द्विभाजित हृदय रेखा
हृदय रेखा प्रारम्भ में द्विभाजित
हृदय रेखा प्रारम्भ में द्विभाजित होने पर द्वीप का कार्य करती है। इसका आकार त्रिकोण जैसा होता है परन्तु यह द्वीप ही होता है। जिस आयु तक यह द्विभाजन होता है व्यक्ति को गृहस्थ जीवन व अन्य सम्बंधों में परेशानी रहती है। शरीर व धन कष्ट भी रहता है। अन्य दोष पूर्ण लक्षण होने पर विछोह या तलाक हो जाता है। इस प्रकार के द्विभाजन की दोनों शाखाएं समान मोटाई की होती हैं। शाखाएं समान मोटाई की न होने पर भी फल तो वही होता है परन्तु अधिक प्रभाव नहीं होता।
हृदय रेखा अन्त में द्विभाजित
अन्त में द्विभाजन दो प्रकार का होता है। एक तो जिस स्थान पर हृदय रेखा समाप्त होती है, वही पतली होकर द्विजिव्हाकार हो जाती है। ये जिव्हाएं पतली तथा छोटी होती हैं। यह उत्तम लक्षण है। ऐसा व्यक्ति साधारणतया जीवन भर उन्नती की ओर अग्रसर होता जाता है और निर्मल हृदय व सच्चरित्र होता है। उतार-चढ़ाव तो जीवन में आते हैं परन्तु प्रभु-कृपा से सभी बाधाएं पार हो जाती हैं। यह अन्य रेखाओं की तरह हृदय रेखा का गुण है। ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठ मानव व मानसिक रूप से प्रफुल्ल होते हैं।
दूसरे प्रकार के द्विभाजन में शाखाएं लम्बी और मोटी होती हैं। यह द्विभाजन न होकर हृदय रेखा की शाखाएं ही होती हैं। कई बार एक शाखा शनि पर व दूसरी वृहस्पति पर जाती है या मस्तिष्क रेखा पर मिलती है। मस्तिष्क रेखा पर मिलने की दशा में यह दोषपूर्ण होती है और वृहस्पति पर जाने की दशा में व्यक्ति में अविश्वास की भावना पैदा करती है। ऐसे व्यक्ति हर कार्य में अपना समर्थन चाहते हैं।
हृदय रेखा या उसकी शाखा मस्तिष्क रेखा पर
यह लक्षण हाथ में तीन प्रकार से पाया जाता है:-
1- हृदय रेखा की कोई मोटी या पतली शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है। इनमें मोटी शाखा अधिक दोषपूर्ण फल करती है।
2- हृदय रेखा ही टूट कर मस्तिष्क रेखा पर मिलती है।
3- हृदय रेखा की कोई शाखा निकल कर मस्तिष्क रेखा की ओर तो जाती है परन्तु उस पर मिलती नहीं-यह अपेक्षाकृत कम हानिकर होती है।
इन रेखाओं का प्रभाव उसी आयु में होता है जब ये हृदय रेखा से निकलती हैं परन्तु मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे द्वीप होने पर इसका फल जिस आयु में यह हृदय रेखा से निकलती है और जिस आयु में मस्तिष्क रेखा पर मिलती है, होता है।
हृदय रेखा की शाखा का मस्तिष्क रेखा पर मिलना अत्यन्त महत्वपूर्ण लक्षण है। किसी भी समस्या पर विचार करते समय यह लक्षण देखना अनिवार्य है। जिस आयु में हृदय रेखा की काई शाखा या हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है, उस समय महान् कष्ट, विपत्ति, मानसिक उद्वेग, धन हानि, रोग, विछोह, मुकदमें, मृत्यु या इस प्रकार की घटनाएं घटित होती हैं। घटनाओं का ज्ञान हाथ में उपस्थित अन्य लक्षणों से करना चाहिए।
यह समय शनि की साढ़ेसाती का होता है। हृदय रेखा की मोटी शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिले तो साढ़ेसाती ओर पतली मिलने पर शनि की ढैय्या जैसा फल होता है। शाखा जितनी ही मोटी होती है अधिक कष्ट कारक होती है। यह शाखा मस्तिष्क रेखा पर बिना मिले समाप्त हो तो उस आयु में मानसिक कष्ट होता है, विशेष हानि नहीं।
हृदय रेखा से 3 या 4 शाखाएं मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो तो व्यक्ति को जीवन भर परेशानियों का सामना करना पड़ता है, पूरे जीवन चैन की सांस नहीं मिलती। एक के बाद दूसरी समस्या चलती रहती है। यह पूर्व जन्म कृत किसी पाप का लक्षण है। एक से अधिक भाग्य रेखाएं, पतला अंगूठा या गोलकार जीवन रेखा होने पर दोषपूर्ण फलों में कमी होती है।
हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलने पर व्यक्ति का भाव पक्ष अधिक क्रियाशील होता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों की राय लेकर काम करते हैं और भावुक होते हैं। दूसरे के दु:ख देख कर पसीजना, थोड़ी घटना अधिक महसूस करना व रोना इनकी आदत होती है। ऐसे व्यक्ति किसी बात को गुप्त नहीं रख सकते। थोड़ा सा परिचय या प्रेम होने पर अपने जीवन, घर या बाहर की सभी घटनाओं को दूसरे के सामने कह देते हैं।
मस्तिष्क रेखा की शाखा हृदय रेखा पर मिलने पर उसी आयु में जीवन रेखा में दोष हो तो रोग, भाग्य रेखा में दोष होने पर काम धन्धे में परेशानी या जीवन साथी से विछोह अथवा जीवन साथी को रोग का सामना करना पड़ता है। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष व जीवन रेखा से कोई उल्टी रेखा निकलने पर या जीवन रेखा टूटने पर भारी बीमारी, मृत्यु, चोट या दुर्घटना का समाना करना पड़ता है। कुछ भी हो इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जिस आयु में हृदय रेखा से शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती है व्यक्ति परेशान रहता है।
हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा पर मिलने पर भाग्य रेखा, विवाह रेखा या प्रभावित रेखा में थोड़ा भी दोष हो तो पति-पत्नि या प्रेमी-प्रेमिका का विछोह हो जाता है जैसे अलग रहना, मृत्यु या कोई दूसरा कारण भी हो सकता है।
हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा के निकास के स्थान पर मिलती हो तो ऐसे व्यक्ति जीवन में भारी गलतियां करते हैं। इस आयु में दिवालियापन, किसी सन्तान आदि की मृत्यु, रोजगार डूब जाना आदि घटनाएं होती हैं। 50 या 56 वर्ष की आयु में तो यह योग जीवन में कोई ऐसी घटना छोड़ जाता है जिसे याद करके व्यक्ति जीवन भर रोता रहता है। निश्चय ही यह लक्षण उन व्यक्तियों के हाथों में पाए जाते हैं जिन्हें पूर्व कर्मानुसार कोई विशेष दु:ख भोगना होता है। इस आयु में सम्बंधियों से झगड़ा, सन्तान मृत्यु, दुर्घटना आदि घटनाएं होती है। मस्तिष्क रेखा शाखान्वित होने पर व्यक्ति कठिनाइयों को पार जाते हैं। मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा पर जाने की दशा में इस दुर्घटना के पश्चात् व्यक्ति का भी अन्त समीप समझना चाहिए।
यह लक्षण विवाह सम्बंध में विशेषतया दोषपूर्ण फल कारक है। भाग्य रेखा में द्वीप या प्रभावित रेखा में दोष होने पर यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा पर मिले तो निश्चित ही जीवन साथी की मृत्यु या तलाक हो जाता है। हृदय या मस्तिष्क रेखा समानान्तर होने पर पति-पत्नी दोनों ही जिद्दी होते हैं और छोड़ा छाड़ी की नौबत आ जाती है। यह जिद्दीपन जीवन का सर्वनाश कर डालता है। अंगूठा न झुकने वाला होने पर यह गुण और भी बढ़ जाता है।
हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा पर मिलने पर यदि मंगल रेखा में द्वीप, जीवन रेखा टूटी, भाग्य रेखा में द्वीप, प्रभावित रेखा में द्वीप, विवाह रेखा का झुकाव हृदय रेखा की ओर, शुक्र पर तिल, वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली से अधिक छोटी आदि अन्य लक्षण भी हों तो जीवन भर जीवन साथी का सुख नहीं होता। ऐसे व्यक्ति कई-कई तलाक लेते देखे जाते हैं। मस्तिष्क रेखा का अन्त मंगल पर, हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो, विवाह रेखा में द्वीप, जीवन रेखा सीधी या जीवन और मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा हो तो पति-पत्नी एक दूसरे पर शंका करते हैं, लांछन लगाते हैं, लड़ते-झगड़ते हैं और अन्त में तलाक हो जाता है।
सूर्य के नीचे हृदय रेखा टूट कर मस्तिष्क रेखा पर मिली हो तो निश्चय ही तलाक हो जाता है या तलाक जैसी दशा को सम्बंध पहुंच जाते हैं। इस दशा में विवाह रेखा में तारा या विवाह रेखा मुड़ कर हृदय रेखा पर मिलना आदि लक्षण भी हाथ में पाए जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों के वंश में पहले भी कोई न कोई एक से अधिक विवाह करता है।
हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा पर मिलने की दशा में अंगुलियों में छिद्र हों तो दोनों भुजाओं पर तिल होता है। ऐसे व्यक्ति स्वतंत्र मस्तिष्क होते हैं। हाथ की दशा अच्छी होने पर सम्पत्ति का निर्माण करते हैं। यह चमसाकार हाथ का एक मुख्य लक्षण है। प्रत्येक चमसाकार हाथ में हृदय रेखा की कोई शाखा मस्तिष्क रेखा में मिलना व अंगुलियों में छिद्र होना आवश्यक होता है। ऐसे व्यक्ति संघर्षमय जीवन व्यतीत करने के पश्चात् ही उन्नति करते हैं तथा व्यक्तिगत चरित्र एवं प्रयास के द्वारा समाज में अच्छी स्थिति बना लेते हैं। ये ऐसा कार्य नहीं करते जिसका समाज में विरोध हो या इनके सम्मान को ठेस लगे। इनके माता-पिता में से एक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तथा एक बहन को भी विवाह के पश्चात् कुछ न कुछ मानसिक परेशानी अवश्य रहती हैं। कुटुम्ब में किसी न किसी व्यक्ति को सांस या हृदय रोग पाया जाता है। इनका स्वयं का भी हृदय कमजोर होता है। ऐसे व्यक्तियों को कोई गन्दी आदत नहीं डालनी चाहिए अन्यथा छोड़ना दुभर हो जाता है।
भाग्य रेखा हृदय रेखा पर मिलने की दशा में अन्य लक्षणों के समन्वय से जो फलादेश होते हैं वे यथा स्थान बता दिए गये हैं। यहां इतना ही कहा जा सकता है कि किसी भी आयु में दोषपूर्ण फल का जितना अनुमान होता है, इस लक्षण की उपस्थिती उसमें अनेक गुणा वृद्धि कर देती हैं और जिन फलों या कष्टों के घटित होने की केवल सम्भावना होती है यह लक्षण उसे अवश्यम्भावी कर देता है।
काली हृदय रेखा
हृदय रेखा का रंग काला होना भी इसका दोष है। रंग का निर्णय हाथ को फैलाकर रेखा को चौड़ा कर के किया जाता है। ऐसे व्यक्ति मन, विचार व कर्तव्य की दृष्टि से अच्छे नहीं होते। शुक्र उन्नत होने पर ये कामुक, चन्द्रमा उन्नत होने पर वहमी, वृहस्पति उन्नत होने पर अभिमानी, बुध की अंगुली तिरछी होने पर चोर, झूठे व षड़यन्त्रकारी होते हैं। हाथ भारी होने पर दोषों में कमी और पतला व दोषपूर्ण होने पर वृद्धि हो जाती है। काली हृदय रेखा विवाह में रुकावट करती हैं परन्तु यह स्वतन्त्र लक्षण नहीं है।
ऐसे व्यक्ति जल्दबाज होते हैं, मनोनुकूल कार्य न होने पर इन्हें क्रोध आ जाता है। इनमें गाली देने की आदत पाई जाती है, अंगूठा कम खुलने पर यह आदत वृद्धावस्था तक रहती है फलस्वरूप इनका अन्तिम जीवन दु:खमय बीतता है। इस प्रकार की स्त्रियां चिड़चिड़ी व क्रोधी होती हैं, सन्तान को प्यार करने के बजाय मारती पीटती है और फिर पश्चाताप करती हैं। इनके जीवन में बिना मतलब के लड़ाइ-झगड़े खड़े रहते हैं। स्तर से नीचे के कार्य करने के कारण इन्हें कुटुम्ब, समाज तथा जाति विरोध का सामना करना पड़ता है।
काली हृदय रेखा वाले व्यक्ति काली, भैरव, हनुमान या शिव आदि रौद्र देवताओं की उपासना करते हैं और शीघ्र सफल होते हैं, उपासना के लक्षण होने पर ही उपरोक्त फल कहना चाहिए। इस दशा में मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण व अंगूठा लचीला होता है।
लाल हृदय रेखा
रेखाओं का रंग साधारणतया देखने पर पता नहीं लगता। हाथ को फैला कर या रेखाओं को चौड़ा करके देखने से रंगों का ज्ञान स्पष्ट रूप से हो जाता है।
लाल हृदय रेखा वाले व्यक्ति मतलबी, अवसरवादी और कठोर परन्तु बोल चाल में अच्छे होते हैं, मतलब सिद्ध होने के पश्चात् कोई वास्ता नहीं रखते, निन्दा या स्तुति उसी स्थान पर फौरन कर देते हैं और थोड़ी सी आपत्ति में घबरा जाते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी स्थिति का मुल्यांकन बहुत अधिक करते हैं। इनके सम्बंध बहुत कम चलते हैं। इनके प्रेमी या पत्नी भी क्रोधी होते हैं। ऐसे परीक्षार्थी कठिन प्रश्न पत्र हल करने का प्रयत्न न करके, छोड़ कर चले आते हैं। नौकरी में होने पर कार्य स्थान पर थोड़ी भी घटना होने पर छुट्टी लेकर बैठ जाते हैं और रौद्र देवताओं जैसे हनुमान, शिव आदि की उपासना करते हैं।
गुलाबी हृदय रेखा
गुलाबी हृदय रेखा होने पर व्यक्ति सीधे, सात्विक, दयालु और मानव गुण सम्पन्न होते हैं। ये सात्विक देवी देवताओं जैसे विष्णु, राम, कृष्ण, वैष्णवी आदि देवताओं की उपासना करते हैं। ऐसे व्यक्ति ßजीओ और जीने दोß सिद्धान्त के प्रतिपालक होते हैं। धार्मिक होने के नाते एक उत्तम सामाजिक मानव के जो भी गुण होते हैं, इनमें पाये जाते हैं।
या तो ऐसे व्यक्ति समाज से उदासीन रहते हैं या जीवन भर समाज सेवा करते हैं। ये अपने चरित्र तथा विचारों में परिवर्तन न करके धर्म सम्मत जीवन बिताते हैं। कबीर की कहावत ßदास कबीर जतन ते ओढ़ी, ज्यूं की त्यूं धर दीनी चदरियाß इन पर ठीक चरितार्थ होती है।
रोमांचित हृदय रेखा
रोमांच ऊपर की ओर
हृदय रेखा से छोटे-छोटे रोमांच (छोटी व महीन रेखाएं) निकल कर सूर्य या वृहस्पति अर्थात् ऊपर की ओर जाते हों तो व्यक्ति भाग्यशाली, महत्वकांक्षी एवं गुण-सम्पन्न होता है। हाथ जितना ही उत्तम कोटि का होता है इनका प्रभाव उतना ही अधिक पाया जाता है। ऐसे व्यक्तियों की सब इच्छाएं पूर्ण होती हैं। ये संतान या शिष्यों के कारण विशेष ख्याति प्राप्त करते हैं और अन्तिम समय में जीवन सुख शान्ति से बीतता है।
रोमांच नीचे की ओर
हृदय रेखा से छोटी रेखाएं निकल कर मस्तिष्क रेखा की ओर जाती हों तो ऐसी हृदय रेखा रोमांचित हृदय रेखा कहलाती हैं। ऐसी रेखाओं की लम्बाई एक सूत (1/8 इंच) से अधिक नहीं होनी चाहिए। कई बार बाहर से आने वाली रेखाएं भी रोमांच जैसी लगती हैं। इस प्रकार की रेखाएं या तो मिलने के स्थान पर पतली होती हैं या इनकी मोटाई एक जैसी होती है, जबकि रोमांच निकास के स्थान पर मोटे और अन्त में पतले होते हैं।
ऐसे व्यक्ति भावुक व प्रेमी होते हैं। स्त्रियों के हाथों में यह लक्षण अतिशय भावुकता का चिन्ह है। जीवन रेखा से मस्तिष्क रेखा अलग, व अंगुलियां लम्बी हों तो ऐसा लक्षण स्त्रियों के लिए घातक होता है। ऐसे व्यक्ति से जीवन साथी या प्रेमी का विछोह सहन नहीं होता। प्रेम के मामले में ये बहुत कच्चे होते हैं, जीवन साथी से बिछड़ने पर वैराग्य ले लेते हैं और स्त्रियां रो रो कर जीवन का अन्त कर लेती हैं। ऐसी स्त्रियां थोड़ी सी बात पर अधिक हंसती है और इसी प्रकार छोटी सी बात पर रंज भी होता है।
ऐसे व्यक्तियों में तन्मयता होती है। यदि ईश्वर की ओर तन्मय हो तो सानिध्य प्राप्त हो जाता है अर्थात् उच्च कोटि के सन्त हो जाते हैं और विरह साधना के द्वारा ही सफल होते हैं।
टेढ़ी या झुकी हृदय रेखा
हृदय रेखा में झुकाव व टेढ़ापन व्यक्ति के पैरों में थकान, नींद अधिक आना, कमर दर्द व बड़ी आयु में कमर में झुकाव होने का लक्षण है। ऐसी स्त्रियों को प्रजनन समय में दोष या अधिक सन्तान होने के कारण कमर झुक जाती है।
हृदय रेखा सूर्य की अंगुली के नीचे गोलाकार होकर झुकी हो तो व्यक्ति अनेक बार विदेश यात्रा करते हैं। इस दोष के साथ मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा के अन्य लक्षण भी फल कहने से पहले देख लेने चाहिए। यह झुकाव न होकर गोलाई होती है जिसकी अधिक गहराई सूर्य के नीचे देखने में आती है।
मिटी हुई सी हृदय रेखा
इस प्रकार की हृदय रेखा अधिक गहरी या मोटी न होकर मिटी हुई सी होती है। ऐसे व्यक्तियों को हृदय रोग होता है। ये साधारण से अधिक रोगी अर्थात् अनिद्रा, श्वास व मानसिक रोगों से भी ग्रस्त होते हैं। निर्दोष जीवन व मस्तिष्क रेखा इन दोषों से रक्षा करती है।
हृदय रेखा में दाग, धब्बे आदि
हृदय रेखा में दाग, गड्ढ़े, काले धब्बे होने पर उस आयु में हृदय को ठेस पहुंचती है। तेज बुखार, छाती में चोट, सर्दी का असर जल्द होना आदि दोष शरीर में रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों को फेफड़े के रोग व फुन्सियां भी देखी जाती हैं। दाग धब्बों का निरीक्षण रेखा को चौड़ा कर देखना चाहिए।
हृदय रेखा में त्रिकोण आदि
त्रिकोण जितना ही छोटा व स्वतंत्र होता है अधिक फल देने वाला होता है। बड़ी रेखाओं से मिल कर बना हुआ त्रिकोण इतना उत्तम फल नहीं करता। हृदय रेखा में जितने त्रिकोण होते हैं व्यक्ति उतने ही मकान या सम्पत्तियों का निर्माण करता है। हाथ की उत्तमता व भाग्य रेखाओं के फल पर त्रिकोण की उत्तमता का निर्णय किया जाता है। अत: हाथ की सामर्थ्य के अनुसार ही इसका फल बताना चाहिए।
हृदय रेखा में नीचे की ओर त्रिकोण उस आयु में व्यक्ति को किसी मानसिक ठेस, बीमारी या हानि से रक्षा करता है।
हृदय रेखा में चतुष्कोण होने पर उस आयु में व्यक्ति के स्वास्थ्य व सम्मान को ठेस लगती है, परन्तु विशेष हानि न होकर केवल दु:ख ही होता है।
शनि के नीचे हृदय रेखा में त्रिकोण 54 या 56 वर्ष की आयु में सम्पत्ति निर्माण का लक्षण है। इस समय बनाई हुई सम्पत्ति सुख सुविधा से सम्पन्न होती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे हाथों में जीवन रेखा अधूरी या टूटी नहीं होनी चाहिए अन्यथा फल में कमी या देरी होती है।
हृदय रेखा में सूर्य के नीचे त्रिकोण, मकान बनाने वालों के हाथों में होते हैं। हाथ में रेखाएं कम होने पर यह त्रिकोण यदि छोटा भी हो तो मकान का आकार बहुत बड़ा होता है। अनेक बार सूर्य के नीचे लगातार कई कई त्रिकोण देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति या तो कई सम्पत्ति बनाते हैं या अनेक बार करके एक ही सम्पत्ति का निर्माण करते हैं। जीवन रेखा में शनि के नीचे भाग्य रेखा निकलने पर या शाखान्वित मस्तिष्क रेखा होने पर ये पास की जमीन को पूर्व निर्मित सम्पत्ति में मिला कर उसको बड़ा कर लेते हैं। कुछ भी हो सम्पत्ति का स्वरूप साधारण से बड़ा एवं सुन्दर होता है। जीवन रेखा, भाग्य रेखा व मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर व्यक्ति को सम्पत्ति बनाने में अड़चनों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति एक बार बना कर दूसरी बार सम्पत्ति बनाने के पक्ष में नहीं होते, परन्तु फिर निर्माण करते हैं।
हृदय रेखा में नीचे की और एक के बाद एक त्रिकोण हो तो व्यक्ति के जीवन में धीरे-धीरे करके मधुरता प्राप्त होती है, संकटो से रक्षा व जीवन में उत्तरोत्तर उन्नति होती है। हृदय रेखा के ऊपर की ओर लगातार त्रिकोण हो तो जीवन में विशेष सुख प्राप्त होता है। ऊपर की ओर त्रिकोण होने पर उसी आयु में नीचे की ओर भी त्रिकोण हो तो जीवन में विशेष सुख का कारण बनता है जैसे घर में किसी भाग्यशाली सन्तान का जन्म लेना या धन लाभ होना आदि। ऐसे व्यक्तियों के एक से अधिक आय के साधन होते हैं।
हृदय रेखा में तिल
हृदय रेखा में शनि के नीचे तिल हो तो हृदय कमजोर, आग का भय व वृद्धावस्था में लकवे का डर रहता है।
सूर्य रेखा के नीचे हृदय रेखा में तिल होने पर आंख चले जाने का भय रहता है। ऐसे व्यक्ति वृद्धावस्था में अन्धे हो जाते हैं। सूर्य रेखा के नीचे हृदय रेखा में तिल बदनामी का भी लक्षण है।
हृदय रेखा में बुध के नीचे तिल, आंखों में दोष, बदनामी, जहर से भय व चोरी आदि घटनाओं की चेतावनी देता है। यह तिल अच्छा लक्षण नहीं माना जाता। ऐसे व्यक्ति अधिक बहस करते हैं और झूठ को सत्य सिद्ध करने में कुशल होते हैं।
साभार
हृदय रेखा से जानिये प्रेम सम्बन्ध, स्वभाव व स्वास्थ्य
कब होगा आपका भाग्योदय ??
कबीर के दोहे
बस, ऐसे ही पूछ लिया !!!