Yatra ~ Puri

Dr. Anupama Chaturvedi  Puri yatra

Dr. Anupama Chaturvedi एक अच्छी आयुर्वेद विशेषज्ञ की साथ ही अच्छी लेखिका भी है. इन्हें भ्रमण का विशेष शौक है साथ ही उसका बड़ा ही सजीव वर्णन इनकी खासियत है.

चैत्र नवरात्र के साथ ही भारतीय नववर्ष प्रारंभ हो चुका है। अभी उड़ीसा की संस्कृति को थोड़ा बहुत देखकर आई हूं। भारत की विविधताओं के रंगों में एक बहुत उजला रंग,उड़ीसा का। छोटे बेटे अनुज के दसवीं बोर्ड की परीक्षाएं 29 मार्च को समाप्त हुई,दो अप्रेल को कोटा से जनशताब्दी से दिल्ली, दिल्ली से शाम की फ्लाइट से भुवनेश्वर पहुंचे।

भुवनेश्वर से लगभग डेढ घण्टे की दूरी पर पुरी, जगन्नाथ की हमारे चार धामों में से एक।  पुरी पहुंचते पहुंचते रात दस बज गए , सडक के एक ओर बंगाल की खाडी का विशाल समुद्र तीव्रता से थपेडे देता शोर करता हुआ किसी जिद्दी बच्चे की तरह ,किसी की भी नही सुननेवाला हो,जैसा लगा,रात्रि की शांति मे उसकी लहरों का शोर बार बार ध्यान आकर्षित करता। समुद्र भी आकर्षित होता ही है...चन्द्रमा की कलाओं से..।

पुरी का सूर्योदय का सौन्दर्य अद्भुत है,दूसरे दिन तड़के ही पांच बजे समुद्र तट पर सूर्योदय की प्रतीक्षा में बैठकर सागर की लहरों के बहाव को देखते रहे.. ,"यहां सूरज कब तक निकलेगा"किसी चायवाले से पूछा तो उसके उत्तर से निराश हो ,वापस होटल। "आज तो मेघ आ गया,आज सोरज कैसा निकलेगा".

दिन में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से पहले हमारे पूर्वजो की वंशावली संभालकर रखने वाले पंडित से मिलने पर पता चला कि उनकी बही खाते में उड़िया भाषा में हस्तलिपि में हमारे पूर्वजों के नाम पते बिल्कुल सही निकले। इतिहास में प्रमाणित जानकारी के लिए लिखित प्रमाणों का एक उदाहरण। कभी किसी काल में पूर्वजों द्वारा यहां की गयी यात्रा का उल्लेख संभाल कर रखना, "डाक्यूमेंट मैनेजमेंट" .... । 

पंडित जी के साथ भगवान जगन्नाथ के दर्शनों के बाद , यहां का महाप्रसाद खाने का जो आनंद मिला ... मिट्टी के छोटे-बड़े बर्तनों में बनाये बात,दाल,साग, मिष्ठान, मालपुआ सभी गर्म और स्वादिष्ट। घर पर कभी भी कद्दू की सब्जी की तरफ न देखने वाला अनुज, केले के पत्ते पर जिस रुचि से मालपुआ खाया उसी रुचि से मिट्टी की छोटी हांडी से परोसी कद्दू की गर्म सब्जी को खाने लगा।.जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ" 

शाम को होटल के सामने ही फैले विस्तृत खूबसूरत समुद्र तट पर थोड़ी देर बैठने के बाद , हमारी ओर आती लहरों को देख,उन मचलती,बिखरती लहरों के निमन्त्रण की अवग्या कैसे की जाती? उन लहरों के साथ हमारा मन भी मचल गया और तेजी से पास आती लहरों के पानी के साथ हमने तन के साथ मन को भी एक अलग अनुभव से भिगो दिया।

दूसरे दिन सुबह चिल्का भ्रमण पर निकले ,पूरा दिन नौका पर ,पानी में।शाम कोवापस पुरी। चिल्का के रास्ते में छोटे छोटे गाँव,सडक के दोनो ओर नारियल के तरु के साथ बहुत से स्थानीय पादपो के घने झुरमुटों की सुन्दरता। छोटे छोटे पोखर जिनमे मछली पालन, कमल और मखाने की खेती..। चिल्का में प्रवासी पक्षियों की संख्या अप्रेल मे कुछ कम हो जाती है,पर जिसे देखने के लिए तनु,अनुज उत्साहित थे,वह दिख ही गयी,डाल्फिन। हमारी नाव के आस पास पानी की सतह पर आती और बहुत चपलता से झलक दिखा कर वापस पानी में, मोबाइल के कैमरे नही पकड पाए।

कोणार्क के सूर्य मन्दिर की स्थापत्य शैली अनूठी होने से विश्व संरक्षित स्मारको में इसकी गणना की गई है,अगले दिन कोणार्क पहुंचने से पूर्व चन्द्रभागा बीच पर ऊंची लहरो को देखना रोमांच पैदा करने वाला अनुभव। तेरहवीं सदी के अन्दर बिना किसी यांत्रिकी तकनीक की सहायता से तत्कालीन समय में इतने श्रेष्ठ निर्माण किया जाना,आश्चर्य में डाल देता है। पिछले वर्ष तमिलनाडु में देखे तंजोर, महाबलिपुरम, त्रिची, मदुरै के विशाल मन्दिरों की स्मृति पुनः स्मरण हो आई, कहीं मन में कसक भी रही ,इतिहास में इन स्थानों को वह स्थान नहीं मिला, जितना ताजमहल या मध्यकालीन स्मारको को मिला। धौलागिरी पर बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां हर आने वाले पर्यटक को सम्मोहित करती है।

भुवनेश्वर में विशाल मन्दिर लिंगराज मन्दिर में दर्शन के साथ वहा की स्थापत्य शैली कोणार्क के समान उन्नत है। नन्दनकानन के विशाल जैविक विविधताओं से भरे उद्यान में भयानक अजगर,सर्प ,राइनो,शेर,सफेद बाघ ,जिराफ को सफारी में देखना रोमांचक था।

ओला,उबर,ओयो,जोमेटो,स्वीगी जैसी सुविधाएं यात्राओ को सहज सुगम बना देती है, मोबाइल से मात्र ओर्डर किया,सारी सुविधाएं उपलब्ध,चाहे स्थानीय साइट सीन हो या शाकाहारी जैन भोजन ..। तनु( भान्जी) के द्वारा स्थान स्थान पर इन सुविधाओं को लेने से यात्रा का आंनद स्मरणीय बन गया।


साभार 
डॉ. अनुपमा चतुर्वेदी



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