जीवन रेखा - Life Line # 4


खमदार जीवन रेखा 

झुकी हुई जीवन रेखा - life line

जब जीवन रेखा इस प्रकार की हो कि उसमें एक मोड़ दिखाई पडे़ तो वह खमदार जीवन रेखा कहलाती है। जीवन व मस्तिष्क रेखा मिली हुई होने पर देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि जीवन रेखा का उदय मस्तिष्क रेखा से ही शनि के नीचे से हुआ है। परन्तु जब मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होकर निकलती है तो जीवन रेखा कुछ दूरी तक मस्तिष्क रेखा के समानान्तर चल कर, मोड़ खाकर मस्तिष्क रेखा से अलग होती है। ऐसी रेखा को खमदार रेखा कहते हैं। ऐसी जीवन रेखा दोनों हाथ में कम ही देखी जाती है। अक्सर एक ही हाथ में ऐसी रेखा देखने में आती है तथा एक बाप की एक ही सन्तान के हाथ में यह रेखा पाई जाती है। दोनों हाथों में ऐसे लक्षण होने पर यह विशेष फलकारी होती है।

ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में विशेष सफलता प्राप्त करने वाले होते हैं। साधारण हाथों में यदि अन्य लक्षणों के साथ-साथ खमदार जीवन रेखा हो तो व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पहले के अनुपात में तीन गुणी अच्छी होती है। अत: यह लक्षण आर्थिक दृष्टि से बहुत ही उत्तम माना जाता है। दोनों हाथों में खमदार जीवन रेखा होने पर तो अभूतपूर्व आर्थिक स्थिति होती है। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति देर से स्थायित्व प्राप्त करते है। भाग्य रेखा व अन्य अच्छे लक्षण होने पर आरम्भ से ही स्थायित्व प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुत धनी रहते हैं, परन्तु खम का समय निकलने के पश्चात् ही यह सब उपलब्धि देखी जाती है। जिस समय तक खम रहता है रुकावट, परेशानी, धन की कमी, विरोध तथा रोग आदि का सामना करना पड़ता है।

ऐसे व्यक्ति क्रोधी, सीधे, परवाह न करने वाले, स्वतन्त्र मस्तिष्क व कुटुम्ब के लिए त्याग करने वाले होते हैं। ये किसी पर निर्भर रहना पसन्द नहीं करते। आरम्भ में नौकरी करते हैं तथा अवसर मिलते ही व्यापार में चले जाते हैं। ये इरादे के पक्के होते हैं। हाथ में अधिक अच्छे लक्षण होने पर या तो पहले कुटुम्ब के व्यापार में रह कर बाद में स्वतन्त्र हो जाते हैं या पहले नौकरी के द्वारा अपनी स्थिति बना कर व्यापार में चले जाते हैं।

स्त्री होने पर ऐसी स्त्रियां स्वतंत्र मस्तिष्क, जिद्दी, पति के चरित्र पर शक करने वाली होती हैं। इनका पति को से घर से बाहर रहने की आदत होती है या परिस्थितिवश घर से बाहर रहता है। ऐसी स्त्रियां अपने सास-ससुर के साथ रहना पसन्द नहीं करती और अपने पति को अलग रहने की राय देती हैं। ये छोटी बातों को भी अधिक महसूस करने वाली होती हैं। आरम्भ में दाम्पत्य जीवन मोड़ की आयु तक कलहपूर्ण रहता है।

इनका स्वयं का स्वास्थ्य मध्य आयु में ठीक नहीं रहता तथा इसका प्रभाव एक बच्चे के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इनके आने वाली पीढ़ी में लम्बाई अपेक्षाकृत अधिक पाई जाती है। इस लक्षण से कान व पेट में दोष, घुटनों में दर्द, पत्नी को गर्भाशय दोष व स्वयं को अण्डकोष में दर्द तथा दांतों में रोग पाये जाते हैं। हाथ कठोर होने पर यदि खमदार जीवन रेखा में गोलाई न होकर सीधी हो तो कमर की हड्डी में दोष होता है। अक्सर देखा गया है कि कमर की हड्डी अपने स्थान से खिसक जाती है तथा उसका ऑपरेशन कराना पड़ता है। वस्तुत: ऐसे व्यक्तियों के शरीर में कैलशियम की कमी होती है। बुढ़ापे में इनकी कमर झुक जाती है।

इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ये साधारण व्यक्तियों से विशेष धनी और प्रतिष्ठित होते हैं।

टूटी हुई जीवन रेखा 

जीवन रेखा का टूटना एक दोष है। यह लक्षण विशेष शारीरिक कष्ट का निर्देश करता है। यदि टूटी जीवन रेखा के साथ किसी दूसरी रेखा में कोई दोष हो तो भयंकर रोग होता है। टूटी जीवन रेखा से सारे शरीर में दर्द रहता है। ऐसे व्यक्तियों के शरीर में वायु प्रधान होती है। इसके साथ-साथ यदि मस्तिष्क रेखा में भी दोष हो तो शरीर भारी हो जाता है तथा सिर में भारीपन बना रहता है। यह स्वयं को तथा वंश में नजला व दमा का कारण होता है। यदि कठोर हाथ में जीवन रेखा टूटी हुई हो तो ऐसे व्यक्ति को रीढ़ में रोग होता है। विशेषतया जब जीवन रेखा शनि के नीचे टूटी हो तो रीढ़ की हड्डी में टी॰बी॰ या अन्य कोई रोग पाया जाता है। जीवन रेखा टूट कर या बीच में पूरी होकर शुक्र की ओर जाती हो तो शरीर बहुत दुबला होता है। यह स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान फलदायी है। इससे ऐसा देखने में आता है कि कुटुम्ब में जो मृत्यु होती है लम्बी बीमारी के पश्चात् होती है।

ऐसे व्यक्तियों का कोई भी कार्य बिना बाधा के नहीं होता। कार्य की पहले आशा समाप्त होकर बाद में कार्य होता है। ऐसे व्यक्ति कई बार काम बदलते हैं। टूटी हुई जीवन रेखा की आयु के पश्चात् ही व्यक्ति उन्नति करता है। ये क्रोधी होते हैं, दोष के पश्चात् इनका क्रोध भी कम हो जाता है। इन्हें पढ़ाई में रुकावट होती है, ये विषय बदलते हैं तथा कई परिवर्तन इनके जीवन में आते हैं।

जीवन रेखा टूटी होने पर भी यदि वह शुक्र को विशेष रूप से घेरती हो तो भी व्यक्ति धनी होता है। साथ ही यदि कोई रेखा टूटे हुए स्थान को ढकती हो तो निश्चय ही हानि के बजाय लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति 4-5 काम बदलते हैं। साझेदारी व इधर-उधर घूम कर भी काम करते हैं और न तो एक स्थान पर जम कर रहते हैं और न ही बैठ सकते हैं।

एसी स्त्रियां स्वभाव की सीधी और भोली होती हैं तथा प्रभाव में आ जाती हैं। इनके साथ कोई व्यक्ति जरा भी सहानुभूति-पूर्ण बातचीत या व्यवहार करे तो ये सब भूल कर उस पर विश्वास कर लेती हैं।

टूटी जीवन रेखा होने पर मस्तिष्क रेखा यदि बहुत अच्छी हो तो व्यक्ति में प्रपंच व छल-कपट की मात्रा बढ़ जाती है। हृदय रेखा में दोष, अंगुलियां छोटी, हाथ में वृहस्पति की अंगुली विशेष छोटी हो तो ऐसे व्यक्ति की चाल-ढाल व बातचीत में भी धोखा और बदमाशी होती है। धोखे से ही कमाने वाले जैसे तस्करी, चोरी तथा गलत कामों की दलाली आदि करते हैं। ये प्रपंची होते हैं।

यदि जीवन रेखा टूट कर एक दूसरी के ऊपर चढ़ी हो अर्थात् टूटने से पहले ही दूसरा भाग आरम्भ होता हो तो यह थोड़े संघर्ष का ही कारण होती है। शेष इससे धन, सन्तान आदि सभी प्रकार का सुख रहता है यह पेट के ऑपरेशन का भी लक्षण होता है। टूटी जीवन रेखा यदि किसी चतुष्कोण के द्वारा आच्छादित हो तो दोषपूर्ण फल केवल नाम मात्र का होता है।

जीवन रेखा वृहस्पति के नीचे टूटी हुई

उपरोक्त दोष से बच्चों के गले में रोग, स्वयं को अपेन्डीसाइटिस या आंतो के रोग पाये जाते हैं। कोई बच्चा तुतला कर बोलता है। सन्तान के चोट लग कर हड्डी आदि भी टूटती है। ऐसों के बच्चे रोते बहुत हैं तथा उनके कान में बीमारी होती है। स्त्री होने की दशा में इन्हें गर्भपात अधिक होते हैं तथा कहीं से गिर का चोट लगती है। इस दोष से अक्सर जिस हाथ में जीवन रेखा टूटी हो उससे दूसरे कन्धे में चोट आती है।

जीवन रेखा शनि के नीचे टूटी हुई

इस प्रकार की जीवन रेखा रीढ़ की हड्डी के रोग या फेफडे़ के रोग का निश्चय करती है। हाथ कठोर है तो रीढ़ की हड्डी में टी॰बी॰ या उसकी एक हड्डी अपने स्थान से खिसक जाती है। जीवन रेखा पतली होकर टूटी हो और दोनों टूटे हूए भाग एक बहुत पतली रेखा से जुड़ते हों तो ऐसे व्यक्ति गोली से बचते हैं। यदि ये सेना में नौकरी करते हैं तो निश्चय ही यह फल कहा जा सकता है।

जीवन रेखा सूर्य के नीचे टूटी हुई

इस अवस्था में आंखें कमजोर व उसमें मोतिया उतर जाता है, बुढ़ापे में कमर झुक जाती है। यदि भाग्य रेखा में दोष हो तो एक भाई धोखा देता है।


जीवन रेखा में द्वीप 

जीवन रेखा जब बीच में से फट कर आंख या जौ (यव) के दाने की तरह का चिन्ह बनाती है तो यह द्वीप  कहलाता है।

किसी भी रेखा में द्वीप  होना अच्छा लक्षण नहीं है। इस प्रकार से जीवन रेखा द्वीप -युक्त होने पर उस समय में परेशानी, रोग, कर्ज, सन्तान का विछोह आदि समस्याएं जीवन में आती हैं।

जीवन रेखा का द्वीप  जितना खराब फल आरम्भ तथा अन्त में करता है उतना दूसरे स्थान पर नहीं करता। इससे बीमारी, मृत्यु, कुटुम्ब के झगड़े तथा अन्य नुकसान होना पाया जाता है।

जीवन रेखा में कहीं भी द्वीप  हो, यदि उस द्वीप  को कोई रेखा ढक लेती है तो बुरा फल कम होता है, केवल थोड़ी सी मानसिक अशान्ति होकर ही खराब फल की समाप्ति हो जाती है। परन्तु यह दूसरी रेखा जीवन रेखा से बिल्कुल पास सटी हुई नहीं होनी चाहिए, यदि यह द्वीप  चतुष्कोण से ढका हो तो फल नगण्य रह जाता है। जीवन रेखा में यदि गोल द्वीप  हो, साथ ही मस्तिष्क रेखा भी दोष-पूर्ण हो तो उस अवस्था में आंखे खराब हो जाती हैं।  आंखों का ऑपरेशन, अन्धापन, रतौन्धी आदि रोगों की सम्भावना रहती है।

जीवन रेखा के आदि और अन्त में द्वीप  हो तो सारा जीवन कष्ट-मय रहता है। इन्हें बचपन में मां-बाप का सुख नहीं मिलता।


जीवन रेखा के आरम्भ में द्वीप

जीवन रेखा में वृहस्पति के नीचे द्वीप हो और उससे कोई रेखा निकल कर वृहस्पति या शनि पर जाती है तो गले में खुश्की या छाले, टॉन्सिल तथा बचपन में डिप्थीरिया आदि रोग होते हैं। द्वीप  के साथ-साथ यदि जीवन रेखा भी दोषपूर्ण हो तो यह लक्षण पितृदोष होता है। वंश का न चलने या सन्तान न होने में किसी प्रकार का दोष होना पितृदोष के ही कारण होता है।

जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा दोनों के आरम्भ में द्वीप  और दोनों का जोड़ लम्बा या दोनों जुड़ कर मोटी हों तो कान का ऑपरेशन या कान में किसी प्रकार का दोष होता है। वृद्धावस्था में ऐसे व्यक्ति के कान बिल्कुल ही खराब हो जाते हैं।

जीवन रेखा के आरम्भ में यदि लम्बा द्वीप होकर दो रेखाएं एक साथ जुड़ी जैसी लगती हों तो जुड़वा बच्चे होते हैं। इस दशा में दोनों रेखाएं मोटी हों तो दोनों लड़कियां, पतली होने पर लड़के तथा एक पतली व एक मोटी हो तो एक कन्या व एक पुत्र पैदा होता है।

जीवन रेखा में शनि के नीचे या मध्य में द्वीप

जीवन रेखा में शनि के नीच द्वीप  होने पर यदि उस द्वीप  से कोई रेखा ऊपर की ओर जाती हो तो कमर में दर्द होता है।


सूर्य के नीचे जीवन रेखा में द्वीप (अंत में)

यह द्वीप  आंख में कमजोरी पैदा करता है। द्वीप  के स्थान पर यदि काला धब्बा हो तो भी बड़ी आयु में काला मोतिया उतरने से अन्धा होने की नौबत आ जाती है। मस्तिष्क रेखा में दोष हो तो ऑपरेशन होने पर भी आंख ठीक नहीं हो पाती।

जीवन रेखा के अंत में द्वीप

जीवन रेखा के अन्त में शुक्र के पास कभी छोटा तथा कभी बड़ा द्वीप  पाया जाता है। कई व्यक्ति इसे मत्स्य रेखा भी कहते हैं। परन्तु अपने अनुभव के आधार पर हम इसे द्वीप  ही कहते हैं, क्योंकि जीवन में इसका उत्तम फल देखने में नहीं आता।

जीवन रेखा के अन्त में बड़ा द्वीप  हो तो व्यक्ति को मां-बाप में सें एक का सुख होता है।  ऐसे व्यक्तियों को अपने पैरों पर खड़ा होकर आगे बढ़ना पड़ता है। धूमना-फिरना अधिक होता है और इनका जीवन परिवर्तनशील होता है। यदि जीवन रेखा गोलाकार हो तो आर्थिक कठिनाई का समाधान होता रहता है। ऐसे व्यक्तियों के आरम्भिक जीवन में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती, परन्तु 16-17वर्ष की आयु से या जबसे ये अपने पैरों पर खड़े होते हैं या शादी के पश्चात् इनके जीवन में कठिनाई आरम्भ होती है।

जीवन रेखा अधिक गोलाकार होने पर यदि यह द्वीप  सुन्दर आकृति का हो तो मत्स्य रेखा कहलाती है। कटा-फटा होने पर इसका फल ठीक नहीं होता।

जन्जीराकार जीवन रेखा

जीवन रेखा पतली होकर छोटे-छोटे द्वीपों से मिल कर यदि जंजीर की आकृति बनाती हो तो शरीर में कोई न कोई दोष जैसे तुतलाना, स्नायु विकार, कम्पन, गूंगापन, फेफड़े खराब होना आदि पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति स्वास्थ्य की ओर तो ध्यान देते हैं परन्तु सफाई के मामले में लापरवाह होते हैं। इनका कोई न कोई अंग भी बढ़ जाता है। हाथ भारी, जीवन रेखा गोलाकार व मस्तिष्क रेखा निर्दोष होने पर दोषपूर्ण फल लेश मात्र होते हैं।

यदि इस दशा में वृत्ताकार द्वीप  जीवन रेखा में हो तो आंखों से अन्धा भी हो जाता है। यह निर्णय अवश्य कर लेना चाहिए कि इस अवस्था में व्यक्ति मर तो नहीं जाएगा। यह भी दोष है अत: दोषयुक्त जीवन रेखा के सभी फल यहां भी लागु किए जा सकते हैं। हृदय, मस्तिष्क व जीवन रेखा तीनों ही जंजीराकार हो तो जीवन शक्ति दुर्बल होती है तथा धन की स्थिति भी विशेष उत्तम नहीं होती एवं मानसिक सन्ताप बना रहता है।

जीवन रेखा में रोमांच

जीवन रेखा गोलाकार व दोष रहित होने की दशा में, छोटी-छोटी रेखाएं जीवन रेखा से निकल कर शनि की ओर जाती हैं। ये रेखाएं जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण फल प्रदान करती हैं। जिस आयु में ऐसी रेखाएं निकलती हैं उस अवस्था में विशेष फल-कारक होती हैं जैसे सन्तान उत्पत्ति, धन लाभ, पदोन्नति आदि। इन रेखाओं की लम्बाई 1/6 इंच, कोई-कोई एक इंच या कभी-कभी कोई एक शनि पर्वत पर भी जाती हुई देखी जाती है। विशेष भाग्य रेखा नहीं होने पर भी इन छोटी रेखाओं से वहीं उपलब्धि होती है जो किसी महत्वपूर्ण भाग्य रेखा से। जो हाथ रेखाओं के जाल से रहित होते हैं उनमें इन रेखाओं का भी बहुत महत्व होता है व जिन हाथों में रेखाएं बहुत अधिक होती हैं उनमें ये रेखाएं साधारण फल करती हैं।

कुछ रोमांच जीवन रेखा के अन्दर की ओर से निकल कर शुक्र की ओर जाते हैं। ऐसी रेखाएं उस आयु में हानि का लक्षण हैं। यह धन, सन्तान व पद की हानि का संकेत है। परन्तु ऐसा ही रोमांच जब 1 इंच से लम्बा हो तो शुभ लक्षण माना जाता है तथा उस आयु से उन्नति का द्वार खोल देता है। एक ही आयु में यदि ऊपर और नीचे दो रोमांच निकलते हों तो हानि व लाभ का लेखा बराबर रहता है। जैसा है वैसा ही समय रहता है। यदि इस प्रकार की रेखा 2 इंच या अधिक लम्बी हो तो यह भाग्य रेखा कहलाती है। इनको मां-बाप का पूर्ण सुख नहीं रहता, इनके सम्बन्ध अपनी सन्तान से मित्रता-पूर्ण होते हैं। ऐसे व्यक्ति विशेष धनी होते हैं।

ऊपर से नीचे की ओर जाने वाले रोमांच अक्सर जीवन रेखा में भीतर की ओर ही देखे जाते हैं। बाहर की ओर ऐसे रोमांच देखने में नहीं आते जिस समय यह रोमांच निकल कर शुक्र की ओर चलते हैं उस समय में स्वास्थ्य खराब होना, कार्य में रुकावट, सन्तान हानि या सन्तान को कष्ट होना, सरकार से परेशानी होने आदि फल होते हैं। यह एक विशेष ध्यान रखने की बात है कि यह रेखा लम्बी नहीं होनी चाहिए। लम्बी होने पर यह जीवन रेखा की शाखा कहलाती है। जीवन रेखा गोलाकार होने पर मस्तिष्क रेखा अच्छी व हाथ बड़ा या भारी होने पर ये रोमांच दोषपूर्ण फल नहीं करते। यदि जीवन रेखा में उस समय कोई दोष है तो अधिक कष्ट कारक होते हैं।

द्विभाजित जीवन रेखा


जीवन रेखा आरम्भ में द्विभाजित

जीवन रेखा जिस समय मस्तिष्क रेखा से अलग होती है उस समय यदि यह दो भागों में बट जाए तथा चिमटे जैसी आकृति बनाए तो उसे द्विभाजित रेखा माना जाता है। यह वास्तव में द्वीप  होता है। यहां विशेषतया यह ध्यान देने की बात है कि दोनों भाग एक-सी मोटाई के होने चाहिए। इस द्विभाजन से जीवन रेखा में सीधापन भी आ जाता है।

यह लक्षण कुटुम्ब में कलह का प्रतीक है, जिसका कारण स्वयं की पत्नी होती है। यदि कुटुम्ब में केवल पति-पत्नी ही हैं तो अपने कारण भी कलह होती है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति सही बात का पक्ष लेते हैं तथा बाद में सफल हाते हैं। घर वाले यह भी कहते हैं कि यह क्या कमा कर खायेगा। नालायक है, मां-बाप की सहायता नहीं करता, न ही कहना मानता है, परन्तु द्वीप  का समय निकलने के पश्चात् सब झंझट समाप्त हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति माता-पिता के सेवक तो होते हैं परन्तु जिद्दी होते हैं। समय अनुकूल न होने से इन्हें श्रेय नहीं मिल पाता। पति पत्नी से और पत्नी पति से तंग रहते हैं। ऐसे व्यक्ति आरम्भ में शादी के विरुद्ध होते हैं।

जीवन रेखा की शाखा चंद्रमा पर

जीवन रेखा के अन्त में उससे निकल कर कोई रेखा यदि चन्द्रमा पर या चन्द्रमा की ओर जाती हो तो यह रेखा व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन का द्योतक होती है। ऐसे व्यक्ति जन्म भूमि से दूर अपना मकान या सम्पत्ति आदि बनाते हैं तथा मृत्यु भी जन्म स्थान से दूर ही होती है। इनके कुटुम्ब में से कोई व्यक्ति घर छोड़ कर चला जाता है, हाथ अच्छा होने पर वापिस आ जाता है। यदि अंगुलियां अधिक लचीली या अधिक सख्त हों तो यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति वृद्धावस्था में धनी हो जाते हैं।

जीवन रेखा अन्त में द्विभाजित होकर यदि उसकी शाखाएं चन्द्रमा पर जाती हों तो ऐसे व्यक्ति नौकरी से जीवन यापन करते हैं। यदि ये दोनों रेखाएं शुक्र को घेर कर कलाई की ओर जाती हों तो व्यापार ही करते देखे जाते हैं। परन्तु, यदि इन दोनो शाखाओं में से एक कलाई की ओर तथा एक चन्द्रमा की ओर जाती हो तो नौकरी व व्यापार दोनों ही करते हैं।

शुक्र को काटती जीवन रेखा

कई बार ऐसा देखने में आता है कि जीवन रेखा शुक्र को अधिक न घेर कर शुक्र के ऊपर से होकर गुजरती है। या तो यह शुक्र पर जा कर बिना किसी आधार के समाप्त हो जाती है या फिर नीचे जा कर पूरी होती है। सन्तान के लिए यह अच्छा लक्षण नहीं माना जाता जीवन रेखा टूट कर शुक्र की ओर जाती हो तो शरीर दुबला होता है।

जिस आयु में जीवन रेखा शुक्र को काटती है उस समय में यदि मस्तिष्क रेखा भी दोष पूर्ण हो व हृदय रेखा की शाखा भी मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो तो सन्तान, धन व स्वास्थ्य की परेशानी जीवन में होती है। यह समय जीवन में सब से अधिक कष्ट कारक होता है। मृत्यु, कर्ज व यहां तक की रोटी के लाले पड़ते देखे गये हैं।

मस्तिष्क रेखा बहुत अच्छी होने पर यदि जीवन रेखा शुक्र को काटती हो, साथ ही जीवन रेखा व हृदय रेखा में भी दोष हो तो ऐसे व्यक्ति प्रपंच करने वाले होते हैं। झूठी कहानी रच कर दूसरों को प्रभावित करने वाले, अनेक प्रकार के स्वांग रचने वाले, मक्कार व दुष्ट होते हैं।

जीवन रेखा यदि सीधी ही शुक्र को काटती हो तो सन्तान नहीं होती। स्त्रियों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। शुक्र को काटने वाली जीवन रेखा वाले व्यक्ति कामुक होते हैं। इन्हें स्वयं को वीर्य दोष होता है। यदि एक हाथ में जीवन रेखा की दशा ठीक हो तो बड़ी आयु में वीर्य दोष हो जाता है। ऐसे व्यक्ति बहुत मन्द आर्थिक उन्नति करते हैं।

जीवन रेखा को काटती हुई रेखाएं

जब कोई रेखा मंगल से निकल कर जीवन रेखा को काटती हुई मस्तिंष्क रेखा पर शनि के नीचे रुक जाए और दोनों हाथों में एक ही स्थान पर इस प्रकार का लक्षण हो तो ऐसी रेखाएं महान् खराब होती है। इस लक्षण से व्यापार में हानि, साझे से नुकसान, सरकारी झगड़ा, स्थान परिवर्तन, किसी की मृत्यु या बीमारी, स्वयं को चोट लगना, किसी की हत्या या आत्म हत्या करने का प्रयत्न करना आदि फल होते हैं। यदि शनि के नीचे जीवन रेखा से कोई गहरी रेखा निकल कर मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो बरबादी का कारण होती है। उपरोक्त फल तो होते ही हैं।

जिस समय तक ये छोटी-छोटी रेखाएं जीवन रेखा को काटती हैं उस समय तक परेशानी चलती ही रहती है। यदि रेखाएं गहरी हों तो किसी साझेदार, रिश्तेदार या कुटुम्ब के व्यक्ति से विरोध आदि रहता है। इन रेखाओं का इस अवस्था में मस्तिष्क रेखा को छूना जरूरी है। यदि इन रेखाओं से मस्तिष्क रेखा के साथ कोई बड़ा सा द्वीप बनता हो तो और भी दोषपूर्ण है। इस समय यदि व्यक्ति नौकरी में हो तो उन्नति में रुकावट, व्यापार में झगड़ा, काम में रुकावट, पड़ौसी या किसी किराएदार से झगड़ा आदि चलता है। यदि मस्तिष्क रेखा में भी थोड़ा दोष हो तो इस झगड़े के कारण स्थान परिवर्तन करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति क्रोधी होते हैं व क्रोध करना छोड़ दें तो सब झंझट खत्म हो जाते हैं।

जीवन रेखा को गहरी रेखायें दूर-दूर तक काटती हों तो इनकी कई से दुश्मनी होती है। यदि शुरू से ही जीवन रेखा को गहरी रेखाएं काटती हों तो प्रारम्भ से ही झगड़ेबाजी का लक्षण है तथा यह उम्र भर चलता रहता है। भाग्य रेखा यदि हृदय रेखा पर रुकी हो तो यह विरोध 50 वर्ष की आयु तक चलता है। इनका पेट भी खराब होता है।

  1. जीवन रेखा में यदि गड्ढा हो तो आंख फूटने से बचती है, दूसरे लक्षण भी खराब हों तो फूट ही जाती है।
  2. यदि जीवन रेखा में स्थान-स्थान पर धब्बे या गड्ढे हों तो ऐसे व्यक्ति का काम स्थायी नहीं रहता, इनके पेट में अम्ल होता है। जीवन साथी से आदत नहीं मिलती, ये धब्बे हाथ के मुल्यांकन में हृास का लक्षण होते हैं।
  3. जीवन रेखा में यदि त्रिकोण हो, चाहे कैसा ही हो व किन्हीं रेखाओं से मिल कर बना हो तो व्यक्ति सम्पत्ति निर्माण करता है। त्रिकोण सुन्दर हो तो मकान सुन्दर और त्रिकोण साधारण हो तो मकान साधारण कोटि का होता है। मकान अवश्य ही होता है तथा साधारण रूप से बनाये जाने वाले मकानों से बड़ा होता है।



साभार

जीवन रेखा - Life Line # 3

मोटी जीवन रेखा

पूरी जीवन रेखा के आकार को देखते हुए कर्इ बार यह अन्य रेखाओं की अपेक्षा अधिक मोटी होती है। इस प्रकार की जीवन रेखा हृदय, मस्तिष्क व भाग्य रेखा की तुलना में गहरी व चौड़ी होती है। मोटी जीवन रेखा वास्तव में व्यक्ति के लिए कष्टकारक ही होती है। यह हाथ में अच्छा लक्षण नहीं माना जाता। इसके साथ यदि दूसरी रेखाएं भी मोटी हों तो इसका फल अपेक्षाकृत कम दोषपूर्ण होता है। कभी-कभी जीवन रेखा पूरी मोटी न होकर बीच में से कुछ भाग में मोटापन लिए होती है। जीवन में यह समय कष्ट और मानसिक अशान्ति का होता है।

जिस आयु में जीवन रेखा मोटी होती है उस समय स्वास्थ्य, धन, सन्तान आदि की परेशानी रहती है। इसी समय में यदि मस्तिष्क रेखा भी दोषपूर्ण हो तो पेट का रोग और स्वयं को भी अम्ल-पित्त रोग होता है। स्वयं को झंझट, स्थान परिवर्तन, मुकदमे आदि अनेक प्रकार के कष्ट इस समय में देखने में आते है। जीवन रेखा मोटी होने पर यदि मस्तिष्क रेखा भी मोटी हो तो जीवन आसानी से नहीं बीतता। अधिक झंझट रहता है, जायदाद सम्बंधी मुकदमें होते हैं व झगड़े में चोट आती है।

इस दशा में यदि स्त्री हो तो उसे मासिक धर्म का रोग पाया जाता है। इनके गर्भाशय की नली में भी दोष होता है जिसके कारण उस समय में सन्तान नहीं हो पाती और इलाज कराना पड़़ता है। कभी-कभी देखा जाता है कि छोटा ऑपरेशन भी इस सम्बंध में किया जाता है। परन्तु दोष समाप्त होने के बाद ही सन्तान होती है। ऐसी स्त्रीयों के कमर में दर्द, पिंडलियों में दर्द, शरीर में दर्द तथा कभी-कभी आंखों में कमजोरी भी देखी जाती है। इसी लक्षण से शरीर का भार भी बढ़ जाता है।

ऐसे व्यक्ति क्रोधी तथा जिद्दी होते हैं। जरा सी बात पर बिगड़ पड़ते हैं तथा अधिक क्रोध करना इनकी आदत होती है। 

जीवन रेखा मोटी, पतली, मोटी व फिर पतली इस प्रकार की हो तो जीवन में परिवर्तन होता रहता है। इसी के साथ यदि उस आयु में मस्तिष्क रेखा भी मोटी, पतली हो तो जब दोनों रेखाओं में एक साथ मोटापन या पतलापन होगा तो जीवन में उन्नति होगी तथा एक रेखा में मोटापन व दूसरी में पतलापन होने पर परेशानी रहती है।

जीवन रेखा मोटी व कहीं से खण्डित तथा मस्तिष्क रेखा गहरी या काली या लाल चिन्ह से युक्त हो तो फेफड़े, जिगर या गुर्दे के बड़े ऑपरेशन की कारक होती है। जीवन रेखा खण्डित नहीं होने की दशा में उपरोक्त लक्षण हो तो मस्तिष्‍क में रसोली होती है। दोनों हाथों में ऐसे लक्षण होने पर ऑपरेशन तो होता है परन्तु मृत्यु निश्चित है।



पतली जीवन रेखा 

ऐसी जीवन रेखा भाग्य, मस्तिष्‍क व हृदय रेखा की तुलना में पतली होती है। अधिक पतली जीवन रेखा से भी स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता। कठोर हाथ में पेट खराब होता है और नरम हाथ में फेफड़े में विकार पाया जाता है, यह रोग वंशानुगत होता है।

आरम्भ में पतली जीवन रेखा अस्वस्थता के कारण की चेतावनी देती है, साथ ही यह कुटुम्ब-कलह, पत्नी की ओर से असन्तुष्‍टी, विवाह में देरी या उसके कारण घर में कलह आदि का लक्षण है। स्वयं को मां-बाप में से एक का सुख रहता है या उनसे अलग रहना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति स्वनिर्मित होते हैं। 

जीवन रेखा आरम्भ में पतली होने के साथ मस्तिष्क रेखा भी आरम्भ में पतली हो तो गूंगा व बहरा होने का संकेत है। 

जीवन रेखा की दृढ़ता से हम व्यक्ति की जीवन शक्ति का अनुमान करते हैं। जीवन रेखा जितनी ही पतली होती है व्यक्ति में जीवन शक्ति की कमी होती है। ऐसे व्यक्ति का आत्म विश्वास, स्वास्थ्य तथा मानसिक सन्तुलन डांवाडोल रहता है। 


देर से आरम्भ होने वाली जीवन रेखा

ऐसी जीवन रेखा मस्तिष्क रेखा से वृहस्पति के नीचे से आरम्भ न होकर आगे से आरम्भ होती है।

देर से आरम्भ होने वाली जीवन रेखा वाले व्यक्ति स्पष्‍टवक्ता, घूम फिर कर काम करने वाले, देर से स्थायित्व प्राप्त करने वाले तथा बचपन में दुखी होते हैं। इन्हें मां-बाप का सुख नहीं मिलता। कर्इ बार ऐसा देखा जाता है कि ये किसी दूसरे के छत्र-छाया में पलते हैं। तुतलाना, हकलाना या गले में दोष पाये जाते हैं। इनकी सन्तान भी बचपन में रोगी रहती है। जीवन में झंझट अधिक होते हैं। हाथ कठोर व खुरदरा होने पर दोष अधिक बढ़ जाते हैं तथा कोमल, सुन्दर व मखमली हाथ होने पर दोषों में कमी होती है। यह जीवन रेखा भी दोषपूर्ण जीवन रेखा कहलाती है। दोषपूर्ण जीवन रेखा के सभी सिद्धान्त इस स्थान पर भी उस समय जब तक कि यह आरम्भ नहीं होती, लागू किए जा सकते हैं। इस लक्षण के साथ मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो तो गले में थायरायड ग्रन्थी में दोष का लक्षण है।

जीवन रेखा में कुठार रेखा
कुठार रेखा जीवन रेखा के पास बिल्कुल सटी हुर्इ पतली रेखा का नाम है। यह रेखा छोटी या पूरी जीवन रेखा के साथ बाहर या भीतर किसी भी ओर हो सकती है। कर्इ स्थानों पर एक ही साथ बाहर और भीतर दोनों ओर भी कुठार रेखा देखी जाती है। यह एक बहुत बड़ा दोष माना जाता है।

जब तक कुठार रेखा जीवन रेखा के साथ चलती है उस समय में व्यक्ति को शान्ति, स्थायित्व, धन में बहुलता आदि बिल्कुल नहीं मिल पाते। किसी धर्म का व्यक्ति होने पर एकाग्रता, चिन्तन, ध्यान या अपने धर्म-ग्रन्थ के पाठ के द्वारा शान्ति प्राप्त कर सकता है। यह साधन नित्य व नियमित होना चाहिए। साधन के अनुसार ही कष्‍ट शान्ति होकर मानसिक शान्ति व अन्य बातों का सुख मिलता है।

ऐसे व्यक्तियों के पेट में अम्ल का प्रभाव पाया जाता है, फलस्वरूप खट्टापन या जलन आदि पेट में महसूस होते रहते हैं। अधिक दोष होने पर यह अल्सर का रूप धारण कर लेता है।

कुठार रेखा दोनों हाथों में लम्बी होने पर हृदय रोग होने का भय रहता है। आमतौर पर देखा गया है कि ऐसे व्यक्तियों को कोर्इ न कोर्इ गन्दी आदत जैसे शराब पीना, विशेष मांस खाना, जुआ खेलना आदि अवश्‍य होती है। ये क्रोधी व कटुवक्ता होते हैं। हाथ नरम होने पर यह लापरवाह व दूसरों पर निर्भर रहने वाले देखे जाते हैं। अत: इनको जीवन में सफलता कम मिलती है। इनकी आदत अपने मां-बाप से भी नहीं मिलती, फलस्वरूप् उनका भी सहयोग ऐसे व्यक्तियों को नहीं मिलता।

बचपन में ऐसे व्यक्ति पढ़ने में ध्यान नहीं देते। लापरवाह होते हैं व स्कूल से भागते हैं। अत: शिक्षा में रुकावट का सामना करना पड़ता है।

जिस समय तक कुठार रेखा चलती है उस समय तक व्यक्ति पर कुछ न कुछ देनदारी अवश्‍य बनी रहती है। नौकरी में भी परेशानी रहती है। भाग्य रेखा दोषपूर्ण होने पर यह वंश दोष का भी लक्षण है। कुठार रेखा होने के साथ-साथ यदि मस्तिष्क रेखा पर भाग्य रेखा रुकती है तो व्यक्ति गोली इत्यादी से बचते हैं अन्यथा आपस में दुश्‍मनी के कारण छुरे आदि से वार किया जाता है। कर्इ बार गलत फहमी में भी ऐसा हो जाता है। हाथ में अन्य अच्छे लक्षण होने पर मृत्यु नहीं होती।

जैसा कि बताया गया है कि भाग्य रेखा में दोष होने पर कुठार रेखा की उपस्थिति वंश में विघ्न करती है। साथ ही साथ यदि मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे लम्बा द्वीप या मस्तिष्क रेखा में झुकाव हो तो किसी प्रकार वंश नहीं चलता। ऐसे व्यक्ति स्वयं गोद आते हैं और गोद ही लेते हैं। ऐसा पितृ दोष के कारण होता है। 

कुठार रेखा के साथ यदि मस्तिष्क रेखा भी मोटी-पतली हो तो भंयकर दुर्घटना होती है। पेट या टांग का ऑपरेशन कराना पड़ता है। यह अंग-भंग का भी मुख्य लक्षण है। 

कुठार रेखा के साथ भाग्य रेखा में भी दोष हो अर्थात् भाग्य रेखा मोटी, टूटी, कर्इ टुकड़ों से मिल कर बनी, भाग्य रेखा जीवन रेखा के समीप आती या मस्तिष्क रेखा पर रुकती हो तो दाम्पत्य जीवन के लिए ये अच्छे ल़क्षण नहीं हैं। गृहस्थ जीवन में कलह, विछोह, तलाक आदि फल घटित होते हैं। हृदय रेखा की शाखा यदि उसी आयु में मस्तिष्क रेखा पर मिलती हो तो निश्चित रूप से जीवन साथी की मृत्यु या तलाक हो जाता है अन्य रेखाओं में सुधार होने पर दाम्पत्य जीवन में सुख रहता है।


अधूरी जीवन रेखा


जीवन रेखा जब आरम्भ होकर बीच में ही पूरी हो जाती है तो अधूरी जीवन रेखा कहलाती है। अधूरी जीवन रेखा कई बार आधी, अधिक या उससे कम भी देखी जाती है।

अधूरी जीवन रेखा के बहुत से फल सीधी जीवन रेखा से मिलते है तो भी इसमें कुछ अन्तर पाया जाता है। यह लक्षण भी हाथ में उत्तम नहीं माना जाता। इससे व्यक्ति को परेशानियां, मानसिक अशान्ति तथा असफलताओं का मुंह देखना पड़ता है। जिस समय तक जीवन रेखा अधूरी हो उस आयु तक कोई न कोई परेशानी चलती रहती है। धन प्राप्त करने में कठिनाई, सन्तान का स्वास्थ्य कमजोर, मृत्यु भय, नरम हाथ होने पर बीमारी  का डर, सख्त (कठोर) हाथ होने पर आंतो के तथा गुर्दे के रोग आदि लक्षण पाये जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अधूरी जीवन रेखा से व्यक्ति के जीवन में समस्या ही समस्या का आभास मिलता है। अधूरी जीवन रेखा का समय समाप्त होने के बाद ही व्यक्ति जीवन में उन्‍नति कर पाता है।

ये धार्मिक तथा ईश्वर से डरने वाले होते हैं। मस्तिष्क रेखा यदि निर्दोष हो तो इस फल में कमी करती है। इनका स्वभाव अधिक महसूस करने वाला होता है। छोटी सी बात को बहुत बड़ा बना देना इनके लिए बहुत ही सरल कार्य है।

जीवन में अधिक परिवर्तन अधूरी जीवन रेखा का समय पूरा होने के पश्चात् ही देखने में आते हैं। अच्छी भाग्य रेखा, भारी हाथ तथा अच्छी मस्तिष्क रेखा होने पर इस दोष में कमी हो जाती है।

जीवन रेखा आरम्भ में पतली होकर निकली हो तथा बीच में समाप्त हो गई हो व उसी स्थान से दूसरी जीवन रेखा आरम्भ हुई हो या अधूरी जीवन रेखा पतली होकर टूट गई हो तो सन्तान, धन और स्वास्थ्य के लिए घातक होती है।

इन्हें ऋण नहीं लेना चाहिए क्योंकि ये उसे समय से वापिस नहीं कर सकते। ऐसे व्यक्ति खाने-पीने के मामले में या तो बहुत ही उदार होते हैं या बिल्कुल ही संयमी। अघूरी जीवन रेखा होने पर यदि मस्तिष्क रेखा शनि के नीचे दोषपूर्ण हो तो शरीर भारी हो जाता है। स्त्री होने पर ऐसा अवश्य होता है। ऐसी स्त्रीयों का ऑपरेशन होता है व विवाह विधुर के साथ सम्पन्न होता है। अक्सर देखा गया है कि इनका मन कहीं अन्य स्थान पर होता है तथा विवाह कहीं अन्य होता है।

जीवन रेखा एक हाथ में पूरी तथा एक में अधूरी हो तो सफलता के साथ उलझनें अवश्य रहती हैं। यदि काम करने वाले हाथ में पूरी तथा दूसरे हाथ में अधूरी हो तो पिता के अनुपात में व्यक्ति अधिक सफल तथा योग्य होता है।

अधूरी जीवन रेखा हाथ में होना स्वास्थ्य के लिए अच्छा लक्षण नहीं है। नरम हाथ में यदि अधूरी जीवन रेखा हो तो ऐसे व्यक्ति नवाब होते हैं। अधिक परिश्रम नहीं कर पाते।

हाथ कठोर होने पर इन लक्षणों से व्यक्ति को आंतो के रोग, पेचिश, जिगर खराब होना, गुरदा खराब होना आदि रोग पाये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति खराब स्वास्थ्य को कम महसूस करते है जबकि नरम हाथ वाले स्वास्थ्य के दोषों को अधिक महसूस करते हैं।

जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जोड़ लम्बा हो तो व्यक्ति जीवन साथी के चरित्र पर सन्देह करता है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता। नरम हाथ पर जीवन रेखा अधूरी हो तो ऐसे व्यक्तियों को पत्नी का सुख अधिक नहीं होता। इनके जीवन साथी औषधियां प्रयोग करने में अनियमित होते हैं। चार दिन दवाई का सेवन करके छोड़ देते हैं व रोग पुन: बढ़ने पर फिर लेना आरम्भ करते हैं। इसी कारण स्वास्थ्य बिगड़ता चला जाता है।

हाथ यदि चौड़ा, भारी या सख्त हो तो ऐसे व्यक्तियों को सेना या पुलिस में काम करने का अवसर मिलता है। यदि विशेष भाग्य रेखा हाथ में हो तो फौज में किसी ऊंचे पद पर कार्य करने वाले होते है। यह बात विशेषतया बताने की है कि ऐसे व्यक्ति गोली लगने से बचते हैं। मस्तिष्क रेखा या भाग्य रेखा दोषपूर्ण हो तो अधूरी जीवन रेखा होने की दशा में ये गोली का शिकार होकर शहीद होते हैं। इनके वंश में भी पहले कोई न कोई किसी अस्त्र-शस्त्र से मृत्यु को प्राप्त होता है।

ऐसे व्यक्ति सर्वप्रिय होते हैं परन्तु इन्हें जीवन भर कुछ न कुछ अशान्ति बनी रहती है। ये कई बार अपना निवास स्थान बदलते हैं। इनका कारोबार कुछ समय तक ठीक तथा कुछ समय तक रुक-रुक कर चलता है




कबीर के दोहे


Kabir (कबीर) ke dohe in hindi

कबीर

चाह गई, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह |जिनको कछु न चाहिए वो शाहन के शाह ||


दोहों का भारतीय जनमानस पर हमेशा बहुत ही प्रभाव रहा हैं क्यूंकि दोहे जीवन की जटिलताओं को सरलता से समझा देते हैं | दोहे कालजयी होते हैं, इनके अर्थ समय की कसौटी पर सटीक होते हैं |




-50-
कबीर नाव जर्जरी, कूड़े खेवनहार ।
हलके हलके तिरि गए, बूड़े तिनि सर भार ॥

(कबीर कहते हैं कि जीवन की नौका टूटी फूटी है जर्जर है उसे खेने वाले मूर्ख हैं जिनके सर पर ( विषय वासनाओं ) का बोझ है वे तो संसार सागर में डूब जाते हैं – संसारी हो कर रह जाते हैं दुनिया के धंधों से उबर नहीं पाते – उसी में उलझ कर रह जाते हैं पर जो इनसे मुक्त हैं – हलके हैं वे तर जाते हैं पार लग जाते हैं भव सागर में डूबने से बच जाते हैं)
-49-
करता था तो क्यूं रहया, जब करि क्यूं पछिताय ।
बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ॥

(यदि तू अपने को कर्ता समझता था तो चुप क्यों बैठा रहा? और अब कर्म करके पश्चात्ताप क्यों करता है? पेड़ तो बबूल का लगाया है – फिर आम खाने को कहाँ से मिलें ?)
-48-
तेरा संगी कोई नहीं, सब स्वारथ बंधी लोइ ।
मन परतीति न उपजै, जीव बेसास न होइ ॥

(तेरा साथी कोई भी नहीं है. सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात की प्रतीति – भरोसा – मन में उत्पन्न नहीं होता तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता. अर्थात वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है जब संसार के सच को जान लेता है – इस स्वार्थमय सृष्टि को समझ लेता है – तब ही अंतरात्मा की ओर उन्मुख होता है – भीतर झांकता है)

-47-
हिरदा भीतर आरसी, मुख देखा नहीं जाई ।
मुख तो तौ परि देखिए, जे मन की दुविधा जाई ॥


(ह्रदय के अंदर ही दर्पण है परन्तु – वासनाओं की मलिनता के कारण – मुख का स्वरूप दिखाई ही नहीं देता मुख या अपना चेहरा या वास्तविक स्वरूप तो तभी दिखाई पड सकता जब मन का संशय मिट जाए)

-46-
मैं मैं मेरी जिनी करै, मेरी सूल बिनास ।
मेरी पग का पैषणा, मेरी  गल की पास ॥

(ममता और अहंकार में मत फंसो और बंधो – मेरा-मेरा है कि रट मत लगाओ, ये विनाश के मूल हैं – जड़ हैं – कारण हैं – ममता पैरों की बेडी है और गले की फांसी है)
-45-
मन जाणे सब बात, जांणत ही औगुन करै ।
काहे की कुसलात, कर दीपक कूंवै पड़े ॥


(मन सब बातों को जानता है जानता हुआ भी अवगुणों में फंस जाता है जो दीपक हाथ में पकडे हुए भी कुंए में गिर पड़े उसकी कुशल कैसी?)
-44-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो घर देखा आपणा, मुझसे बुराना कोय॥


(मैं इस संसार में बुरे व्यक्ति की खोज करने चला था लेकिन जब अपने मन में झाँक कर देखा तो मुझ से बुरा कोई न मिला अर्थात हम दूसरे की बुराई पर नजर रखते हैं पर अपने आप को नहीं देखते)
-43-
झूठे को झूठा मिले, दूंणा बंधे सनेह ।
झूठे को साँचा मिले, तब ही टूटे नेह ॥

(जब झूठे आदमी को दूसरा झूठा आदमी मिलता है तो दूना प्रेम बढ़ता है. पर जब झूठे को एक सच्चा आदमी मिलता है तभी प्रेम टूट जाता है)
-42-
कबीर चन्दन के निडै, नींव भी चन्दन होइ ।
बूडा बंस बड़ाइता, यों जिनी बूड़े कोइ ॥

(यदि चंदन के वृक्ष के पास नीम का वृक्ष हो तो वह भी कुछ सुवास ले लेता है – चंदन का कुछ प्रभाव पा लेता है . लेकिन बांस अपनी लम्बाई – बड़प्पन के कारण डूब जाता है. संगति का अच्छा प्रभाव ग्रहण करना चाहिए – अपने गर्व में ही नहीं रहना चाहिए)
-41-
करता केरे गुन बहुत, औगुन कोई नाहिं ।
जे दिल खोजों आपना, सब औगुन मुझ माहिं ॥

(प्रभु में गुण बहुत हैं – अवगुण कोई नहीं है.जब हम अपने ह्रदय की खोज करते हैं तब समस्त अवगुण अपने ही भीतर पाते हैं)
-40-
कबीर सो धन संचिए, जो आगे कूं होइ ।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्या कोइ  ॥

(कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम दे. सर पर धन की गठरी बांधकर ले जाते तो किसी को नहीं देखा)

-39-
मूरख संग न कीजिए,लोहा जल न तिराई ।
कदली सीप भावनग मुख, एक बूँद तिहूँ भाई ॥

(मूर्ख का साथ मत करो, मूर्ख लोहे के सामान है जो जल में तैर नहीं पाता  डूब जाता है. संगति का प्रभाव इतना पड़ता है कि आकाश से एक बूँद केले के पत्ते पर गिर कर कपूर, सीप के अन्दर गिर कर मोती और सांप के मुख में पड़कर विष बन जाती है)

-38-
काजल केरी कोठड़ी, तैसा यहु संसार ।
बलिहारी ता दास की, पैसि र निकसणहार ॥

(यह दुनिया तो काजल की कोठरी है, जो भी इसमें पैठा, उसे कुछ-न-कुछ कालिख लग ही जायगी । धन्य है उस प्रभु-भक्त को, जो इसमें पैठकर बिना कालिख लगे साफ निकल आता है)


-37-
ऊंचे कुल क्या जनमिया, जे करनी ऊंच न होय ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निन्दै सोय ॥

(यदि कार्य उच्च कोटि के नहीं हैं तो उच्च कुल में जन्म लेने से क्या लाभ? सोने का कलश यदि सुरा से भरा है तो भी सज्जन उसकी निंदा ही करेंगे)


-36-
मन मरया ममता मुई, जहं गई सब छूटी ।
जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूति ॥


(मन को मार डाला ममता भी समाप्त हो गई अहंकार सब नष्ट हो गया जो योगी था वह तो यहाँ से चला गया अब आसन पर उसकी भस्म – विभूति पड़ी रह गई अर्थात संसार में केवल उसका यश रह गया)


-35-
तरवर तास बिलम्बिए, बारह मांस फलंत ।
सीतल छाया गहर फल, पंछी केलि करंत ॥


(ऐसे वृक्ष के नीचे विश्राम करो, जो बारहों महीने फल देता हो .जिसकी छाया शीतल हो , फल सघन हों और जहां पक्षी क्रीडा करते हों)


-34-
कबीर संगति साध की, कड़े न निर्फल होई ।
चन्दन होसी बावना, नीब न कहसी कोई ॥


(कबीर कहते हैं कि साधु  की संगति कभी निष्फल नहीं होती. चन्दन का वृक्ष यदि छोटा भी होगा तो भी उसे कोई नीम का वृक्ष नहीं कहेगा. वह सुवासित ही रहेगा  और अपने परिवेश को सुगंध ही देगा. आपने आस-पास को खुशबू से ही भरेगा)


-33-
काची काया मन अथिर, थिर थिर  काम करंत ।
ज्यूं ज्यूं नर  निधड़क फिरै, त्यूं त्यूं काल हसन्त ॥


(शरीर कच्चा अर्थात नश्वर है मन चंचल है परन्तु तुम इन्हें स्थिर मान कर काम  करते हो – इन्हें अनश्वर मानते हो मनुष्य जितना इस संसार में रमकर निडर घूमता है – मगन रहता है – उतना ही काल (अर्थात मृत्यु )उस पर  हँसता है ! मृत्यु पास है यह जानकर भी इंसान अनजान बना रहता है)


-32-
जानि बूझि साँचहि तजै, करै झूठ सूं नेह ।
ताकी संगति रामजी, सुपिनै ही जिनि देहु ॥


(जो जानबूझ कर सत्य का साथ छोड़ देते हैं झूठ से प्रेम करते हैं हे भगवान् ऐसे लोगों की संगति हमें स्वप्न में भी न देना)

-31-
तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखिन की देखी ।
मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ॥


(तुम कागज़ पर लिखी बात को सत्य  कहते हो – तुम्हारे लिए वह सत्य है जो कागज़ पर लिखा है. किन्तु मैं आंखों देखा सच ही कहता और लिखता हूँ. कबीर पढे-लिखे नहीं थे पर उनकी बातों में सचाई थी. मैं सरलता से हर बात को सुलझाना चाहता हूँ – तुम उसे उलझा कर क्यों रख देते हो? जितने सरल बनोगे – उलझन से उतने ही दूर हो पाओगे)

-30-
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहीं ।
प्रेम गली अति सांकरी, जामें दो न समाहीं ॥


(जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हुआ. जब अहम समाप्त हुआ तभी प्रभु  मिले. जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ – तब अहम स्वत: नष्ट हो गया. ईश्वर की सत्ता का बोध तभी हुआ जब अहंकार गया. प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता – प्रेम की संकरी – पतली गली में एक ही समा सकता है – अहम् या परम ! परम की प्राप्ति के लिए अहम् का विसर्जन आवश्यक है)

-29-
जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है, बाहर भीतर पानी ।
फूटा कुम्भ जल जलहि समाना,यह तथ कह्यौ गयानी ॥


(जब पानी भरने जाएं तो घडा जल में रहता है और भरने पर जल घड़े के अन्दर आ जाता है इस तरह देखें तो – बाहर और भीतर पानी ही रहता है – पानी की ही सत्ता है. जब घडा फूट जाए तो उसका जल जल में ही मिल जाता है – अलगाव नहीं रहता – ज्ञानी जन इस तथ्य को कह गए हैं !  आत्मा-परमात्मा दो नहीं एक हैं – आत्मा परमात्मा में और परमात्मा आत्मा में विराजमान है. अंतत: परमात्मा की ही सत्ता है –  जब देह विलीन होती है – वह परमात्मा का ही अंश हो जाती है – उसी में समा जाती है. एकाकार हो जाती है)


-28-
पढ़ी पढ़ी के पत्थर भया, लिख लिख भया जू ईंट ।
कहें कबीरा प्रेम की, लगी न एको छींट॥


(ज्ञान हासिल करके यदि मनुष्य पत्थर सा कठोर हो जाए, ईंट जैसा निर्जीव हो जाए – तो क्या पाया? यदि ज्ञान मनुष्य को रूखा और कठोर बनाता है तो ऐसे ज्ञान का कोई लाभ नहीं. जिस मानव मन को प्रेम  ने नहीं छुआ, वह प्रेम के अभाव में जड़ हो रहेगा. प्रेम की एक बूँद – एक छींटा भर जड़ता को मिटाकर मनुष्य को सजीव बना देता है)

-27-
मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत ।
कहे कबीर हरि पाइए, मन ही की परतीत ॥


(जीवन में जय पराजय केवल मन की भावनाएं हैं. यदि मनुष्य मन से निराश हो गया तो  पराजय निष्चित है और यदि उसने मन को जीत लिया तो वह विजेता है. ईश्वर को भी मन के विश्वास से ही पा सकते हैं – यदि प्राप्ति का भरोसा ही नहीं तो कैसे पाएंगे?)

-26-
साधु भूखा भाव का ,धन का भूखा नाहीं ।
धन का भूखा जो फिरै, सो तो साधु नाहीं ॥


(साधु का मन भाव को जानता है व भाव का भूखा होता है,  वह धन का लोभी नहीं होता जो धन का लोभी है वह साधु हो ही नहीं सकता )

-25-
पढ़े गुनै सीखै सुनै , मिटी न संसै सूल।
कहै कबीर कासों कहूं , ये ही दुःख का मूल ॥


(बहुत सी पुस्तकों को पढ़ा गुना सुना सीखा  पर फिर भी मन में गड़ा संशय का काँटा न निकला कबीर कहते हैं कि किसे समझा कर यह कहूं कि यही तो सब दुखों की जड़ है – ऐसे पठन मनन से क्या लाभ जो मन का संशय न मिटा सके)

-24-
दोस पराए देखि कर, चला हसन्त हसन्त।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत॥


(मनुष्य पराये दोष देख कर बहुत खुश होता है, खुद के दोषों पर ध्यान नहीं देता जिनका न आदि और अंत का पता ही नहीं है)

-23-
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि॥


(वाणी एक अनमोल रत्न है, जो वाणी की कीमत जानता है वो शब्दों को हृदय में तोल कर बोलता है)

-22-
माला फेरत जुग गया, गया ना मनका फेर।
करका मनका छाडी के, मन का मनका फेर॥


(लोग सारे समय माला फेरते रहते हैं लेकिन उनका मन नहीँ बदलता है, माला यंत्रवत फिरती रहती है अगर मुक्ति चाहिए तो मन को ईश्वर में लगाओ)

-21-
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय॥


(कभी छोटे से छोटे व्यक्ति की भी निंदा नहीं करनी चाहिए, समय आने पर वोह भी बड़ी चोट दे सकता है, जैसे तिनका जब आँख में चला जाता है तो बहुत पीड़ा देता है)

-20-
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होई॥


(शरीर पर तो सब जोगी का स्वांग बना लेते हैं, लेकिन मन से कोई बिरला ही जोगी होता है | सब 
सिद्धिया  मन के जोगी होने से सहज ही प्राप्त हो जाती है)

-19-
हाड जले लकड़ी जले, जले जलावन हार।
कौतिकहारा भी जले, कासों करूं पुकार॥


(दाह क्रिया में हड्डियां जलती हैं उन्हें जलाने वाली लकड़ी जलती है उनमें आग लगाने वाला भी एक दिन जल जाता है. समय आने पर उस दृश्य को देखने वाला दर्शक भी जल जाता है. जब सब का अंत यही हो तो अपनी गुहार किससे करूं ? सभी एक ही नियति से बंधे हैं ! सभी का अंत एक है)

-18-
माया मुई न मन मुआ, मरी-मरी गया सरीर।
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर॥


(शरीर के कई-कई बार मरने पर भी ना तो माया मरती है न मन ही मरता है, आशा और तृष्णा लगी ही रहती है)

-17-
प्रेम न बाडी उपजे, प्रेम न हाट बिकाई।
राजा परजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाई॥


(प्रेम खेत में नहीं उपजता प्रेम बाज़ार में नहीं बिकता, चाहे कोई राजा हो या साधारण प्रजा – यदि प्यार पाना चाहते हैं तो वह आत्म बलिदान से ही मिलेगा. त्याग और बलिदान के बिना प्रेम को नहीं पाया जा सकता. प्रेम गहन- सघन भावना है – खरीदी बेचे जाने वाली वस्तु नहीं)

-16-
रात गंवाई सोय कर , दिवस गंवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥


(रात सो कर बिता दी,  दिन खाकर बिता दिया हीरे के समान कीमती जीवन को संसार के निर्मूल्य विषयों की – कामनाओं और वासनाओं की भेंट चढ़ा दिया – इससे दुखद क्या हो सकता है)

-15-
मन ही मनोरथ छाडी दे, तेरा किया ना होई।
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई॥


(मन तू ही अकारण इच्छा छोड़ दे, साड़ी इच्छाए पूरी नहीं हो सकती | अगर पानी में से ही घी निकल जाता तो किसीको भी रूखा भोजन नहीं करना पड़ता)

-14-
कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर॥


(कबीर कहते हैं कि सच्चा पीर – संत वही है जो दूसरे की पीड़ा को जानता है जो दूसरे के दुःख को नहीं जानते वे पीर या संत नहीं हो सकते)

-13-
कबीर हमारा कोई नहीं , हम काहू के नाहिं।
पारै पहुंचे नाव ज्यौं, मिलिके बिछुरी जाहिं॥


(इस जगत में न कोई हमारा अपना है और न ही हम किसी के ! जैसे नांव के नदी पार पहुँचने पर उसमें मिलकर बैठे हुए सब यात्री बिछुड़ जाते हैं वैसे ही हम सब मिलकर बिछुड़ने वाले हैं. सब सांसारिक सम्बन्ध यहीं छूट जाने वाले हैं)

-12-
सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन।
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन॥


(ये मन माया में इतना उलझा हुआ है कि कितना भी समझा लो सुलझता ही नहीं है, आज भी मन की अवस्था पहले दिन जैसी ही है)

-11-
देह धरे का दंड है ,सब काहू को होय।
ज्ञानी भुगते ज्ञान से ,अज्ञानी भुगते रोय॥


(देह धारण करने का दंड - भोग या प्रारब्ध निश्चित है जो सब को भुगतना होता है. अंतर इतना ही है कि ज्ञानी या समझदार व्यक्ति इस भोग को या दुःख को समझदारी से भोगता है निभाता है संतुष्ट रहता है जबकि अज्ञानी रोते हुए – दुखी मन से सब कुछ झेलता है)

-10-
दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि ना लागे डार॥


(जैसे पेड़ से पत्ता टूट कर वापस डाली पर नहीं लगता वैसे ही मनुष्य का जन्म बार-बार नहीं मिलता, ये शरीर मुक्ति के लिए मिलता है इसलिए अच्छे कर्म करने चाहिए)

-9-
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥


(पुस्तक पढ़-पढ़ कर लोग वास्तविक ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते, ईश्वर से सच्च प्रेम कर के ही वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर सकते है)

-8-
मन मैला तन ऊजला, बगुला कपटी अंग।
तासों तो कौआ भला ,तन मन एकही रंग॥


(बगुले का शरीर तो उज्जवल है पर मन काला – कपट से भरा है, उससे  तो कौआ भला है जिसका तन मन एक जैसा है और वह किसी को छलता भी नहीं है)

-7-
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देय उड़ाय॥


(सज्जन लोग सूप के समान होने चाहिए, जो सार-सार तो रख ले और निरर्थक की तरफ ध्यान न दे)

-6-
एकही बार परखिये, ना वा बारम्बार।
बालू तो हू किरकिरी, जो छानै सौ बार॥


(किसी व्यक्ति को बस ठीक से एक ही बार परख लो तो उसे बार बार परखने की आवश्यकता न होगी. रेत को अगर सौ बार भी छाना जाए तो भी उसकी किरकिराहट दूर न होगी, इसी प्रकार मूढ़ दुर्जन को बार बार भी परखो तब भी वह अपनी मूढ़ता दुष्टता से भरा वैसा ही मिलेगा)

-5-
हीरा परखै जौहरी , शब्दहि परखै साध।
कबीर परखै साध को , ताका मता अगाध॥


(हीरे की परख जौहरी जानता है – शब्द के सार– असार को परखने वाला विवेकी साधु – सज्जन होता है . कबीर कहते हैं कि जो साधु–असाधु को परख लेता है उसका मत अधिक गहन गंभीर है)

-4-
जाति न पूछों साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥


(अर्थात ज्ञानी से उसकी जात नहीँ पूछनी चाहिए, उसका तो ज्ञान ही अनमोल होता है | समय आने पर तलवार ही काम आती है म्यान का कोई मोल नहीं होता)

-3-
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सुब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥


(मनुष्य को धीरज रखना चाहिए, सब कार्य समय आने पर ही होते हैं)

-2-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपणा, मुझसे बुरा ना कोय॥


(लोग दूसरों में बुराई तलाशते है लेकिन अपने आप को नहीं देखते)

-1-
पतिबरता मैली भली, गले कांच की पोत।
सब सखियाँ में यों दिपै,ज्यों सूरज की जोत॥


(पतिव्रता स्त्री यदि तन से मैली भी हो भी अच्छी है. चाहे उसके गले में केवल कांच के मोती की माला ही क्यों न हो. फिर भी वह अपनी सब सखियों के बीच सूर्य के तेज के समान चमकती है)


बस, ऐसे ही पूछ लिया !!!
Social बोल
मस्तिष्क रेखा एवं आपका व्यक्तित्व

जीवन रेखा - Life Line # 2



दोषयुक्त जीवन रेखा

दोषयुक्त जीवन रेखा का तात्पर्य टूटी, द्वीपयुक्त, सीधी, अधुरी, कहीं मोटी कहीं पतली, कहीं लाल व कहीं काली होने से है। जिस जीवन रेखा में इस प्रकार के दोष पाये जाते हैं उसे दोषपूर्ण जीवन रेखा कहते हैं।

जीवन रेखा में जितना ही दोष होता है स्वास्थ्य, धन कुटुम्ब आदि से अशान्ति की मात्रा अधिक रहती है। जब तक जीवन रेखा में दोष रहता है व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की कमी रहती ही है।

दोष युक्त जीवन रेखा से कुटुम्ब बड़ा न होकर छोटा होता है। ऐसे व्यक्ति को किसी से भी लाभ अथवा सहयोग प्राप्त नहीं होता। आपसी कलह, विरोध तथा कुटुम्ब विग्रह से चित्त खिन्न रहता है। ससुराल से इनको कोई लाभ नहीं होता।

दोष पूर्ण जीवन रेखा की आयु में स्वयं या पत्नी को किसी न किसी प्रकार का शारीरिक दोष रहता है। ऐसा देखा गया है कि इस समय में स्त्रियों को गर्भाशय सम्बंधी विकार, मासिक धर्म के दोष या प्रदर आदि रहते हैं। इनके पेट में खराबी, निमोनिया आदि रोग रहते हैं।

उपरोक्त जीवन रेखा यदि कठोर हाथ में हो तो पेट, गुरदा, दमा आदि विकार शरीर में उत्पन्न करती है, तथा नरम हाथ में जिगर, मधुमेह, टी॰बी॰  आदि रोगों का संकेत है।

जीवन रेखा जिस समय तक दोष पूर्ण रहती है उस समय तक व्यक्ति को सम्पत्ति का सुख भी नहीं होता। साथ ही इनके रहने का स्थान भी ठीक, शान्ति-पूर्ण तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम नहीं होता। इस कारण इन्हें निवास सम्बंधी कमी लगातार खटकती रहती है।

यह स्वाभाविक है कि जब व्यक्ति मानसिक कष्ट से परेशान होता है या घर में बीमारी का साम्राज्य होता है, उस समय खर्च अधिक होने से आर्थिक स्थिति पर भी इसका अच्छा प्रभाव नही पड़ता, साथ ही व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन, धैर्य व आत्म विश्वास भी साथ नहीं दे पाता। नरम हाथ वाले व्यक्ति ऐसी अवस्था में बहुत जल्द घबराते हैं तथा कठोर हाथ वाले अपनी हिम्मत से परिस्थिति का सामना करते हैं।

इस आयु में माता-पिता का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं होता उनमें से किसी एक या दोनों को ही कोई न कोई रोग लगा होता है।

दोषपूर्ण जीवन रेखा की अवस्था में यदि मस्तिष्क रेखा बहुत अच्छी हो तो आसानी से जीवन यापन होता रहता है, कठिनाई आती अवश्य है परन्तु वह आसानी से दूर हो जाती है।

यदि हाथ भारी हो तो दोष का प्रभाव कम होता है। हम यह कह सकते हैं कि जीवन रेखा उन्हीं व्यक्तियों की दोषपूर्ण होती है जिनके पूर्व-दत्त कर्म दोषमय होते हैं। इस दोष की शान्ति केवल ईश्वर आराधना से सम्भव है। प्रभु की आराधना ही ऐसी है कि "अनहोनी होनी करे, होनी देय मिटाय"

यदि मस्तिष्क रेखा शनि की अंगुली के नीचे दोषपूर्ण हो तो गर्भपात अवश्य होता है तथा सन्तान उत्‍पत्ति में कठिनाई रहती है।

इस प्रकार की जीवन रेखा के साथ हृदय रेखा दोषपूर्ण या चन्द्र उन्‍नत हो तो स्वयं या कुटुम्ब में किसी को मानसिक रोग, दिल की धड़कन, दिल बैठना या ऑपरेशन आदि होते हैं। हृदय रेखा या मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे दोष हो तो आंखों में खराबी होती है तथा यह कहा जा सकता है कि यह वंशानुगत रोग है।

जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर यदि मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होकर निकली हो तो बाल्यकाल में स्वयं का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता अर्थात् बचपन में कई बार अधिक बीमार होते हैं। यदि जीवन रेखा व मस्तिष्क रखा के बीच में चतुष्कोण हो तो भयंकर कष्टों से बार-बार रक्षा होती है।

जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर एक या दो सन्तान रहती हैं। यदि मस्तिष्क रेखा भी दोषपूर्ण हो तो सन्तानहीन रहता हैं। जीवन तथा मस्तिष्क रेखा यदि बायें हाथ में दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति का जन्म अशिक्षित परिवार में होता है व जन्म के समय उसके कुटुम्ब की दशा भी आर्थिक रूप से अच्छी नहीं होती। परिवार में अकाल मृत्यु, बीमारी, झगड़े व अधिक खर्च आदि रहते है।

जीवन रेखा खराब होने पर यदि भाग्य रेखा में दोष हो (द्वीप) तो पहली सन्तान का सुख नहीं रहता। पुत्र तो बचता ही नहीं, पहली सन्तान लड़की हो तो उसे भी स्वास्थ्य कष्ट होता है।

सीधी जीवन रेखा

इस प्रकार की जीवन रेखा गोलाकार न होकर सीधी होती है। यह जीवन रेखा का दोष माना जाता है। अधिकतर हाथों में जीवन रेखा सीधी देखी जाती है। प्राय: ऐसा देखने में आता है कि जीवन रेखा आरम्भ में अर्थात् 35वर्ष की आयु तक अधिक सीधी पाई जाती है, परन्तु कहीं-कहीं पूरी जीवन रेखा में ही सीधापन होता है।

जिस आयु तक जीवन रेखा सीधी होती है उस समय में स्वास्थ्य, सन्तान की चिन्ता, कर्ज, कलह व रोग आदि चलते हैं। इस दशा में व्यक्ति के कार्य का पूरा मुल्य भी उसे नहीं मिल पाता अर्थात् जितना वह काम करता है उस अनुपात से पारिश्रमिक नहीं मिलता। जीवन रेखा में सीधापन होने से शारीरिक पीढ़ा, पेट विकार, यकृत विकार व वासनात्मक प्रवृत्ति की अधिकता पाई जाती है। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर टांगों के रोग अवश्याम्भावी होते हैं।

इनका कोई भी कार्य बिना रुकावट के सम्पन्न नहीं होता। ये बातूनी, गलत कार्य करने वाले, स्थाई न रह कर कार्य बदलने वाले, स्वयं कुआं खोद कर पानी पीने वाले होते हैं। इन्हें क्रोध आने पर गाली देने की आदत होती है। डटकर संघर्ष करते हैं व संघर्ष इन्हें बुरा नहीं लगता। परन्तु किसी के याद दिलाने पर मरे मन से भगवान् को धन्यवाद करते हैं कि ईश्वर की कृपा से ही इन्होंने कठिनाइयों को पार किया है।

इनकी सन्तान योग्य होती है। हाथ सुदृढ़ होने पर सन्तान आज्ञाकारी होती है, पढती है व उनमे से कोई अयोग्य भी निकलती है। कोमल हाथ होने की अवस्था में संतान का पूर्ण सुख होता है।

इनकी कमर में दर्द होता है। कभी-कभी यदि जीवन रेखा सीधी व इसमें द्वीप आदि भी हो तो रीड़ की हड्डी अपने स्थान से हट जाती है। 

यदि सीधी जीवन रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो प्रजनन में कष्ट का सामना करना पड़ता। गर्भपात, रक्त-स्‍त्राव, गर्भाशय की नली बन्द हो जाना आदि दोष पाये जाते हैं। भाग्य रेखा भी यदि मोटी हो तो ऐसा निश्चय ही होता है। जीवन रेखा सीधी होने पर व्यक्ति के पेट में खराबी होती है, इन्हें कब्ज, पेट में अम्ल आदि का प्रभाव होता है। ऐसे व्यक्तियों को चाय आदि गरम चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। सिगरेट तथा नशा  इनके लिए हानिकारक होते हैं।

जीवन रेखा आधी या आधी से अधिक सीधी होने पर आयु भर स्वास्थ्य चिन्ता लगी रहती है। कमर दर्द, सिर भारी, पेट खराब, भूख कम या अधिक लगना चलता रहता है। 

अच्छी मस्तिष्क रेखा इस जीवन रेखा का दोष दूर करती है, परन्तु जीवन रेखा थोड़ी भी सीधी होने की दशा में कुछ समय तक झंझट अवश्य करती है।

मस्तिष्क रेखा अच्छी होने की अवस्था में काम आराम से चलता रहता है। शुक्र विशेष उन्नत होने पर व्यक्ति अति वासना प्रिय होता है। दूसरे लक्षण जैसे हृदय रेखा अंगुलियों के पास एवं इसका अन्त शनि और वृहस्पति की अंगुली के बीच होने पर ये लक्षण अधिक बढ़ जाते  हैं जो जीवन में अपकीर्ति का कारण होते हैं।

मस्तिष्क रेखा मंगल से, शुक्र उठा, चन्द्रमा से भाग्य रेखा, भाग्य रेखा मोटी तथा उस में द्वीप, भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी व हृदय रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप या इसका अन्त शनि व वृहस्पति की अंगुलियों के बीच आदि कोई 2 या 3 लक्षण होने पर व्यक्ति चरित्रहीन होता है। 

सीधी जीवन रेखा वाले व्यक्ति को एक्सीडेन्ट में चोट लगती है। इन्हें पितृ-दोष होता है, ऐसी दशा में यदि सन्तान सम्बन्धी परेशानी हो तो गया-श्राद्ध  या पितृ-कर्म से शान्ति सम्भव है।

जीवन रेखा पहले गोलाकार, फिर सीधी तथा फिर गोलाकार हो तो जिस समय में यह सीधी होती है, उस समय में भारी परेशानियां आती हैं। 

जीवन रेखा सीधी होने पर यदि शुक्र प्रधान, भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष, हृदय रेखा सीधी शनि पर गई हो तो व्यक्ति में चरित्र सम्बन्धी दोष होते हैं। जीवन रेखा का दोष निकलने पर चरित्र में स्वयं सुधार हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की हृदय रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो रोग होने के कारण चरित्र दोष नहीं रहते। 

जीवन रेखा सीधी होने की दशा में काम, मकान व साझी कई बार बदलने पड़ते हैं। इनके पिता को भी जीवन में सुख शान्ति नहीं मिल पाती। उन्हें भी कई प्रकार के कार्य बदलने पड़ते हैं। व्यापार भी कई स्थान पर करना पड़ता है। यदि ऐसे व्यक्ति नौकरी में हों तो इनका तबादला भी स्थान-स्थान पर होता रहता है। ये तथा इनके पिता पूर्णत: स्व-निर्मिमत होते हैं। पिता का स्वभाव सीधा, दूसरों की सहायता करने का तथा सैद्धान्तिक मामलों में सख्त पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति मुकदमा लड़ना पसन्द नहीं करते परन्तु इनको मुकदमा भी लड़ना पड़ता है।

जीवन रेखा का अंत


जीवन रेखा का अन्त शुक्र, चन्द्रमा या इन दोनों के बीच होता है। शुक्र व चन्द्रमा के मध्य में अन्त होने पर साधारण फल देने वाली जीवन रेखा होती है। जीवन रेखा के आकार तथा उसकी बनावट एवं चन्द्रमा पर जाकर अन्त होती है उसका फल अलग  होता है।

जीवन रेखा का अंत चंद्रमा पर

जीवन रेखा जितनी ही सीधी होकर चन्द्रमा पर जाती है, व्यक्ति को उत्तरोत्तर उतना ही, स्त्री, धन व सन्तान का सुख होता जाता है। ऐसे व्यक्तियों को अन्त में ही सुख मिल पाता है। इनकी मध्यावस्था संघर्षपूर्ण रहती है। ऐसे व्यक्ति घर छोड़ कर बाहर नहीं जाना चाहते अत: काम छोड़ कर भी बच्चों के पास रहना पसन्द करते हैं, फलस्वरूप देर से जीवन बनता है। ये शुक्ल पक्ष में पैदा होते देखे जाते हैं। इनका स्वभाव भी कुछ सख्त होता है। जितनी ही जीवन रेखा चन्द्रमा की ओर बढ़ती जाती है उतना ही व्यक्ति पूर्व आयु में कठिनाई का सामना करता है। इस कठिनाई का अनुमान मस्तिष्क रेखा तथा भाग्य रेखा के दोष से लगाना चाहिए। इनकी पत्नी का स्वास्थ्य भी कमजोर होता है, वह वजन में भी भारी होती है। भार शादी के बाद ही बढ़ता है और विशेषत: सन्तान उत्पत्ति के पश्चात्। ये व्यक्ति चाहें कितने भी बड़े मकान में रहें तो भी इन्हें स्थान की कमी महसूस होती रहती है। इसके कारण हो सकते हैं। ऐसे व्यक्ति जन्म स्थान से अलग जाकर बसते हैं तथा वहीं अपनी जायदाद बनाते हैं।

जीवन रेखा चन्द्रमा पर जाने की दशा में हाथ टेढ़ा-मेढ़ा, पतला और अंगुलियां तिरछी हों तो ऐसे व्यक्ति इधर-उधर घूम कर गुजारा करने वाले होते हैं। अंगुलियां मोटी तथा भाग्य रेखा गहरी हो तो खेती का योग होता है किन्तु जमीन एक स्थान पर नहीं होती। खेत कहीं और घर कहीं पर होता है।

जीवन रेखा गोलाकार होकर चन्द्रमा पर जाए तो कुटुम्ब बड़ा होने के कारण अशान्ति रहती है और चिन्ता का कारण बनती है। कोई सम्बन्धी भी इनकी चिन्ता का कारण रहता है। ऐसे व्यक्ति जायदाद की कमी महसूस करते हैं। चाहें कितने भी मकान हों, कुटुम्ब तथा कारोबार अधिक होने से सदैव ही स्थान की तंगी महसूस करते हैं।

जीवन रेखा सर्वश्रेष्ठ वही मानी जाती है जो वृहस्पति व मंगल के मध्य से उदय होकर पूर्ण रूप से शुक्र को घेरती हुई मणिबन्ध की ओर जाती है। ऐसी जीवन रेखा धन, सन्तान, सवारी, स्वास्थ्य, नौकर, जीवन-साथी तथा माता-पिता का पूर्ण सुख करने वाली होती है। इस रेखा का अन्त, मणीबन्ध के पास शुक्र व चन्द्रमा के बीच होता है।
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