हाथ का भली प्रकार निरीक्षण व समुचित ज्ञान अत्यावश्यक है। हाथ का आकार, लम्बाई, चौडाई, आकृती, रंग, उसका झुकाव, हाथ के अंगो की बनावट, ग्रहों की दशा आदि सभी कुछ देखने के बाद हाथ की रेखाओं को देखना चाहिए।
सबसे पहले हाथ के आकार पर ध्यान देना आवश्यक है। हाथ सात प्रकार के होते हैं। ये सात प्रकार उस समय होते हैं जब किसी अन्य प्रकार का मिश्रण नहीं हो। मानसिक मनोवृत्ति व व्यक्ति के कार्य का दृष्टिकोण देखने के लिए हाथ के विषय में जानना अति आवश्यक है। हम इस अध्याय में हाथ के मुख्य प्रकार तथा उसके अन्य लक्षणों के विषय में विचार करेंगे। एक ही रेखा अलग-अलग प्रकार के हाथ में अलग-अलग प्रकार के फल देती है। समकोण हाथ में जो रेखा एक फल देगी वही रेखा चमसाकार हाथ में दूसरा फल देती है, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में मानसिक मनोवृत्ति, आदत, पसन्द तथा वातावरण भिन्न होते हैं।
कुल मिला हाथ जितना चौड़ा, भारी, मोटा, सुन्दर, गुदगुदा, चिकना या सुडौल होता है इसके विपरीत पतला, काला, भद्दा तथा टेढ़ा-मेढ़ा हाथ न्यूनाधिक समस्याओं तथा दुर्भाग्य का लक्षण है।
अंगुठे का हाथ में बड़ा महत्व है। अंगुठा पतला, लम्बा, सुडौल, सुन्दर होने पर उत्तम माना जाता है। इसके विपरीत मोटा, छोटा, टोपाकार आदि अंगुठा उत्त् म नहीं माना जाता। अंगुठे के मूल में जीवन रेखा तक शुक्र पर्वत का स्थान है। इसकी स्थिति का भी उत्तम प्रकार से निरीक्षण करना चाहिए।
शुक्र से तर्जनी अंगुली की ओर मस्तिष्क रेखा से नीचे मंगल का स्थान है। यह मंगल अंगुठे वाला मंगल कहा गया है। यह जीवन रेखा के घेरे में होता है।
पहली अंगुली-
पहली अंगुली जिसे तर्जनी भी कहते हैं वृहस्पति की अंगुली कहलाती है। इसके नीचे का उभार वृहस्पति कहलाता है। यह जीवन रेखा से ऊपर अर्थात अंगुलियों की ओर होता है।
दूसरी अंगुली शनि की अंगुली कहलाती है। इसके नीचे शनि ग्रह का स्थान है। अधिकतर हाथों में शनि दबा होता है। शनि का स्थान हृदय-रेखा तक होता है। इसे मध्यमा अंगुली भी कहते हैं।
तीसरी अंगुली सूर्य की अंगुली कहलाती है। इसके नीचे और हृदय-रेखा से ऊपर सूर्य ग्रह का स्थान है। इसे अनामिका भी कहते हैं।
चौथी अंगुली कनिष्ठा, छोटी या बुध की अंगुली कहलाती है। इसके नीचे उभरा स्थान बुध ग्रह का स्थान है। यह हृदय रेखा से ऊपर होता है। हृदय-रेखा ठीक नीचे बुध पर्वत के साथ विपरीत मंगल अर्थात बुध वाला मंगल स्थित है।
इस मंगल के नीचे कलाई की ओर लम्बा व उभरा स्थान चन्द्रमा का है। यह स्थान शुक्र से कलाई के पास मिलता है तथा एक गहराई इन दोनों को अलग करती है।
इन ग्रहों के घेरे के बीच हथेली के मध्य में गहराई होती है। इसमें अंगुलियों तथा कलाई की ओर दो स्थान राहू व केतु के होते हैं।
यहाँ यह लिखना आवश्यक है कि कुछ ग्रह ऊपर से कम उठे हुए होते हैं परन्तु ग्रह की गाँठ तीखी अर्थात नोकीली होती है। नोकीली गाँठ उत्तम और बड़ी गाँठ मध्यम मानी जाती है। अत: गाँठों की भी परीक्षा अवश्य करनी चाहिए।
शनि की अंगुली से लेकर नीचे कलाई तक शनि क्षेत्र कहलाता है। इसी में राहू-केतु का स्थान होता है। इनका कोई स्वतन्त्र स्थान नहीं है। शनि क्षेत्र ही केतु व राहू का स्थान है। इनका फल भी शनि जैसा ही होता है। ग्रहों का स्थान उभरा और नोकीला भी हो तो उस ग्रह का उत्तम लक्षण है।
अंगूठे वाले मंगल से बुध वाले मंगल को मिलाने वाला क्षेत्र मंगल क्षेत्र कहा जाता है, जो हृदय-रेखा के बीच का भाग है। परन्तु जब हृदय व मस्तिष्क रेखा एक होती है तो मस्तिष्क रेखा के ऊपर का भाग मंगल क्षेत्र होता है।
1- जीवन रेखा-यह रेखा प्रथम अंगुली के नीचे से निकल कर अंगुठे को घेरती हुई कलाई को छूती है।
2- मस्तिष्क रेखा-यह रेखा अंगुली के नीचे जीवन रेखा से या स्वतन्त्र निकल कर बुध वाले मंगल की ओर जाती है। यह लगभग हथेली के मध्य में होती है।
3- हृदय रेखा-यह रेखा अंगुलियों के सबसे पास होती है तथा बुध की अंगुली के नीचे से निकल कर प्रथम अंगुली की ओर जाती है। यह शनि की अंगुली के नीचे शनि व वृहस्पति की अंगुली के बीच या सीधी प्रथम अंगुली के नीचे समाप्त होती है। साधारणतया रेखाएं जिधर से निकलती है उधर मोटी और अन्त में पतली होती जाती है।
4- भाग्य रेखा-यह रेखा कलाई की ओर से हथेली को पार करती हुई द्वितीय अंगुली तक या उसकी ओर जाती है। कोई भी रेखा शनि पर या शनि की ओर जाती हो तो भाग्य रेखा कहलाती है।
1- सूर्य रेखा-यह सब हाथों में नहीं होती। जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, भाग्य रेखा, हृदय रेखा या अन्य स्थान से निकल कर जो भी रेखा सूर्य पर जाती है-सूर्य रेखा कहलाती है।
2- स्वास्थ्य रेखा-जीवन रेखा से शुक्र और चन्द्र के पर्वत के मध्य से निकल कर बुध की अंगुली की ओर जाने वाली रेखा के तीन नाम हैं। यह रेखा मस्तिष्क रेखा तक जाती है तो अन्तर्ज्ञान रेखा, हृदय रेखा तक जाती है तो स्वास्थ्य रेखा तथा बुध की अंगुली के पास तक जाती है तो बुध रेखा या व्यापार रेखा कहलाती है।
3- मंगल रेखा-यह रेखा जीवन रेखा से अंगुठे की ओर 3/4 इन्च या कुछ अधिक दूरी पर, जीवन रेखा के साथ चलती है।
4- चन्द्र रेखा-यह रेखा दो प्रकार की होती है। एक ती जीवन रेखा से निकल कर चन्द्रमा पर जाती है और दूसरी अर्द्ध चन्द्राकार रेखा चन्द्रमा का घेरती है।
5- इच्छा रेखा-यह रेखा जीवन रेखा से निकल कर वृहस्पति पर जाती है।
6- राहू रेखा-ये रेखाएं जीवन और मस्तिष्क रेखा को काटती हैं। ये अंगूठे वाले मंगल से या शुक्र से उदय होती हैं। शेष अन्य गौण रेखाएं होती हैं जिनका वर्णन व परिचय यथा स्थान दे दिया गया है।
हाथ का अध्ययन करते समय दोनों हाथों का तुलनात्मक अध्ययन भी फलादेश कहने के लिए आवश्यक है। इस विषय में निम्न बातें विशेषतया देखनी चाहिए-
समकोण व चमसाकार आदि हाथों में एक विशेष बात यह पायी जाती है कि जब ऐसे व्यक्ति कठिनाई ग्रस्त होते हैं तो इनके मित्र, सम्बन्धी, पड़ौसी आदि सभी को किसी न किसी कठिनाई का सामना करना होता है और जब उपरोक्त व्यक्ति उन्नति करते हैं तो सभी को उन्नति व प्रसन्नता के समाचार मिलते हैं।
अंगूठा व हाथ को पूरा खोलने पर जब अंगूठा अपनी जगह पूरा खड़ा हो तब अंगूठे से लेकर पहली अंगुली के अन्तिम सिरे तक का नाप इच्छा-शक्ति और छोटी अंगुली से लेकर कलाई तक का नाप कर्म-शक्ति कहलाता है। इच्छा-शक्ति का नाप अधिक लम्बा होने पर व्यक्ति अधिक उन्नति करते देखे जाते हैं जबकि कर्म-शक्ति इच्छा-शक्ति के अनुपात में अधिक होने पर कार्य पर कार्य में रुकावट और सफलता में देरी होती है। कर्म-शक्ति के लम्बा होने पर व्यक्ति छोटे कार्य करने वाले, जम कर कार्य न करने वाले तथा बार-बार कार्य बदलने वाले होते हैं। इसके विपरीत जिन हाथों में इच्छा-शक्ति का नाप कर्म-शक्ति की अपेक्षा अधिक होता है ऐसे व्यक्ति सफल, कार्य-कुशल व प्रगतिशील होते हैं। बायें हाथ में दायें हाथ की अपेक्षा इच्छा-शक्ति अधिक हो तो व्यक्ति के पूर्वजों या पत्नी में कार्य-शक्ति अधिक होती है तथा दायें हाथ में इच्छा-शक्ति नाप कर्म-शक्ति से अधिक होने पर व्यक्ति में स्वयं तथा आने वाली सन्तान में प्रगति की प्रेरणा, कार्य की चेष्टा एवं उन्नति की ओर अग्रसर होने की इच्छा अधिक रहती है। अत: हाथ में इच्छा-शक्ति के विषय में विचार कर फल कहना उत्तम रहता है।
दोनो हाथों की रेखाओं में अन्तर होना आवश्यक है। अन्यथा व्यक्ति जीवन में विशेष प्रगति नहीं करता। दोनों हाथों में ठीक एक-सी रेखाएं होने पर व्यक्ति की उन्नति की गति कम होती है। ऐसे व्यक्ति कुटुम्ब परिपाटी निभाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं। ऐसे हाथों में इच्छा-शक्ति का नाप अधिक होने पर भी व्यक्ति अधिक उन्नति नहीं कर पाते, जबकि दोनों हाथों की रेखाओं में अन्तर होने पर इच्छा-शक्ति का नाप भी अधिक हो तो व्यक्ति जीवन में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं।
दोनों हाथों की रेखाओं में अन्तर होने पर भी यदि इच्छा-शक्ति का नाप कर्म-शक्ति की अपेक्षा कम है तो व्यक्ति सम्यक् परिवर्तन व क्रान्ति जीवन में नहीं कर पाता। यह भी देखना आवश्यक है कि यदि बायें हाथ में रेखाएं उत्तम हैं तो व्यक्ति की प्रगति की गति धीमी होती है और उसके पूर्वज अधिक चेष्टावान व प्रगतिशील होते हैं। रेखाएं निर्दोष होने पर ऐसे व्यक्ति ह्रास को तो प्राप्त नहीं होते, परन्तु धीमी उन्नति करते हैं या पूर्वजों से प्राप्त स्तर को बनाये रखते हैं। परन्तु दायें हाथ में बायें हाथ की अपेक्षा उत्तम रेखाएं होने पर व्यक्ति शीघ्र उन्नति करता है। ऐसे व्यक्ति की आने वाली सन्तान व ये स्वयं पूर्वजों की अपेक्षा अधिक प्रगतिशील देखे जाते हैं। इस दशा में इच्छा-शक्ति का नाप भी बड़ा हो तो क्या कहना ? ऐसे व्यक्ति के परिवर्तन व उन्नति क्रान्तिकारी होते हैं।
दोनों हाथों की चौड़ाई में अन्तर भी परिवर्तन, क्रान्ति व उन्नति का लक्षण है। कर्ता अर्थात दायां हाथ चौड़ा होने पर व्यक्ति व उसकी आने वाली पीढ़ी क्रियाशील व प्रगतिशील होती है परन्तु अकर्ता अर्थात बायां हाथ चौड़ा होने पर व्यक्ति आलसी होता है और जीवन के हर क्षेत्र में उसे कुछ न कुछ अशान्ति अनुभव होती रहती है। अगर ऐसे व्यक्ति बायें हाथ से कार्य करने वाले हैं तो कर्ता का अर्थ बायां हाथ ही लेना चाहिए। देखा गया है कि 50 प्रतिशत से अधिक व्यक्तियों का कर्ता हाथ ही चौड़ा होता है। हाथ की चौड़ाई में जितना ही अधिक अन्तर होता है व्यक्ति के चरित्र में उतनी ही अधिक विशेषता होने का लक्षण है।
हाथ में किसी भी लक्षण का अपना स्वतन्त्र महत्व नहीं होता, वरन् एक लक्षण का प्रभाव दूसरे लक्षण पर पड़ता है। लक्षण का एक दूसरे के साथ उचित समन्वय करने के पश्चात फल कहने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए कठोर हाथ वाला व्यक्ति साधारणतया क्रोधी होता है। परन्तु अंगूठा अधिक खुलने की दशा में ऐसे व्यक्ति समय के अनुसार क्रोध करने वाले होते हैं।
आलस्य के अन्य लक्षण होने पर मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा समानान्तर या भाग्य रेखा एक से अधिक होने पर आलसी न होकर क्रियाशील होता है, परन्तु इसी हाथ में अंगुलियां सपाट अर्थात बिना गांठ की व अंगूठा भी इसी प्रकार का होने पर आलस्य की मात्रा अधिक बढ़ जाती है।
वृहस्पति की अंगुली के दोनों नाखूनों का भी आपस में तुलनात्मक अध्ययन कर लेना चाहिए। वृहस्पति की अंगुली के दौनों नाखून समान लम्बे-चौड़े होने पर व्यक्ति में ग्राह्मशक्ति तथा समयानूसार उपयोग करने वाली बुद्धि की कमी पाई जाती है जबकि वृहस्पति की अंगुली के दौनों नाखूनों के आकार में अन्तर होनें पर व्यक्ति में उत्तम ग्राह्म-शक्ति और समय के अनुसार सोच समझ कर कार्य करने की चेष्टा होती है। ऐसे व्यक्ति अपेक्षाकृत शीघ्र सफलता प्राप्त करते हैं। इस दशा में इच्छा-शक्ति श्रेष्ठ होनें पर व्यक्ति की सफलता में चार चाँद लग जाते हैं।
वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली की तुलना में अधिक अर्थात 3/4 इन्च छोटी होने पर व्यक्ति के जीवन में कई बार प्रतिष्ठा पर आघात लगता है। अत: इन्हें जीवन का एक से अधिक बार शुभारम्भ करना पड़ता है-फलस्वरूप इच्छा-शक्ति अधिक होनें पर भी ऐसे व्यक्ति अपेक्षाकृत कम सफल हो पाते हैं जबकि वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली से लम्बी होने पर व्यक्ति में महत्वाकांक्षा बढ़ जाती है और सफलता की गति तीव्र हो जाती है। परन्तु वृहस्पति की अंगुली अधिक लम्बी होने पर व्यक्ति में विशेष महत्वाकांक्षा बढ़ने के कारण वह छोटे कार्य नहीं कर पाता, जिसके फलस्वरूप ऐसे व्यक्ति को स्थायित्व देर से प्राप्त हो पाता है और इच्छा-शक्ति विशेष उत्तम होते हुए भी स्थायित्व प्राप्त करने में देर लग जाती है। ऐसे व्यक्ति जब उन्नति करना आरम्भ करते हैं तो निरन्तर सफलता ही प्राप्त करते चले जाते हैं।
मस्तिष्क रेखा स्वतन्त्र होने पर इच्छा-शक्ति का नाप अधिक हो तो व्यक्ति लापरवाही के कारण देर में सफल हो पाता है। इस दशा में वृहस्पति की अंगुली भी सूर्य की अंगुली से बड़ी हो तो आरम्भ में लापरवाही के कारण शिक्षा एवं व्यापार में शक्ति-संतुलन का अभाव रहता है।
शनि व सूर्य की अंगुली नाखून की ओर से समान होने पर इच्छा-शक्ति अधिक हो, साथ ही मस्तिष्क रेखा भी अलग हो तो कई बार भयंकर हानि के कारण उपस्थित होते है। ऐसे व्यक्ति सट्टे, बड़े कार्य या एक साथ कई कार्य करने या अपनी स्थिति की अपेक्षा अधिक व्यय करने के कारण हानि को प्राप्त होते है।
इच्छा-शक्ति बड़ी होने की दशा में मस्तिष्क रेखा अलग व सूर्य की अंगुली से वृहस्पति की अंगुली 3/4 इन्च छोटी होने पर यदि बुध की अंगुली भी विशेष टेढ़ी या छोटी हो तो ऐसे व्यक्ति असामाजिक कार्य जैसे अपहरण, धोखा-धड़ी, डाका, पाकेटमारी आदि करने के कारण जेल यात्रा करते है।
सबसे पहले हाथ के आकार पर ध्यान देना आवश्यक है। हाथ सात प्रकार के होते हैं। ये सात प्रकार उस समय होते हैं जब किसी अन्य प्रकार का मिश्रण नहीं हो। मानसिक मनोवृत्ति व व्यक्ति के कार्य का दृष्टिकोण देखने के लिए हाथ के विषय में जानना अति आवश्यक है। हम इस अध्याय में हाथ के मुख्य प्रकार तथा उसके अन्य लक्षणों के विषय में विचार करेंगे। एक ही रेखा अलग-अलग प्रकार के हाथ में अलग-अलग प्रकार के फल देती है। समकोण हाथ में जो रेखा एक फल देगी वही रेखा चमसाकार हाथ में दूसरा फल देती है, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में मानसिक मनोवृत्ति, आदत, पसन्द तथा वातावरण भिन्न होते हैं।
कुल मिला हाथ जितना चौड़ा, भारी, मोटा, सुन्दर, गुदगुदा, चिकना या सुडौल होता है इसके विपरीत पतला, काला, भद्दा तथा टेढ़ा-मेढ़ा हाथ न्यूनाधिक समस्याओं तथा दुर्भाग्य का लक्षण है।
अंगुठा-
अंगुठे का हाथ में बड़ा महत्व है। अंगुठा पतला, लम्बा, सुडौल, सुन्दर होने पर उत्तम माना जाता है। इसके विपरीत मोटा, छोटा, टोपाकार आदि अंगुठा उत्त् म नहीं माना जाता। अंगुठे के मूल में जीवन रेखा तक शुक्र पर्वत का स्थान है। इसकी स्थिति का भी उत्तम प्रकार से निरीक्षण करना चाहिए।
शुक्र से तर्जनी अंगुली की ओर मस्तिष्क रेखा से नीचे मंगल का स्थान है। यह मंगल अंगुठे वाला मंगल कहा गया है। यह जीवन रेखा के घेरे में होता है।
पहली अंगुली-
पहली अंगुली जिसे तर्जनी भी कहते हैं वृहस्पति की अंगुली कहलाती है। इसके नीचे का उभार वृहस्पति कहलाता है। यह जीवन रेखा से ऊपर अर्थात अंगुलियों की ओर होता है।दूसरी अंगुली-
दूसरी अंगुली शनि की अंगुली कहलाती है। इसके नीचे शनि ग्रह का स्थान है। अधिकतर हाथों में शनि दबा होता है। शनि का स्थान हृदय-रेखा तक होता है। इसे मध्यमा अंगुली भी कहते हैं।
तीसरी अंगुली-
तीसरी अंगुली सूर्य की अंगुली कहलाती है। इसके नीचे और हृदय-रेखा से ऊपर सूर्य ग्रह का स्थान है। इसे अनामिका भी कहते हैं।
चौथी अंगुली-
चौथी अंगुली कनिष्ठा, छोटी या बुध की अंगुली कहलाती है। इसके नीचे उभरा स्थान बुध ग्रह का स्थान है। यह हृदय रेखा से ऊपर होता है। हृदय-रेखा ठीक नीचे बुध पर्वत के साथ विपरीत मंगल अर्थात बुध वाला मंगल स्थित है।
इस मंगल के नीचे कलाई की ओर लम्बा व उभरा स्थान चन्द्रमा का है। यह स्थान शुक्र से कलाई के पास मिलता है तथा एक गहराई इन दोनों को अलग करती है।
इन ग्रहों के घेरे के बीच हथेली के मध्य में गहराई होती है। इसमें अंगुलियों तथा कलाई की ओर दो स्थान राहू व केतु के होते हैं।
यहाँ यह लिखना आवश्यक है कि कुछ ग्रह ऊपर से कम उठे हुए होते हैं परन्तु ग्रह की गाँठ तीखी अर्थात नोकीली होती है। नोकीली गाँठ उत्तम और बड़ी गाँठ मध्यम मानी जाती है। अत: गाँठों की भी परीक्षा अवश्य करनी चाहिए।
शनि की अंगुली से लेकर नीचे कलाई तक शनि क्षेत्र कहलाता है। इसी में राहू-केतु का स्थान होता है। इनका कोई स्वतन्त्र स्थान नहीं है। शनि क्षेत्र ही केतु व राहू का स्थान है। इनका फल भी शनि जैसा ही होता है। ग्रहों का स्थान उभरा और नोकीला भी हो तो उस ग्रह का उत्तम लक्षण है।
अंगूठे वाले मंगल से बुध वाले मंगल को मिलाने वाला क्षेत्र मंगल क्षेत्र कहा जाता है, जो हृदय-रेखा के बीच का भाग है। परन्तु जब हृदय व मस्तिष्क रेखा एक होती है तो मस्तिष्क रेखा के ऊपर का भाग मंगल क्षेत्र होता है।
मुख्य रेखाएं
1- जीवन रेखा-यह रेखा प्रथम अंगुली के नीचे से निकल कर अंगुठे को घेरती हुई कलाई को छूती है।
2- मस्तिष्क रेखा-यह रेखा अंगुली के नीचे जीवन रेखा से या स्वतन्त्र निकल कर बुध वाले मंगल की ओर जाती है। यह लगभग हथेली के मध्य में होती है।
3- हृदय रेखा-यह रेखा अंगुलियों के सबसे पास होती है तथा बुध की अंगुली के नीचे से निकल कर प्रथम अंगुली की ओर जाती है। यह शनि की अंगुली के नीचे शनि व वृहस्पति की अंगुली के बीच या सीधी प्रथम अंगुली के नीचे समाप्त होती है। साधारणतया रेखाएं जिधर से निकलती है उधर मोटी और अन्त में पतली होती जाती है।
4- भाग्य रेखा-यह रेखा कलाई की ओर से हथेली को पार करती हुई द्वितीय अंगुली तक या उसकी ओर जाती है। कोई भी रेखा शनि पर या शनि की ओर जाती हो तो भाग्य रेखा कहलाती है।
अन्य महत्वपूर्ण रेखाएं
1- सूर्य रेखा-यह सब हाथों में नहीं होती। जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, भाग्य रेखा, हृदय रेखा या अन्य स्थान से निकल कर जो भी रेखा सूर्य पर जाती है-सूर्य रेखा कहलाती है।
2- स्वास्थ्य रेखा-जीवन रेखा से शुक्र और चन्द्र के पर्वत के मध्य से निकल कर बुध की अंगुली की ओर जाने वाली रेखा के तीन नाम हैं। यह रेखा मस्तिष्क रेखा तक जाती है तो अन्तर्ज्ञान रेखा, हृदय रेखा तक जाती है तो स्वास्थ्य रेखा तथा बुध की अंगुली के पास तक जाती है तो बुध रेखा या व्यापार रेखा कहलाती है।
3- मंगल रेखा-यह रेखा जीवन रेखा से अंगुठे की ओर 3/4 इन्च या कुछ अधिक दूरी पर, जीवन रेखा के साथ चलती है।
4- चन्द्र रेखा-यह रेखा दो प्रकार की होती है। एक ती जीवन रेखा से निकल कर चन्द्रमा पर जाती है और दूसरी अर्द्ध चन्द्राकार रेखा चन्द्रमा का घेरती है।
5- इच्छा रेखा-यह रेखा जीवन रेखा से निकल कर वृहस्पति पर जाती है।
6- राहू रेखा-ये रेखाएं जीवन और मस्तिष्क रेखा को काटती हैं। ये अंगूठे वाले मंगल से या शुक्र से उदय होती हैं। शेष अन्य गौण रेखाएं होती हैं जिनका वर्णन व परिचय यथा स्थान दे दिया गया है।
Note:-
हाथ का अध्ययन करते समय दोनों हाथों का तुलनात्मक अध्ययन भी फलादेश कहने के लिए आवश्यक है। इस विषय में निम्न बातें विशेषतया देखनी चाहिए-
समकोण व चमसाकार आदि हाथों में एक विशेष बात यह पायी जाती है कि जब ऐसे व्यक्ति कठिनाई ग्रस्त होते हैं तो इनके मित्र, सम्बन्धी, पड़ौसी आदि सभी को किसी न किसी कठिनाई का सामना करना होता है और जब उपरोक्त व्यक्ति उन्नति करते हैं तो सभी को उन्नति व प्रसन्नता के समाचार मिलते हैं।
अंगूठा व हाथ को पूरा खोलने पर जब अंगूठा अपनी जगह पूरा खड़ा हो तब अंगूठे से लेकर पहली अंगुली के अन्तिम सिरे तक का नाप इच्छा-शक्ति और छोटी अंगुली से लेकर कलाई तक का नाप कर्म-शक्ति कहलाता है। इच्छा-शक्ति का नाप अधिक लम्बा होने पर व्यक्ति अधिक उन्नति करते देखे जाते हैं जबकि कर्म-शक्ति इच्छा-शक्ति के अनुपात में अधिक होने पर कार्य पर कार्य में रुकावट और सफलता में देरी होती है। कर्म-शक्ति के लम्बा होने पर व्यक्ति छोटे कार्य करने वाले, जम कर कार्य न करने वाले तथा बार-बार कार्य बदलने वाले होते हैं। इसके विपरीत जिन हाथों में इच्छा-शक्ति का नाप कर्म-शक्ति की अपेक्षा अधिक होता है ऐसे व्यक्ति सफल, कार्य-कुशल व प्रगतिशील होते हैं। बायें हाथ में दायें हाथ की अपेक्षा इच्छा-शक्ति अधिक हो तो व्यक्ति के पूर्वजों या पत्नी में कार्य-शक्ति अधिक होती है तथा दायें हाथ में इच्छा-शक्ति नाप कर्म-शक्ति से अधिक होने पर व्यक्ति में स्वयं तथा आने वाली सन्तान में प्रगति की प्रेरणा, कार्य की चेष्टा एवं उन्नति की ओर अग्रसर होने की इच्छा अधिक रहती है। अत: हाथ में इच्छा-शक्ति के विषय में विचार कर फल कहना उत्तम रहता है।
दोनो हाथों की रेखाओं में अन्तर होना आवश्यक है। अन्यथा व्यक्ति जीवन में विशेष प्रगति नहीं करता। दोनों हाथों में ठीक एक-सी रेखाएं होने पर व्यक्ति की उन्नति की गति कम होती है। ऐसे व्यक्ति कुटुम्ब परिपाटी निभाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं। ऐसे हाथों में इच्छा-शक्ति का नाप अधिक होने पर भी व्यक्ति अधिक उन्नति नहीं कर पाते, जबकि दोनों हाथों की रेखाओं में अन्तर होने पर इच्छा-शक्ति का नाप भी अधिक हो तो व्यक्ति जीवन में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं।
दोनों हाथों की रेखाओं में अन्तर होने पर भी यदि इच्छा-शक्ति का नाप कर्म-शक्ति की अपेक्षा कम है तो व्यक्ति सम्यक् परिवर्तन व क्रान्ति जीवन में नहीं कर पाता। यह भी देखना आवश्यक है कि यदि बायें हाथ में रेखाएं उत्तम हैं तो व्यक्ति की प्रगति की गति धीमी होती है और उसके पूर्वज अधिक चेष्टावान व प्रगतिशील होते हैं। रेखाएं निर्दोष होने पर ऐसे व्यक्ति ह्रास को तो प्राप्त नहीं होते, परन्तु धीमी उन्नति करते हैं या पूर्वजों से प्राप्त स्तर को बनाये रखते हैं। परन्तु दायें हाथ में बायें हाथ की अपेक्षा उत्तम रेखाएं होने पर व्यक्ति शीघ्र उन्नति करता है। ऐसे व्यक्ति की आने वाली सन्तान व ये स्वयं पूर्वजों की अपेक्षा अधिक प्रगतिशील देखे जाते हैं। इस दशा में इच्छा-शक्ति का नाप भी बड़ा हो तो क्या कहना ? ऐसे व्यक्ति के परिवर्तन व उन्नति क्रान्तिकारी होते हैं।
दोनों हाथों की चौड़ाई में अन्तर भी परिवर्तन, क्रान्ति व उन्नति का लक्षण है। कर्ता अर्थात दायां हाथ चौड़ा होने पर व्यक्ति व उसकी आने वाली पीढ़ी क्रियाशील व प्रगतिशील होती है परन्तु अकर्ता अर्थात बायां हाथ चौड़ा होने पर व्यक्ति आलसी होता है और जीवन के हर क्षेत्र में उसे कुछ न कुछ अशान्ति अनुभव होती रहती है। अगर ऐसे व्यक्ति बायें हाथ से कार्य करने वाले हैं तो कर्ता का अर्थ बायां हाथ ही लेना चाहिए। देखा गया है कि 50 प्रतिशत से अधिक व्यक्तियों का कर्ता हाथ ही चौड़ा होता है। हाथ की चौड़ाई में जितना ही अधिक अन्तर होता है व्यक्ति के चरित्र में उतनी ही अधिक विशेषता होने का लक्षण है।
हाथ में किसी भी लक्षण का अपना स्वतन्त्र महत्व नहीं होता, वरन् एक लक्षण का प्रभाव दूसरे लक्षण पर पड़ता है। लक्षण का एक दूसरे के साथ उचित समन्वय करने के पश्चात फल कहने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए कठोर हाथ वाला व्यक्ति साधारणतया क्रोधी होता है। परन्तु अंगूठा अधिक खुलने की दशा में ऐसे व्यक्ति समय के अनुसार क्रोध करने वाले होते हैं।
आलस्य के अन्य लक्षण होने पर मस्तिष्क रेखा व हृदय रेखा समानान्तर या भाग्य रेखा एक से अधिक होने पर आलसी न होकर क्रियाशील होता है, परन्तु इसी हाथ में अंगुलियां सपाट अर्थात बिना गांठ की व अंगूठा भी इसी प्रकार का होने पर आलस्य की मात्रा अधिक बढ़ जाती है।
वृहस्पति की अंगुली के दोनों नाखूनों का भी आपस में तुलनात्मक अध्ययन कर लेना चाहिए। वृहस्पति की अंगुली के दौनों नाखून समान लम्बे-चौड़े होने पर व्यक्ति में ग्राह्मशक्ति तथा समयानूसार उपयोग करने वाली बुद्धि की कमी पाई जाती है जबकि वृहस्पति की अंगुली के दौनों नाखूनों के आकार में अन्तर होनें पर व्यक्ति में उत्तम ग्राह्म-शक्ति और समय के अनुसार सोच समझ कर कार्य करने की चेष्टा होती है। ऐसे व्यक्ति अपेक्षाकृत शीघ्र सफलता प्राप्त करते हैं। इस दशा में इच्छा-शक्ति श्रेष्ठ होनें पर व्यक्ति की सफलता में चार चाँद लग जाते हैं।
वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली की तुलना में अधिक अर्थात 3/4 इन्च छोटी होने पर व्यक्ति के जीवन में कई बार प्रतिष्ठा पर आघात लगता है। अत: इन्हें जीवन का एक से अधिक बार शुभारम्भ करना पड़ता है-फलस्वरूप इच्छा-शक्ति अधिक होनें पर भी ऐसे व्यक्ति अपेक्षाकृत कम सफल हो पाते हैं जबकि वृहस्पति की अंगुली सूर्य की अंगुली से लम्बी होने पर व्यक्ति में महत्वाकांक्षा बढ़ जाती है और सफलता की गति तीव्र हो जाती है। परन्तु वृहस्पति की अंगुली अधिक लम्बी होने पर व्यक्ति में विशेष महत्वाकांक्षा बढ़ने के कारण वह छोटे कार्य नहीं कर पाता, जिसके फलस्वरूप ऐसे व्यक्ति को स्थायित्व देर से प्राप्त हो पाता है और इच्छा-शक्ति विशेष उत्तम होते हुए भी स्थायित्व प्राप्त करने में देर लग जाती है। ऐसे व्यक्ति जब उन्नति करना आरम्भ करते हैं तो निरन्तर सफलता ही प्राप्त करते चले जाते हैं।
मस्तिष्क रेखा स्वतन्त्र होने पर इच्छा-शक्ति का नाप अधिक हो तो व्यक्ति लापरवाही के कारण देर में सफल हो पाता है। इस दशा में वृहस्पति की अंगुली भी सूर्य की अंगुली से बड़ी हो तो आरम्भ में लापरवाही के कारण शिक्षा एवं व्यापार में शक्ति-संतुलन का अभाव रहता है।
शनि व सूर्य की अंगुली नाखून की ओर से समान होने पर इच्छा-शक्ति अधिक हो, साथ ही मस्तिष्क रेखा भी अलग हो तो कई बार भयंकर हानि के कारण उपस्थित होते है। ऐसे व्यक्ति सट्टे, बड़े कार्य या एक साथ कई कार्य करने या अपनी स्थिति की अपेक्षा अधिक व्यय करने के कारण हानि को प्राप्त होते है।
इच्छा-शक्ति बड़ी होने की दशा में मस्तिष्क रेखा अलग व सूर्य की अंगुली से वृहस्पति की अंगुली 3/4 इन्च छोटी होने पर यदि बुध की अंगुली भी विशेष टेढ़ी या छोटी हो तो ऐसे व्यक्ति असामाजिक कार्य जैसे अपहरण, धोखा-धड़ी, डाका, पाकेटमारी आदि करने के कारण जेल यात्रा करते है।
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