"रतन,घर चल। मदन छत पर चल।"
बिना मात्रा के इन छोटे छोटे वाक्यों से पुस्तक पढ़ना शुरू किया था। उम्र होगी तीन साल, महीने भर में बारहखड़ी याद करके मात्रा वाले वाक्यों को पढ़ने के साथ ही, प्राथमिक कक्षाओं में आने वाली हिन्दी की पुस्तक को पूरा पढ़ लिया। मुझसे बड़ा भाई तीसरी कक्षा में, उसकी हिन्दी की पुस्तक में पहला पाठ कविता थी, जिसे पढ़ने के बाद, ढपोर शंख, झीतरिया,नेवला और मूर्ख महिला जैसी सचित्र कहानियों को कितनी ही बार पढ़ा।
पुस्तकें ही खिलौने जैसी लगती, जिनमें एकांकी,नाटक , कहानियों के पात्रों के साथ काल्पनिक खेल चलता रहता। थोड़े बड़े होने पर चंपक,नन्दन,पराग, बाल भारती, चंदामामा जैसी पुस्तकों से परिचय हुआ, पाठ्यक्रम की पुस्तकें अरुचिकर लगने लगती,जो मजा इन्हें अपनी सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में छिपा कर पढने मे आता,पकड़े जाने का डर भी उस मजे के आगे कुछ नहीं।
किताबों की दुनिया से सीखे सबक, अनुभवों के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी रुचि के अनुसार पुस्तक पढ़ने में जो आनंद आता है,वह आनंद अवर्णनीय है।
विश्व में लाखों पुस्तकालय होंगें,करोड़ों पुस्तकें होंगी,हम अपने जीवन में गिनती की पुस्तकें ही पढ़ पाते हैं,और उनमें से अल्प ही स्मरण रख पाते हैं। पुस्तकें किस क्षेत्र से संबंधित है, किस विषय की है ,पढ़ने वाले का व्यक्तित्व प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। मेरे सिरहाने शरदचंद्र, प्रेमचंद, आर. के. नारायण, शिवानी से लेकर निर्मला भुराड़िया, प्रभा खेतान,मैत्रेयी पुष्पा, कृष्ण सोबती, चित्रा मुद्गल ,उषा प्रियम्वदा आदि का साहित्य मुझे उनके अनुभवों की आंच में पकाया है तो आनंद के सिरहाने "रिच डैड, पुअर डैड","चिकन सूप बार द सोल" "द मोंक हू सेल हिज फरारी" सेवन हेबिट्स आफ् हाइली इफेक्टिव पीपल" जैसी प्रेरक किताबें या "किंडल "पर मेरे लिए नीरस विषय प्रोद्योगिकी और टेक्नोलॉजी से संबंधित पुस्तकों का ढेर डाउनलोड किया हुआ मिलेगा। तकनीक ने एक छोटा सा पुस्तकालय आठ से दस इंच की स्क्रीन में समाहित कर दिया। लेकिन मै उस स्क्रीन में किताबों के पन्ने बदलने की आवाज,उन पन्नों में बसी खुशबू ,पन्नों पर बिखरे अक्षरों,शब्दों को महसूस नहीं कर पाती,जो शब्द हाथ में पकड़ी किताब में प्रवाह में बहते दिखाई देते हैं, कभी मुस्कराते,कभी उदास ,कभी जोर से खिलाखिलाते।
"विश्व पुस्तक दिवस " पर उन सभी महान् लेखकों ,रचियताओं को श्रद्धा से नमन, जिन्होंने कितने धैर्य ,विद्वता से एक नहीं अनेक ग्रन्थो, महाकाव्यों,कथाओं, उपन्यासों ,नाटकों ,निबंधों की रचना कर समाज के लिए पुस्तक रुप में प्रस्तुत किया। पुस्तकों के प्रति आजकल रुचि कम हो रही है, तकनीकी क्रांति ने मोबाइल , इंटरनेट जैसी सुविधाओं के उपयोग से विशिष्ट विषय से संबंधित जानकारी त्वरित उपलब्ध कराई है, फिर भी हमें आने वाली पीढ़ी के लिए पुस्तकों के प्रति लगाव उत्पन्न करना होगा
,जिससे सांस्कृतिक विरासत को वे भी भविष्य में हस्तांतरित कर सके।
"विश्व पुस्तक दिवस "की सभी मित्रों को शुभकामनाएं।
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