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World Books Day, विश्व पुस्तक दिवस,  R. K. Narayan
Dr. Anupama Chaturvedi एक अच्छी आयुर्वेद विशेषज्ञ की साथ ही अच्छी लेखिका भी है. इन्हें भ्रमण का विशेष शौक है साथ ही उसका बड़ा ही सजीव वर्णन इनकी खासियत है. किसी भी विषय पर इनका धारा प्रवाह लेखन पूरा लेख पढने को मजबूर कर देता है.

"रतन,घर चल। मदन छत पर चल।" 

बिना मात्रा के इन छोटे छोटे वाक्यों से पुस्तक पढ़ना शुरू किया था। उम्र होगी तीन साल, महीने भर में बारहखड़ी याद करके मात्रा वाले वाक्यों को पढ़ने के साथ ही, प्राथमिक कक्षाओं में आने वाली हिन्दी की पुस्तक को पूरा पढ़ लिया। मुझसे बड़ा भाई तीसरी कक्षा में, उसकी हिन्दी की पुस्तक में पहला पाठ कविता थी, जिसे पढ़ने के बाद, ढपोर शंख, झीतरिया,नेवला और मूर्ख महिला जैसी सचित्र कहानियों को कितनी ही बार पढ़ा। 

पुस्तकें ही खिलौने जैसी लगती, जिनमें एकांकी,नाटक , कहानियों के पात्रों के साथ काल्पनिक खेल चलता रहता। थोड़े बड़े होने पर चंपक,नन्दन,पराग, बाल भारती, चंदामामा जैसी पुस्तकों से परिचय हुआ, पाठ्यक्रम की पुस्तकें अरुचिकर लगने लगती,जो मजा इन्हें अपनी सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में छिपा कर पढने मे आता,पकड़े जाने का डर भी उस मजे के आगे कुछ नहीं।
किताबों की दुनिया से सीखे सबक, अनुभवों के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी रुचि के अनुसार पुस्तक पढ़ने में जो आनंद आता है,वह आनंद अवर्णनीय है। 


विश्व में लाखों पुस्तकालय होंगें,करोड़ों पुस्तकें होंगी,हम अपने जीवन में गिनती की पुस्तकें ही पढ़ पाते हैं,और उनमें से अल्प ही स्मरण रख पाते हैं। पुस्तकें किस क्षेत्र से संबंधित है, किस विषय की है ,पढ़ने वाले का व्यक्तित्व प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। मेरे सिरहाने शरदचंद्र, प्रेमचंद, आर. के. नारायण, शिवानी से लेकर निर्मला भुराड़िया, प्रभा खेतान,मैत्रेयी पुष्पा, कृष्ण सोबती, चित्रा मुद्गल ,उषा प्रियम्वदा आदि का साहित्य मुझे उनके अनुभवों की आंच में पकाया है तो आनंद के सिरहाने "रिच डैड, पुअर डैड","चिकन सूप बार द सोल" "द मोंक हू सेल हिज फरारी" सेवन हेबिट्स आफ् हाइली इफेक्टिव पीपल" जैसी प्रेरक किताबें या "किंडल "पर मेरे लिए नीरस विषय प्रोद्योगिकी और टेक्नोलॉजी से संबंधित पुस्तकों का ढेर डाउनलोड किया हुआ मिलेगा। तकनीक ने एक छोटा सा पुस्तकालय आठ से दस इंच की स्क्रीन में समाहित कर दिया। लेकिन मै उस स्क्रीन में किताबों के पन्ने बदलने की आवाज,उन पन्नों में बसी खुशबू ,पन्नों पर बिखरे अक्षरों,शब्दों को महसूस नहीं कर पाती,जो शब्द हाथ में पकड़ी किताब में प्रवाह में बहते दिखाई देते हैं, कभी मुस्कराते,कभी उदास ,कभी जोर से खिलाखिलाते।


 "विश्व पुस्तक दिवस " पर उन सभी महान् लेखकों ,रचियताओं को श्रद्धा से नमन, जिन्होंने कितने धैर्य ,विद्वता से एक नहीं अनेक ग्रन्थो, महाकाव्यों,कथाओं, उपन्यासों ,नाटकों ,निबंधों की रचना कर समाज के लिए पुस्तक रुप में प्रस्तुत किया। पुस्तकों के प्रति आजकल रुचि कम हो रही है, तकनीकी क्रांति ने मोबाइल , इंटरनेट जैसी सुविधाओं के उपयोग से विशिष्ट विषय से संबंधित जानकारी त्वरित उपलब्ध कराई है, फिर भी हमें आने वाली पीढ़ी के लिए पुस्तकों के प्रति लगाव उत्पन्न करना होगा 
,जिससे सांस्कृतिक विरासत को वे भी भविष्य में हस्तांतरित कर सके। 

"विश्व पुस्तक दिवस "की सभी मित्रों को शुभकामनाएं।



साभार 

Yatra ~ Puri

Dr. Anupama Chaturvedi  Puri yatra

Dr. Anupama Chaturvedi एक अच्छी आयुर्वेद विशेषज्ञ की साथ ही अच्छी लेखिका भी है. इन्हें भ्रमण का विशेष शौक है साथ ही उसका बड़ा ही सजीव वर्णन इनकी खासियत है.

चैत्र नवरात्र के साथ ही भारतीय नववर्ष प्रारंभ हो चुका है। अभी उड़ीसा की संस्कृति को थोड़ा बहुत देखकर आई हूं। भारत की विविधताओं के रंगों में एक बहुत उजला रंग,उड़ीसा का। छोटे बेटे अनुज के दसवीं बोर्ड की परीक्षाएं 29 मार्च को समाप्त हुई,दो अप्रेल को कोटा से जनशताब्दी से दिल्ली, दिल्ली से शाम की फ्लाइट से भुवनेश्वर पहुंचे।

भुवनेश्वर से लगभग डेढ घण्टे की दूरी पर पुरी, जगन्नाथ की हमारे चार धामों में से एक।  पुरी पहुंचते पहुंचते रात दस बज गए , सडक के एक ओर बंगाल की खाडी का विशाल समुद्र तीव्रता से थपेडे देता शोर करता हुआ किसी जिद्दी बच्चे की तरह ,किसी की भी नही सुननेवाला हो,जैसा लगा,रात्रि की शांति मे उसकी लहरों का शोर बार बार ध्यान आकर्षित करता। समुद्र भी आकर्षित होता ही है...चन्द्रमा की कलाओं से..।

पुरी का सूर्योदय का सौन्दर्य अद्भुत है,दूसरे दिन तड़के ही पांच बजे समुद्र तट पर सूर्योदय की प्रतीक्षा में बैठकर सागर की लहरों के बहाव को देखते रहे.. ,"यहां सूरज कब तक निकलेगा"किसी चायवाले से पूछा तो उसके उत्तर से निराश हो ,वापस होटल। "आज तो मेघ आ गया,आज सोरज कैसा निकलेगा".

दिन में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से पहले हमारे पूर्वजो की वंशावली संभालकर रखने वाले पंडित से मिलने पर पता चला कि उनकी बही खाते में उड़िया भाषा में हस्तलिपि में हमारे पूर्वजों के नाम पते बिल्कुल सही निकले। इतिहास में प्रमाणित जानकारी के लिए लिखित प्रमाणों का एक उदाहरण। कभी किसी काल में पूर्वजों द्वारा यहां की गयी यात्रा का उल्लेख संभाल कर रखना, "डाक्यूमेंट मैनेजमेंट" .... । 

पंडित जी के साथ भगवान जगन्नाथ के दर्शनों के बाद , यहां का महाप्रसाद खाने का जो आनंद मिला ... मिट्टी के छोटे-बड़े बर्तनों में बनाये बात,दाल,साग, मिष्ठान, मालपुआ सभी गर्म और स्वादिष्ट। घर पर कभी भी कद्दू की सब्जी की तरफ न देखने वाला अनुज, केले के पत्ते पर जिस रुचि से मालपुआ खाया उसी रुचि से मिट्टी की छोटी हांडी से परोसी कद्दू की गर्म सब्जी को खाने लगा।.जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ" 

शाम को होटल के सामने ही फैले विस्तृत खूबसूरत समुद्र तट पर थोड़ी देर बैठने के बाद , हमारी ओर आती लहरों को देख,उन मचलती,बिखरती लहरों के निमन्त्रण की अवग्या कैसे की जाती? उन लहरों के साथ हमारा मन भी मचल गया और तेजी से पास आती लहरों के पानी के साथ हमने तन के साथ मन को भी एक अलग अनुभव से भिगो दिया।

दूसरे दिन सुबह चिल्का भ्रमण पर निकले ,पूरा दिन नौका पर ,पानी में।शाम कोवापस पुरी। चिल्का के रास्ते में छोटे छोटे गाँव,सडक के दोनो ओर नारियल के तरु के साथ बहुत से स्थानीय पादपो के घने झुरमुटों की सुन्दरता। छोटे छोटे पोखर जिनमे मछली पालन, कमल और मखाने की खेती..। चिल्का में प्रवासी पक्षियों की संख्या अप्रेल मे कुछ कम हो जाती है,पर जिसे देखने के लिए तनु,अनुज उत्साहित थे,वह दिख ही गयी,डाल्फिन। हमारी नाव के आस पास पानी की सतह पर आती और बहुत चपलता से झलक दिखा कर वापस पानी में, मोबाइल के कैमरे नही पकड पाए।

कोणार्क के सूर्य मन्दिर की स्थापत्य शैली अनूठी होने से विश्व संरक्षित स्मारको में इसकी गणना की गई है,अगले दिन कोणार्क पहुंचने से पूर्व चन्द्रभागा बीच पर ऊंची लहरो को देखना रोमांच पैदा करने वाला अनुभव। तेरहवीं सदी के अन्दर बिना किसी यांत्रिकी तकनीक की सहायता से तत्कालीन समय में इतने श्रेष्ठ निर्माण किया जाना,आश्चर्य में डाल देता है। पिछले वर्ष तमिलनाडु में देखे तंजोर, महाबलिपुरम, त्रिची, मदुरै के विशाल मन्दिरों की स्मृति पुनः स्मरण हो आई, कहीं मन में कसक भी रही ,इतिहास में इन स्थानों को वह स्थान नहीं मिला, जितना ताजमहल या मध्यकालीन स्मारको को मिला। धौलागिरी पर बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां हर आने वाले पर्यटक को सम्मोहित करती है।

भुवनेश्वर में विशाल मन्दिर लिंगराज मन्दिर में दर्शन के साथ वहा की स्थापत्य शैली कोणार्क के समान उन्नत है। नन्दनकानन के विशाल जैविक विविधताओं से भरे उद्यान में भयानक अजगर,सर्प ,राइनो,शेर,सफेद बाघ ,जिराफ को सफारी में देखना रोमांचक था।

ओला,उबर,ओयो,जोमेटो,स्वीगी जैसी सुविधाएं यात्राओ को सहज सुगम बना देती है, मोबाइल से मात्र ओर्डर किया,सारी सुविधाएं उपलब्ध,चाहे स्थानीय साइट सीन हो या शाकाहारी जैन भोजन ..। तनु( भान्जी) के द्वारा स्थान स्थान पर इन सुविधाओं को लेने से यात्रा का आंनद स्मरणीय बन गया।


साभार 
डॉ. अनुपमा चतुर्वेदी