समानान्तर व सटी भाग्य रेखा
कभी-कभी भाग्य रेखा के साथ दूसरी रेखा देखने में आती है। यदि यह रेखा सटी हुई न होकर 1.8 इंच से अधिक दूर हो तो दूसरी भाग्य रेखा मानी जाती है। बिल्कुल पास होने पर यह भाग्य रेखा तो होती है परन्तु चरित्र की दृष्टि से अच्छी नहीं मानी जाती। हृदय रेखा से आगे इस रेखा का चरित्र सम्बन्धी दोषपूर्ण फल नहीं होता।
भाग्य रेखा के साथ सटी हुई इस प्रकार की रेखा उस आयु में किसी सम्पर्क, सम्बन्ध या विवाह का लक्षण है। यह सटी भाग्य रेखा व्यक्ति के कारोबार में भी उन्नति का लक्षण है, परन्तु इसका निर्णय जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा की उत्तमता पर निर्भर करता है। हृदय रेखा की कोई शाखा उस आयु में मस्तिष्क रेखा पर नहीं मिलनी चाहिए, अन्यथा लाभ के बदले कार्य में रुकावट व हानि होती है।
भाग्य रेखा के समानान्तर दूसरी रेखा टूट-टूट कर आगे जाती हो तो गृहस्थ जीवन में झंझट का कारण उपस्थित होता है, दोष के पश्चात् सम्बंध फिर से सामान्य हो जाते हैं।
मिटी हुई सी भाग्य रेखा
कुछ हाथों में भाग्य रेखा तो होती है परन्तु मिटी हुई सी होती है। गहराई कम व चौड़ाई अधिक होने के कारण इसे मिटी हुई भाग्य रेखा कहते हैं।
यह भी दोषपूर्ण भाग्य रेखा है। मिटी हुई भाग्य रेखा होने पर हाथ में थोड़ा भी दोष, जैसे जीवन रेखा घुमावदार न होना, मस्तिष्क रेखा में दोष, अंगुलियां टेढ़ी आदि भी हो तो व्यक्ति बहुत देर के बाद अपने पैरों पर खड़ा होता है। जीवन रेखा घुमावदार होने पर साधारण रूप से काम तो चलता रहता है परन्तु सम्पन्नता विलम्ब से प्राप्त होती है।
ऐसे व्यक्ति स्वनिर्मित, सीधे व ईमानदार होते हैं। ऐसे व्यक्ति 35वर्ष के पश्चात् ही स्थायित्व प्राप्त करते हैं। ये किसी बात को अधिक महसूस करते हैं फलस्वरूप छोटी बातों पर नाराजगी हो जाती है।
भाग्य रेखा में द्वीप
वैसे तो किसी भी रेखा में द्वीप एक दोषपूर्ण लक्षण है परन्तु भाग्य रेखा में द्वीप विशेष महत्व रखता हे। इसमें यह अधिक दोषपूर्ण फल करता है। ऐसे व्यक्ति को शरीर, धन, जीवन साथी व कुटुम्ब सम्बंधी परेशानी जीवन भर थोड़ी बहुत रहती है। द्वीप के समय में तो अत्यधिक अशान्ति रहती है। कभी-कभी इस समय आत्म-हत्या या घर छोड़ कर चले जाने का विचार भी मस्तिष्क में आता है।
भाग्य रेखा में दो प्रकार के द्वीप पाये जाते हैं। एक तो सामान्य द्वीप जो भाग्य रेखा को चीर कर बनते हैं। दूसरे ऐसे द्वीप होते हैं जो अन्य रेखाओं, प्रभावित रेखा या जीवन रेखा की शाखा आदि से मिल कर बनते हैं। इसका आकार चतुष्कोण जैसा होता है परन्तु यह द्वीप का ही फल करता है। हाथों में यह अधिकतर 18 से 23वर्ष तक देखा जाता है। परन्तु किसी-किसी हाथ में 28, 29वर्ष की आयु तक भी होता है। यही उत्तम हाथों में सुन्दर व बिना कटा हो तो श्रेष्ठ फल कारक होता है। इसे इस दशा में योनि मुद्रा कहते हैं। इस द्वीप की आकृति देखने में सुन्दर हो तो यह अपेक्षाकृत कम दोषपूर्ण होता है। साधारणतया दोनों प्रकार के द्वीपों के फल में विशेष अन्तर नहीं है।
भाग्य रेखा के द्वीप की आयु में धन सम्बंधी परेशानियां भी रहती हैं। मुकदमेबाजी, विछोह, मृत्यु, मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे दोषपूर्ण होने पर काम छूटना, जीवन रेखा खराब होने पर स्वास्थ्य दोष, हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलने पर झगड़ा या पति-पत्नी का विछोह आदि घटनाएं होती है।
भाग्य रेखा में द्वीप (विशेषतया आरम्भ में) होने पर जीवन साथी के चरित्र पर शंका रहती है। कभी-कभी इस बात का एक दूसरे को पता होता है। शादी से पहले ऐसे व्यक्तियों का किसी से सम्पर्क रहता है। इस द्वीप के साथ हृदय रेखा पर भाग्य रेखा रुकी हो तो प्रेम के पीछे बदनामी होती है। अन्य दोषपूर्ण लक्षण होने पर जीवन खराब हो जाता है। ऐसों का जीवन स्त्री होने पर पुरुष और पुरुष होने पर स्त्री के कारण बरबाद होता है। मस्तिष्क में आघात पहुंचता है। ये इन घटनाओं की जीवन भर याद करते रहते हैं।
भाग्य रेखा में द्वीप होने पर यह त्रिकोण या चतुष्कोण से ढका हो तो द्वीप का खराब फल नहीं होता। त्रिकोण या चतुष्कोण के साथ भाग्य रेखा आगे जाकर निर्दोष हो तो सम्बंध भी अच्छे होते हैं या विशेष दोष होने पर भी साधारण फल होता है, विशेष अवनति या परिवर्तन नहीं होता। त्रिकोण या चतुष्कोण द्वीप के अन्दर या बाहर कहीं भी हो, एक जैसा फल करते हैं। भाग्य रेखा में द्वीप होने पर जीवन रेखा घुमावदार, मस्तिष्क रेखा निर्दोष व जीवन रेखा या मस्तिष्क रेखा में उस आयु में त्रिकोण या चतुष्कोण हो तो भाग्य रेखा के दुष्फल कम होकर लाभ होता है परन्तु साथ ही भाग्य रेखा के द्वीप का फल भी होता है।
भाग्य रेखा में द्वीप की आयु में व्यक्ति के हाथ में कई परिवर्तन देखे जाते हैं। इस समय दूसरी भाग्य रेखा, वृहस्पति मुद्रिका, सूर्य रेखा, स्वास्थ्य रेखा या मंगल रेखा हाथ में पैदा हो जाती है, चमसाकार हाथों में तो ऐसा होता ही है। हाथ कठोर होने पर ऐसी रेखाएं कम नजर आती हैं। जिस आयु में ये रेखाएं पैदा होती हैं उस समय इन रेखाओं से सम्बन्धित परेशानियां जीवन में आती हैं-धन चिन्ता होने से भाग्य रेखा, स्वास्थ्य चिन्ता होने से जीवन रेखा के साथ मंगल रेखा, सम्मान चिन्ता से सूर्य रेखा पैदा हो जाती है। भाग्य रेखा में द्वीप होने पर यदि अन्य किसी रेखा में भी दोष हो तो उस समय हानि, किसी की मृत्यु आदि फल होते हैं। इसकी पुष्टि अंगुलियों पर वर्ष गणना से भी की जाती है। इन वर्षों के अंगुलियों के पोरों में आड़ी रेखाएं पाई जाती हैं।
भाग्य रेखा जीवन रेखा से निकलने पर यदि उसमें निकास के स्थान पर ही द्वीप हो तो ऐसे व्यक्ति मकान बनाते समय बहुत ही कठिनाई का समाना करते हैं। एक बार बनाने के पश्चात् सोचते हैं कि आगे मकान नहीं बनायेंगे परन्तु अवसर मिलने पर फिर बनाते हैं।
भाग्य रेखा का द्वीप व्यक्ति के स्वभाव को दोषपूर्ण रखता है। जिसके कारण घर वाले व रिश्तेदार नाराज रहते हैं, उनसे कहा सुनी व मनमुटाव रहता है या थोड़े समय के लिए बोलचाल बन्द हो जाती है। इनको कुटुम्ब या रिश्तेदारों से कोई लाभ नहीं होता। इसका कारण सहनशीलता न होना व स्पष्टवादिता होता हैं।
जंजीराकार भाग्य रेखा
भाग्य रेखा जंजीर की तरह छोटे-छोटे द्वीपों से मिल कर बनती हो तो बहुत खराब होती है। ऐसे व्यक्तियों को जीवन में कभी भी शान्ति नहीं मिलती। इनके दो वर्ष साधारण व दो चिन्ताकारक होते हैं और जीवन भर यही क्रम चलता रहता है। जीवन रेखा सुन्दर व हाथ भारी होने पर उपरोक्त दोष में किसी हद तक कमी आ जाती है, और जीवन में आराम की सांस भी मिलती है परन्तु मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा में दोष होने पर तो पूरा ही जीवन नरक जैसा बीतता है।
ऐसों के धन्धे लगातार नहीं चलते। देखा गया है उपरोक्त लक्षण मौसमी कार्य करने वालों के हाथों में होते हैं। इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमना पड़ता है।
मस्तिष्क रेखा पर रुकी भाग्य रेखा
किन्हीं हाथों में भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकी देखी जाती है। यह अच्छा लक्षण नहीं माना जाता। गोलाकार जीवन रेखा या अन्य भाग्य रेखा इसके दोष को कम कर देती हैं। मोटी भाग्य रेखा का मस्तिष्क रेखा पर रुकना बहुत घातक होता है। इसके साथ यदि उसी आयु में अर्थात् 35वर्ष या जिस में यह मस्तिष्क रेखा को छूती है, अन्य रेखाओं में भी दोष हो तो जीवन में अनेक उलट-फेर व अवांछित घटनाएं होती हैं। भाग्य रेखा पतली होकर मस्तिष्क रेखा पर रुकने की दशा में इतनी हानि नहीं करती जितनी की मोटी होकर करती है। इस अवसर पर अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है जिसका निर्णय हाथ में उपस्थित अन्य लक्षणों द्वारा कर लेना चाहिए। यह लक्षण पूर्व जन्म के अभिशप्त व्यक्तियों के हाथों में पाया जाता है। इसका निराकरण लम्बे समय के ईश्वर-चिन्तन से ही सम्भव है। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकने के समय यह किसी त्रिकोण से ढकी हो तो हानि से बचत व संकट से रक्षा होती है। त्रिकोण छोटा व स्वतंत्र होने पर दोषपूर्ण फल नगण्य हो जाते हैं। हाथ कठोर व रेखाएं कम होने पर मस्तिष्क रेखा पर रुकी भाग्य रेखा अत्यधिक कष्टकारक होती है।
भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा में रुकने पर व्यक्ति बौद्धिक गलतियां करने वाला होता है। ऐसी गलतियां जीवन में कई बार होती हैं। एक समय जीवन में ऐसा भी आता है कि जब इन गलतियों की हद हो जाती हैं।
ये अपनी आदत को नहीं बदल सकते। यदि भाग्य रेखा एक हाथ में मस्तिष्क रेखा पर रुकी हो तो 35वर्ष के पश्चात् आदतों में कुछ सुधार हो जाता है अन्यथा जीवन भर आदतें वैसी ही बनी रहती हैं। ये कठोर, स्पष्टवक्ता तथा व्यवहारिक निपुण नहीं होते फलस्वरूप अपने व्यवहार के कारण ही अनके परेशानियों का सामना करते हैं। ये अन्याय पसन्द नहीं करते, जहां इनके साथ अन्याय होतो है, वह स्थान छोड़ देते हैं जैसे नौकरी में होने पर त्याग-पत्र दे देते हैं। कोई अन्य कार्य जैसे विवाह इत्यादि इनके अनुसार ठीक न हो तो शादी करने से ही इन्कार कर देते हैं। ऐसी भाग्य रेखा मोटी भी हो तो जल्दबाज होते हैं। यह बात विशेषतया ध्यान देने की है कि भाग्य रेखा पतली होकर मस्तिष्क रेखा पर रुके तो व्यक्ति सतर्क होते हैं। दूसरों से धोखा खाने के अवसर इनके जीवन में कम आते हैं।
जब भाग्य रेखा मोटी होकर मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो और उसके आगे भाग्य रेखा की कोई शाखा शनि तक नहीं जाती हो और जीवन रेखा सीधी हो तो 35वर्ष की आयु तक थोड़ी बहुत उन्नति करने के बाद इनकी उन्नति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं परन्तु यदि जीवन रेखा गोलाकार हो और मस्तिष्क रेखा से निकल कर कोई भाग्य रेखा आगे जाती हो तो 35वर्ष के बाद ही विशेष प्रगति करते हैं, 35वर्ष तक संघर्ष रहता है। ऐसे व्यक्तियों की जीवन रेखा गोलाकार ही होनी चाहिए। गोलाकार न होने की दशा में आगे भी झंझट रहता है परन्तु पहले जितना नहीं।
हृदय रेखा पर रुकी भाग्य रेखा
भाग्य रेखा का हृदय रेखा पर रुकना बहुत बड़ा दोष व प्रमुख लक्षण है परन्तु जब यह शनि के नीच रुकती हो तो 50वर्ष की आयु विशेष कष्ट कारक होती है। ऐसी भाग्य रेखा मोटी भी हो तो व्यक्ति को 50वर्ष की आयु तक किसी भी प्रकार शान्ति नहीं मिलती। इनका जीवन 50 या 56 वर्ष के बाद बनता है। एक से अधिक भाग्य रेखाएं होने पर फल कम होता है तो भी परेशानी रहती ही है।
हृदय रेखा में भाग्य रेखा रुकने पर लिहाज, कार्य बड़ा, अधिक दया, आलस्य या स्त्रियों के कारण व्यक्ति जीवन बनाने में सफल नहीं हो पाता। ये दूसरों पर निर्भर करते हैं और विश्वास करते हैं। फलस्वरूप इनका धन दूसरे दबा लेते हैं या उधार फंस जाता है। ऐसा निश्चित है कि अपनी गलती या लापरवाही से ही इन्हें धन हानि होती है। इन्हें उधार बिल्कुल नहीं देना चाहिए। यह कहा जा सकता है कि इनका कमाया हुआ 50 प्रतिशत धन दूसरों के उपयोग में आता है क्योंकि ये अपने स्वार्थ के विषय में इतनें सतर्क नहीं होते जितना कि होना चाहिए।
भाग्य रेखा, हृदय रेखा पर रुकी, शुक्र उन्नत व हृदय रेखा में दोष हो तो चरित्र में दोष रहता है। जीवन रेखा सीधी होने पर अत्यधिक वासनात्मक प्रवृत्ति होती है। ये स्त्रियों के प्रभाव या सम्पर्क में अधिक आते हैं। ऐसी स्त्रियां पुरुषों व पुरुष स्त्रियों के विषय में अधिक सोचते हैं। इनको 50 वर्ष की आयु में कोई न कोई उपरोक्त प्रकार का झंझट रहता है। प्रेम में बदनामी तो होती ही है।
मोटी भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकने पर (विशेषतया शनि के नीचे) व्यक्ति के सोचे हुए या किए हुए नियोजन पूरे नहीं होते क्योंकि इनके अनुमान गलत होते हैं। अंगूठा लचीला होने पर विशेष दयालु होते हैं, अपने हितों को ध्यान में रखते हुए दूसरों की सहायता करते हैं और अनेक बार दूसरों के द्वारा मूर्ख बनाये जाते हैं। 50 वर्ष तक यही क्रम चलता रहता है और सब कुछ जानते हुए भी ऐसा होता रहता है। कई बार स्वयं भी सोचते हैं कि यह आदत ठीक नहीं और इसमें सुधार की आवश्यक्ता है तो भी सुधार नहीं कर सकते। इनकी आदत सुनी बात को अनसुनी करने की होती है। अत: समझाने का प्रभाव भी ऐसे लोगों पर नहीं होता। इनकी पत्नियों को ऐसे व्यक्तियों से शिकायत होती है कि अनेक बार कहने पर भी ये उनकी बात नहीं सुनते।
भाग्य रेखा हृदय रेखा द्वीप भी हो तो व्यक्ति किसी प्रेम के पीछे बदनाम होता है और बरबादी होती है। हृदय रेखा से कोई शाखा मस्तिष्क रेखा पर भी मिलती हो तो निश्चित ही प्रेम जीवन को बरबाद कर डालता है। जिस आयु में हृदय रेखा से शाखा निकलकर मस्तिष्क रेखा पर मिलती है मस्तिष्क को कोई ठेस पहुंचती है। शुक्र या चन्द्रमा उन्नत हों तो व्यक्ति पागल भी हो सकता है। मस्तिष्क रेखा एक दम झुक कर चन्द्रमा पर जाती हो तो आत्म-हत्या की सम्भावना बढ़ जाती है।
भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकने पर यदि वहीं से हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिले तो रिटायरमेन्ट से पहले ही नौकरी छूटती है। ऐसे दशा में कोई लांछन लगा कर ऐसा किया जाता है।
काली या लाल भाग्य रेखा
रेखाओं का रंग स्पष्ट मालूम नहीं होता परन्तु ध्यान से या रेखाओं को चौड़ा कर देखने पर इनका रंग अन्य रेखाओं से कुछ अधिक लाल या काला दिखाई देता है। ऐसी रेखाओं को लाल या काली रेखाएं कहते हैं। यह भी भाग्य रेखा का एक दोष है।
काली भाग्य रेखा वाले व्यक्ति किसी तरह का संकट आने पर भले ही दूसरे के साथ सहयोग करें अन्यथा स्वार्थी व लालची होते हैं, एक पैसा भी किसी पर नहीं छोड़ सकते। इनकी आदत कठोर होती है, दया या रहम इनमें नहीं होता, परन्तु देखने में ये मिश्री जैसे होते हैं। समय पर काम नहीं करना, मतलब के बिना बात नहीं करना, कह कर बदल जाना आदि आदतें इन लोगों में पायी जाती हैं। अपनी सच्चाई बहुत ही हमदर्दी के साथ दिखाते हैं और दूसरों की खिलाफत झूठ या सच, बेदर्दी के साथ करते हैं। ये उन्हीं का काम करते हैं जो इनके भी गुरु होते हैं। ऐसे व्यक्ति फरेब करने वाले, धोखेबाजी से पैसा कमाने वाले या तस्करी जैसे गैर-कानूनी कार्य करने वाले होते हैं। इन्हें जीवन में कामयाबी बहुत देर से व कम मिलती है क्योंकि ये स्थायी होकर काम नहीं करते, अनेक काम बदलते हैं।
लाल भाग्य रेखा से व्यक्ति चालाक व फरेबी की अपेक्षा निर्दयी व कठोर होता है। ये अय्याश, शराबी, शौकीन व निष्ठुर होते हैं।
भाग्य रेखा को काटने वाली रेखाएं
सभी हाथों में भाग्य रेखा मस्तिष्क व हृदय रेखा से काटी जाती है परन्तु फल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन अन्य विशेषतया मंगल या जीवन रेखा से आने वाली रेखाओं द्वारा भाग्य रेखा कटती हो तो अनिष्ट फल कारक लक्षण है।
एक बात विशेष रूप से देखने की है कि यदि हाथ में रेखाएं अधिक हो तो पतली रेखाओं का प्रभाव नहीं के बराबर होता है। इस दशा में केवल मोटी रेखा द्वारा काटे जाने पर ही उपरोक्त प्रकार के फल कहने चाहिए। हाथ में अधिक रेखाएं होने पर इसके समर्थन में दूसरे लक्षण भी मिला लेने चाहिए। कम रेखाएं होने पर यह रेखा महत्वपूर्ण फल करती है।
अधूरी भाग्य रेखा
हाथ देखते समय एक बात विशेष रूप से विचारणीय है कि जब दो या तीन मुख्य रेखाएं एक ही आयु में पूर्ण होती हों तो उस समय व्यक्ति की मृत्यु योग होता है। इसी प्रकार जब भाग्य रेखा चलते-चलते एकदम रुक जाती हो अर्थात् बीच में पूरी हो जाती हो तो उस समय कुछ परेशानियां ला खड़ी करती है। यही भाग्य रेखा अधूरी भाग्य रेखा कही जाती है। यदि इस आयु में मस्तिष्क या अन्य रेखाओं में भी दोष हो तो घटना का स्वरूप प्रखर होता है परन्तु हाथ जितना ही भारी होता है परेशानी की मात्रा उतनी ही कम हो जाती है।
भाग्य रेखा जिस आयु में पूरी होती है उसमें मस्तिष्क व जीवन रेखा में दोष हो तो जीवन बरबाद हो जाता है। कर्ज, काम छूटना, स्वास्थ्य खराब होना, जीवन साथी को रोग या मृत्यु, हानि, मुकदमे बाजी में हार, किसी मित्र या प्रेमी से झगड़ा आदि फल होते हैं। यह निश्चित ही है कि इस आयु में परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन उन्नति के लिए होता है। परन्तु आरम्भ में कष्ट कारक होता है इस समय व्यक्ति किंकर्त्तव्य विमूढ़ होता है, किसी समस्या का कोई हल उसे नहीं सूझ पड़ता। आलस्य अर्थात् पड़े रहने को मन करना, एकान्त में मन लगना या मन में उचाट आदि इस आयु में अनुभव किए जाते हैं। देखा गया है कि इस आयु के पश्चात् ही व्यक्ति का भाग्योदय आरम्भ होता है।
देखने में आया है कि इस प्रकार की भाग्य रेखा समाप्त होने के पश्चात् ही व्यक्ति का भाग्योदय होकर जीवन में सुख व विशेषता आती है, परन्तु जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा भी निर्दोष होनी चाहिए अन्यथा इनका दोष निकलने पर ही मानसिक शान्ति मिलती है।
देर से आरम्भ होने वाली भाग्य रेखा
ऐसी भाग्य रेखाएं बिना आधार के आरम्भ होती है। साधारणतया भाग्य रेखा जीवन रेखा से अन्तर्ज्ञान रेखा निकलने के पहले ही उदय होती है परन्तु यह भाग्य रेखा 30-35 वर्ष या अधिक आयु में आरम्भ होती है। ऐसी भाग्य रेखा को देर से आरम्भ होने वाली भाग्य रेखा कहते हैं। 23, 24 वर्ष या इसके आस-पास शनि क्षेत्र से निकलने वाली स्वतंत्र भाग्य रेखा इस श्रेणी में नहीं आती यद्यपि यह भी देखने में ऐसी ही लगती है।
हाथ में दूसरी मुख्य भाग्य रेखाएं होने पर यह भाग्य रेखा आरम्भ होने की आयु में व्यक्ति नये कार्यों के द्वारा उन्नति का समारम्भ करता है। मुख्य भाग्य रेखा न होने पर इस भाग्य रेखा के आरम्भ होने की आयु से ही व्यक्ति का भाग्योदय अचानक आरम्भ होता है परन्तु जिस समय यह आरम्भ होती है उस आयु में कुछ समय मानसिक चिन्ता रहती है तत्पष्चात् लगातार सफलता मिलती रहती है।
ऐसे व्यक्ति साधरण से अधिक सफल देखे जाते हैं। यदि उसी स्थान से दो भाग्य रेखाएं उदय हुई हों तो अल्प समय में ही स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो जाती है। जीवन रेखा घुमावदार, मस्तिष्क रेखा निर्दोष व सीधी होने की दशा में चहुंमुखी उन्नति, घर व समाज के प्रति उदारता व सौहार्दपूर्ण व्यवहार का लक्षण है।
कब होगा आपका भाग्योदय ?
भाग्योदय का तात्पर्य स्वतंत्र जीवन यापन से है। जीवन में कुछ समय व्यक्ति अर्द्ध विकसित अवस्था में रहता है परन्तु यहां हमारे विचार का विषय पूर्णतया स्वतंत्र जीवन यापन या जीवन में उत्तम आर्थिक स्थिति से है। इस विषय में निम्न लक्षणों पर ध्यान देना अति आवश्यक है।
भाग्योदय या उन्नति का समय:-
1- जीवन रेखा से भाग्य रेखा उदय होने के समय मोटी से पतली होने की आयु में।2- भाग्य रेखा में बड़े द्वीप की समाप्ति की आयु में।
3- भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखा मिल कर भाग्य रेखा पुष्ट होने के समय भी भाग्योदय होता है परन्तु अनेक बार दूसरी रेखाओं में दोष होने के कारण व्यक्ति के साथ अनेक प्रकार की कठिनाईयां (आर्थिक कठिनाई) लगी रहती हैं, जिनके फलस्वरूप व्यक्ति जीवन में स्थिरता अनुभव नहीं कर पाता। अत: स्थिरता व नियमित जीवन-यापन के लिए रेखाओं में निम्नलिखित दोष होने पर उनकी आयु का समय समाप्त होने के पश्चात् ही जीवन में सुख, शान्ति, सन्तोष व स्थिरता आती है।
(क) जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा के लम्बे जोड़ की आयु के पश्चात् ।
(ख) मस्तिष्क रेखा में आरम्भ के दोषों या शनि के नीचे इसके झुकाव की समाप्ति की आयु के पश्चात्।
(ग) जीवन रेखा के आरम्भ में दोष जैसे द्वीप, मोटापन, कुठार रेखा या इस प्रकार का कोई अन्य दोष होने पर उसकी समाप्ति की आयु के पश्चात्।
उपरोक्त लक्षणों के उपस्थिति की आयु में व्यक्ति कार्य पर तो आ जाता है परन्तु आर्थिक रूप से असन्तुष्ट रहता है। लक्षणों की अधिकता व गम्भीरता के अनुसार ही सफलता या कठिनाइयों की उपस्थिति देखी जाती है। अत: सही ढंग से समन्वय करने के पश्चात् ही उपरोक्त विषय में फलादेश कहना अच्छा रहता है।
निम्न लक्षण ऐसे हैं जिनके आरम्भ होने के पश्चात् व्यक्ति को अधिक लाभ व मानसिक सन्तोष की उपलब्धि होती है।
1- जीवन रेखा के बीच से भाग्य रेखा का उदय:- विशेषतया लम्बी एवं कुछ मोटी भाग्य रेखा इस विषय में अधिक प्रभावशाली देखी गई है। जीवन रेखा से एक साथ दो पतली भाग्य रेखाएं निकल कर निर्बाध रूप से शनि की ओर जाती हों तो मुख्य भाग्य रेखा से भी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस दशा में मुख्य भाग्य रेखा का न होना हाथ में वरदान सिद्ध होता है और हाथ के मुल्य को बढ़ाता है। इस प्रकार की भाग्य रेखाओं के उदय होने की आयु से व्यक्ति जीवन में चहुंमुखी प्रगति करता है।
2- मस्तिष्क रेखा से भाग्य रेखा का उदय:- जिस आयु से भाग्य रेखा उदय होती है व्यक्ति के जीवन में नये कार्य द्वारा स्थिरता आरम्भ होती है। उसी आयु से अन्य लक्षण जैसे भाग्य रेखा पतली या जीवन रेखा से दूर, जीवन रेखा से भाग्य रेखा का उदय आदि हों तो उस आयु से व्यक्ति विशेष प्रगति करता है। यह प्रगति स्थायी होती है।
3- मस्तिष्क रेखा से जिस आयु में शाखा उदय होती है व्यक्ति के जीवन में सफलता का निर्देश करती है। इस आयु में या तो पहले आरम्भ किया हुआ कार्य सफलता पूर्वक व सुचारु रूप से चल निकलता है या किसी अन्य कार्य के आरम्भ होने से व्यक्ति के जीवन में प्रगति आरम्भ होती है।
4- कई बार भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकलकर शनि पर पहुंचती है। सिद्धान्त के अनुसार ऐसे व्यक्ति जन्म से ही भाग्यशाली होने चाहिए परन्तु इस भाग्य रेखा का प्रभाव उसी आयु से आरम्भ होता है जिसमें यह शनि क्षेत्र में प्रवेश करती है। अक्सर यह आयु 22-26 वर्ष होती है। यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि भाग्य रेखा का अन्तर जीवन रेखा से कम नहीं होना चाहिए अन्यथा भाग्य का विकास उसी आयु से होता है जब यह जीवन रेखा से दूर होनी आरम्भ होती है।
5- बुध उन्नत व बुध की अंगुली तिरछी होने पर 32-33 वर्ष की आयु से कार्य में श्रेष्ठता आती है।
6- शनि क्षेत्र में किसी रेखा द्वारा कटाव आदि विघ्न हो तो 35 वर्ष की आयु से कार्य में श्रेष्ठता आती है।
7- बर-बार राहू रेखाएं काटती हों तो 42 वर्ष के पश्चात् कार्य में श्रेष्ठता आती है।
8- एक भाग्य रेखा मोटी होकर हृदय रेखा पर रुकी हो तो 50 वर्ष की आयु के पश्चात् कार्य में श्रेष्ठता आती है।
9- मस्तिष्क रेखा में मोटी भाग्य रेखा रुकती हो तो 35 वर्ष की आयु के पश्चात् ही भाग्योदय होता है।
निम्न लक्षणों से व्यक्ति आरम्भ से ही भाग्यशाली, आर्थिक रूप से समृद्ध या स्वतंत्र देखा जाता है। अधिक लक्षणों की उपस्थिति में सम्पन्नता भी अधिक होती है।
1- पतला व लम्बा अंगूठा।
2- सभी अंगुलियां सीधी।
3- पतली व छोटी अंगुलियां।
4- सूर्य व शनि की अंगुलियां सीधी व इनके आधार समान।
5- तीन अंगुलियों के आधार नीचे से समान।
6- शनि क्षेत्र से उदित भाग्य रेखा।
7- भाग्य रेखा का निकास जीवन रेखा के पास से स्वतंत्र।
8- भाग्य रेखा का अन्त हृदय रेखा या मस्तिष्क रेखा पर बिना रुके सीधा शनि पर ।
9- भाग्य रेखा अन्त में द्विभाजित। भाग्य रेखा आरम्भ में निकास के समय द्विभाजित होना द्वीप माना जाता है, धन की दृष्टि से भी यह द्वीप का ही फल करता है। अत: आरम्भ में भाग्य रेखा का द्विभाजन दोषपूर्ण लक्षण है।
10- एक से अधिक भाग्य रेखाएं।
11- मस्तिष्क रेखा का निकास जीवन रेखा के पास से स्वतंत्र, किन्तु अधिक दूर नहीं।
12- जीवन रेखा से लम्बी व पतली भाग्य रेखाओं का निकास।
13- जीवन रेखा से दो वृहस्पति रेखाए।
14- मस्तिष्क रेखा में दो या उससे अधिक शाखाएं।
15- मस्तिष्क रेखा निर्दोष व आदि व अन्त में द्विभाजित या जिहृाकार।
16- मस्तिष्क रेखा से भाग्य रेखाओं का उदय।
17- शनि की अंगुली सीधी।
18- शुक्र व चन्द्रमा मध्यम अर्थात् कम उन्नत।
19- मस्तिष्क रेखा बुध की अंगुली तक अर्थात् कम लम्बी।
व्यक्ति का कार्यरम्भ कब होता है:-
1- मंगल श्रेष्ठ व उस पर कम रेखाएं होने की दशा में 18 वर्ष की आयु में।2- शनि उत्तम व शनि की अंगुली सरल या जीवन रेखा से वृहस्पति की ओर रेखा जाने पर 19 वर्ष की आयु में।
3- बुध पर कम रेखाएं व बुध उन्नत होने पर 21-22 वर्ष में व्यक्ति निश्चित रूप से कार्य आरम्भ कर देता है।
4- हल्का उभरा चन्द्रमा 24 वर्ष की आयु में कार्य योग करता है।
5- गहरी भाग्य रेखा होने पर व्यक्ति 26 या 27 वर्ष की आयु में कार्य पर आता है
6- भाग्य रेखा आरम्भ होने की आयु से।
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