दोषयुक्त जीवन रेखा
दोषयुक्त जीवन रेखा का तात्पर्य टूटी, द्वीपयुक्त, सीधी, अधुरी, कहीं मोटी कहीं पतली, कहीं लाल व कहीं काली होने से है। जिस जीवन रेखा में इस प्रकार के दोष पाये जाते हैं उसे दोषपूर्ण जीवन रेखा कहते हैं।
जीवन रेखा में जितना ही दोष होता है स्वास्थ्य, धन कुटुम्ब आदि से अशान्ति की मात्रा अधिक रहती है। जब तक जीवन रेखा में दोष रहता है व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की कमी रहती ही है।
दोष युक्त जीवन रेखा से कुटुम्ब बड़ा न होकर छोटा होता है। ऐसे व्यक्ति को किसी से भी लाभ अथवा सहयोग प्राप्त नहीं होता। आपसी कलह, विरोध तथा कुटुम्ब विग्रह से चित्त खिन्न रहता है। ससुराल से इनको कोई लाभ नहीं होता।
दोष पूर्ण जीवन रेखा की आयु में स्वयं या पत्नी को किसी न किसी प्रकार का शारीरिक दोष रहता है। ऐसा देखा गया है कि इस समय में स्त्रियों को गर्भाशय सम्बंधी विकार, मासिक धर्म के दोष या प्रदर आदि रहते हैं। इनके पेट में खराबी, निमोनिया आदि रोग रहते हैं।
उपरोक्त जीवन रेखा यदि कठोर हाथ में हो तो पेट, गुरदा, दमा आदि विकार शरीर में उत्पन्न करती है, तथा नरम हाथ में जिगर, मधुमेह, टी॰बी॰ आदि रोगों का संकेत है।
जीवन रेखा जिस समय तक दोष पूर्ण रहती है उस समय तक व्यक्ति को सम्पत्ति का सुख भी नहीं होता। साथ ही इनके रहने का स्थान भी ठीक, शान्ति-पूर्ण तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम नहीं होता। इस कारण इन्हें निवास सम्बंधी कमी लगातार खटकती रहती है।
यह स्वाभाविक है कि जब व्यक्ति मानसिक कष्ट से परेशान होता है या घर में बीमारी का साम्राज्य होता है, उस समय खर्च अधिक होने से आर्थिक स्थिति पर भी इसका अच्छा प्रभाव नही पड़ता, साथ ही व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन, धैर्य व आत्म विश्वास भी साथ नहीं दे पाता। नरम हाथ वाले व्यक्ति ऐसी अवस्था में बहुत जल्द घबराते हैं तथा कठोर हाथ वाले अपनी हिम्मत से परिस्थिति का सामना करते हैं।
इस आयु में माता-पिता का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं होता उनमें से किसी एक या दोनों को ही कोई न कोई रोग लगा होता है।
दोषपूर्ण जीवन रेखा की अवस्था में यदि मस्तिष्क रेखा बहुत अच्छी हो तो आसानी से जीवन यापन होता रहता है, कठिनाई आती अवश्य है परन्तु वह आसानी से दूर हो जाती है।
यदि हाथ भारी हो तो दोष का प्रभाव कम होता है। हम यह कह सकते हैं कि जीवन रेखा उन्हीं व्यक्तियों की दोषपूर्ण होती है जिनके पूर्व-दत्त कर्म दोषमय होते हैं। इस दोष की शान्ति केवल ईश्वर आराधना से सम्भव है। प्रभु की आराधना ही ऐसी है कि "अनहोनी होनी करे, होनी देय मिटाय"।
यदि मस्तिष्क रेखा शनि की अंगुली के नीचे दोषपूर्ण हो तो गर्भपात अवश्य होता है तथा सन्तान उत्पत्ति में कठिनाई रहती है।
इस प्रकार की जीवन रेखा के साथ हृदय रेखा दोषपूर्ण या चन्द्र उन्नत हो तो स्वयं या कुटुम्ब में किसी को मानसिक रोग, दिल की धड़कन, दिल बैठना या ऑपरेशन आदि होते हैं। हृदय रेखा या मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे दोष हो तो आंखों में खराबी होती है तथा यह कहा जा सकता है कि यह वंशानुगत रोग है।
जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर यदि मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होकर निकली हो तो बाल्यकाल में स्वयं का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता अर्थात् बचपन में कई बार अधिक बीमार होते हैं। यदि जीवन रेखा व मस्तिष्क रखा के बीच में चतुष्कोण हो तो भयंकर कष्टों से बार-बार रक्षा होती है।
जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर एक या दो सन्तान रहती हैं। यदि मस्तिष्क रेखा भी दोषपूर्ण हो तो सन्तानहीन रहता हैं। जीवन तथा मस्तिष्क रेखा यदि बायें हाथ में दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति का जन्म अशिक्षित परिवार में होता है व जन्म के समय उसके कुटुम्ब की दशा भी आर्थिक रूप से अच्छी नहीं होती। परिवार में अकाल मृत्यु, बीमारी, झगड़े व अधिक खर्च आदि रहते है।
जीवन रेखा खराब होने पर यदि भाग्य रेखा में दोष हो (द्वीप) तो पहली सन्तान का सुख नहीं रहता। पुत्र तो बचता ही नहीं, पहली सन्तान लड़की हो तो उसे भी स्वास्थ्य कष्ट होता है।
जिस आयु तक जीवन रेखा सीधी होती है उस समय में स्वास्थ्य, सन्तान की चिन्ता, कर्ज, कलह व रोग आदि चलते हैं। इस दशा में व्यक्ति के कार्य का पूरा मुल्य भी उसे नहीं मिल पाता अर्थात् जितना वह काम करता है उस अनुपात से पारिश्रमिक नहीं मिलता। जीवन रेखा में सीधापन होने से शारीरिक पीढ़ा, पेट विकार, यकृत विकार व वासनात्मक प्रवृत्ति की अधिकता पाई जाती है। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर टांगों के रोग अवश्याम्भावी होते हैं।
इनका कोई भी कार्य बिना रुकावट के सम्पन्न नहीं होता। ये बातूनी, गलत कार्य करने वाले, स्थाई न रह कर कार्य बदलने वाले, स्वयं कुआं खोद कर पानी पीने वाले होते हैं। इन्हें क्रोध आने पर गाली देने की आदत होती है। डटकर संघर्ष करते हैं व संघर्ष इन्हें बुरा नहीं लगता। परन्तु किसी के याद दिलाने पर मरे मन से भगवान् को धन्यवाद करते हैं कि ईश्वर की कृपा से ही इन्होंने कठिनाइयों को पार किया है।
इनकी सन्तान योग्य होती है। हाथ सुदृढ़ होने पर सन्तान आज्ञाकारी होती है, पढती है व उनमे से कोई अयोग्य भी निकलती है। कोमल हाथ होने की अवस्था में संतान का पूर्ण सुख होता है।
इनकी कमर में दर्द होता है। कभी-कभी यदि जीवन रेखा सीधी व इसमें द्वीप आदि भी हो तो रीड़ की हड्डी अपने स्थान से हट जाती है।
यदि सीधी जीवन रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो प्रजनन में कष्ट का सामना करना पड़ता। गर्भपात, रक्त-स्त्राव, गर्भाशय की नली बन्द हो जाना आदि दोष पाये जाते हैं। भाग्य रेखा भी यदि मोटी हो तो ऐसा निश्चय ही होता है। जीवन रेखा सीधी होने पर व्यक्ति के पेट में खराबी होती है, इन्हें कब्ज, पेट में अम्ल आदि का प्रभाव होता है। ऐसे व्यक्तियों को चाय आदि गरम चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। सिगरेट तथा नशा इनके लिए हानिकारक होते हैं।
जीवन रेखा आधी या आधी से अधिक सीधी होने पर आयु भर स्वास्थ्य चिन्ता लगी रहती है। कमर दर्द, सिर भारी, पेट खराब, भूख कम या अधिक लगना चलता रहता है।
अच्छी मस्तिष्क रेखा इस जीवन रेखा का दोष दूर करती है, परन्तु जीवन रेखा थोड़ी भी सीधी होने की दशा में कुछ समय तक झंझट अवश्य करती है।
मस्तिष्क रेखा अच्छी होने की अवस्था में काम आराम से चलता रहता है। शुक्र विशेष उन्नत होने पर व्यक्ति अति वासना प्रिय होता है। दूसरे लक्षण जैसे हृदय रेखा अंगुलियों के पास एवं इसका अन्त शनि और वृहस्पति की अंगुली के बीच होने पर ये लक्षण अधिक बढ़ जाते हैं जो जीवन में अपकीर्ति का कारण होते हैं।
मस्तिष्क रेखा मंगल से, शुक्र उठा, चन्द्रमा से भाग्य रेखा, भाग्य रेखा मोटी तथा उस में द्वीप, भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी व हृदय रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप या इसका अन्त शनि व वृहस्पति की अंगुलियों के बीच आदि कोई 2 या 3 लक्षण होने पर व्यक्ति चरित्रहीन होता है।
सीधी जीवन रेखा वाले व्यक्ति को एक्सीडेन्ट में चोट लगती है। इन्हें पितृ-दोष होता है, ऐसी दशा में यदि सन्तान सम्बन्धी परेशानी हो तो गया-श्राद्ध या पितृ-कर्म से शान्ति सम्भव है।
जीवन रेखा पहले गोलाकार, फिर सीधी तथा फिर गोलाकार हो तो जिस समय में यह सीधी होती है, उस समय में भारी परेशानियां आती हैं।
जीवन रेखा सीधी होने पर यदि शुक्र प्रधान, भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष, हृदय रेखा सीधी शनि पर गई हो तो व्यक्ति में चरित्र सम्बन्धी दोष होते हैं। जीवन रेखा का दोष निकलने पर चरित्र में स्वयं सुधार हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की हृदय रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो रोग होने के कारण चरित्र दोष नहीं रहते।
जीवन रेखा सीधी होने की दशा में काम, मकान व साझी कई बार बदलने पड़ते हैं। इनके पिता को भी जीवन में सुख शान्ति नहीं मिल पाती। उन्हें भी कई प्रकार के कार्य बदलने पड़ते हैं। व्यापार भी कई स्थान पर करना पड़ता है। यदि ऐसे व्यक्ति नौकरी में हों तो इनका तबादला भी स्थान-स्थान पर होता रहता है। ये तथा इनके पिता पूर्णत: स्व-निर्मिमत होते हैं। पिता का स्वभाव सीधा, दूसरों की सहायता करने का तथा सैद्धान्तिक मामलों में सख्त पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति मुकदमा लड़ना पसन्द नहीं करते परन्तु इनको मुकदमा भी लड़ना पड़ता है।
जीवन रेखा चन्द्रमा पर जाने की दशा में हाथ टेढ़ा-मेढ़ा, पतला और अंगुलियां तिरछी हों तो ऐसे व्यक्ति इधर-उधर घूम कर गुजारा करने वाले होते हैं। अंगुलियां मोटी तथा भाग्य रेखा गहरी हो तो खेती का योग होता है किन्तु जमीन एक स्थान पर नहीं होती। खेत कहीं और घर कहीं पर होता है।
जीवन रेखा गोलाकार होकर चन्द्रमा पर जाए तो कुटुम्ब बड़ा होने के कारण अशान्ति रहती है और चिन्ता का कारण बनती है। कोई सम्बन्धी भी इनकी चिन्ता का कारण रहता है। ऐसे व्यक्ति जायदाद की कमी महसूस करते हैं। चाहें कितने भी मकान हों, कुटुम्ब तथा कारोबार अधिक होने से सदैव ही स्थान की तंगी महसूस करते हैं।
जीवन रेखा सर्वश्रेष्ठ वही मानी जाती है जो वृहस्पति व मंगल के मध्य से उदय होकर पूर्ण रूप से शुक्र को घेरती हुई मणिबन्ध की ओर जाती है। ऐसी जीवन रेखा धन, सन्तान, सवारी, स्वास्थ्य, नौकर, जीवन-साथी तथा माता-पिता का पूर्ण सुख करने वाली होती है। इस रेखा का अन्त, मणीबन्ध के पास शुक्र व चन्द्रमा के बीच होता है।
जीवन रेखा में जितना ही दोष होता है स्वास्थ्य, धन कुटुम्ब आदि से अशान्ति की मात्रा अधिक रहती है। जब तक जीवन रेखा में दोष रहता है व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की कमी रहती ही है।
दोष युक्त जीवन रेखा से कुटुम्ब बड़ा न होकर छोटा होता है। ऐसे व्यक्ति को किसी से भी लाभ अथवा सहयोग प्राप्त नहीं होता। आपसी कलह, विरोध तथा कुटुम्ब विग्रह से चित्त खिन्न रहता है। ससुराल से इनको कोई लाभ नहीं होता।
दोष पूर्ण जीवन रेखा की आयु में स्वयं या पत्नी को किसी न किसी प्रकार का शारीरिक दोष रहता है। ऐसा देखा गया है कि इस समय में स्त्रियों को गर्भाशय सम्बंधी विकार, मासिक धर्म के दोष या प्रदर आदि रहते हैं। इनके पेट में खराबी, निमोनिया आदि रोग रहते हैं।
उपरोक्त जीवन रेखा यदि कठोर हाथ में हो तो पेट, गुरदा, दमा आदि विकार शरीर में उत्पन्न करती है, तथा नरम हाथ में जिगर, मधुमेह, टी॰बी॰ आदि रोगों का संकेत है।
जीवन रेखा जिस समय तक दोष पूर्ण रहती है उस समय तक व्यक्ति को सम्पत्ति का सुख भी नहीं होता। साथ ही इनके रहने का स्थान भी ठीक, शान्ति-पूर्ण तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम नहीं होता। इस कारण इन्हें निवास सम्बंधी कमी लगातार खटकती रहती है।
यह स्वाभाविक है कि जब व्यक्ति मानसिक कष्ट से परेशान होता है या घर में बीमारी का साम्राज्य होता है, उस समय खर्च अधिक होने से आर्थिक स्थिति पर भी इसका अच्छा प्रभाव नही पड़ता, साथ ही व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन, धैर्य व आत्म विश्वास भी साथ नहीं दे पाता। नरम हाथ वाले व्यक्ति ऐसी अवस्था में बहुत जल्द घबराते हैं तथा कठोर हाथ वाले अपनी हिम्मत से परिस्थिति का सामना करते हैं।
इस आयु में माता-पिता का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं होता उनमें से किसी एक या दोनों को ही कोई न कोई रोग लगा होता है।
दोषपूर्ण जीवन रेखा की अवस्था में यदि मस्तिष्क रेखा बहुत अच्छी हो तो आसानी से जीवन यापन होता रहता है, कठिनाई आती अवश्य है परन्तु वह आसानी से दूर हो जाती है।
यदि हाथ भारी हो तो दोष का प्रभाव कम होता है। हम यह कह सकते हैं कि जीवन रेखा उन्हीं व्यक्तियों की दोषपूर्ण होती है जिनके पूर्व-दत्त कर्म दोषमय होते हैं। इस दोष की शान्ति केवल ईश्वर आराधना से सम्भव है। प्रभु की आराधना ही ऐसी है कि "अनहोनी होनी करे, होनी देय मिटाय"।
यदि मस्तिष्क रेखा शनि की अंगुली के नीचे दोषपूर्ण हो तो गर्भपात अवश्य होता है तथा सन्तान उत्पत्ति में कठिनाई रहती है।
इस प्रकार की जीवन रेखा के साथ हृदय रेखा दोषपूर्ण या चन्द्र उन्नत हो तो स्वयं या कुटुम्ब में किसी को मानसिक रोग, दिल की धड़कन, दिल बैठना या ऑपरेशन आदि होते हैं। हृदय रेखा या मस्तिष्क रेखा में सूर्य के नीचे दोष हो तो आंखों में खराबी होती है तथा यह कहा जा सकता है कि यह वंशानुगत रोग है।
जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर यदि मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होकर निकली हो तो बाल्यकाल में स्वयं का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता अर्थात् बचपन में कई बार अधिक बीमार होते हैं। यदि जीवन रेखा व मस्तिष्क रखा के बीच में चतुष्कोण हो तो भयंकर कष्टों से बार-बार रक्षा होती है।
जीवन रेखा दोषपूर्ण होने पर एक या दो सन्तान रहती हैं। यदि मस्तिष्क रेखा भी दोषपूर्ण हो तो सन्तानहीन रहता हैं। जीवन तथा मस्तिष्क रेखा यदि बायें हाथ में दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति का जन्म अशिक्षित परिवार में होता है व जन्म के समय उसके कुटुम्ब की दशा भी आर्थिक रूप से अच्छी नहीं होती। परिवार में अकाल मृत्यु, बीमारी, झगड़े व अधिक खर्च आदि रहते है।
जीवन रेखा खराब होने पर यदि भाग्य रेखा में दोष हो (द्वीप) तो पहली सन्तान का सुख नहीं रहता। पुत्र तो बचता ही नहीं, पहली सन्तान लड़की हो तो उसे भी स्वास्थ्य कष्ट होता है।
सीधी जीवन रेखा
इस प्रकार की जीवन रेखा गोलाकार न होकर सीधी होती है। यह जीवन रेखा का दोष माना जाता है। अधिकतर हाथों में जीवन रेखा सीधी देखी जाती है। प्राय: ऐसा देखने में आता है कि जीवन रेखा आरम्भ में अर्थात् 35वर्ष की आयु तक अधिक सीधी पाई जाती है, परन्तु कहीं-कहीं पूरी जीवन रेखा में ही सीधापन होता है।जिस आयु तक जीवन रेखा सीधी होती है उस समय में स्वास्थ्य, सन्तान की चिन्ता, कर्ज, कलह व रोग आदि चलते हैं। इस दशा में व्यक्ति के कार्य का पूरा मुल्य भी उसे नहीं मिल पाता अर्थात् जितना वह काम करता है उस अनुपात से पारिश्रमिक नहीं मिलता। जीवन रेखा में सीधापन होने से शारीरिक पीढ़ा, पेट विकार, यकृत विकार व वासनात्मक प्रवृत्ति की अधिकता पाई जाती है। मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष होने पर टांगों के रोग अवश्याम्भावी होते हैं।
इनका कोई भी कार्य बिना रुकावट के सम्पन्न नहीं होता। ये बातूनी, गलत कार्य करने वाले, स्थाई न रह कर कार्य बदलने वाले, स्वयं कुआं खोद कर पानी पीने वाले होते हैं। इन्हें क्रोध आने पर गाली देने की आदत होती है। डटकर संघर्ष करते हैं व संघर्ष इन्हें बुरा नहीं लगता। परन्तु किसी के याद दिलाने पर मरे मन से भगवान् को धन्यवाद करते हैं कि ईश्वर की कृपा से ही इन्होंने कठिनाइयों को पार किया है।
इनकी सन्तान योग्य होती है। हाथ सुदृढ़ होने पर सन्तान आज्ञाकारी होती है, पढती है व उनमे से कोई अयोग्य भी निकलती है। कोमल हाथ होने की अवस्था में संतान का पूर्ण सुख होता है।
इनकी कमर में दर्द होता है। कभी-कभी यदि जीवन रेखा सीधी व इसमें द्वीप आदि भी हो तो रीड़ की हड्डी अपने स्थान से हट जाती है।
यदि सीधी जीवन रेखा के साथ मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो प्रजनन में कष्ट का सामना करना पड़ता। गर्भपात, रक्त-स्त्राव, गर्भाशय की नली बन्द हो जाना आदि दोष पाये जाते हैं। भाग्य रेखा भी यदि मोटी हो तो ऐसा निश्चय ही होता है। जीवन रेखा सीधी होने पर व्यक्ति के पेट में खराबी होती है, इन्हें कब्ज, पेट में अम्ल आदि का प्रभाव होता है। ऐसे व्यक्तियों को चाय आदि गरम चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। सिगरेट तथा नशा इनके लिए हानिकारक होते हैं।
जीवन रेखा आधी या आधी से अधिक सीधी होने पर आयु भर स्वास्थ्य चिन्ता लगी रहती है। कमर दर्द, सिर भारी, पेट खराब, भूख कम या अधिक लगना चलता रहता है।
अच्छी मस्तिष्क रेखा इस जीवन रेखा का दोष दूर करती है, परन्तु जीवन रेखा थोड़ी भी सीधी होने की दशा में कुछ समय तक झंझट अवश्य करती है।
मस्तिष्क रेखा अच्छी होने की अवस्था में काम आराम से चलता रहता है। शुक्र विशेष उन्नत होने पर व्यक्ति अति वासना प्रिय होता है। दूसरे लक्षण जैसे हृदय रेखा अंगुलियों के पास एवं इसका अन्त शनि और वृहस्पति की अंगुली के बीच होने पर ये लक्षण अधिक बढ़ जाते हैं जो जीवन में अपकीर्ति का कारण होते हैं।
मस्तिष्क रेखा मंगल से, शुक्र उठा, चन्द्रमा से भाग्य रेखा, भाग्य रेखा मोटी तथा उस में द्वीप, भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी व हृदय रेखा में सूर्य के नीचे द्वीप या इसका अन्त शनि व वृहस्पति की अंगुलियों के बीच आदि कोई 2 या 3 लक्षण होने पर व्यक्ति चरित्रहीन होता है।
सीधी जीवन रेखा वाले व्यक्ति को एक्सीडेन्ट में चोट लगती है। इन्हें पितृ-दोष होता है, ऐसी दशा में यदि सन्तान सम्बन्धी परेशानी हो तो गया-श्राद्ध या पितृ-कर्म से शान्ति सम्भव है।
जीवन रेखा पहले गोलाकार, फिर सीधी तथा फिर गोलाकार हो तो जिस समय में यह सीधी होती है, उस समय में भारी परेशानियां आती हैं।
जीवन रेखा सीधी होने पर यदि शुक्र प्रधान, भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुकी, मस्तिष्क रेखा में शनि के नीचे दोष, हृदय रेखा सीधी शनि पर गई हो तो व्यक्ति में चरित्र सम्बन्धी दोष होते हैं। जीवन रेखा का दोष निकलने पर चरित्र में स्वयं सुधार हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की हृदय रेखा में शनि के नीचे दोष हो तो रोग होने के कारण चरित्र दोष नहीं रहते।
जीवन रेखा सीधी होने की दशा में काम, मकान व साझी कई बार बदलने पड़ते हैं। इनके पिता को भी जीवन में सुख शान्ति नहीं मिल पाती। उन्हें भी कई प्रकार के कार्य बदलने पड़ते हैं। व्यापार भी कई स्थान पर करना पड़ता है। यदि ऐसे व्यक्ति नौकरी में हों तो इनका तबादला भी स्थान-स्थान पर होता रहता है। ये तथा इनके पिता पूर्णत: स्व-निर्मिमत होते हैं। पिता का स्वभाव सीधा, दूसरों की सहायता करने का तथा सैद्धान्तिक मामलों में सख्त पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति मुकदमा लड़ना पसन्द नहीं करते परन्तु इनको मुकदमा भी लड़ना पड़ता है।
जीवन रेखा का अंत
जीवन रेखा का अन्त शुक्र, चन्द्रमा या इन दोनों के बीच होता है। शुक्र व चन्द्रमा के मध्य में अन्त होने पर साधारण फल देने वाली जीवन रेखा होती है। जीवन रेखा के आकार तथा उसकी बनावट एवं चन्द्रमा पर जाकर अन्त होती है उसका फल अलग होता है।
जीवन रेखा का अंत चंद्रमा पर
जीवन रेखा जितनी ही सीधी होकर चन्द्रमा पर जाती है, व्यक्ति को उत्तरोत्तर उतना ही, स्त्री, धन व सन्तान का सुख होता जाता है। ऐसे व्यक्तियों को अन्त में ही सुख मिल पाता है। इनकी मध्यावस्था संघर्षपूर्ण रहती है। ऐसे व्यक्ति घर छोड़ कर बाहर नहीं जाना चाहते अत: काम छोड़ कर भी बच्चों के पास रहना पसन्द करते हैं, फलस्वरूप देर से जीवन बनता है। ये शुक्ल पक्ष में पैदा होते देखे जाते हैं। इनका स्वभाव भी कुछ सख्त होता है। जितनी ही जीवन रेखा चन्द्रमा की ओर बढ़ती जाती है उतना ही व्यक्ति पूर्व आयु में कठिनाई का सामना करता है। इस कठिनाई का अनुमान मस्तिष्क रेखा तथा भाग्य रेखा के दोष से लगाना चाहिए। इनकी पत्नी का स्वास्थ्य भी कमजोर होता है, वह वजन में भी भारी होती है। भार शादी के बाद ही बढ़ता है और विशेषत: सन्तान उत्पत्ति के पश्चात्। ये व्यक्ति चाहें कितने भी बड़े मकान में रहें तो भी इन्हें स्थान की कमी महसूस होती रहती है। इसके कारण हो सकते हैं। ऐसे व्यक्ति जन्म स्थान से अलग जाकर बसते हैं तथा वहीं अपनी जायदाद बनाते हैं।जीवन रेखा चन्द्रमा पर जाने की दशा में हाथ टेढ़ा-मेढ़ा, पतला और अंगुलियां तिरछी हों तो ऐसे व्यक्ति इधर-उधर घूम कर गुजारा करने वाले होते हैं। अंगुलियां मोटी तथा भाग्य रेखा गहरी हो तो खेती का योग होता है किन्तु जमीन एक स्थान पर नहीं होती। खेत कहीं और घर कहीं पर होता है।
जीवन रेखा गोलाकार होकर चन्द्रमा पर जाए तो कुटुम्ब बड़ा होने के कारण अशान्ति रहती है और चिन्ता का कारण बनती है। कोई सम्बन्धी भी इनकी चिन्ता का कारण रहता है। ऐसे व्यक्ति जायदाद की कमी महसूस करते हैं। चाहें कितने भी मकान हों, कुटुम्ब तथा कारोबार अधिक होने से सदैव ही स्थान की तंगी महसूस करते हैं।
जीवन रेखा सर्वश्रेष्ठ वही मानी जाती है जो वृहस्पति व मंगल के मध्य से उदय होकर पूर्ण रूप से शुक्र को घेरती हुई मणिबन्ध की ओर जाती है। ऐसी जीवन रेखा धन, सन्तान, सवारी, स्वास्थ्य, नौकर, जीवन-साथी तथा माता-पिता का पूर्ण सुख करने वाली होती है। इस रेखा का अन्त, मणीबन्ध के पास शुक्र व चन्द्रमा के बीच होता है।
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