रेखा परिचय


हाथ में निम्न मुख्य रेखाएं पाई जाती हैं :-

1. जीवन रेखा 2. मस्तिष्क रेखा 3. हृदय रेखा 4. भाग्य रेखा तथा 5. स्वास्थ्य रेखा


इन रेखाओं के अतिरिक्त कुछ रेखाएं किसी ग्रह विशेष को घेरे हुए लगती हैं। उन्हें हम मुद्रिका कहते हैं। हाथ में अभी तक तीन मुद्रिकाएं विशेंष रूप से देखी गई हैं। पहली वृहस्पति मुद्रिका, दूसरी सूर्य मुद्रिका और तीसरी शनि मुद्रिका उल्लेखनीय हैं।

उपरोक्त रेखाओं के अतिरिक्त हाथ में मणीबन्ध होते हैं। यह रेखाएं कलाई और हाथ के जोड़ पर पाई जाती हैं और तीन संख्या तक होती हैं।

हाथ देखते समय विशेषतया देखने वाली बातें निम्न हैं:-

1-    कौनसी रेखा कहां से निकल कर कहां गई है।

2-    किस स्थान पर रेखा टूटी हुई, झुकी हुई, टेढ़ी, मोटी या पतली है।

3-    कौनसी रेखा किस स्थान पर किसी दूसरी रेखा से कटती है अथवा कोई रेखा उस पर आकर मिलती या उसे छूती है।

4-    कौनसी रेखा किस स्थान पर त्रिकोण, चतुष्कोण या किसी दूसरी रेखा से आछादित है।

5-    यह भी बहुत ही ध्यान से देखने की बात है कि किसी रेखा के बिल्कुल नजदीक कोई दूसरी रेखा तो नहीं जा रही है। इस पतली रेखा का हाथ के फलादेश पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इन रेखा विशेष को हम कुठार रेखा के नाम से पुकारेंगे।

6-    यह भी हमें देखना होगा कि कुल मिला कर रेखाएं लम्बी, छोटी, मोटी, पतली या किसी विशेष प्रकार की हैं।


हाथ में उपस्थित चारों मुख्य रेखाओं की लम्बाई पूर्ण होने पर व्यक्ति की आयु लम्बी होती है। यदि इनमें से किन्हीं दो या तीन रेखाओं में एक ही आयु में गम्भीर दोष हो तो मृत्यु हो जाती है। केवल जीवन रेखा को ही जीवन की लम्बाई के विषय में उत्तरदायी नहीं कहा जा सकता। केवल जीवन रेखा का दोष व्यक्ति की उस आयु में अन्य समस्यायें देने वाला होता है।

जीवन रेखा अपूर्ण होने की दशा में यह जिस आयु में समाप्त होती है, उसके पश्चात् कफ व उदर विकार रहते हैं, परन्तु धन, सुख व सम्पत्ति की दृष्टि से समृद्धि प्राप्त होती है। अपूर्ण जीवन रेखा की आयु तक प्रत्येक कार्य में विघ्न रहता है।

जिस हाथ में बहुत सी रेखाओं का जाल-सा बिछा होता है वह मनुष्य स्नायु या शरीर से कमजोर रहता है और अधिक श्रम नहीं कर सकता। तथा निरर्थक चिन्तन में लगा रहता है।

यदि हाथ में अधिक रेखाएं न हों तो मनुष्य परिश्रम से थकता नहीं है, परन्तु मुख्य रेखाएं छोड़ कर अन्य रेखाओं का बिल्कुल न होना आलस्य की निशानी है।


रेखाओं के विषय में साधारण जानने योग्य बातें

रेखाएं जितनी ही सुडौल और पतली होती हैं व्यक्ति उतना ही भाग्यवान होता है। साधरणतया रेखायें मोटी होने पर व्यक्ति का जीवन देर से बनता है ओर उसक स्वभाव में भी कई प्रकार की अपुर्णतायें पाई जाती हैं। मस्तिष्क, हृदय व जीवन रेखा में से दो रेखाएं यदि किसी एक ही आयु(स्थान) पर टूटी हुई हो तो संकट द्योतक है।

किसी एक रेखा की समाप्ति की आयु पर व्यक्ति को विशेष असुविधा तथा कठिनाई का सामना करना पड़ता है जैसे भाग्य रेखा एकदम समाप्त होने पर व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन ठीक नहीं रहता। इस आयु में कार्य में रुकावट होती है, मन में अनिश्चितता व निराशा का वतावरण बना रहता है व दाम्पत्य जीवन में विघ्न आता हैं, कार्य में रुचि नहीं रहती। कुछ समय पश्चात् यह स्वत: दूर हो जाता है।

हाथ में जो भी रेखा अधूरी होती है मनुष्य के जीवन में उसी रेखा से सम्बंधित आकांक्षा की तीव्रता पायी जाती है जैसे भाग्य रेखा से भाग्योदय, मस्तिष्क रेखा से शिक्षा, हृदय रेखा से प्रेम और जीवन रेखा से स्वास्थ्य। व्यक्ति उसी आकांक्षा को पूर्ण करने में सबसे अधिक ध्यान देता है। यह अन्य लक्षणों पर निर्भर करता है कि यह आकांक्षा व्यक्ति पूरी कर पाता है या नहीं।

चारों रेखाओं में से एक भी टूटी होने पर ऑपरेशन होता है। चारों रेखाएं एक साथ टूटी होने पर दुर्घटना में मृत्यु होती है तथा इनके सम्बन्धी इनके पास देर से पहुंच पाते हैं या कभी-कभी मृत्यु का पता भी नहीं लग पाता।

हाथ पतला या कठोर, अंगुलियां मोटी आदि खराब लक्षण हाथ में हों तो दोषपूर्ण रेखा का प्रभाव व्यक्ति के पूर्व जीवन में ही हो जाता है। भारी तथा सुन्दर हाथ में यदि दोषपूर्ण रेखाएं हों तो उसका प्रभाव व्यक्ति की उत्तर आयु में होता है।

चारों रेखाएं यदि अन्त में द्विभाजित अथवा त्रिविभाजित हों तो सुख का कारण होता है परन्तु अन्त में कुछ न कुछ कमी अवश्य ही रहती है।

चारों रेखाएं लम्बी होने की दशा में जीवन साथी का कद लम्बा होता है। पत्नी साधारणतया ठीक लम्बाई की होती है तथा चारों रेखाएं मोटी होने पर जीवन साथी का कद छोटा होता है। पत्नी विशेष छोटी होती है।

सभी रेखाएं या अधिकतर रेखाएं अगर दो (डबल) हों तो व्यक्ति विलम्ब से सफलता प्राप्त करता है क्योंकि घर छोड़ कर बाहर नहीं जाना चाहता परन्तु स्थायित्व के पश्चात् लगातार सफलता प्राप्त होती है।

सभी रेखाएं नजदीक में दोहरी होना अच्छा लक्षण नहीं है। जीवन भर संघर्ष रहता है। सफलता तो मिलती है परन्तु अशान्ति बनी रहती है। हाथ की बनावट का इस लक्षण पर अधिक प्रभाव पड़ता है।

तीन मुख्य रेखाएं यदि जीवन रेखा के निकास के स्थान पर मिलें तो व्यक्ति के उतरार्द्ध अर्थात् 50वर्ष की आयु के आस-पास प्राय: दुर्घटना, क्लेश, अशान्ति व हानि होती है। जीवन भर व्यक्ति को इसका दु:ख रहता है। यह हाथ में बहुत ही खराब लक्षण होता है। जो व्यक्ति दिवालिया होते हैं उनके हाथ में यह लक्षण प्राय: पाया जाता है। एक हाथ में यह योग होने पर इसका फल गम्भीर न होकर साधारण होता है। यदि मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग हो तो भी फल में आधी कमी हो जाती है।

एक बात दोबारा कहना आवश्यक है कि हाथ जितना ही भारी, सुन्दर, मांसल, कोमल, अंगुलियां जितनी पतली व छोटी होती हैं उतना ही हाथ में बुरी रेखाओं का प्रभाव कम होता है। होता तो अवश्य है परन्तु बरबादी या इस प्रकार की कोई घटना नहीं हो पाती। इसलिए हाथ के आकार तथा उसके भार आदि को परख कर ही किसी दुर्घटना, स्वभाव या घटना का फल कहना चाहिए। अंगूठा जितना ही लम्बा होता है उतना ही व्यक्ति बुद्धिमान, बुद्धि-जीवी व सन्तुलित होता है तथा जीवन में आने वाली समस्याओं का सफलता पूर्वक मुकाबला करने में समर्थ होता है।



साभार

No comments:

Post a Comment