती हैं। ऐसे व्यक्तियों को साइनस का रोग पाया जाता है। इन्हें नाक से दूध पीना, सूत्र-नेति करना, बादाम रोगन पीना लाभकर रहता है। ऐसे व्यक्तियों को पेट में खराबी, नजला जुकाम आदि का उपचार यथा समय व यथा शक्ति करना चाहिए।
शुक्र उन्नत होने पर हृदय रेखा में द्वीप प्रेम सम्बंध होने का लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कई बार इस प्रकार की घटनाएं होती हैं। हृदय रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप होने पर ऐसे व्यक्ति से प्रेम होता है जो या तो पूर्व परिचित नहीं होते या केवल देख भाल ही होती है। अपरिचित व्यक्तियों के एक दूसरे को देखने मात्र से जो प्रेम होता है उसके भी यही लक्षण है। यह प्रेम वास्तविक होता है और पूर्ण प्रेम का रूप ले लेता है, परन्तु ऐसे व्यक्तियों को एक दूसरे पर शंका रहती है। अन्य लक्षणों द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि ऐसा प्रेम स्थायी रहेगा अथवा नहीं। ऐसे प्रेमी आपस में पत्र व्यवहार भी करते हैं। बदनाम होने से ऐसा प्रेम समाप्त हो जाता है। हृदय रेखा का द्वीप सूर्य के नीचे किसी त्रिकोण या चतुष्कोण से ढका हो तो प्रेम सम्बंध में पहले कठिनाई और बाद में सफलता देखी जाती है। इसी प्रकार से द्वीप या दोष दोनों ओर से आच्छादित हो तो आंख फूटने या खराब होने से बचती है। कहने का तात्पर्य यह है कि त्रिकोण या चतुष्कोण इस प्रकार की घटनाओं से रक्षा करते हैं।
हृदय रेखा में शनि के नीचे द्वीप
हृदय रेखा में शनि के नीच दो प्रकार के द्वीप मिलते हैं। एक तो हृदय रेखा में ही शनि के नीचे होते हैं। दूसरे इसमें मस्तिष्क रेखा की ओर त्रिकोण के आकार के होते है। हृदय रेखा के ऊपर के द्वीप दांतों के रोगों के लिए विचारणीय है जबकि मस्तिष्क रेखा की ओर वाले द्वीप गुर्दे, हर्निया, अण्डकोश या पौरुष ग्रन्थि के रोगों के लिए विचारणीय हैं।
हृदय रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर दांतों में कीड़ा लगना, खून जाना, गरम या ठण्डा लगना आदि रोग होते हैं। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे झुकाव या मोटापन इस लक्षण की पुष्टि करते हैं। ऐसे व्यक्तियों को आग, बिजली व जल का भय होता है, अत: इस विषय में इन्हें सावधान रहना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति भी प्रेम सम्बंध में पड़ते हैं परन्तु ऐसे सम्बंध अभिमान के कारण समाप्त हो जाते हैं। वृहस्पति उन्नत होने पर तो निश्चित ही ऐसा होता है। जब तक सम्बंध रहते हैं कुछ न कुछ कहा सुनी रहती है। ऐसे व्यक्तियों की आदत झुकने की नहीं होती। अत: जब तक प्रेमी इनके कहे में चलते हैं सम्बंध चलते रहते हैं, अन्यथा समाप्त हो जाते हैं।
हृदय रेखा में शनि के नीच कभी कभी एक चतुष्कोण का आकार देखा जाता है। यह चतुष्कोण किन्हीं अन्य रेखाओं या विशेष भाग्य रेखा के द्वारा बना होता है और चतुष्कोण न होकर द्वीप ही होता है। दांतों में रोग या बिजली से हानि इसके फल हैं।
हृदय रेखा में वृहस्पति पर द्वीप
हृदय रेखा के अन्त अर्थात् वृहस्पति पर द्वीप गले की बिमारी का लक्षण है। इस द्वीप के साथ जीवन रेखा के आरम्भ में भी दोष हो तो गले का ऑपरेशन कराना पड़ता है।
हृदय रेखा में लगातार दो द्वीप हों तो भी गले में विशेष दोष का लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों को खाते समय प्राय: कोई चीज अटक जाया करती है। मोटी रेखाओं से बना होने पर इनके गले में कोई चीज अटकने से मृत्यु होने की संभावना होती है जैसे मछली का कांटा या हड्डी आदि। कभी-कभी यही दो द्वीप चष्में का आकार बनाते हैं। कोई विशेष रोग न होने पर ऐसे व्यक्तियों का गला नाजुक होता है अर्थात् शीघ्र खराब होता है।
मोटी हृदय रेखा
इस प्रकार की हृदय रेखा अन्य रेखाओं की अपेक्षा मोटी देखने में आती है। कभी कभी तो यह बहुत ही मोटी देखी जाती है अर्थात् इसकी मोटाई अन्य रेखाओं से लगभग दो गुणा तक होती है। ऐसे व्यक्ति निर्दयी, क्षुद्र हृदय, लोभी तथा लोभ के वशीभूत होकर गलत कार्य करने वाले होते हैं। क्रोधी तो होते ही हैं, क्रोध के अन्य लक्षण होने पर तो इन दुर्गुणों की हद हो जाती है। जीवन व मस्तिष्क रेखा उत्तम होने पर आर्थिक स्थिति तो अच्छी रहती है परन्तु इनकी किसी से बनती नहीं और न ही इनके हाथ से किसी का भला होता है।
जारी.....
साभार
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