भाग्य रेखा और प्रेम सम्बन्ध #2

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भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर


पहले भी बताया जा चुका है कि भाग्य रेखा जितनी ही जीवन रेखा से दूर होती है उत्तम मानी जाती है, परन्तु साथ ही यह भी देखने की बात है कि यह किसी रेखा पर रुकी नहीं होनी चाहिए।

मोटी भाग्य रेखा होकर सीधी शनि पर जाती हो तो अड़चनें और संघर्ष अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति कमाते तो हैं परन्तु बचत कम कर पाते हैं। ये लोभी भी अधिक होते हैं। पतली एवं दूर होने पर भाग्य रेखा अत्यन्त उत्तम फलदायी होती है। इनका व्यय आय से सदैव कम रहता है।

भाग्य रेखा जीवन रेखा से निकल कर सूर्य के नीचे मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो जीवन रेखा से दूर तो होती है परन्तु अच्छा लक्षण नहीं मानी जाती है। ऐसे व्यक्ति देर से स्थायित्व प्राप्त करते हैं। ये लापरवाह, दूसरों पर भरोसा करने वाले, अस्थिर मस्तिष्क आदि होते हैं। यदि ऐसी रुकी हुई भाग्य रेखा पतली हो तो इतनी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता, काम चलता रहता है परन्तु विशेष अभ्युदय 44वर्ष के पश्चात् ही होता है।

जीवन रेखा से भाग्य रेखा दूर होने पर आरम्भ में थोड़ी कठिनाई तो होती है परन्तु इनकी आर्थिक स्थिति बढ़ती चली जाती है। ऐसे व्यक्ति स्वयं जीवन बनाते हैं। आरम्भ में कुछ संघर्ष करके अपने आप ही उन्नति की ओर अग्रसर होकर प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। ये बुद्धिमान, जिम्मेदार तथा आलोचक होते हैं परन्तु इनकी आलोचना निरर्थक नहीं होती, जो भी कहते हैं नाप तोल कर सही बात कहते हैं।



भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास


भाग्य रेखा का निकास के स्थान से जीवन रेखा के पास आने पर अन्तर कम हो जाता हो तो इस प्रकार की भाग्य रेखा को जीवन रेखा के पास आई हुई मानते हैं। कभी-कभी तो इसकी दूरी आधा या चौथाई इंच तक ही रहती है। एक से अधिक भाग्य रेखाएं इस दोष के फल का लगभग निराकरण कर देती हैं।

यह भाग्य रेखा जीवन में कई प्रकार के झंझट या उतार-चढ़ाव का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति लिहाज अधिक करते हैं। इन्हें अपने कुटुम्ब से लगाव अधिक होता है। 

इस प्रकार की भाग्य रेखा मोटी होकर मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो 35 या 40वर्ष तक व्यक्ति सम्मिलित कुटुम्ब में रहता है और अपने बच्चों की ओर नहीं देख पाता। इन्हें बहुत कष्‍ट उठाना पड़ता है और अलग होने पर नये सिरे से शुरुआत करनी पड़ती है। इनकी पत्नी को अत्यन्त कष्‍ट का सामना करना पड़ता है, कभी-कभी तो कुटुम्ब के प्रभाव में आकर तलाक तक नौबत आ जाती है। 35 या 40वर्ष के पश्चात् ही इन्हें धन, सन्तान व जीवन साथी का सुख रहता है। ऐसे व्यक्ति स्वभाव के गर्म होते हैं, फलस्वरूप सब कुछ त्याग करने व अपने सारे स्वार्थ कुटुम्ब के हितों पर बलिदान करने पर भी श्रेय नहीं मिलता। इनका स्वभाव इनके प्रत्येक कार्य में रुकावट का कारण बनता है।

मस्तिष्क रेखा के विषय में यह वर्णन किया जा चुका है कि मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होने पर व्यक्ति स्वतंत्र मस्तिष्क होते हैं परन्तु भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास होने पर ऐसे व्यक्ति को दब कर या कुटुम्ब के साथ चलने के लिए मजबूर होना पड़ता है और चाहते या न चाहते हुए भी कुटुम्ब की सहायता करनी पड़ती है। जिस आयु तक भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास रहती है किसी न किसी रूप में व्यक्ति पर कुटुम्ब के कारण आर्थिक या मानसिक दबाव रहता ही है।

भाग्य रेखा जितनी ही जीवन रेखा के पास होती है उतना ही जीवन संघर्षशील होता है। शुक्र ग्रह उन्‍नत होने पर इस दशा में 35 या 43वर्ष के पश्चात् ही जीवन में आराम आता है व उन्नति के मार्ग खुलते हैं। हाथ विशेष भारी, बड़ा व जीवन रेखा घुमावदार होने पर पहले भी जीवन बन जाता है परन्तु बचत नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्ति व्यापार करते है परन्तु पहले नौकरी करनी पड़ती है। भाग्य रेखा जीवन रेखा के समानान्तर होकर मस्तिष्क रेखा से आगे जाती हो तो यह व्यापार करते हैं परन्तु पहले नौकरी करनी पड़ती है। भाग्य रेखा जीवन रेखा के सामानान्तर होकर मस्तिष्क रेखा से आगे जाती हो तो यह व्यापार होने का लक्षण है परन्तु संघर्ष या उत्तरदायित्व अधिक होने या महसूस करने के कारण व्यक्ति को मानसिक चिन्ता रहती है। नौकरी में होने पर अवसर मिलते ही ये व्यापार में चले जाते हैं, हाथ भारी होने पर तो निश्चित ही व्यापार करते हैं। जिस आयु में भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर होती है जीवन में शान्ति, धन तथा अन्य सुखों की प्राप्ति आरम्भ हो जाती हैं।


पतली भाग्य रेखा


अन्य रेखाओं कें अनुपात में भाग्य रेखा पतली होने पर उत्तम लक्षण है। अधिकतर देखने में आया है कि भाग्य रेखा आरम्भ में मोटी होकर आगे जाकर ही पतली होती है। भाग्य रेखा जैसे-जैसे पतली होती जाती है व्यक्ति को सुख, धन एवं मानसिक शान्ति बढ़ते चले जाते हैं। मोटी भाग्य रेखा लालच की भावना बढ़ाती है, परन्तु पतली भाग्य रेखा उदारता जैसे गुण पैदा करती है। एक बात ध्यान रखने की है कि मोटी भाग्य रेखा पतली होने पर अधिक प्रभावशाली होती है, आरम्भ से ही पतली भाग्य रेखा इतनी उत्तम नहीं मानी जाती।

भाग्य रेखा बहुत पतली होने पर बुध की अंगुली टेढ़ी व हृदय रेखा जंजीर की तरह से हो तो व्यक्ति धोखेबाज होता है। यहां विशेष रूप से यह ध्यान देने की बात है कि भाग्य रेखा निकास से अन्त तक एकदम पतली व इतनी पतली होनी चाहिए कि वह मिटी सी दिखाई दे। बुध पर जाली या क्रास का चिन्ह होने पर भी व्यक्ति धोखेबाज व चालाक होता है। भाग्य रेखा मोटी से धीरे-धीरे पतली होने की दशा में ऐसा नहीं कहा जा सकता, चाहे दूसरे लक्षण मिलते हैं। ऐसे व्यक्तियों को यही कहना पड़ेगा कि इनका भाग्योदय भाग्य रेखा पतली होने के समय से आरम्भ होगा।

भाग्य रेखा जिस आयु में मोटी से पतली होती है व्यक्ति को अपना कार्य या स्थान बदलना पड़ता है। पतली भाग्य रेखा वाले व्यक्ति सतर्क एवं प्रयत्नशील होते हैं, जैसे ही अवसर देखते हैं परिवर्तन की ओर बढ़ जाते हैं व उन्नति करते चले जाते हैं।

जीवन रेखा में दोष अर्थात् जीवन रेखा पतली या टूटी होने पर व्यक्ति का भार बढ़ जाता है। जिस आयु से भाग्य रेखा में पतलापन आरम्भ होता है उसी आयु से भार भी बढ़ना आरम्भ होता है, जिसका कारण व्यक्ति को मानसिक शान्ति की प्राति होती है, जैसे ही झंझट हटकर मानसिक शान्ति प्राप्त होती है शरीर का भार बढ़ने लगता है। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों पर यह नियम अधिक लागु होता है, क्योंकि स्त्रियों का भार गर्भाशय दोष होने के कारण भी बढ़ता है।

एक हाथ में भाग्य रेखा मोटी व दूसरे में पतली होने पर किसी से अनैतिक सम्बंध रहने का भी लक्षण है। ऐसे व्यक्तियों का लम्बे समय तक प्रेम सम्बन्ध देखा गया है। अपने व्यक्तित्व, स्वभाव व आदत के कारण दूसरे इनकी ओर आकर्षित होते हैं फलस्वरूप सम्बन्ध बन जाते हैं, जो कि प्रेम सम्बन्धों में परिवर्तित हो जाते हैं।

भाग्य रेखा 35 अथवा 50वर्ष की आयु के पश्चात् पतली होने पर उसी अवस्था से व्यक्ति को धन सम्बन्धी उन्नति का योग होता है। अधिक मोटी भाग्य रेखा होने पर यदि एकदम पतली होती हो तो उस आयु में पहले कष्‍ट और फिर धीरे-धीरे सुख शान्ति मिलती है। 


गहरी या मोटी भाग्य रेखा


भाग्य रेखा की मोटाई अन्य रेखाओं की अपेक्षा मोटी या समान होना एक बहुत बड़ा दोष है। ऐसी भाग्य रेखा जिन व्यक्तियों के हाथों में होती है, जीवन भर दुखी रहते हैं। धन, स्त्री, सन्तान, कुटुम्ब, सम्पत्ति आदि का जीवन भर सुख नहीं मिलता। किसी न किसी प्रकार की समस्या लगी ही रहती है, एक हटी और दूसरी सामने आई। अत: भाग्य रेखा गहरी होना अपने आप में एक बड़ा दोष है। जीवन रेखा गोलाकार, अंगुलियां छोटी व पतली, भाग्य रेखाएं एक से अधिक, शुक्र मध्यम, अंगूठा लम्बा व पतला तथा अधिक खुलने वाला व निर्दोष मस्तिष्क रेखा मोटी भाग्य रेखा के दोष को लक्षानुसार कम करते हैं। जितने ही शुभ लक्षण हाथ में होते हैं दुष्‍फल कम हो जाते हैं। अंगूठा मोटा व कम खुलने वाला, अंगुलियां मोटी, शुक्र उन्‍नत, सीधी जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा का लम्बा जोड़ इसके बुरे फलों में वृद्धि करते हैं।

गहरी भाग्य रेखा जितनी ही निर्दोष होती है व्यक्ति को उतना ही लालची बना देती है। ऐसे व्यक्ति किसी दूसरे का भला नहीं कर सकते, न ही किसी के जरूरत के समय काम ही आ सकते है। ये निर्दयी होते हैं अपना पैसा किसी पर नहीं छोड़ते, स्वार्थ को ही सबसे आगे रखते हैं चाहे उसकी कीमत दूसरों को कितनी भी देनी पडे़। लेकिन दिखावट में ये धर्मराज के समान सत्यवादी और गन्ने के समान मीठे होते हैं। बात कह कर बदल जाते हैं, सच को झूठ साबित कर देते हैं। ये केवल उन्हीं की सहायता करते हैं जो स्वार्थपरता में इनसे भी आगे होते हैं। इस दशा में मस्तिष्क रेखा बुध वाले मंगल को पार करती हो तो अधिक दोषपूर्ण होती है।

मोटी भाग्य रेखा वाले व्यक्ति स्वतंत्र स्वभाव के होते हैं, किसी की बात नहीं मानते। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होने पर यह लक्षण और अधिक बढ़ जाता है। जो इन्हें अच्छा लगता है वही करते हैं। मोटी भाग्य रेखा होने पर हाथ कोमल हो तो स्‍वार्थी व आलसी होते हैं।

मोटी भाग्य रेखा यदि मस्तिष्क रेखा पर रुकी हो तो व्यक्ति अनेक बार गलतियों को दोहराते हैं और एक प्रकार के कार्य में बार-बार हानि उठाते हैं। अंगूठा छोटा व कम खुलता हो ता निश्चित ही ऐसा होता है। स्पष्‍ट वक्ता होने के कारण इनका समाज, कुटुम्ब, सम्बन्धियों, कारखानों व कार्यालयों जहां ये काम करते है विरोध होता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों का विश्वास अधिक करते हैं व निर्भर रहते हैं।

मोटी भाग्य रेखा, हृदय रेखा पर रुकने पर व्यक्ति सीधे, दूसरों के प्रभाव में आने वाले, लापरवाह, व्यर्थ के काम में समय खराब करने वाले और अपना स्वार्थ न देखकर परोपकारी होते हैं। इनके प्रेम सम्बन्ध भी रहते हैं तथा उनमें असन्तोष रहता है। अपनी लापरवाही एवं दूसरों पर निर्भरता के कारण ऐसे व्यक्ति 50वर्ष की आयु के पहले जीवन में स्वतंत्र रूप से सफल नहीं हो पाते। 

जिस आयु तक भाग्य रेखा मोटी होती है उस समय तक व्यक्ति का धन सम्बन्धी परेशानियां रहती हैं। किसी भी कार्य को करने में उसे सफलता नहीं मिलती। इस समय व्यक्ति ऋणी रहता है, रोजगार कम चलता है और कभी बन्द भी रहता है। 

गहरी भाग्य रेखा यदि मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो उस आयु में व्यक्ति कार्य व स्थान का परिवर्तन करता है। उस स्थान से कुछ दूरी पर मस्तिष्क रेखा से भाग्य रेखा निकल कर शनि पर गई हो तो भी स्थान परिवर्तन होता है। ऐसी भाग्य रेखा विदेश यात्रा भी कराती है। यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुक कर आगे न निकले तो व्यक्ति लम्बे समय तक विदेश में रहते हैं तथा वहां जाकर सम्पत्ति आदि का निर्माण करते हैं। एक से अधिक भाग्य रेखाएं हो व गहरी भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुके तो भी विदेश यात्रा का फल होता है।


टूटी भाग्य रेखा


भाग्य रेखा टूटी होना इसका एक दोष है। यह उस आयु में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असन्तोष का लक्षण है। भाग्य रेखा हाथ में 5 प्रकार से टूटी हुई पाई जाती है।
1- टुकड़े अलग-अलग होकर दो या अधिक खण्ड हो जाते हैं।
2- दो टुकड़े टूट कर एक दूसरे को ढकते हैं अर्थात् एक टुकडे़ की समाप्ति के पूर्व दूसरा टुकड़ा प्रारम्भ होता है।
3- दो टुकड़ों को कोई तीसरा टुकड़ा ढक लेता है।
4- जब टूटी भाग्य रेखा के साथ एक दूसरी भाग्य रेखा चलती है और एक में दोष अर्थात् टूटी हुई व दूसरी निर्दोष होती है।
5- जब एक भाग्य रेखा समाप्त होकर उससे काफी आगे चल कर दूसरा टुकड़ा आरम्भ होता है।

टूटी भाग्य रेखा के दोनों टुकड़े एक जैसे गहरे हों तो यह हाथ में बहुत खराब लक्षण हैं। इससे जीवन में महान् संकट उपस्थित होता है। पति-पत्नी दोनों जिद्दी होते हैं व इसी वजह से तलाक हो जाता है।

भाग्य रेखा जब टूट- टूट कर चलती हो तो जीवन साथी से विछोह हो जाता है। भाग्य रेखा टूटी होने के समय तक व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र सम्पत्ति भी नहीं होती और न ही वह कुछ बचा पाता है, परन्तु जीवन रेखा गोलाकार होने पर मध्यायु में छोटी-छोटी सम्पत्ति अर्जित करता है। इस समय वह दूसरों पर किसी न किसी रूप में निर्भर रहता है जिसके कारण मानसिक अशान्ति बनी रहती है।

जब भाग्य रेखा टूट कर अलग-अलग टुकड़ो में विभक्त होती है तो कार्य पूर्णतया रुक जाता है तथा कुछ समय पश्चात् पुन: आरम्भ होता है। प्रेम सम्बन्ध होने पर भी सम्बन्ध विच्छेद होते हैं व कुछ समय पश्चात् फिर सम्बन्ध बन जाते हैं। इस समय विवाहित जीवन में झंझट रहता है और पति-पत्नी को अलग रहता पड़ता है। हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलने, विवाह रेखा में द्वीप आदि लक्षणों को देखने से इसका निर्णय आसानी से किया जा सकता है। यदि भाग्य रेखा पूर्णतया टूट कर नई भाग्य रेखा आरम्भ हो तो पूर्णतया विछोह, मृत्यु या तलाक होकर दूसरा विवाह या सम्बन्ध होता है।

 दूसरे प्रकार से जब भाग्य रेखा टूट कर टुकड़े एक दूसरे के ऊपर चढ़े होते हैं तो भी झंझट या परेशानी रहती है। कभी विछोह, कभी मिलन दोष की आयु तक चलता है। यदि इस प्रकार से अन्त में दूसरी अलग रेखा आरम्भ होती हो तो मिलन विछोह के पश्चात् बिल्कुल ही सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। यदि ऐसी भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो, हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो, वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली से छोटी हो तो जीवन साथी से तलाक हो जाता है या उस की मृत्यु हो जाती है।

तीसरे प्रकार के लक्षण जिसमें दो टुकड़ो को तीसरी रेखा ढकती है, झंझट तो रहता है परन्तु किसी दूसरे व्यक्ति के बीच में पड़ने से पुन: सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं व भाग्य रेखा का दोष निवारण होने पर स्थिति पुन: सामान्य हो जाती है।

चौथी प्रकार का लक्षण होने पर यदि एक भाग्य रेखा पूरी तथा एक टूटी हो तो केवल परेशानी आती है, कोई बड़ी घटना नहीं होती। सम्बन्धों में बिगाड़ व सामयिक विलगाव होकर पुनर्मिलन हो जाता है ऐसे व्यक्तियों के एक से अधिक कार्य होने पर एक कार्य में परेशानी तथा दूसरा कार्य ठीक प्रकार से चलता रहता है। यदि भाग्य रेखा दो व बिल्कुल पास-पास, एक ठीक व दूसरी दोषपूर्ण हो तो दो प्रेम सम्बन्ध होने पर एक में झंझट व विछोह तथा एक निर्विघ्न रहता है। यदि टुटी भाग्य रेखा पूर्णतया टूट जाती या समाप्त हो जाती हो तो सम्बन्ध में कोई भी निर्णय अन्य लक्षणों या रेखाओं से समन्वय के पश्चात् ही करना चाहिए।

मोटी भाग्य रेखा टूटी होने पर व्यक्ति का काम बराबर नहीं चलता, कुछ समय चलता है और कुछ समय के लिए रुक जाता है। ऐसे व्यक्ति अधिक लिहाज करते हैं। निर्णय शक्ति भी इनमें कम होती है तथा जब तक दोष रहता है जीवन संघर्षमय रहता है। ऐसे व्यक्ति को बार-बार काम बदलना पड़ता है और उसमें भी सन्तुष्‍टी नहीं होती, कार्य थोड़े समय तक ही ठीक रहता है। भाग्य रेखा के टुकड़े एक दूसरे को ढकते नहीं हों तो एक काम बन्द कर के दूसरा आरम्भ करना पड़ता है या कुछ समय बन्द होकर दोबारा आरम्भ होता है। भाग्य रेखा टूटी होने पर जैसा पहले बताया गया है कि गृहस्थ जीवन में शान्ति नहीं रहती, भाग्य रेखा ठीक होने पर सम्बन्ध फिर से ठीक हो जाते हैं। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा में रुकती हो और हृदय रेखा की शाखा मस्तिष्क रेखा पर आती हो तो तलाक या मृत्यु हो जाती है।

शुक्र बहुत उठा होने पर भी गृहस्थ जीवन मधुर नहीं रहता। पति-पत्नी एक दूसरे पर शंका करते रहते हैं। और जीवन साथी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। इस दशा में भाग्य रेखा गहरी या टूटी होने पर दोनों के चरित्र में स्वाभाविक दोष पाया जाता है। पत्नी का स्वास्थ्य इस आयु में खराब रहता है। उसे प्रजनन कष्‍ट या कोई अन्य रोग होता है। स्त्री के हाथ में यह लक्षण उसके पति के परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। ऐसी स्त्रियों को पितृ पक्ष की ओर से भी चिन्ता रहती है।

टूटी भाग्य रेखा होने पर यदि मस्तिष्क रेखा में बुध के नीचे दोष हो या उसकी कोई शाखा बुध की ओर गई हो तो व्यक्ति को जहर जैसी चीज का डर रहता है। इन्हें या तो बिच्छु, ततैया आदि कोई जहरीला जानवर काटता है या कोई जहरीला इन्जैक्‍शन लगता है।

जीवन रेखा से दूर होकर भाग्य रेखा टूटी हो और 1 इंच दूरी के बाद फिर कोई टुकड़ा निकल कर मस्तिष्क रेखा को पार करता हो और फिर भाग्य रेखा समाप्त होकर एक अन्य टुकड़ा आरम्भ होकर शनि तक जाता हो तो कार्य में कई बार परिवर्तन होता है किन्तु व्यक्ति उन्नति करता है। ऐसे व्यक्ति को बार-बार कार्य परिवर्तन से आघात लगते हैं और भविष्‍य में भी इसका भय बना रहता है। यहां यह देखना होगा कि इस प्रकार के टुकड़े एक सीध में और देखने में एक ही टूटी भाग्य रेखा जैसे लगते हैं। ऐसी भाग्य रेखा एक सीध में न होकर यदि हट कर मोटी या पतली हो तो कार्य परिवर्तन के साथ उन्नति के अवसर कम हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति के जीवन साथी का स्वास्थ्य भी एक जैसा नहीं रहता, कुछ समय स्वस्थ व कुछ समय अस्वस्थ रहते हैं।

टूटी भाग्य रेखा यदि चन्द्रमा से निकली हो या जीवन रेखा से, इस पर चन्द्रमा से प्रभावित रेखा (जो टुकड़े चन्द्रमा से या उसकी ओर से आकर भाग्य रेखा पर मिलते हैं, उन्हें प्रभावित रेखा कहा जाता है) मिलती हो तो इन टुकड़ों की संख्या प्रेम सम्बंधो की संख्या होती है। उस आयु में यदि प्रभावित रेखा मिल कर भाग्य रेखा में कमजोरी या दोष उत्पन्न होता हो या यह टूट जाती हो तो किसी भी प्रकार से स्थापित किए गये सम्बन्ध स्थायी नहीं रहते उपरोक्त दशा में व्यापार, साझेदारी तथा नये कार्य में विघ्न पड़ता है।

 भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखाएं


चन्द्रमा या उसकी ओर से कोई रेखा आकर भाग्य रेखा पर मिलती हो तो इसे प्रभावित रेखा कहते हैं। इनकी संख्या हाथ में एक या अधिक भी होती है। कभी-कभी जब भाग्य रेखा टूटती है तो उसके ऊपर वाले टूटे हुए भाग का झुकाव चन्द्रमा की ओर होता है। ऐसे भाग्य रेखा के टुकड़े प्रभावित भाग्य रेखा का ही कार्य करते हैं।

प्रभावित रेखा पतली और छोटी होने पर इसका सूक्ष्म दर्शन अति आवश्यक है अन्यथा फल गलत होने की सम्भावना रहती है अत: सावधान होकर इसका निर्णय करना चाहिए।

प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा पर इसका जैसा भी प्रभाव पड़ता है अर्थात् भाग्य रेखा के स्वरूप में कितनी कमजोरी या पुष्‍टता आती है, उसके अनुसार ही प्रभावित रेखा का फल होता है।

कई बार प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा टूट जाती है या प्रभावित रेखा भाग्य रेखा को काट देती है। इस दशा में प्रभावित रेखा का प्रभाव भाग्य रेखा पर अच्छा नहीं होता।

भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा के गठन में कोई अन्तर न होकर गठन वैसा ही रहता हो या इसमें पुष्‍टता आती हो तो उत्तम फल कारक होती है जबकि प्रभावित रेखा मिलने के पश्चात् भाग्य रेखा में दोष आता हो तो भाग्य रेखा पर इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता, समस्या कारक होती है।

प्रभावित रेखा का किसी द्वीप से निकलना या भाग्य रेखा में किसी द्वीप पर मिलना, टूटी-फूटी होना इसके दोष कहे जाते हैं अत: प्रभावित रेखा को ध्यान से देख लेना चाहिए।

चन्द्रमा से उदय होकर प्रभावित रेखा जिस आयु में भाग्य रेखा पर मिलती है प्रेम सम्बन्ध, विवाह या भाग्योदय की सूचक होती है। प्रभावित रेखा मिलने पर भाग्य रेखा पुष्‍ट होती है या लम्बे समय तक भाग्य रेखा में कोई दोष नहीं हो तो, सम्बन्ध स्थायी ही रहते हैं अन्यथा समाप्त हो जाते हैं या विघ्न पड़ता है।

प्रभावित रेखा मिलने पर जब भाग्य रेखा पुष्‍ट होती हो तो व्यक्ति प्रेम सम्बन्ध या विवाह के पश्चात् उन्‍नति करते हैं। किसी व्यक्ति से लाभ देखने के लिए भी प्रभावित रेखा का सूक्ष्म निरीक्षण आवश्यक होता है। प्रभावित रेखा निर्दोष होने की दशा में व्यक्ति दूसरों से लाभ प्राप्त करता है अन्यथा उसे किसी से लाभ प्राप्त नहीं होता, चाहे इस सम्बन्ध में हाथ में अन्य लक्षण भी उपस्थित हों।

भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकली हो या जीवन रेखा से उसमें प्रभावित रेखा मिलती हो तो व्यक्ति के जीवन में प्रेम सम्बन्ध का लक्षण है, परन्तु प्रभावित रेखा में दोष व्यक्ति के चरित्र, भाग्य या व्यापार पर अच्छा प्रभाव नहीं डालता। यदि यह प्रभावित रेखा दोषपूर्ण नहीं हो तो इस आयु में जिस से भी सम्बन्ध होते हैं प्रेम सम्बन्ध हों अथवा किसी अन्य प्रकार के, स्थायी रहते हैं। प्रभावित रेखा में थोड़ा भी दोष  इन सम्बन्धों में विकार का लक्षण है। यदि प्रभावित रेखा में द्वीप, टूटी, काली, बहुत भारी, मोटी-पतली आदि लक्षण हों। भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो व विवाह रेखा में दोष हो तो विवाह या प्रेम सम्बन्धों में पहले झगड़ा होता है और सम्बन्धों में तनाव आने के पश्चात् सम्बन्ध टूटने की सम्भावना होती है।

प्रभावित रेखा होने पर यदि हृदय रेखा सरल व निर्दोष होकर वृहस्पति को काटती हुई हथेली के पार जाती हो तो ऐसे व्यक्ति अपनी इच्छानुसार विवाह करते हैं। इस दशा में प्रभावित रेखा में दोष होने पर तनाव रहता है या तलाक हो जाता है।

यदि दो प्रभावित रेखाएं, एक छोटी और एक बड़ी, साथ-साथ भाग्य रेखा पर मिलती हों तो दो प्रेम साथ-साथ होते हैं। एक प्रेमी की आयु बड़ी तथा एक की छोटी होती है।

जिस आयु में दोषपूर्ण प्रभावित रेखा भाग्य रेखा में मिलती है, किया गया व्यापार सफल नहीं होता। साझे में होने पर साझेदारों में झगड़ा रहता है। ऐसे विद्याथ्री प्रेम में फंस कर अध्ययन में हानि उठाते हैं या पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। यदि भाग्य रेखा के द्वीप में प्रभावित रेखा मिले तो किसी एक की मृत्यु हो जाती है।
चन्द्रमा से निकलने वाली प्रभावित रेखा जब अन्तर्ज्ञान रेखा को काट कर भाग्य रेखा पर मिलती हो और दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति का अपने जीवन साथी या साझी पर प्रभाव नहीं होता। ऐसों का साथी या साझी जिद्दी व अधिक बोलने वाला होता है। ये दूसरे व्यक्तियों को भी प्रभावित नहीं कर सकते।

प्रभावित रेखा में तारा होने पर प्रेमी या प्रेमिका की मृत्यु हो जाती है। भाग्य रेखा टूटी होने पर जब एक टुकड़े का झुकाव चन्द्रमा की ओर हो तो यह प्रभावित रेखा का ही फल करता है। इस प्रकार के जितने टुकड़े हेाते हैं उतने ही प्रेम सम्बंध होते हैं तथा एक टुकड़ा जितने समय तक रहता है प्रेम सम्बंध भी उतने समय के पश्चात् दूसरा स्थापित हो जाता है। इस प्रकार जितनी बार भाग्य रेखा टूटती है सम्बंध भी टूटते हैं, चाहे कैसे भी हों।

प्रभावित रेखा दोषपूर्ण न होने पर जब भाग्य रेखा पर मिलती है तो उस आयु के पश्चात् व्यक्ति उन्‍नति करता जाता है। आपसी सम्बंध सौहार्दपूर्ण रहते हैं और एक दूसरे के प्रति सद्भाव होता है। उत्तम प्रभावित रेखा जिस समय भाग्य रेखा में मिलती है विवाह योग होता है।

नि:सन्देह यह कहा जा सकता है कि प्रभावित रेखा का सम्बंध व्यक्ति के प्रेम-सम्बंध व व्यापार से है। अत: प्रभावित रेखामें गुण होने पर उपरोक्त सम्बंधों में स्थायित्व एवं दोष होने पर इन सम्बंधों में अनिश्चितता होती है।

भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास होने पर इसमें जो भी प्रभावित रेखा मिलती है, अच्छी-बुरी कैसी भी हो, साझेदारी व प्रेम सम्बंधों में कठिनाई ही रहती है।

प्रभावित रेखा भाग्य रेखा में मिलने के स्थान पर यदि सितारा हो, यह भाग्य रेखा, प्रभावित रेखा व किसी एक अन्य रेखा से मिलकर बना हो अथवा स्वतंत्र, साझीदार या प्रेमी की मृत्यु हो जाती है। एक से अधिक साझी होने पर जिससे इस आयु में सम्बंध स्थापित होते हैं, उसकी मृत्यु हो जाती है।

सूर्य रेखा में प्रभावित रेखा किसी ऐसे सम्बन्ध का निर्देश है जिसके पश्चात् व्यक्ति को ख्याति प्राप्त होती है।

हाथ में दो निर्दोष रेखाएं होने पर यदि दोनों में एक ही आयु में प्रभावित रेखाएं हो तो सम्बंध, सम्पर्क या विवाह के पश्चात् अभूतपूर्व उन्‍नति होती है। इस दशा में सूर्य रेखा होने पर उसमें भी प्रभावित रेखा हो तो कहना ही क्या, इस सम्बन्ध के पश्चात् चहुंमुखी प्रगति व प्रसिद्धि होती है।

हाथ में एक भाग्य रेखा पूर्ण व एक देर से आरम्भ होती हो व देर से आरम्भ होने वाली भाग्य रेखा को काटती हुई प्रभावित रेखा यदि पहली पूर्ण भाग्य रेखा में मिलती हो तो सम्बन्ध, सम्पर्क। या विवाह की स्थापना बहुत झंझट, रुकावटों के पश्चात् होती है। अन्त में ये सम्बन्ध सफल होते हैं।

भाग्य रेखा जैसी प्रभावित रेखा यदि लम्बी भी हो और भाग्य रेखा को काटती हो तो आरम्भ में परेशानी तथा कटाव के पश्चात् सफलता का लक्षण है।

क्या कहती है आपकी भाग्य रेखा #1

भाग्य रेखा परिचय – Introduction of Fate Line # 1

भाग्य रेखा fate line
भाग्य रेखा के द्वारा नोकरी, भाग्य, प्रेम आदि के बारे में जाना जा सकता है, यहाँ भाग्य रेखा के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है।


किसी भी रेखा को, जो शनि की ओर जाती है, भाग्य रेखा कह सकते हैं। हाथ में भाग्य रेखा चन्द्रमा, जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा या हृदय रेखा से निकल कर सीधी शनि की अंगुली की ओर जाती है। कभी-कभी भाग्य रेखा किसी मंगल या शनि क्षेत्र से निकल कर शनि पर जाती है।

भाग्य रेखा मणिबन्ध से निकल कर बिना रुके और बिना टूटे शनि की अंगुली तक पहुंचती हो तो बहुत ही उत्तम मानी जाती है। परन्तु  ध्यान रहे कि कोई भी छोटी भाग्य रेखा जीवन रेखा के प्रारम्भ के एक इन्च बाद निकल कर शनि की ओर जानी आवश्यक है, अन्यथा उत्तम से उत्तम भाग्य रेखा भी उत्तम फल देने में असमर्थ होती है परन्तु खमदार जीवन रेखा में इस भाग्य रेखा की जरूरत नहीं होती और एक से अधिक भाग्य रेखाएं होने पर भी जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलना आवश्यक नहीं। हाथ में जितनी ही अधिक भाग्य रेखाएं होती हैं या एक ही उत्तम भाग्य रेखा होती है, मनुष्‍य उतना ही भाग्यशाली, सम्पतिशाली व सफल होता है। हाथ चौड़ा भारी, गुदगुदा, नरम और चिकना होना भाग्य रेखा के फल में चार चांद लगा देता है।

चन्द्रमा व दोनों मंगल से निकली हुई भाग्य रेखा का प्रभाव उस आयु में आरम्भ होता है जिसमें कि वह शनि क्षेत्र में प्रवेश करती है। शनि क्षेत्र  में प्रवेश की आयु से पहले प्रभावित रेखा का कार्य करती है। पतले हाथों में बहुत अच्छी भाग्य रेखा दरिद्रता का लक्षण है, कई भिखारियों के हाथों में भी उत्तम रेखाएं देखी जाती हैं। हाथ जितना ही भारी और कोमल होता है उत्तम भाग्य रेखा उतना ही श्रेष्‍ठ फल करती है।

जो भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास, चन्द्रमा या शनि क्षेत्र से निकल कर हृदय रेखा को पार करती हुई सीधी शनि की अंगुली के नीचे तक पहुंचती है, अति उत्तम होती है।

भाग्य रेखा का मस्तिष्क रेखा या हृदय रेखा पर रुकना दोषपूर्ण माना जाता है। यह भाग्य रेखा का प्रमुख दोष है। मोटी, जीवन रेखा के पास व टूटी-फूटी भाग्य रेखा निकृष्‍ट मानी जाती है तथा लम्बी, पतली, जीवन रेखा से दूर भाग्य रेखा जीवन में सुख शान्ति व धन सम्पत्ति की बहुलता का लक्षण है।

भाग्य रेखा से धन, सवारी, नौकरी, व्यापार, जीवन साथी आदि के विषय में विचार किया जाता है। अन्य रेखाओं के साथ भाग्य रेखा के फल का समन्वय करके ही फल कहना चाहिए क्योंकि हाथ में किसी भी रेखा का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता, एक रेखा के दोष का दूसरी रेखा पर प्रभाव पडता है। दो या उससे अधिक रेखाएं या लक्षण मिल कर ही किसी फल को ठीक निश्चित करते हैं।

उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए यह जाना जाता है कि भाग्य रेखा का हाथ में महत्वपूर्ण स्थान है। अत: हाथ देखते समय भाग्य रेखा का सूक्ष्म निरीक्षण आवश्यक है।

अंगुलियां सीधी तथा इनके आधार नीचे से सम होना भाग्य रेखा के फल में विशेष वृद्धि करते हैं।
द्वीप से युक्त, भारी, पतली, टूटी, काली, लाल, टेढ़ी-मेंढ़ी, मिटी हुई सी, धब्बे या दाग से युक्त या किसी रेखा से कटी हुई भाग्य रेखा दोषपूर्ण मानी जाती है।
कभी-कभी भाग्य रेखा शनि पर न जाकर वृहस्पति या सूर्य पर भी जाती है। इसका निर्णय इसके निकास स्थान से ही करना होगा। इस प्रकार की रेखा भी भाग्य रेखा ही कहलाएगी।

अंगूठे की लम्बाई, पतलापन, अधिक खुलना तथा शुक्र का सामान्य होना, भाग्य रेखा के दोष को किसी हद तक कम कर देते है। इसके विपरीत अंगूठा छोटा, मोटा, कम खुलने वाला तथा उन्‍नत शुक्र उत्तम भाग्य रेखा के फल में तो कमी करता ही है, दोषपूर्ण भाग्य रेखा को अधिक दोषपूर्ण बना देता है।


उत्तम भाग्य रेखा – Best Fate Line


बहुत अच्छी भाग्य रेखा जीवन रेखा, इसके पास, शनि क्षेत्र या चन्द्रमा से उदय होकर सीधी शनि की अंगुली तक जाने वाली मानी जाती है। यह रेखा जितनी ही पतली, जीवन रेखा से दूर निर्दोष होती है उत्तम होती है। यहां फिर से लिखना आवश्यक है कि अच्छी भाग्य रेखा के साथ जीवन रेखा से कोई छोटी भाग्य रेखा शनि स्थान के नीचे से निकलना परम आवश्यक है, अन्यथा भाग्य रेखा उतना उत्तम फल नहीं करती, परन्तु भाग्य रेखा एक से अधिक होने पर यह अनिवार्य नहीं है।

उत्तम भाग्य रेखा वाले व्यक्ति जिस घर में जन्म ग्रहण करते हैं वह दिन-प्रतिदिन प्रगति करता है, रुके हुए काम तथा झंझट दूर होकर विषम परिस्थितियां भी सुगम हो जाती हैं, ज्यों-ज्यों आयु बढ़ती है, धन व सौभाग्य बढ़ता जाता है। इन्हें धन, स्त्री, सन्तान, सम्पत्ति व सवारी सुख मिलता है। ऐसे व्यक्ति महत्वाकांक्षी, प्रतिष्ठित, प्रसिद्ध, कुल के मुख्य पुरुष, भरण-पोषण करने वाले, नौकरों के सुख वाले तथा सम्मानित होते हैं। ऐसी रेखा बहुत कम व्यक्तियों में पाई जाती है। ऐसे व्यक्ति धूल में पैदा होकर भी ख्याति प्राप्त करते हैं। यह असाधारण मानव होने का लक्षण है। इन्हें ऐसे व्यक्ति भी सहयोग देते हैं जो किसी का सहयोग कभी नहीं करते। इनको कभी भी असफलता का मुंह नहीं देखना पड़ता और इनकी प्रतिष्‍ठा को भी कभी आँच नहीं आती। अक्सर ये व्यापार ही करते हैं, यदि नौकरी भी करते हों तो प्रतिष्ठित पद पर जैसे मंत्री, राजदूत, किसी बड़े संस्थान के मैनेजर, वक्ता, नेता या सलाहकार होते हैं।

अन्य रेखाएं दोषपूर्ण होने पर यदि भाग्य रेखा बहुत अच्छी और हाथ भी उत्तम हो तो भी इन्हें लगातार सफलता मिलती जाती है। अन्य दोषों के कारण कष्‍ट तो प्राप्त होते हैं परन्तु संघर्ष में बल व सफलता प्राप्त होती हैं। अन्य रेखाओं में दोष होने के कारण इन्हें मानसिक शान्ति तो नहीं मिलती परन्तु जो सोचते हैं पूरा हो जाता है। उत्तम भाग्य रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर सन्तान सुख अवश्य होता है परन्तु सन्तान आरम्भ में लापरवाह और गैर जिम्मेदार होती है तो भी अन्त में रहती योग्य ही है।

पतला हाथ होने पर अच्छी भाग्य रेखा लाभप्रद नहीं होती, उल्टा हानि करती है, तो भी इन्हें रोटी अवश्य मिलती रहती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों को लड़ाना, बिना मतलब झगड़ेबाजी में पड़ना, निरर्थक बहस तथा दूसरों को समझाने आदि कार्यो में अपना समय बरबाद करते हैं। नशीली चीजों के सेवन आदि से भी अपना जीवन खराब करते देखे जाते हैं।

रेखाएं हाथ के अनुसार ही होनी चाहिए। भारी, चौड़े, गुलाबी, कोमल, समकोण, चमसाकार, आदर्शवादी तथा दार्शनिक हाथों में ही उत्तम रेखाएं उत्तम फल करती हैं। टेढ़े, काले, अधिक लाल, बहुत छोटे और टेढ़ी अंगुलियों वाले हाथों में उत्तम भाग्य रेखा होने पर व्यक्ति दूषित आदतों वाले व चोर होते हैं तथा जिन व्यक्तियों की अंगुलियों में गांठे नहीं होती वे आलसी और शौकीन होते हैं।

अच्छी भाग्य रेखा वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने पर स्वास्थ्य खराब तो रहता है परन्तु विशेष नहीं। एक सुन्दर भाग्य रेखा होने पर अंगूठे के मूल में जितनी मोटी रेखाएं होती हैं व्यक्ति उतने ही काम बदलता है या उतने ही काम एक साथ करता है। सूर्य पर पाई जाने वाल रेखाओं से भी यही अनुमान लगाया जाता है।

भाग्य रेखा उत्तम होने पर व्यक्ति का जिससे भी विशेष सम्पर्क जैसे कोई प्रेम मित्रता आदि होते हैं, बड़े काम पर लगे होते हैं या बड़े घर के होते हैं। हाथ यदि थोड़ा भी कठोर हो तो ऐसे व्यक्ति टेक्नीकल काम करने वाले और कोमल होने पर बौद्धिक कार्य करने वाले होते हैं। बुध का नाखून चौकोर होने पर हाथ में सभी ग्रह उठे हुए हों तो सलाहकार या अध्यापक, मस्तिष्क रेखा में शाखाएं और हाथ कोमल हो तो राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करने वाले होते हैं।

समकोण हाथ में अच्छी भाग्य रेखा अत्यधिक गुणकारी होती है। ऐसे व्यक्ति धनी-मानी तथा प्रतिष्ठित होते हैं। उत्तम भाग्य रेखा यदि मोटी हो तो शोषण करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति के साथ मिल कर व्यापार नहीं करना चाहिए। ये लोभी होते हैं और दूसरे का धन हड़प कर के धनी बनते हैं।

भाग्य रेखा जीवन रेखा के साथ घूम कर शुक्र को घेरती हो तो ऐसे व्यक्ति व्यापार ही करते है परन्तु यह चन्द्रमा की ओर मुड़ती हो तो नौकरी करते हैं। इसकी शाखाएं दोनों ओर जाने पर व्यापार तथा नौकरी दोनों ही करते हैं।

भाग्य रेखा जिस आयु में जीवन रेखा से दूर, स्वतंत्र, मोटी से पतली होती है व्यक्ति के जीवन में आर्थिक स्वतंत्रता, धन लाभ, विवाह, प्रेम सम्बन्ध तथा उन्नति का समारम्भ होता है। हाथ में जितनी ही अधिक भाग्य रेखाएं होती हैं व्यक्ति के उतने ही अधिक आय के साधन होते हैं, यह धन, सौभाग्य व प्रतिष्‍ठा में उन्नति का भी लक्षण है।

यहां यह विशेष रूप से जानने की बात है कि कितना ही अच्छा हाथ या रेखाएं हों शुक्र उन्‍नत होने पर व्यक्ति को इसका विशेष फल 43वर्ष के पश्चात् ही मिलता है। उन्‍नत शुक्र का पता हाथ देखने से ही लग जाता है; इस दशा में यह सबसे अलग दिखाई देता है। इसका विस्तार से वर्णन शुक्र के विषय में विचार करते समय कर दिया गया है।

भाग्य रेखा के आरम्भ में अक्सर बड़ा द्वीप देखने में आता है। यह अन्य रेखाओं से मिल कर बनता है। भाग्य रेखा उत्तम, स्वतंत्र व पतली होने पर भी जिस आयु तक यह द्वीप भाग्य रेखा में रहता है, अनेक प्रकार के कष्‍ट देता है तथा जीवन, धन, कुटुम्ब व रोजगार से असन्तोष का लक्षण है। इस द्वीप की समाप्ति की आयु के पश्चात् ही सुन्दर भाग्य रेखा का फल आरम्भ होता है।
सुन्दर भाग्य रेखा होने पर यदि जीवन रेखा अधूरी, मस्तिष्क रेखा में बड़ा द्वीप हो तो उस दोष की आयु के पश्चात् ही उत्तम भाग्य रेखा का फल मिलता है परन्तु दोष के फल में कमी हो जाती है। यदि मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा का जोड़ लम्बा हो तो उस जोड़ की आयु निकलने के पश्चात् ही उत्तम भाग्य रेखा का फल मिलता है।

दोष की दशा में व्यक्ति का जीवन यापन तो ठीक होता रहता है परन्तु जीवन में अच्छी स्थिति दोष की आयु के पश्चात् ही आती है। हाँ! यदि भाग्य रेखाओं की संख्या अनेक हों तो जीवन पहले से ही उन्‍नत तथा सन्तोषपूर्ण रहता है। प्रतिष्‍ठा, उन्नति, धन लाभ तो होता है तो भी दोष के समय तक स्थायित्व तथा मानसिक शान्ति नहीं मिल पाती, दोष का समय निकलने के पश्चात् चहुंमुखी प्रगति होती है।


दोषपूर्ण भाग्य रेखा


टूटी-फूटी, द्वीपयुक्त, आरम्भ में बड़े द्वीप से युक्त, लहरदार, मोटी, मस्तिष्क या हृदय रेखा में रुकी व जीवन रेखा के पास होने पर भाग्य रेखा दोषपूर्ण मानी जाती है। इसका दोष हाथ के मुल्य में कमी करता है। जिस आयु तक उपरोक्त दोष होते हैं, उसी आयु तक यह अनिष्‍ट फल कारक होती है।

इस प्रकार की भाग्य रेखा हर काम में रुकावट का लक्षण है जैसे: शिक्षा, विवाह, नौकरी, व्यापार आदि। साझे में काम करने पर रुकावट व झगड़ा होता है, और साझी भी संख्या में अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्तियों में पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती। दोनों एक दूसरे को सन्देह की दृष्टि से देखते हैं व पसन्द भी नहीं करते। विशेष बात यह है कि दोनो को विषम परिस्थितियों में भी साथ ही रहना पड़ता है। भाग्य रेखा दोषपूर्ण होने पर विवाह रेखा हृदय रेखा पर मिली होने पर या हृदय रेखा की मोटी शाखा मस्तिष्क रेखा से निकलने पर या तो तलाक हो जाता है या दोनो में से एक की मृत्यु हो जाती है। ये परिस्थितियां उस समय तक चलती हैं जिस समय तक भाग्य रेखा में दोष रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक भाग्य रेखा में दोष होता है तब तक मानसिक शान्ति नहीं मिलती।

इसका कुछ न कुछ प्रभाव जीवन भर रहता है। परन्तु दोष की आयु में कुटुम्ब में परेशानी, खर्चा, धन की कमी, आपस में झगड़ा, स्वास्थ्य में दोष, मुकदमा, मृत्यु आदि कोई न कोई झंझट लगा ही रहता है और प्रत्येक कार्य में रुकावट होती है। विवाह में रुकावट, सम्बन्ध होकर टूटना, पत्नी से असन्तोष, उसका स्वास्थ्य खराब होना आदि फल भी रहते है।

अंगुलियां पतली, सीधी व छोटी, अंगूठा पतला व लम्बा और मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर दोषपूर्ण भाग्य रेखा के फलों में लक्षणों के परिमाण अनुसार कमी हो जाती है। दोष के समय तक व्यक्ति क्रोधी, जल्दबाज व निराश रहते हैं। वासनात्मक प्रवृत्ति भी इस आयु में अधिक रहती है, फलस्वरूप किसी प्रेम सम्बन्ध में फंस जाते हैं और जीवन निर्माण की ओर इनका ध्यान नहीं जाता।

इस आयु में यदि दोष आरम्भ में हो तो किसी उत्तरदायी-पूर्वज की मृत्यु जिनमें पिता, माता आदि भी सम्मिलित हैं, हो जाती है और व्यक्ति के ऊपर से नियंत्रण हट जाता हैं फलस्वरूप वह स्वछन्द हो जाता है। 

भाग्य रेखा में जैसे-जैसे सुधार आरम्भ होता है स्वत: ही सारी बातें ठीक होकर व्यक्ति का स्वभाव, आदतें, अर्थाभाव आदि कष्‍ट दूर हो जाते हैं।


भाग्य रेखा दो तीन या अनेक


भाग्य रेखाएं हाथ में कभी-कभी एक से अधिक भी पाई जाती है। ऐसी भाग्य रेखाएं यदि उत्तम हाथ में हो तो अमित फलदायी होती है। ऐसे व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं। धन, सम्पत्ति, सवारी, यश, सम्मान सभी कुछ इनको जीवन में प्राप्त होता है। अन्य रेखाओं के दोष को भी ये रेखाएं कम कर देती हैं, अर्थात् जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर अनेक भाग्य रेखाओं के प्रभाव से यह बहुत कम हो जाता है, चाहे अंगूठा मोटा, चौड़ा या कम ही क्यों न खुलता हो।

ये रेखाएं पतले, टेढ़े या काले हाथ में होने पर इनके साथ झगड़े-फसाद होते रहते है। अंगूठा अच्छा होने पर ऐसे व्यक्ति उन्‍नति तो करते है परन्तु शान्ति नहीं मिलती। जीवन भर ऐसा ही रहता है। धनी अवश्य हो जाते हैं। अनेक भाग्य रेखाएं होने पर दूसरे व्यक्ति भी जो किसी की सहायता नहीं करते इनकी सहायता करने के लिए आगे आते हैं। ऐसे व्यक्ति अंगूठा लचीला हो तो दूसरों के प्रभाव में आ जाते हैं वरना किसी की गलत बात को आसानी से नहीं मानते। इनकी अपनी सोची हुई बात किसी हद तक ठीक ही होती है।

अच्छी भाग्य रेखाएं बुरे प्रभाव से बचाती हैं। ऐसे व्यक्ति अपने ही मस्तिष्क से कार्य करने वाले होते हैं। शुक्र प्रधान होने पर जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा अधिक जुड़ी हो तो वहमी होते हैं। हर व्यक्ति को हर बात में अविश्वास की दृष्टि से देखते हैं। आरम्भ में ये हानि उठाते हैं क्योंकि दूसरों पर निर्भर अधिक रहते हैं परन्तु भाग्य रेखाएं अनेक होने की दशा में इस हानि की मात्रा कम होकर धन का पूर्ण सुख होता है।

कई भाग्य रेखाएं होने पर मुख्य भाग्य रेखा या इस जैसी किसी भाग्य रेखा में द्वीप हो तो उस आयु में झंझट रहता है। दूसरा काम भले ही चलता रहें परन्तु किसी न किसी काम में विशेष रुकावट या परेशानी होती है, मुकदमा या हानि आदि फल भी होते हैं। इस हानि की पूर्ति अन्य कार्यो में होने वाले लाभ से भी नहीं हो पाती। ऐसे व्यक्तियों को दूसरी आय का साधन होते हुए भी कष्‍ट होता है, क्योंकि एक कार्य से होने वाली आय हानि में लग जाती है। हाथ के स्तर के अनुसार फलादेश कहना चाहिए।

नरम व गुलाबी हाथ में दो या अधिक भाग्य रेखाएं हों तो व्यक्ति सात्विक प्रवृत्ति के होते हैं। अंगूठा कठोर होने पर ऐसे व्यक्ति स्वतंत्र तथा सिद्धान्तवादी होते हैं और अपने काम में किसी की रोक-टोक पसन्द नहीं करते, शान से रहते हैं तथा पसन्द करते हैं कि इनके राजाओं जैसे ठाट रहें, फलस्वरूप इन्हें खर्च करने की आदत होती है और इनके घर का खर्च भी अधिक होता है। अंगूठा लचीला व अंगुलियां लम्बी होने पर विशेष दयालु भी होते है। 

अनेक भाग्य रेखाएं होने पर हाथ में दो अन्तर्ज्ञान रेखाएं हो तो व्यापार में बहुत उन्‍नति करते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा समानान्तर व हाथ भारी हो तो स्थायी कार्य वाले, प्रतिष्ठित व धनी होते हैं। दूसरे व्यक्ति इन लोगों के मुकाबले में टिक नहीं पाते क्योंकि वास्तव में ही ये योग्य और अपने कार्य में पूर्णतया निपुण होते हैं, अपने क्षेत्र में इनका वर्चस्व होता है।

अनेक भाग्य रेखाएं होने पर नि:सन्देह व्यक्ति सम्पत्ति का निर्माण करता है, यह सम्पत्ति भी उत्तम कोटि की होती है। इस दशा में जीवन रेखा में त्रिकोण होने पर सम्पत्ति का आकार बहुत बड़ा पाया जाता है। ये अपनी किसी सम्पत्ति में पास का भाग मिला कर सम्पत्ति को बड़ा करते हैं, फलस्वरूप इसका विराट रूप हो जाता है। 

मुख्य भाग्य रेखा के साथ लगभग 1/4 इंच की दूरी पर यदि लगभग उतनी ही मोटी रेखा भाग्य रेखा के कुछ समय तक साथ चलती हो तो उस आयु में व्यक्ति की आर्थिक, मानसिक व कौटुम्बिक परेशानी रहती है। भाग्य रेखा के साथ उत्तर आयु में कोई रेखा साथ चलती हो तो व्यक्ति उस आयु में या तो विवाह करता है या प्रेम सम्बन्ध होता है। इस दशा में यह देख लेना चाहिए कि पत्नी जीवित है या नहीं। 



शाखान्वित भाग्य रेखा


मूल भाग्य रेखा से कभी-कभी नई शाखाएं निकल कर चलती हैं या स्वयं ही भाग्य रेखा दो या अनेक भागों में विभक्त हो जाती है। इस प्रकार की भाग्य रेखा को शाखान्वित भाग्य रेखा कहते हैं।

जिस आयु में भाग्य रेखा से शाखा निकलती है उस समय कार्य में परिवर्तन, उन्‍नति, नौकरी में तरक्की, व्यापार में लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति हर समय नई-नई बातें सोचते रहते हैं। उत्तम हाथ होने पर दिन प्रतिदिन प्रगति करते जाते हैं। भाग्य रेखा से कोई रेखा निकल कर सूर्य पर जाती हो तो उस आयु में व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करता है जिससे उसकी प्रसिद्धि होती है और यदि कोई शाखा वृहस्पति पर गई हो तो वह उच्च पद प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति जो भी इच्छा करते हैं वह पूरी हो जाती है। दिन प्रति दिन उन्‍नति की ओर अग्रसर होते जाते हैं। भाग्य रेखा से बुध पर गई हुई शाखा व्यापार सम्बन्ध में उन्‍नति का लक्षण है। 

भाग्य रेखा पर शनि के नीचे अर्थात् अन्त में शाखा हो तो बहुत उत्तम लक्षण है। किसी भी आयु में इसका फल हो सकता है। अन्य रेखाओं में जब भी उन्‍नति के लक्षण आरम्भ होते हैं तभी यह द्विभाजन अपना चमत्कार दिखाता है। ऐसे व्यक्ति पहले कितने भी दु:खी रहे हों प्रौढ़ावस्था में अवश्य ही धन, सन्तान व सम्पत्ति का सुख प्राप्त करते हैं और बुरे दिनों को शीघ्र भूल जाते हैं। इस प्रकार के द्विभाजन से व्यक्ति के अन्दर आगे होने वाली घटनाओं का आभास हो जाता है।

जब भाग्य रेखा शनि के नीचे तीन भागों में विभक्त होकर त्रिशूल बनाती हो तो ऐसे व्यक्ति शिव उपासक होते हैं और इन्हें अपने इष्‍ट देव के दर्शन हो जाते हैं। किसी अन्य देवता की उपासना करने वाले व्यक्ति के हाथ में ऐसे चिन्ह हो तो उन्हें शिवोपासना करने की सलाह देनी चाहिए।

कभी-कभी भाग्य रेखा द्विभाजित होकर मस्तिष्क रेखा पर मिलने से द्वीप की आकृति बनाती है। यह उस आयु में झंझटों का चिन्ह है, झंझट का कारण स्वयं की आदत होती है।

भाग्य रेखा से कोई शाखा शनि की ओर जाती हो तथा उसके अन्त में द्वीप हो तो कार्य उस आयु में प्रारम्भ किया जाता है अन्त में उससे परेशानी व हानि होती है। कार्य साझे में होने की दशा में मुकदमेबाजी तथा अन्य परेशानियां होती है और मुकदमे में हार होती है। ऐसे व्यक्ति की दुकान आदि को कोई जला देता है या लूट लेता है या इनके जमे जमाये कार्य पर कोई दूसरा अधिकार कर लेता है और ऐसे व्यक्ति झगड़े या मुकदमेबाजी की परिस्थिति में नहीं होते या ऐसा करने पर इनकी हार होती है। यदि हाथ में उपरोक्त दोषों को दूर करने वाला लक्षण हो तो लाभ तो नहीं होता परन्तु हानि भी नहीं होती, झगड़ा अवश्य होता है। अंगुलियां पतली व छोटी, अंगूठा लम्बा व पतला, जीवन रेखा घुमावदार मस्तिष्क रेखा दोनों ओर शाखान्वित, वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली के बराबर या लम्बी हो तो हार विजय में परिवर्तित हो जाती है और लाभ का सन्देश लाती है।



भाग्य रेखा का निकास – origin of fate line


भाग्य रेखा निम्न स्थानों से निकलती हुई देखी जाती है :-


जीवन रेखा से भाग्य रेखा का निकास



जीवन रेखा से भाग्य रेखा का निकास स्पष्‍ट है परन्तु कुछ हाथों में भाग्य रेखा किसी और स्थान से निकलती है और इसका सम्बन्ध किसी अन्य रेखा के द्वारा जीवन रेखा से होता है। इस प्रकार की भाग्य रेखा सम्मिलित फल करती है।

जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकलने पर व्यक्ति पूर्णतया स्वनिर्मित होते हैं। ये न्याय से धन कमाते हैं। भाग्य रेखा पतली होने पर निश्चय ही यह गुण होता है। इन्हें अपना जीवन निर्माण करने की सतत आकांक्षा रहती है और इस दिशा में सतत प्रयत्न करते हैं। ऐसे व्यक्ति पहले नौकरी करते देखे जाते हैं तथा बाद में अवसर मिलने पर व्यापार में आ जाते हैं। ये आत्मविश्वासी तथा कुटुम्ब से प्रभावित होते हैं, फलस्वरूप ऐसे कार्य नहीं करते जिससे इनकी या इनके कुटुम्ब की प्रतिष्‍ठा को आंच आती हो परन्तु भाग्य रेखा निर्दोष होनी आवश्यक है। साथ ही साथ देख लेना चाहिए कि वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली से अधिक छोटी तो नहीं है। भाग्य रेखा दोषपूर्ण होने पर यदि वृहस्पति की अंगुली भी छोटी हो तो सम्मान से गिर कर भी कार्य कर डालते हैं तथा लांछन एवं चरित्र की परवाह नहीं करते। ऐसे व्यक्ति परोपकारी होते हैं, यदि अंगुलियां अधिक छोटी व पतली नहीं हो तो कोई न कोई परोपकार का कार्य अवश्य करते देखे जाते हैं। प्रतिष्‍ठा को सबसे अधिक महत्व देते हैं व दूसरों का लाभ देख कर लोभ नहीं करते।

जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा जीवन रेखा के समीप चलकर कुछ दूर समाप्त हो जाती हो तो इस आयु के पश्चात् ही जीवन में सफलता मिल पाती है। उपरोक्त प्रकार से समाप्त हुई भाग्य रेखा में से यदि कोई दूसरी भाग्य रेखा निकल कर शनि की ओर जाती हो तो उस आयु से उन्‍नति करना आरम्भ करते हैं और इन्हें उस आयु में स्वतंत्र अधिकार प्राप्त हो जाते हैं।

ऐसे व्यक्तियों की जीवन रेखा सीधी हो तो इन्हें जीवन बनाने में संघर्ष अधिक करना पड़ता है तथा जीवन देर से बन पाता है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण शक्ति एक स्थान पर केन्द्रित नहीं कर पाते। भाग्य रेखा का फल भी उस आयु तक नहीं मिलता जब तक जीवन रेखा में दोष रहता है। ऐसे व्यक्तियों का जीवन यापन तो होता रहता है परन्तु अधिक खर्च या ऋण के कारण मानसिक परेशानी रहती है। जिस आयु तक जीवन रेखा सीधी होती है ऐसा ही रहता है। हां ! यदि भाग्य रेखा दो या अधिक हों तो ऐसे अनेक दोषों के होते हुए भी व्यक्ति शीघ्र ही उन्‍नति कर लेते हैं।

जीवन रेखा से निकल कर भाग्य रेखा बिना रुके निर्दोष होकर शनि पर पहुंचती हो तो व्यक्ति कई-कई काम करते हैं। साझेदारी में एवं स्वतंत्र कार्य भी करते हैं। हाथ कुछ कठोर होने पर कारखाने लगाते हैं तथा इनके कारखाने भी कई जगह होते हैं परन्तु यह हाथ की उत्तमता पर निर्भर करता है। हाथ नरम होने पर ये दुकानदारी या एजेन्सी आदि कार्य करते हैं। यह भी कई स्थान पर होता है। हाथ निर्दोष होने पर सफलता मिल जाती है। हाथ चौड़ा व भारी होने पर भी यदि अंगुलियां लम्बी हों तो सफलता मिलने में थोड़ा विलम्ब होता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति दूसरों पर निर्भर रहते हैं व उदार होते हैं। हाथ अधिक कोमल होने पर भी उद्योग की ओर जाते हैं। भारी और अधिक कोमल हाथ उद्योगपति होने का लक्षण है।

यदि इस प्रकार की भाग्य रेखा वृहस्पति पर गई हो व हाथ में वृहस्पति उन्‍नत हो तो जीवन भर नौकरी ही करते हैं, परन्तु यह नौकरी उत्तम होती है, ये पदाधिकारी या पूर्ण स्वतंत्र होते हैं।


भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास से स्वतन्त्र 



इस प्रकार की भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास से निकल कर शनि पर जाती है परन्तु इनका उदय जीवन रेखा से अलग होता हैं और किसी रेखा के द्वारा जीवन रेखा से इसका सम्बन्ध नहीं बनता। यह बात बहुत ही ध्यान से देख लेनी चाहिए कि यह भाग्य रेखा किसी मोटी या पतली रेखा के द्वारा जीवन रेखा से तो सम्बन्धित नहीं है, अन्यथा इसका फल जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा जैसा ही होता है। यहां फिर पूर्वोक्त चेतावनी दी जाती है कि यदि जीवन रेखा से, जीवन रेखा प्रारम्भ होने के एक इंच बाद कोई भाग्य रेखा नहीं निकलती हो तो इसके फल में बहुत कमी आ जाती है। ऐसे व्यक्ति बिना धन्धे के नहीं रहते। यदि खाली हों तो इन्हें काम पर बुला कर ले जाया जाता है। इसका कारण यह है कि ये ईमानदार, मेहनती एंव कुशल कार्यकर्ता होते हैं, जो भी कार्य अपने हाथ में लेते हैं उसे उत्तरदायित्व के साथ पूर्ण करते है। अत: अपने कार्य क्षेत्र में प्रसिद्ध होते हैं।

जिस आयु तक यह भाग्य रेखा मोटी होती है ये लापरवाह देखे जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को मित्र विश्वास-पात्र मिलते हैं जिनसे इन्हें लाभ होता हैं क्योंकि स्वयं भी मित्र के लिए त्याग करते हैं और उनके कुटुम्ब को अपना कुटुम्ब समझते हैं। ये नये मार्ग का निर्माण करके चलते हैं फलस्वरूप कुटुम्ब में होने वाले कार्य के अतिरिक्त कोई नया धन्धा करते हैं। इन्हें दूसरों की सहायता की आवश्यक्ता नहीं होती तो भी इनसे सम्बन्धित व्यक्ति इन्हें सहयोग देने को तैयार रहते हैं। मस्तिष्क रेखा भी जीवन रेखा से अलग हो ते निश्चय ही किसी का सहयोग नहीं लेते या इसकी आवश्यक्ता ही नहीं पड़ती।

ऐसे व्यक्ति स्वतंत्र आदत के होते हैं। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग, अंगूठा कम खुलता हो या मोटा व झुकने वाला न हो तो ये स्वतंत्र के स्थान पर स्वछंद स्वभाव के होते हैं। जिस समय तक भाग्य रेखा मोटी होती है उस समय तक अपने माता-पिता के लिये सिर दर्द होते हैं। किसी बात को न मानना, अपनी चलाना, दूसरे की बुराई तथा आलोचना करना, क्रोध आने पर अपमान कर देना इनका स्वभाव होता है। ऐसे व्यक्ति इस आयु में माता-पिता को रूढिवादी या मूर्ख समझते हैं, विचारो के मेल खाने का तो प्रश्‍न ही नहीं उठता। दोष कुछ अधिक हो तो इन्हें इस विचार वैषम्य के कारण घर से अलग रहना पड़ता है। भाग्य रेखा पतली होने पर इनमें उत्तरदायित्व का भाव आता है और सभी कुछ ठीक हो जाता है। फिर भी ये दब कर चलना, बिना उचित कारण किसी बात को मानना पसन्द नहीं करते।

यदि यह भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो ये छोटी आयु में ही विदेश चले जाते हैं। यहां यह ध्यान देने की बात है कि भाग्य रेखा दोनों हाथों में ही मस्तिष्क रेखा पर रुकनी चाहिए और ठीक एक ही बिन्दु पर नहीं रुकनी चाहिए। यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर एक बिन्दु पर रुकती हो तो जीवन साथी की मृत्यु हो जाती, ऐसे व्यक्तियों की वृहस्पति की अंगुली छोटी होती है।


भाग्य रेखा का निकास शनि क्षेत्र से 



शनि क्षेत्र हाथ में शनि की अंगुली के नीचे कलाई तक का क्षेत्र है। इस क्षेत्र से निकली हुई भाग्य रेखा बहुत ही उत्तम श्रेणी की मानी जाती है। देखने में आया है कि यह भाग्य रेखा चन्द्रमा के आस-पास से न निकल कर ऊपर से निकलती है। यह देर से आरम्भ हुई भाग्य रेखा जैसी होती है। इसका कोई भी सम्बन्ध जीवन रेखा से नहीं होता अर्थात् यह किसी रेखा या अन्य चिन्ह के द्वारा जीवन रेखा से नहीं जुड़ती व 24 से 26वर्ष की आयु में आरम्भ होती है। इस प्रकार की भाग्य रेखा को हम शनि क्षेत्र से निकली भाग्य रेखा कहते हैं।

ऐसे व्यक्ति बहुत ही प्रगतीशील, गण्यमान्य, धनी व महान् होते हैं। इस भाग्य रेखा के आरम्भ होने की आयु से ही ये उन्‍नति आरम्भ करते हैं। इन्हें अपना जीवन स्वयं बनाना पड़ता है। भाग्य रेखाएं ऐसे हाथों में एक से अधिक हों तो बहुत ही धनवान होते हैं व योग्यता से ही उन्‍नति करते हैं तथा इन्हें किसी की सहायता की कभी आवश्यक्ता नहीं पड़ती तो भी दूसरे व्यक्ति अनायास ही इनकी सहायता करते हैं। 

ये कई-कई व्यापार करते हैं और अन्त में उद्योग में ही जाते हैं। विदेश व्यापार या किसी दूसरे देश से मिल कर कोई धन्धा ऐसे ही व्यक्ति करते हैं। इनकी सन्तान भी योग्य होती है। इनके बच्चे थोड़ी आयु में ही काम करने लग जाते हैं। हाथ के अन्य लक्षणों का देख कर शेष फलादेश कहना चाहिए।


भाग्य रेखा का निकास मस्तिष्क रेखा से 



अनेक बार भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा से उदय होकर शनि क्षेत्र जाती है। देखा जाता है कि ऐसे हाथों में जीवन रेखा या अन्य स्थान से उदित होने वाली भाग्य रेखा भी होती है। चमसाकार, समकोण आदर्शवादी हाथों में तो भाग्य रेखा की आवश्यक्ता ही नहीं होती, ऐसे हाथ भाग्य रेखा के न होने पर भी उसी प्रकार फल करते हैं।

हाथ में मुख्य भाग्य रेखा न होने पर केवल मस्तिष्क रेखा से ही भाग्य रेखा का उदय हो तो यह बहुत ही महत्व की हो जाती है। वैसे तो इनका जीवन पहले भी यदि हाथ व अन्य लक्षण ठीक हों तो सुचारु रूप से चलता रहता है परन्तु विशेष उन्‍नति इस भाग्य रेखा के निकलने की आयु से ही करते हैं। इसका फल 35वर्ष के पश्चात् व उस आयु से होता है जिसमे यह रेखा मस्तिष्क रेखा से निकलती है।

हाथ में यह उत्तम लक्षण माना जाता है। ऐसे व्यक्ति अपने ही मस्तिष्क और अपने ही ढंग से कार्य करके धन व प्रतिष्‍ठा प्राप्त करते हैं। हाथ में दूसरे लक्षण भी ठीक हों तो बहुत ही योग्य एवं प्रगतिशील सिद्ध होते हैं तथा विलक्षण व मिलनसार होते हैं। जिस आयु में मस्तिष्क रेखा से यह रेखा निकलती है उस आयु से भाग्योदय होकर व्यक्तिगत उन्‍नति का मार्ग प्रशस्‍त हो जाता है। उस आयु में ये कोई ऐसा कार्य करते हैं जो इन्हें बहुत सफल बना देता है। इस समय से पहले कोई विशेष सफलता नहीं मिलती। ऐसे हाथों में दूसरी भाग्य रेखा भी हो तो पहले भी इन्हें सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं परन्तु नई भाग्य रेखा के उदय की आयु से विशेष प्रगति करते हैं।

यदि यह भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा के किसी त्रिकोण से उदय होती हो तो इस आयु में व्यक्ति सम्पत्ति का निर्माण करता है। यदि उसकी कोई पहली सम्पत्ति हो तो भी नया निर्माण, पुरानी सम्पत्ति में कुछ फेर बदल या बनी हुई सम्पत्ति में कुछ और भाग बढ़ाया जाता है। व्यय का अनुमान हाथ के स्तर से किया जाना चाहिए।

मस्तिष्क रेखा से दो भाग्य रेखाएं बिल्कुल पास-पास निकलें तो दो कारोबार के द्वारा उन्नति होती है, परन्तु यदि शुक्र उन्‍नत व हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो किसी से अनैतिक सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। जब तक दोनों भाग्य रेखाएं साथ-साथ रहती हैं ऐसे सम्बन्ध भी चलते रहते हैं।


भाग्य रेखा का निकास चन्द्रमा से 



यह एक महत्वपूर्ण लक्षण है। इसमें भाग्य रेखा जीवन रेखा से न निकल कर चन्द्रमा से निकलती है अर्थात् यह भाग्य रेखा जीवन रेखा से अधिक दूर होती है। सिद्धान्त: यदि इसमें काई दोष न हो तो जीवन रेखा से दूर होने के कारण उत्तम भाग्य रेखा मानी जाती है। यह देखना चाहिए कि यह भाग्य रेखा हृदय या मस्तिष्क रेखा पर न रुकी हो और चलते हुए जीवन रेखा के पास न गई हो, अन्यथा कष्‍टकारक सिद्ध होती है। साथ ही यह पतली भी होनी चाहिए। निर्दोष अवस्था में यह बहुत ही उत्तम लक्षण माना जाता है। यहां भी जीवन रेखा से शनि के नीचे कोई छोटी भाग्य रेखा निकलना आवश्यक है इस प्रकार की भाग्य रेखा का फल उसी आयु से आरम्भ होता है जिससे यह शनि क्षेत्र में प्रवेश करती है।

चन्द्रमा से निकली भाग्य रेखा अक्सर जीवन रेखा के पास देखी जाती है। इस दशा में यह खराब फल करती है। यदि यह मस्तिष्क रेखा पर विशेषतया सूर्य के नीचे रुकती हो तो विशेष खराब फल करती है। ऐसे व्यक्ति 44वर्ष की आयु तक स्थायित्व प्राप्त नहीं कर पाते। अनेक काम बदलने के बाद भी हानि उठाते हैं। हृदय रेखा पर रुकने पर भी व्यक्ति को स्थायित्व देर से मिलता है क्योंकि ये निजी हितों के प्रति लापरवाह होते हैं और दूसरों के प्रभाव में शीघ्र आते हैं। अत: देर से ही अपने पैरों पर खड़े हो पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों से समाज सेवा की विशेष भावना होती है। अत: ध्यान से इसका अध्ययन कर लेना चाहिए।

चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर निर्दोष हो कर यदि शनि पर गई हो तो ऐसे व्यक्ति मस्त स्वभाव के होते हैं व अंगूठा सख्त या कम खुलता हो तो मन मानी करने वाले होते हैं इनकी निर्णय शक्ति उत्तम होती है, परन्तु यदि हाथ में अधिक रेखाएं हों तो अधिक देर तक सोचने की प्रवृत्ति होती है और निर्णय भी स्पष्‍ट नहीं होता। 

चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर यह हृदय रेखा पर रुकती हो, इसमें थोड़ा बहुत कोई दोष जैसे मोटी होना आदि हो और शुक्र उन्‍नत हो तो ये विशेष वासना प्रिय होते हैं। ऐसे व्यक्ति स्त्रियों का सम्पर्क पसन्द करते हैं तथा इनका अधिक समय स्त्रियों के विषय में सोचने में ही जाता है। स्त्री होने पर ऐसी स्त्रियां पुरुषों में बैठने की इच्छा करती है या उनके विषय में अधिक सोचती हैं, फलस्वरूप चरित्र दोष हो जाता है। 

चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकल कर यदि निर्दोष अवस्था में शनि पर जाती हो तो ऐसे व्यक्ति राजनीति में रुचि लेते हैं, यदि यह पतली भी हो तो मनस्वी, धनी व बहु-धंघी होते हैं। ये किसी संस्था के अवैतनिक पदाधिकारी भी होते हैं। उत्तरार्द्ध में ऐसे व्यक्ति चुनाव लड़ते हैं, हाथ उत्तम व अन्य गुण हों तो सफल होते है, हाथ उत्तम नहीं होने पर उपरोक्त कार्य में रुचि रखते हैं, केवल इतना ही बता देना चाहिए। बुध की अंगुली का नाखून छोटा होने पर अवश्य ही ऐसे व्यक्ति राजनीति या जनसम्पर्क के व्यवसाय में होते हैं। जब तक इनके पास धन या समय का अभाव होता हैं, राजनीति में भाग नहीं लेते परन्तु जब भी प्रचुर धन व उपयुक्त अवसर होता है राजनीति में प्रवेश कर जाते हैं।

भाग्य रेखा चन्द्रमा से निकल कर हृदय रेखा पर रुकती हो तो ऐसे व्यक्ति धीरे-धीरे उन्‍नति करते हैं, एकदम उन्‍नति के अवसर इन्हें बहुत कम मिलते हैं, जिसका कारण नौकरी करना, दूसरे पर निर्भर रहना, आलसी होना, आज का काम कल पर टालना, उधार डूबना या साझियों से परेशानी होना आदि होते हैं। इनका घरेलू वातावरण भी सुन्दर नहीं होता। अत: काफी समय इन्हें अपनी घरेलू समस्याएं सुलझाने में लग जाता है।

चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर यदि चन्द्र रेखा भी हो तो व्यक्ति घर से दूर जा कर उन्‍नति करते हैं। मस्तिष्क व भाग्य रेखाएं निर्दोष हों तो बहुत ही उन्‍नति करते हैं। हाथ भारी होने पर जायदाद भी बनाते हैं। ऐसे व्यक्तियों का जन्मभूमि से सम्बन्ध लगभग समाप्त ही हो जाता है। इनकी सम्पत्ति समुद्र या जलाशय के किनारे होती है। भाग्य रेखाएं एक से अधिक हों तो सम्पत्ति कई राज्यों या कई देशों में होती है। मस्तिष्क रेखा का वर्णन करने समय बताया जा चुका है कि मस्तिष्क रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर हो तो व्यक्ति का निवास जल के पास होता है, भाग्य रेखा भी चन्द्रमा से उदय हो तो जल की मात्रा अधिक होती है। मस्तिष्क रेखा का झुकाव चन्द्रमा की ओर हो तो ऐसे व्यक्तियों की सम्पत्ति समुद्र, झील या बड़ी नदी के किनारे होती है। टापू पर रहने वाले, समुद्री जहाज में व्यापार या नौकरी करने वालों के हाथों में ऐसे ही लक्षण होते हैं। 


भाग्य रेखा का निकास मंगल से



हाथ में मंगल दो स्थानों पर होता है। अंगूठे के पास और बुध की अंगुली के नीचे। कभी-कभी अंगूठे वाले मंगल से भाग्य रेखा निकल कर शनि की ओर जाती हुई देखी जाती है। वैसे तो यह भाग्य रेखा ही होती है परन्तु देखने में ऐसी नहीं लगती, अत: सूक्ष्म निरीक्षण करके इसका निर्णय कर लेना चाहिए। देखा गया है कि बुध के मंगल से निकल कर कोई भाग्य रेखा शनि पर नहीं जाती।

इस प्रकार की भाग्य रेखा वृहस्पति मुद्रिका का भी कार्य इस स्थान पर करती है। यदि ऐसे व्यक्तियों को धर्म में विशेष रुचि हो तो ये इस विषय में अच्छी स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इन्हें गुरुत्व शक्ति की प्राप्ति साधनावस्था में ही हो जाती है। यह लक्षण आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 

मंगल से भाग्य रेखा निकलने पर बड़ी आयु में संघर्ष के साथ जीवन बनता है फिर भी ऐसे व्यक्ति अच्छी उन्‍नति कर जाते हैं। स्वभाव गरम होने के कारण इन्हें सहयोग नहीं मिलता। ऐसे व्यक्ति धन के विषय में समझदार, मिलनसार, साहसी तथा सम्पत्ति निर्माण करने वाले होते हैं। पूर्वायु में ये शारीरिक श्रम करते देखे जाते हैं, जीवन में कोई न कोई समय ऐसा भी आता है कि जब इन्हें भोजन प्राप्त करने में भी कठिनाई का अनुभव होता है।

मंगल से निकली भाग्य रेखा यदि शनि पर जाती हो तो व्यक्ति चलती चीज, सवारी या जानवर आदि से टकरा कर चोट खाते हैं या उससे गिरते हैं। ये किसी वृक्ष से भी गिरते हैं। सट्टे के काम में इन्हें हमेशा हानि होती है। 


भाग्य रेखा का निकास भाग्य रेखा से



कई हाथों में भाग्य रेखा मुख्य भाग्य रेखा से निकलती हुई देखी जाती है। यह एक उत्तम लक्षण है। हाथ में सूर्य रेखा, हाथ भारी या अन्य उत्तम लक्षण होने पर अचानक भाग्योदय होने का सूचक है। जिस आयु में यह रेखा भाग्य रेखा से निकलती है, कोई न कोई उत्तम कार्य किया जाता है, जोकि पूरे जीवन को स्थायी कर जाता है। इस आयु से व्यक्ति स्वतंत्र रूप से जीवन यापन भी आरम्भ कर देता है। भाग्य रेखा से भाग्य रेखा निकलने या एक भाग्य रेखा के होते हुए दूसरी भाग्य रेखा होने या शनि क्षेत्र या चन्द्रमा से भाग्य रेखा निकलने पर यह जरुरी नहीं कि जिस आयु में भाग्य रेखा निकलती है उसी आयु में लाभ हो, इसका फल जीवन में उससे पहले या बाद या आयु भर मिलता रहता है। किन्तु मस्तिष्क रेखा, सूर्य रेखा या जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा का चमत्कार उसी आयु में प्रकट होता है जिसमें यह निकलती है।


भाग्य रेखा का अन्त




भाग्य रेखा का अन्त शनि पर



पहले ही बताया गया है कि भाग्य रेखा का अन्त शनि, वृहस्पति या सूर्य पर होता है। शनि पर गई भाग्य रेखा दोष रहित हो तो बहुत उत्तम मानी जाती है। विशेष भाग्य रेखा, हाथ गुलाबी और भारी, भाग्य रेखा चन्द्रमा या शनि क्षेत्र से निकलने की दशा में यह विशेष उत्तम व सुख और सौभाग्य का लक्षण है। 

शनि पर गई हुई भाग्य रेखा होने पर यदि हाथ कुछ कठोर व शनि नीचे से नोकीला या ऊपर से उन्‍नत हो तो व्यक्ति की रुचि बगीचे, खेती आदि में हाती है तथा नौकरी भी खेती-बाड़ी के विभाग में करते देखे जाते हैं। शनि की अंगुली लम्बी होने पर तो ऐसा अवश्य ही होता है। यह भाग्य रेखा मोटी भी हो तो घर में खेती का कार्य होता है। बायें हाथ में भाग्य रेखा मोटी होने पर व्यक्ति के वंश तथा दायें हाथ में होने पर स्वयं की खेती का योग होता है, दोनों ही हाथों में भाग्य रेखा गहरी व हाथ अच्छा हो तो वंशानुगत कृषि कार्य पाया जाता है। हाथ के अन्य लक्षणों को देख कर खेती की मात्रा आदि आसानी से बताई जा सकती है। शनि मुद्रिका होने पर भी खेती या खनन सम्बन्धी कार्य भी करते हैं। ऐसे व्यक्ति भूमि में खोद कर कुछ निकालने, पत्थर की रोड़ी बनाने या मिट्टी या रेत आदि का कार्य करते हैं।


भाग्य रेखा का अन्त वृहस्पति पर



मुख्य भाग्य रेखा का अन्त वृहस्पति पर बहुत कम देखने को मिलता है, या तो यह भाग्य रेखा जीवन रेखा से वृहस्पति के नीचे से निकल कर वृहस्पति पर जाती है या भाग्य रेखा ही शाखान्वित होकर वृहस्पति पर पहुंचती है। जीवन रेखा से भाग्य रेखा निकल कर यदि वृहस्पति पर जाए तो इच्छा रेखा कहलाती है, परन्तु ऐसी दो रेखाएं एक साथ होने पर भाग्य रेखाएं मानी जाती हैं। ऐसी दो रेखाएं होने पर व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं और 22वर्ष की आयु में धनी हो जाते हैं।

मुख्य भाग्य रेखा वृहस्पति पर जाने की दशा में यह स्वाभाविक रूप से ही जीवन रेखा के पास आ जाती है अत: अशान्ति का कारण होती है। कुटुम्ब क्लेश, मानसिक अशान्ति, झगड़े आदि इसके फल होते हैं। ऐसे व्यक्ति उत्तरदायित्व महसूस नहीं करते और सामीप्य की आयु तक घमण्डी और असफल रहते हैं फलत: 35वर्ष की आयु के पश्चात् उन्नति करते हैं। ये स्वयं को वृहस्पति समझते हैं या बोलने की आदत कम होती है। यदि वृहस्पति अच्छा हो तो नौकरी ही करते हैं। नौकरी सम्मानजनक होती है। इसमें इनके स्वतंत्र अधिकार होते हैं एवं स्वामी की तरह से ही रहते हैं।
यदि भाग्य रेखा द्विभाजित होकर एक शाखा वृहस्पति पर जाए तो ऐसे व्यक्ति सफल, सम्मानित व उच्च पदस्थ होते हैं, परन्तु इसकी एक शाखा शनि पर जाना आवश्यक है।

यदि द्विभाजित भाग्य रेखा की एक शाखा वृहस्पति व एक सूर्य पर जाती हो तो प्रतिष्‍ठा, यशोवृद्धि तथा धनवृद्धि का कारक होती है। ऐसे व्यक्तियों को राज्य से सम्मान प्राप्ति होती है। हाथ उत्तम होने पर ये देश के इनेगिने व्यक्तियों में से होते हैं। कई बार भाग्य रेखा हृदय रेखा के पास द्विभाजित होकर एक शाखा वृहस्पति व एक शनि पर जाती है। यह सुख, समृद्धि, धन, सम्मान का कारण होती है। हाथ उत्तम होने पर यह अद्धितीय लक्षण है।
साभार
कबीर के दोहे

मस्तिष्क रेखा एवं आपका व्यक्तित्व

जीवन रेखा - Life Line # 4

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मस्तिष्क रेखा एवं आपका व्यक्तित्व

मस्तिष्क रेखा का हस्तरेखा palmistry में बहुत महत्व होता है

मस्तिष्क रेखा परिचय

मस्तिष्क रेखा का हथेली में बहुत महत्व होता है मस्तिष्क रेखा व्यक्तित्व चरित्र व सफलता - असफलता के बारे में बहुत कुछ बताती है इस लेख में विस्तार से मस्तिष्क रेखा के बारे में लिखा गया है

निर्दोष मस्तिष्क रेखा
दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा
मस्तिष्क रेखा का निकास
मस्तिष्क रेखा का अन्त

यह रेखा हथेली के बीचों बीच दो भाग करती हुई देखी जाती है। इसका आरम्भ वृहस्पति मंगल या दोनों के बीच से और अन्त मंगल, चन्द्रमा या दोनों के बीच होता है। मस्तिष्क रेखा जितनी ही सीधी होती है उत्तम होती है। लम्बी मस्तिष्क रेखा भी उत्तम नहीं मानी जाती। जो मस्तिष्क रेखा बुध की अंगुली के आरम्भ तक समाप्त हो जाती है बहुत ही उत्तम होती है। मस्तिष्क रेखा में एक या दोनों ओर द्विभाजन इसके गुणों में वृद्धि करती है।

मस्तिष्क रेखा में किसी भी प्रकार का दोष जीवन को पूरी तरह से प्रभावित करता है। मस्तिष्क रेखा तथा जीवन रेखा का जोड़ लम्बा नहीं होना चाहिए, यह भी मस्तिष्क रेखा के गुणों में कमी कर देता है। मस्तिष्क रेखा को एकदम झुकना या मुड़ना भी नहीं चाहिए। यदि मस्तिष्क रेखा धीरे-धीरे झुक कर चन्द्रमा की ओर जाती हो तो उत्तम मानी जाती है परन्तु यही मस्तिष्क रेखा एकदम मुड़ कर चन्द्रमा पर जाए तो दोषपूर्ण मानी जाती है। मस्तिष्क रेखा हाथ में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हम इसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण रेखा कह सकते है ।

निर्दोष मस्तिष्क रेखा

मस्तिष्क रेखा जितनी ही निर्दोष और सीधी होती है व्यक्ति उतना ही स्वतन्त्र-मस्तिष्क होता है तथा जीवन बिना किसी संकट के आगे बढ़ता है। ऐसे व्यक्ति समझदार व धनवान होते हैं। किसी के प्रभाव में आना या दब कर चलना इनके बस की बात नहीं। बिना किसी आर्थिक एवं मानसिक सहायता के ही निजी आत्मबल से उन्‍नति करते है। यदि अन्य रेखाओं में कोई विशेष दोष न हो तो निरन्तर उन्‍नति करते जाते हैं। अन्य रेखाओं के दोष को भी निर्दोष मस्तिष्क रेखा कम कर देती है। कितना भी दोष होने पर ऐसे व्यक्ति जीवन-यापन आसानी से करते रहते हैं।


ऐसे व्यक्ति पढ़ने में होशियार होते है, समय खराब नहीं करते। यदि जीवन रेखा गोलाकार भी हो तो अध्ययन का समय बहुत ही सुन्दर बीतता है। तथा छात्रवृत्ति या परीक्षा में असाधारण स्थान प्राप्त करते हैं। शुक्र उठा या भाग्य रेखा मोटी होने पर बुद्धिमान तो होते हैं परन्तु लापरवाही या अन्य व्यसनों में फंसने से शिक्षा की ओर ध्यान नहीं देते। भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास या मोटी होने पर आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण अध्ययन में विध्न पड़ता है।


निर्दोष मस्तिष्क रेखा के साथ वृहस्पति बहुत अधिक उन्‍नत हो तो अत्यधिक आत्म-विश्वास हो जाता है फलस्वरूप लापरवाही आ जाती है। इससे विद्यार्थी सारा वर्ष न पढ़ कर सीमित समय में अपनी परीक्षा की तैयारी करते हैं, अत: परीक्षा में सन्तोष जनक परिणाम प्राप्त नहीं कर पाते।


मस्तिष्क रेखा में अंगुलियों की ओर शाखाएं, जीवन रेखा गोलाकार, एक से अधिक भाग्य रेखाएं, सूर्य रेखा, सारे ग्रह उठे हुए, हाथ का रंग गुलाबी, अंगुलियां सीधी व देखने में सुन्दर, हाथ का आकार बड़ा और भारी, हाथ में विशेष भाग्य रेखा हो तो व्यक्ति प्रतिष्ठित होते हैं। ऐसे लक्षणों की बहुलता देश भर में किन्हीं इने-गिने व्यक्तियों के हाथों में पायी जाती है।


विशेष उत्तम मस्तिष्क रेखा होने पर व्यक्ति कठोर, घमण्डी, स्वार्थी, अभिमानी, अविश्वास करने वाला, चालाक तथा शक्की होता है। अत: बहुत अच्छी मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हाथ में यदि हाथ भी उसी के अनुसार उत्तम नहीं है तो दोष माना जाता है।


अच्छी मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति कामुक होते है, हाथ गरम हो तो काम-वासना प्रगट होने पर अपने आपको रोक नहीं सकते। हाथ का गठन सुद्दढ़ हो तो इनमें वृद्धावस्था तक काम शक्ति जागृत अवस्था में पाई जाती है।


उत्तम मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति छोटी-छोटी बातों को बहुत शीघ्र समझ जाते हैं। बहुत ही ढंग से चलते वाले व किसी भी समस्या का सामना दृढ़ता से करने वाले होते हैं, ऐसे व्यक्तियों की मस्तिष्क रेखा अधिक लम्बी नहीं होनी चाहिए।
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दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा


मस्तिष्क रेखा जब मोटी, पतली, लाल, काली, द्वीपयुक्त, टूटी, झुकी, अधिक लम्बी, देर से शुरू होने वाली व अधिक पास से दुहरी हो तो दोष पूर्ण कहलाती है। उपरोक्त दोष जब शनि की अंगुली के नीचे हों तो अधिक प्रभावकारी सिद्ध होते हैं अन्यथा साधरण प्रभाव होता है। अक्सर कोर्इ भी दोष उस आयु में प्रभाव करता है जब वह मस्तिष्क रेखा में होता है।


मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण व हृदय रेखा या अन्तर्ज्ञान रेखा भी दोष पूर्ण हों तो जब भी बुखार होता है तेज होता है और बेहोशी तक नौबत पहुंचती है। मस्तिष्क रेखा छोटी-छोटी रेखाओं द्वारा काटे जाने या इसमें क्रास होने पर भी ऐसा ही होता है।


दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा की आयु में मनुष्य को मानसिक परेशानी रहती है। इससे व्यक्ति के हाथ में अनेक नर्इ रेखाएं पैदा हो जाती हैं जैसे मकान की उत्कट इच्छा होने पर हृदय रेखा में त्रिकोण, धन चिन्ता होने पर अन्य भाग्य रेखा, सम्मान चिन्ता होने पर सूर्य रेखा, स्वास्थ्य चिन्ता होने पर अन्य स्वास्थ्य रेखाएं मंगल रेखा या किसी रेखा को ढकने वाली सह रेखा आदि। अधिक दोष होने पर ये रेखाएं स्थायी हो जाती हैं अन्यथा दोष का समय पूर्ण होने पर स्वत: ही मिट जाती हैं। तात्पर्य यह है कि जिस विषय की चिन्ता होती है उसी विषय की रेखाएं हाथ में कुछ समय के लिए पैदा हो जाती हैं।


मस्तिष्क रेखा में कहीं भी दोष होने पर कुटुम्ब की ओर से परेशानी होती है। शनि की अंगुली तिरछी व भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास हो तो विशेष रूप से कुटुम्ब की चिन्ता रहती है। इस आयु में व्यक्ति अपनी स्मृति कमजोर समझता है। वास्तव में यह खराब समय तथा मानसिक चिन्तन अधिक होने का ही कारण होता है।


दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा वाले व्यक्ति अस्थिर मस्तिष्क, भावुक, धार्मिक,  दयालू पाये जाते हैं। क्षण में कुछ सोचते हैं और क्षण में कुछ। अंगुलियां लम्बी हों तो दूसरों के प्रभाव में शीघ्र आते हैं अन्यथा जिद्दी होते हैं और गलत बात पर अड़ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति के साथ अधिक समय तक प्रेमपूर्ण वतावरण नहीं रह सकता, फलस्वरूप इनके सम्बन्ध किसी से स्थायी नहीं रहते, ये किसी से भी सहयोग न मिलने की शिकायत करते रहते हैं। भावुक होने के कारण अपनी बात तथा आप बीती घटनाएं, दु:ख के साथ सुनाते और पत्र लिखते समय विस्तार से कहानी बखान करते हैं। इनमें सहन शक्ति कम होती है अत: थोड़े दु:ख को भी बहुत बढ़ा कर दिखाने की आदत होती है। जरा-सी परेशानी में कुटुम्ब में कलह खड़ा कर देते हैं।


मस्तिष्क रेखा के आरम्भ में दोष या जीवन रेखा के साथ उसका जोड़ लम्बा हो तो ऐसे व्यक्तियों की निर्णय शक्ति दोष के समय तक उत्तम नहीं होती। दोष समाप्त होने के पश्चात् यह भी दूर हो जाती है। ये काम में कभी शीघ्रता तो कभी शिथिलता करते हैं। एक बात विशेष रूप से ध्यान देने की है कि जोड़ लम्बा होने पर स्वत्रंत रूप से कोर्इ भी कार्य करने में हिचकिचाते हैं। मस्तिष्क रेखा में दोष अधिक जैसे टूटी, द्वीप या झुकाव हो तो व्यक्ति क्रोध में कांपने लगता हैं और मानसिक संतुलन खो देते हैं। दोनो हाथों में ऐसा दोष न होने पर प्रभाव एक तिहार्इ ही रहता है।


मस्तिष्क रेखा दोष पूर्ण होने पर यदि उसे छोटी-छोटी रेखाएं काटती हों तो सिर में भारीपन तथा स्मृति कमजोर होती है। ऐसे व्यक्तियों को मानसिक अशान्ति रहती है। जिस आयु तक मस्तिष्क रेखा में यह दोष होता है, स्मृति की कमी महसूस होती है, तत्पश्चात् यह स्वत: ही ठीक हो जाती है और इनका आत्म-विश्वास भी ठीक हो जाता है। वास्तव में आत्म-विश्वास नहीं होना ही इसका कारण है। सोचे कार्य न बनने, अत्यधिक चिन्ता करने, रोग के पश्चात् किसी के प्रति मानसिक झुकाव होने की स्थिति में भी ऐसा पाया जाता है।


इनकी आदत आलोचना करने की होती है और यह जीवन भर रहती है। यदि एक हाथ में मस्तिष्क रेखा उत्तम हो तो आगे जाकर जब मस्तिष्क रेखा का दोष ठीक हो जाता है यह आदत भी सुधर जाती है फिर भी कभी-कभी महसूस करने तथा आलोचना करने की आदत रहती है ऐसे व्यक्ति की रिश्तेदारो से भी कम बनती है।


मस्तिष्क रेखा में दोष होना उत्तम लक्षण भी है। ऐसे व्यक्ति सहृदय, र्इश्वर का भजन करने वाले, विश्वासी एवं मानव-सुलभ गुणों वाले होते हैं परन्तु अधिक दोष होने पर ये चंचल एवं विश्वास रहित हो जाते हैं और र्इश्वर भजन में अधिक समय तक आस्था नहीं रख पाते तथा कुछ समय के पश्चात् फिर चिन्तन आरम्भ करते देखे जाते हैं। बार-बार ऐसा होने के बाद इनकी आस्था दृढ़ होने लगती है फलस्वरूप अधिक समय तक र्इश्वर चिन्तन करने लग जाते हैं तो भी इनका चिन्तन-भजन निरन्तर नहीं चलता। क्षण-क्षण में ये अपने विचार बदलते हैं, अत: विशेषतया दोष के समय किसी भी कार्य में सफल नहीं हो पाते। ऐसे व्यक्ति किसी कार्य के विषय में यह सोचा करते है कि यह इनका जन्म सिद्ध अधिकार है, परन्तु थोड़ी भी परेशानी से घबरा जाते हैं। विचार स्थिर न होने से थोड़ा भी उतार-चढ़ाव सहन नहीं कर पाते।


मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण होने की दशा में यह हृदय रेखा के समानान्तर हो तो क्रोध इतना आता है कि नियन्त्रण से बाहर हो जाते हैं। ये जिस काम के पीछे लग जाते हैं उसकी जड़ खोदने वाले होते है। इनमें बदला लेने की भावना पायी जाती है। अंगूठा छोटा या मोटा हो तथा कम खुलता हो तो इन गुणों में चार चाँद लग जाते हैं। क्रोध आने पर इन्हें स्वयं का होश नहीं रहता।


मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर व्यक्ति मस्तिष्क में कमजोरी अनुभव करता है। पेट खराब, सिर में भारीपन व भोजन के पश्चात् आराम की इच्छा अनुभव होती है क्योंकि इन्हें खाने के पश्चात् आलस्य आता है। भूख कम लगना, सिर दर्द आदि कठिनाइयां थोड़ी-थोड़ी जीवन भर बनी रहती हैं। जीवन रेखा में भी दोष हो तो इस फल में वृद्धि हो जाती है अन्यथा साधारण फल होता है। जीवन रेखा कितनी भी उत्तम हो, मस्तिष्क रेखा में दोष होने पर कुछ न कुछ फल अवश्य होता है।


मस्तिष्क रेखा में एक के बाद एक दोष हो और कुछ समय तक लगातार चलता गया हो तो धन, कुटुम्ब और स्वास्थ्य ही हानि तो होती ही है, रोजगार भी बराबर नहीं चलता। नौकरी छूटना, इसमें कोर्इ झगड़ा होना, निलम्बन आदि घटनाएं हो जाती हैं। इस समय में व्यक्ति बचा बिल्कुल नहीं सकते। जीवन रेखा गोलाकार, भाग्य रेखा उत्तम और हाथ भारी हो तो काम चलता रहता है परन्तु बचत नहीं होती। मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और कार्य परेशानी व रुकावट से पूरे होते हैं। इस समय स्थानान्तरण या जहां काम करते हैं किसी से झगड़ा या ऑफीसर, साझी या अन्य आदमी से विरोध रहता है। विशेष दोष होने पर खींचा-तानी भी होती देखी जाती है। काला हाथ होने पर ऐसे व्यक्ति अनियमित ढंग से धन कमाते हैं परन्तु कितना भी पैसा कमाएं, संचय नहीं होता।


मस्तिष्क रेखा टूटने पर नीचे या ऊपर दूसरी मस्तिष्क रेखा टूटे हुए भाग को ढक कर चलती हो तो दोष तो करती है लेकिन विशेष अनिष्ट कारक नहीं होती। इस समय मानसिक संताप, रोग, सम्बन्ध या अनन्य मित्र की रुष्टता या विलगाव से मस्तिष्क में आघात-प्रत्याघात होते रहते हैं। विशेषतया ऐसे सन्ताप निरर्थक ही होते है। व्यतिगत रूप में कोर्इ हानि नहीं होती।


मस्तिष्क रेखा टूटने की दशा में, हृदय रेखा की कोर्इ शाखा टूटे स्थान पर मिलती हो या कोर्इ भाग्य रेखा गहरी होकर यहां रुकती हो तो किसी प्रेमी का विछोह या जीवन साथी की मृत्यु होती है।


आरम्भ में दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा


नजला-जुकाम के विषय में इनको बहुत सावधानी रखनी चाहिए। इनके दांतों में भी खराबी होती है। अंगूठा लम्बा या भाग्य रेखा पतली होने पर आरम्भ से ही कार्य की क्षमता व समझ होती है। जीवन रेखा से जिस आयु में मस्तिष्क रेखा स्वतंत्र होती है या दोष समाप्त होता है व्यक्ति में कार्य की शक्ति, लालसा व समझ बढ़ जाती है और इसके पश्चात् निर्भरता नहीं रहती।



शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष



यह दोष विशेषतया व्यक्ति के स्वास्थ्य के विषय में विचारणीय है। इसके स्वतंत्र फल भी कर्इ होते हैं परन्तु दूसरी रेखाओं के साथ समन्वय करने पर स्वास्थ्य के विषय में इस दोष के चिन्तन का परिणाम बहुत ही ठोस निकलता है। यह एक महत्वपूर्ण लक्षण है तथा जीवन के प्रत्येक पहलू पर प्रभाव डालता है। यदि मस्तिष्क रेखा में दोष है तो जीवन की हर घटना पर इसका प्रभाव पड़ता है।


शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा में दोष होने के साथ यदि जीवन रेखा के प्रारम्भ अर्थात् वृहस्पति के नीचे दोष हो तो व्यक्ति के कन्धें या आस-पास के भाग में कोर्इ न कोर्इ बीमारी पार्इ जाती है। यदि जीवन रेखा के बिल्कुल आरम्भ में कोर्इ दोष हो तो गले पर इसका प्रभाव पड़ता है। जीवन रेखा के मध्य में दोष होने पर व्यक्ति के पेट, भोजन नली, आंते तथा रीढ़ की हड्डी में इसका प्रभाव पड़ता है। जीवन रेखा के उत्तरार्द्ध में इसका प्रभाव व्यक्ति के फेफड़ों, हृदय आदि पर पड़ता है, अर्थात् उपरोक्त अंगों में बीमारी पार्इ जाती है। हाथ में कहीं भी नेष्ट लक्षण होने के साथ यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो उसके उपरोक्त लक्षणों के विषय में निश्चित होकर पुष्टि की जा सकती है।


यह दोष होने पर स्वयं या परिवार के किसी सदस्य की आँख में कमजोरी होती है, स्वयं या किसी सन्तान को चश्मा लगवाना पड़ता है। वृद्धावस्था में किसी न किसी को आँख का ऑपरेशन कराना पड़ता है। यदि सूर्य के नीचे हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा या जीवन रेखा में कोर्इ देाष हो तो ऐसा निश्चय ही होता है। इन व्यक्तियों को गरम एवं खट्टे पदार्थ पसन्द होते हैं जबकि दोनों ही इनके स्वास्थ्य के लिए हानिकर हैं।


कोमल हाथों में रोग शीघ्र तथा कठोर हाथ में देर से होते हैं। रोग का कारण व्यक्ति अपने पूर्व कर्म को मानता है और भाग्य को ही इस विषय में दोष देता है। शनि के नीचे मस्तिष्क रेखा से कोर्इ रेखा निकल कर नीचे की ओर जाती है तो व्यक्ति की ऐड़ी में दर्द होता है। ऐड़ी के दर्द का कारण हड्डी बढ़ना होता है। ऐसे व्यक्तियों को अधिक नमक पसन्द होता है और उसी कारण हड्डी बढ़ जाती है। मस्तिष्क रेखा में कहीं भी तिल बड़ी आयु में लकवे का लक्षण है।
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मस्तिष्क रेखा का निकास


(क) जीवन रेखा से कम जुड़ा


इस लक्षण में मस्तिष्क व जीवन रेखा आपस में अधिक दूर तक जुड़ी अर्थात् सम्मिलित या उलझी हुर्इ नहीं होनी चाहिए। अधिक दूरी को परिभाषा हम लगभग 1.5 इंच करते हैं। 1.5 इंच जुड़ी होने पर मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होती हो तो इसका फल दोषपूर्ण होता है, जब कि जीवन रेखा से मस्तिष्क रेखा का बिना अधिक जोड़ के निकास गुण है। इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा केवल छूकर ही जीवन रेखा से निकलती है।


ऐसे व्यक्ति समझदार, प्रत्येक कार्य को सोच समझ कर करने वाले, जिम्मेदार तथा क्रियात्मक होते हैं और शीघ्र निर्णय कर लेते हैं। उपरोक्त लक्षण अधिक रेखा वाले हाथों में हों तो विचार करने व उसे क्रियान्वित करने में कुछ अधिक समय लगाते है, परन्तु क्रियात्मक हाथ में सदैव ही शीघ्र निर्णय कर लिए जाते है। अधिक रेखा वाले व्यक्ति भी एक से अधिक भाग्य रेखा, अंगूठा व अंगुलियां पतली, अंगुलियां छोटी, दोनों ओर एक द्विजिव्हाकार मस्तिष्क रेखा होने पर शीघ्र व ठीक निर्णय लेने वाले होते हैं। ये स्वतन्त्र मस्तिष्क व उत्तरदायी होते हैं। फलस्वरूप उन्नति कर जाते हैं।


स्त्रियों के हाथ में यह लक्षण होने पर हाथ कोमल हो तो प्रत्येक दूसरे वर्ष सन्तान हो जाती है। जीवन और मस्तिष्क रेखा दोष रहित हो तो पति-पत्नी में आपस में बहुत प्रेम होता है, हृदय रेखा भी निर्दोष या दोहरी हो तो साथी के जरा भी रूखा बोलने पर इन्हें बहुत दु:ख होता है, इन्हें महसूस भी अधिक होता है और माफी मांगने व रोने की आदत होती है। अन्त तक इनके सम्बन्ध मधुर रहते हैं और जीवन सुखी रहता है। एक दूसरे का विछोह इन्हें किसी भी मुल्य पर सहन नहीं होता।


(ख) जीवन रेखा से अलग


इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा वृहस्पति के पर्वत के नीचे, जीवन रेखा से अलग होकर आरम्भ होती है। इस की दूरी अधिक से अधिक 1/4 इंच या 1/6 इंच होती है। इस से अधिक दूर निकली हुर्इ मस्तिष्क रेखा का फल अच्छा नहीं होता। यह जितनी नजदीक से निकली होती है और जीवन रेखा से अलग होती हैं अच्छी मानी जाती है। यदि ऐसी मस्तिष्क रेखा, चतुष्कोण या किसी रेखा से बिना जुड़ी हो तो अति उत्तम होती है। जीवन रेखा से वृहस्पति पर जाने वाली शाखा के द्वारा अथवा जीवन रेखा से निकली भाग्य रेखा के द्वारा जुड़ी होने पर दोष-पूर्ण नहीं होती। ऐसी मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के निकास के पास से ही निकलती हो तो यह अतुलनीय है, परन्तु ऐसा कम देखा जाता है।


ये व्यक्ति स्वतंत्र मस्तिष्क, बुद्धिमान, शीघ्र विश्वास करने वाले व आरम्भ में शीघ्र घबराने वाले होते हैं। मध्यायु के पश्चात् घबराने का दोष इन में नहीं रहता। इस लक्षण के साथ अंगुलियों की लम्बार्इ भी अधिक हो तो विश्वास की मात्रा बढ़ जाती है जोकि भाग्योदय में रुकावट बन कर सामने आती है। यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुकी हो तो ऐसे व्यक्ति कर्इ बार धोखा खाते हैं। ये शर्मालु, अधिक एहसान मानने वाले व लिहाज करने वाले होते हैं और स्पष्ट रूप से किसी बात को नहीं कहते। किसी को उधार देकर मांगते नहीं, जिन पर विश्वास करते है उसे कुटुम्ब का सदस्य मान लेते हैं। अत: जब भी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर करते हैं हानि उठाते हैं। ऐसे व्यक्ति को 35वर्ष की आयु तक साझे में व्यापार नहीं करना चाहिए और यदि परिस्थितिवश करना भी पड़े तो दूसरे साझियों के साथ सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए अन्यथा लाभ के बदले हानि ही हाथ लगती है। ऐसे हाथों में यदि रेखाएं कम या हाथ कौणिक अर्थात् अंगुलियां अंगूठे की ओर झुकी हुर्इ हो तो जल्दबाज होते हैं फलस्वरूप सावधानी से कार्य न करने के कारण हानि उठाते हैं परन्तु स्थायित्व प्राप्त करने के पश्चात् ये पूर्ण आत्म विश्वासी सिद्ध होते हैं।


ऐसी स्त्रियां स्पष्टवक्ता, हिम्मत वाली, कम शर्म वाली व निडर होती हैं। यदि भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी व अंगुलियां लम्बी हों तो ये दूसरे के प्रभाव में शीघ्र आती हैं। यदि कोर्इ व्यक्ति थोड़ी भी सहानुभूति से बात करे तो उन पर पूर्ण विश्वास कर लेती हैं।


ऐसे व्यक्तियों को स्वतंत्र रहने का मौका न मिले तो भी स्वतंत्र रहने की सोचते है व थोड़ा भी अवसर प्राप्त होने पर स्वतंत्र हो जाते हैं। नौकरी करने की दशा में ऐसे व्यक्ति जेब में त्याग-पत्र लिए घूमते हैं यदि वृहस्पति ग्रह थोड़ा भी उन्‍नत हो तो समय मिलते ही बिना हानि लाभ विचारे नौकरी छोड़ कर स्वतंत्र व्यापार में आ जाते हैं। ये जब तक नौकरी में रहते हैं आत्म-सम्मान से रहते हैं, नाजायज बात सहन नहीं कर सकते। झूठ से इन्हें चिढ़ होती है और मेहनती व र्इमानदार होते हैं। अत: किसी भी प्रकार से इनके आत्म सम्मान को आंच आती हो तो उसे सहन करना इनके बूते से बाहर की बात होती है।


ऐसे व्यक्ति विश्वास के कारण हानि उठाते हैं। परन्तु जीवन रेखा यदि गोलाकार, भाग्य रेखा एक से अधिक तथा गहरी या शुक्र उठा हो तो हानि कम होती है क्योंकि इनमें शक की भावना पैदा हो जाती है जो इन्हें सतर्क बना देती है। गहरी भाग्य रेखा लोभ की मात्रा बढ़ाती है अत: व्यक्ति पैसे के मामले में सतर्क होते हैं।


ऐसे व्यक्ति चरित्र में विश्वास करते हैं, अपने मन में दूसरे का प्रभाव होने पर भी इन्हें चरित्र दोष नहीं होता। अच्छे मित्र होते हैं व यथा सम्भव मित्रता निभाते हैं, किसी से बदला लेने की भावना नहीं होती। इनके विशेषतया स्त्रियों के हाथ में जीवन रेखा में दोष हो तो थोड़ी-सी बात में घबरा कर इन्हें दस्त लग जाते हैं जैसे पति का रात देर से आना या कोर्इ समाचार अचानक सुनना आदि।


मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होकर निकले तो व्यक्ति बचपन में अधिक बीमार होते हैं व जलने से या ऊपर से गिर कर बचना आदि घटनाएं भी होती हैं। यदि जीवन रेखा में विशेष दोष हो तो बचपन में निमोनिया, पाचन शक्ति व जिगर खराब रहता है तथा उपरोक्त रोगों के कारण कर्इ बार बहुत अधिक बीमार हो जाते हैं ।


यह मस्तिष्क रेखा मंगल पर या उसकी ओर जाए तो इनकी छाती पर तिल होता है। यह इनकी किसी सन्तान के योग्य होने का लक्षण है। ऐसे व्यक्ति नौकरी अवश्य करते हैं। कर्ज नहीं ले सकते क्योंकि इससे इनके मस्तिष्क में तनाव रहता है। साझे में काम करना भी इन्हें अच्छा नहीं लगता।


मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अधिक दूर होकर निकली हो अर्थात् इसकी दूरी जीवन रेखा से 3/4 इंच या अधिक हो तो यह व्यक्ति में अति आत्म-विश्वास जिसे हम घमण्ड कहते है - पैदा करती है। ऐसे व्यक्ति लापरवाह होते हैं, अपने जीवन निर्माण की भी चिन्ता नहीं करते। ये स्वछन्द विचारों के होते हैं व किसी की परवाह न करना, बात काटने पर निरादर कर देना, इनके लिए कोर्इ विशेष बात नहीं होती। शनि की अंगुली लम्बी या शनि उन्‍नत हो तो एकान्त में बैठना पसन्द होता है, भाग्य रेखा भी शनि पर हो तो झगड़ा तथा विरोध पसन्द नहीं होता। ऐसे व्यक्ति विरोधियों से दूर जा कर खुले में मकान बना कर रहते है व न तो एक दूसरे का पक्ष ले सकते हैं और न तारीफ ही करते हैं, फलस्वरूप अनायास ही विरोध रहता है। इनकी स्पष्टवादिता या कटु-वाक्शक्ति नौकरी में भी झगड़े का कारण बनती है। इनका गला सूखता है व नींद कम आती है। ऐसे व्यक्तियों में आत्म-विश्वास देर से पैदा होता है। यदि शुक्र भी उन्‍नत हो तो जीवन में सफलता भी देर से मिलती है।


मस्तिष्क रेखा अधिक अलग तथा वृहस्पति अधिक उन्‍नत या वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली से लम्बी हो तो व्यक्ति अभिमानी होता है। यह लक्षण भी उन्नति में बाधा का है। ऐसे व्यक्ति अन्य उत्तम लक्षण होने पर भी मध्यम विकास प्राप्त करते हैं। ये प्रत्येक स्थान पर अपनी तारीफ व गर्व प्रदर्शित करते हैं।


मस्तिष्क रेखा अलग होने पर ऐसों का जीवन साथी सुन्दर, सरल स्वभाव तथा विषम परिस्थितियों में भी निभाव करने वाला होता है। ये पहले विवाह के लिये मना करते हैं तथा बाद में शादी करते हैं। शादी के पश्चात् भी इन्हें कुछ समय तक अच्छा महसूस नहीं होता यद्यपि जीवन साथी सहयोगी, सच्चरित्र व सब तरह से ठीक होता है। ऐसे व्यक्ति प्रेम प्रदर्शन नहीं करते इसी कारण एक दूसरे पर शंका बनी रहती है। इस प्रकार की स्त्रियां या पुरुष अपने किए हुए प्रत्येक कार्य में अनुमोदन की इच्छा करते हैं जैसे खाना बनाने पर कहते हैं कि नमक ठीक है? आदि। यदि ये थोड़ा भी प्रदर्शन करें या दूसरे की तारीफ करें तो जीवन पूर्णतया सुखमय रहता है।


मस्तिष्क रेखा का निकास अधिक दूर होने पर इनके मां-बाप के विचार आपस में नहीं मिलते, कुछ न कुछ खटपट चलती रहती है परन्तु स्वयं के दाम्पत्य जीवन में ऐसा नहीं होता। यह साधारण सिद्धान्त के अनुसार ये सहनशील और सोच-समझ कर चलने वाले होते हैं।


(ग) मस्तिष्क रेखा का निकास वृहस्पति से



वृहस्पति ग्रह आत्म सम्मान, महत्वाकांक्षा, प्रौढ़ता व शासन का प्रतीक है। हाथ में वृहस्पति उन्‍नत होने पर व्यक्ति सच्चरित्र, महत्वाकांक्षी तथा शासकीय प्रवृत्ति के होते हैं, इसी प्रकार जिन लोगों की मस्तिष्क रेखा वृहस्पति से निकलती है उन व्यक्तियों में स्वभावत: ही उपरोक्त गुण आ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति पुरुषार्थ से जीवन बनाते हैं तथा स्वयं के गुणों में निरन्तर वृद्धि करने वाले होते हैं। इनका मस्तिष्क शब्दकोष होता है व ग्रहण-शक्ति अच्छी होती है। ये बौद्धिक त्रुटियां नहीं करते, संयोगवश यदि कोर्इ गलती कभी कर जायें तो पुनरावृत्ति का तो प्रश्न ही नहीं उठता। महत्वाकांक्षा की विशेष भावना पार्इ जाने के कारण अध्ययन के समय गुट बना कर रहते हैं।


ये मिलनसार व दृढ़ निश्चयी भी होते हैं। जिससे इनका परिचय या मित्रता हो जाती है जीवन भर निभाते हैं, मित्रता होती भी अधिक व्यक्तियों से है। स्वयं से कोर्इ गलती या अपराध होने पर क्षमा मांगने में देर नहीं करते और यदि कोर्इ व्यक्ति गलती कर के इनसे क्षमा मांगे तो क्षमा भी कर देते हैं। ऐसे व्यक्तियों की हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा यदि एक दूसरे के समानान्तर हो तो बदले की भावना रहती है, जिसके पीछे पड़ते हैं जड़ से उखाड़ देते हैं। परोपकारी, व्यवहारिक व मानवोचित गुण होने के साथ ही जैसे के साथ तैसा करने वाले होते हैं।


साधारणतया इनको आलसी कहा जा सकता है। घर में भी इनकी प्रकृति का व्यक्ति कोर्इ न कोर्इ अवश्य होता है। ये एकान्त प्रिय, कम बोलने वाले व बुजुर्गो जैसा व्यवहार करने वाले होते हैं। शोर-शराबा यहां तक की रेडियों की ऊंची आवाज भी पसन्द नहीं होती। शर्मालू स्वभाव होने के कारण इन्हें स्त्रियों से बातें करने या दाम्पत्य जीवन में शर्म लगती है। ऐसे व्यक्ति देख भाल कर खर्च करते हैं।


(घ) मस्तिष्क रेखा का निकास मंगल से



मंगल ग्रह का सम्बन्ध वीरता, शौर्य, धैर्य क्रूरता व नृशंसता आदि से है। अत: मस्तिष्क रेखा मंगल से निकलती हो तो निश्चय ही उपरोक्त गुणों में वृद्धि करती है। गुणों की अतिशयता होने पर व्यक्ति में घमण्ड, लड़ार्इ झगड़ा करने की आदत अपने आपको बहुत अधिक समझना आदि दोष पैदा हो जाते हैं। ये शरीर प्रधान होते हैं, बुद्धि प्रधान नहीं। मंगल से मस्तिष्क रेखा निकलने पर व्यक्ति में येन-केन प्रकारेण बदला लेने की भावना पार्इ जाती है। क्रोध में ऐसे व्यक्ति बोद्धिक, नैतिक व मानसिक नियन्त्रण खो बैठते हैं अत: देखा गया है कि इनके हाथ से अनहोनी हो जाती है। मिल्ट्री, पुलिस में काम करने वाले तथा ऎसी मार्शल जातीयां जो वीरता या लूट-पाट, छापा मारी व राज्य विद्रोह के लिए प्रसिद्ध हैं, के हाथों में मंगल के गुणों की प्रधानता देखी जाती है। मस्तिष्क रेखा मंगल से निकलने पर पूरा मस्तिष्क ही मंगल से प्रभावित होता है जो व्यक्ति में कर्इ प्रकार के दुर्गुणों का कारण होता है।


ऐसे व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। ये जल्दबाज और दूसरों पर डाल कर बात कहने वाले होते हैं। इनकी बात काटना भी इन्हें एक प्रकार से चुनौती देना है। वृहस्पति उन्‍नत होने पर ऐसे व्यक्ति मौके पर तो चुप हो जाते हैं बाद में उसी बात केा लेकर सम्मान के ग्राहक बन जाते हैं।


ऐसे व्यक्तियों से व्यवहार करने का सबसे उत्तम उपाय इनके साथ प्रेम से बर्ताव करना, इनकी बात को नहीं काटना तथा इनके अपने रास्ते पर चलना ही है। बात काटकर या तर्क के द्वारा इनको मनाना बहुत कठिन है। जहां तक हो सके इनसे अलग रहना चाहिए नहीं तो बुद्धिमत्ता से इनके रास्ते में पड़ कर ही इन्हें मनाना चाहिए।


मंगल से मस्तिष्क रेखा निकलने पर व्यक्ति रक्त विकार के रोगी होते हैं। चमड़ी का कोर्इ न कोर्इ रोग इनके शरीर पर स्थायी चिन्ह छोड़ जाता है।


मंगल से मस्तिष्क रेखा निकलने पर अंगूठा टोपाकार, हाथ का रंग लाल या काला होने पर इनके हाथ से अनेक कत्ल होते हैं। काम भी ऐसे व्यक्ति कसार्इ जैसा जैसे मांस बेचना या जानवरों को काटना या छुरे बाजी आदि करते हैं। हाथ भारी होने पर इसी कार्य से धनाढ्य भी हो जाते हैं।
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मस्तिष्क रेखा का अन्त


(क) मस्तिष्क रेखा का अन्त चन्द्रमा पर


चन्द्रमा कल्पना शक्ति, सौम्य विचार, कलात्मकता एवं भावनात्मक बुद्धि का प्रतीक है। ललित कला का सम्बन्ध भी चन्द्रमा से है। अत: जिन व्यक्तियों में उपरोक्त गुण पाये जाते हैं, उनमें चन्द्रमा उन्‍नत होता है, मस्तिष्क रेखा का अन्त दो प्रकार से चन्द्रमा पर होता है। एक तो यह एकदम मुड़ कर चन्द्रमा पर जाती है, दूसरे धीरे-धीरे चन्द्रमा के आस-पास या चन्द्रमा पर समाप्त होती है। इनमें पहली मस्तिष्क रेखा दोष-पूर्ण मानी जाती है। इसमें चन्द्रमा के पर्वत से पाये जाने वाले गुणों की अतिशयता होती है जो जीवन में कर्इ कमियों का कारण बन जाती है। दूसरे प्रकार की मस्तिष्क रेखा एक सुन्दर गुण है। साहित्यकार, कलाकार, ललित कला के पारखी आदि व्यक्तियों के हाथ में दूसरे प्रकार की रेखा ही पार्इ जाती है। भावुकता तो इनमें होती है परन्तु यह निश्चित मात्रा तक होती है, अतिशय नहीं। यहां दूसरे प्रकार की रेखा के विषय में विचार किया जाएगा।


जिनकी मस्तिष्क रेखा चन्द्रमा पर गर्इ हो तो ऐसे व्यक्ति भावुक, अधिक महसूस करने वाले, कल्पनाशील, बातें अधिक व काम कम करने वाले, बहुत शीघ्र रोने वाले तथा त्यागी होते हैं। मस्तिष्क रेखा का चन्द्रमा पर जाना वैसे तो उत्तम है परन्तु क्रियात्मक रूप से ऐसे व्यक्ति समाज के योग्य नहीं होते। ये अतिमानव एवं कल्पनाशील होते है। हृदय रेखा वृहस्पति पर, और मस्तिष्क रेखा अलग हो या लम्बी, हृदय रेखा में द्वीप, हाथ कोमल हो तो भावुकता की मात्रा किसी हद तक अधिक बढ़ जाती है।


धीरे-धीरे चन्द्रमा पर जाने वाली मस्तिष्क रेखा वाला व्यक्ति यदि मस्तिष्क रेखा में मोटार्इ नहीं हो तो मिलनसार तथा मानव-गुण-सम्पन्न होता है। अंगुलियां पतली और अंगूठा पतला हो तो इस फल में बहुत वृद्धि हो जाती है। मुकदमा या झगड़ा करना इन्हें पसन्द नहीं होता। शान्तिप्रिय तथा अपनी धुन के पक्के होते हैं। व्यापारी एवं बुद्धिजीवी व्यक्ति के हाथ में ऐसे ही लक्षण पाये जाते हैं। ये दिन-प्रतिदिन उन्‍नति करने वाले होते हैं। इसके विपरीत मस्तिष्क रेखा यदि एकदम मुड़ कर चन्द्रमा पर जाए  तो विशेष कल्पना करने वाले व विचार के स्थिर नहीं होते। कभी कुछ सोचते हैं तो कभी कुछ। वहमी भी होते हैं। हाथ में ज्यादा रेखाएं एवं शुक्र प्रधान होने पर वहम और कल्पना दोनों ही अधिक होते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत देर में सफल होते हैं ये स्वभाव के पहले तेज होते हैं और बाद में शान्त हो जाते हैं। द्वीपयुक्त होने पर यह मस्तिष्क रेखा अन्त में व्यक्ति को चिड़चिड़ा या कम बोलने वाला बना देती हैं।


मस्तिष्क रेखा एक हाथ में चन्द्रमा पर तथा दूसरे हाथ में बुध की ओर गर्इ हो तो संसार त्याग की भावना रहती है स्वभाव से ही त्यागी होते हैं। हृदय रेखा दोष-हीन, भाग्य रेखा पतली, अंगुलियां लम्बी हों तो निश्चय ही ऐसा होता है। शुक्र ग्रह उन्‍नत या भाग्य रेखा मोटी होने पर ये वहमी व आलसी होते हैं। वृहस्पति की अंगुलियां यदि छोटी हों तो भी त्यागी होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी आदत से मजबुर होकर त्याग करते हैं परन्तु यश इन्हें नहीं मिलता। त्याग के विषय में सोचते हुए यह देखना आवश्यक है कि व्यक्ति की अवस्था भी त्याग करने की है? धनी होने पर धर्मशाला, विद्यालय, औषधालय, कुआं आदि बनवाता है। ऐसे व्यक्तियों के हाथ में सूर्य की अंगुली के नीचे मत्स्य रेखा पार्इ जाती है।


मस्तिष्क रेखा झुककर जीवन रेखा के पास चली जाए तो व्यक्ति में आत्महत्या की प्रवृति होती है, मस्तिष्क रेखा तथा हृदय रेखा में अधिक दोष हो तो आत्महत्या कर लेते है।


(ख) चन्द्रमा पर एकदम मुड़कर


कभी-कभी मस्तिष्क रेखा एकदम मोड़ खा कर नीचे की ओर झुक जाती है। हम इसे झुकी मस्तिष्क रेखा कहते है। झुकने के पश्चात् मस्तिष्क रेखा का झुकाव या तो चन्द्रमा की तरफ होता है या लम्बी होने की अवस्था में यह चन्द्रमा पर पहुंच जाती हैं।


ऐसे व्यक्ति बहुत भावुक स्वभाव होते हैं। छोटी-छोटी बात महसूस करना, जरा सी बात को बड़ा बना लेना इनकी आदत होती है। यदि मस्तिष्क रेखा में कोर्इ अन्य दोष जैसे शनि के नीचे टूटी या द्वीप आदि हो तो सारा जीवन ही अशान्ति पूर्ण रहता है। दोनों हाथों में इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा होने पर व्यक्ति अत्यधिक भावुक होते हैं, हृदय रेखा में द्वीप आदि लक्षण पाएं जाने पर ऐसे व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेते हैं। मस्तिष्क रेखा यदि एकदम न मुड़ कर धीरे-धीरे चन्द्रमा की ओर उतरी हो तो दोषपूर्ण के बजाए उत्तम होती है, ऐसे व्यक्ति कवि, लेखक आदि होते हैं, परन्तु एकदम मस्तिष्क रेखा का झुकाव हो जाना भारी दोष माना जाता है। ऐसे व्यक्ति प्रेम सम्बन्ध टूटने, अनमेल विवाह होने, कुटुम्ब में क्लेश आदि घटनायें होने पर आत्महत्या कर लेते हैं, हृदय रेखा भी टूटी हो तो इनके आत्म सम्मान को ठेस लगने पर भी आत्महत्या कर लेते हैं।


स्त्रियों के हाथों में ऐसे लक्षण बहुत खराब होते हैं। स्त्रियां तो पहले ही पुरुषों से अधिक भावुक होती हैं, इनके साथ कोर्इ भी अपमानजनक घटना होने पर आत्महत्या करते देर नहीं लगाती, अन्यथा सोचती तो अवश्य ही हैं। यह देख लेना चाहिए कि भाग्य रेखा के आरम्भ में बड़ा द्वीप तो नहीं है या भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास तो नहीं आ गर्इ है ? क्योंकि भाग्य रेखा के उपरोक्त लक्षणों से कुटुम्ब में क्लेश व अशान्ति का भयंकर रूप देखने में आता है।


सोचते समय ऐसे व्यक्ति तन्मय (एकाग्र) हो जाते हैं फलस्वरूप इनके साथ दुर्घटनाएं अधिक होती है। यदि जीवन रेखा व हृदय रेखा निर्दोष हों तो इसका प्रभाव बहुत कम हो जाता है परन्तु जिस आयु में यह झुकाव होता है उसमें किसी सम्बन्धी  की मृत्यु धन हानि, स्वयं को या कुटुम्ब में रोग आदि फल घटित होते हैं।


(ग) मंगल पर


50 प्रतिशत व्यक्तियों के हाथों में मस्तिष्क रेखा का अन्त मंगल पर होता है। सीधी मंगल पर जाने की दशा में मस्तिष्क रेखा लम्बी हो जाती है। यह इतना अच्छा नहीं माना जाता परन्तु मस्तिष्क रेखा मंगल की ओर जाती हो, अधिक लम्बी न होकर निर्दोष भी हो तो उत्तम प्रकार की मस्तिष्क रेखा मानी जाती है।


ऐसे व्यक्तियों में कर्त्तव्य-शक्ति बहुत होती है। ये दूरदर्शिता से कार्य करने वाले होते हैं। यदि मस्तिष्क रेखा का निकास जीवन रेखा से अलग भी हो तो व्यक्ति सरल प्रकृति व विश्वास करने वाले होते हैं। इस गुण के कारण इन्हें हानि भी होती है क्योंकि ऐसे व्यक्ति दूसरों पर निर्भर अधिक रहते हैं अन्यथा जीवन रेखा मंगल से निकलने पर यदि मस्तिष्क रेखा मंगल की ओर निर्दोष होकर जाती हो तो सतर्क होते है। जीवन रेखा अधिक गोल या भाग्य रेखा एक से अधिक होने पर हानि के अवसर नहीं आते अन्यथा इनका उधार दिया हुआ डूब जाता है। बुध की अंगुली का तिरछा होना व उसका नाखून छोटा होना भी बुद्धिमत्ता में वृद्धि करता है और हानि के अवसरों में कमी कर देता है।


ये शान्ति-प्रिय होते हैं, झगड़े में नहीं पड़ते परन्तु कोर्इ झगड़ा सिर पर आ पड़े तो अन्त तक हिम्मत से लड़ते हैं और शत्रु को हरा कर ही दम लेते हैं। दोनों हाथों में मस्तिष्क रेखा मंगल पर गर्इ हो तो इनकी आदत अन्त तक वैसी ही बनी रहती है। इस मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो अन्त में चिड़-चिड़ापन आ जाता है। इन्हे किसी चीज का अभ्यस्त नहीं होना चाहिए अन्यथा आदत बदलना मुश्किल हो जाता है।


दोनों हाथों में मस्तिष्क रेखा मंगल पर या उसकी ओर जाती हो तो व्यक्ति को जन्म स्थान छोड़ कर दूसरी जगह अपना आवास बनाना पड़ता है। कर्इ बार ऐसे व्यक्ति एक से अधिक स्थान बदलते देखे जाते हैं। नौकरी में हों तो अनेक जगह स्थानान्तरण होता है। इनकी छाती पर तिल पाया जाता है।


(घ) मस्तिष्क रेखा का अन्त सूर्य पर


एक से अधिक मस्तिष्क रेखाएं होने पर कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि एक रेखा सूर्य पर चली जाती है या मस्तिष्क रेखा की कोर्इ शाखा सूर्य पर पहुंचती है। ऐसे व्यक्ति सद्गुणों से युक्त, उत्तम विचार वाले, बुद्धिजीवी और सम्मान अर्जित करने वाले होते हैं। ये किसी भी कार्य को जल्दबाजी से नहीं करते। स्वभाव के गरम तथा नेत्रों के कमजोर होते हैं।


(ड.) बुध पर या उसकी और



कभी-कभी मस्तिष्क रेखा स्वयं या उसकी कोर्इ शाखा बुध पर जाती है या मस्तिष्क रेखा का झुकाव बुध की ओर होता है, इससे व्यक्ति में बुद्धिमत्ता का विकास होता है। ऐसे व्यक्ति सद्गुणों से परिपूर्ण, विचारक, बात को अधिक बारीकी से जानने वाले एवं सफल होते हैं। अंगूठा छोटा या कठोर होने की दशा में क्रोधी होते हैं।


मस्तिष्क रेखा की एक शाखा बुध की ओर या मस्तिष्क रेखा एक हाथ में बुध की ओर तथा दूसरे में चन्द्रमा पर हो तो सन्यास लेने की इच्छा प्रबल होती है, अन्यथा इस विषय में सोचते अवश्य हैं। इस प्रकार की मस्तिष्क रेखा दायें में हो तो इनकी सन्तान और बायें हाथ में होने पर स्वयं लेखक अथवा पत्रकार होते हैं। दो मस्तिष्क रेखाएं होने पर यदि एक का झुकाव बुध की ओर हो तो धन और बुद्धि दोनों में सफल होते हैं।
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